मेघालय
पूर्वोत्तर भारत मे स्थित एक राज्य विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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मेघालय पूर्वोत्तर भारत का एक राज्य है जिसका शाब्दिक अर्थ है बादलों का घर । 2016 के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 32,11,474 है[3] एवं विस्तार 22,429 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में है, जिसका लम्बाई से चौड़ाई अनुपात लगभग 3:1 का है।[4] राज्य का दक्षिणी छोर मयमनसिंह एवं सिलहट बांग्लादेशी विभागों से लगता है, पश्चिमी ओर रंगपुर बांग्लादेशी भाग तथा उत्तर एवं पूर्वी ओर भारतीय राज्य असम से घिरा हुआ है। राज्य की राजधानी शिलांग है। भारत में ब्रिटिश राज के समय तत्कालीन ब्रिटिश शाही अधिकारियों द्वारा इसे "पूर्व का स्काटलैण्ड" संज्ञा दी गयी थी।[5] मेघालय पहले असम राज्य का ही भाग था, 21 जनवरी 1972 को असम के खासी, गारो एवं जैन्तिया पर्वतीय जिलों को काटकर नया राज्य मेघालय अस्तित्व में लाया गया। यहाँ की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। इसके अलावा अन्य मुख्यतः बोली जाने वाली भाषाओं में खासी, गारो, प्नार, बियाट, हजोंग एवं बांग्ला आती हैं। इनके अलावा यहाँ हिंदी भी कुछ कुछ बोली समझी जाती है जिसके बोलने वाले मुख्यतः शिलांग में मिलते हैं। भारत के अन्य राज्यों से अलग यहाँ मातृवंशीय प्रणाली चलती है, जिसमें वंशावली माँ (महिला) के नाम से चलती है और सबसे छोटी बेटी अपने माता पिता की देखभाल करती है तथा उसे ही उनकी सारी संपत्ति मिलती है।[5]
मेघालय | ||
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राज्य | ||
चेरापुंजी, पूर्वोत्तर भारत का सर्वाधिक प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षण, मेघालय में स्थित है एवं एक कैलेण्डर वर्ष में विश्व की सर्वाधिक वर्षा का कीर्तिमान धारण करता है। | ||
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निर्देशांक (शिलाँग): 25.57°N 91.88°E | ||
राष्ट्र | भारत | |
स्थापना | 1 april 1970† | |
राजधानी | शिलांग | |
सबसे बड़ा शहर | शिलांग | |
जिले | ११ | |
शासन | ||
• विधान सभा | एकसदनीय (60 क्षेत्र) | |
• संसदीय निर्वाचन क्षेत्र | राज्य सभा 1 लोक सभा 2 | |
• उच्च न्यायालय | मेघालय उच्च न्यायालय | |
क्षेत्रफल | ||
• कुल | 22,429 किमी2 (8,660 वर्गमील) | |
क्षेत्र दर्जा | २३वां | |
जनसंख्या (2016) | ||
• कुल | 3,212,000 | |
• दर्जा | २३वां[1] | |
• घनत्व | 140 किमी2 (370 वर्गमील) | |
समय मण्डल | IST (यूटीसी+05:30) | |
आई॰एस॰ओ॰ ३१६६ कोड | IN-ML | |
HDI | 0.585 (मध्यम) | |
एचडीआई दर्जा | 19वाँ (2005) | |
साक्षरता | 75.84% (२४वां]])[1] | |
आधिकारिक भाषा | गारो एवं खासी भाषाएँ[2] | |
वेबसाइट | meghalaya.gov.in | |
† इसे पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्संगठन) अधिनियम १९७१ के अन्तर्गत २१ जनवरी १९७२ में पूर्ण राज्य का दर्जा मिला |
यह राज्य भारत का आर्द्रतम क्षेत्र है, जहाँ वार्षिक औसत वर्षा 12,000 मि॰मी॰ (470 इंच) दर्ज हुई है।[4] राज्य का 70% से अधिक क्षेत्र वनाच्छादित है।[6] राज्य में मेघालय उपोष्णकटिबंधीय वन पर्यावरण क्षेत्रों का विस्तार है, यहाँ के पर्वतीय वन उत्तर से दक्षिण के अन्य निचले क्षेत्रों के उष्णकटिबन्धीय वनों से पृथक हैं। ये वन स्तनधारी पशुओ, पक्षियों तथा वृक्षों की जैवविविधता के मामलों में विशेष उल्लेखनीय हैं।
मेघालय में मुख्य रूप से कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था(अग्रेरियन) है जिसमें वाणिज्यिक वन उद्योग का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। यहाँ की मुख्य फसल में आलू, चावल, मक्का, अनान्नास, केला, पपीता एवं दालचीनी, हल्दी आदि बहुत से मसाले, आदि हैं। सेवा क्षेत्र में मुख्यतः अचल संपत्ति एवं बीमा कम्पनियाँ हैं। वर्ष 2012 के लिये मेघालय का सकल राज्य घरेलू उत्पाद ₹16,173 करोड़ (US$2.36 अरब) अनुमानित था। राज्य भूगर्भ संपदाओं की दृष्टि से खनिजों से सम्पन्न है किंतु अभी तक इससे संबंधित कोई उल्लेखनीय उद्योग चालू नहीं हुए हैं।[5] राज्य में लगभग 1,170 कि॰मी॰ (730 मील) लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग बने हैं। यह बांग्लादेश के साथ व्यापार के लिए एक प्रमुख लॉजिस्टिक केंद्र भी है।[4]
मेघालय[7] शब्द का शब्दिक अर्थ है: मेघों का आलय या घर।[8] यह संस्कृत मूल से निकला है। इस शब्द की व्युत्पत्ति कलकत्ता विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग के प्राध्यापक एमेरिटस डॉ॰एस पी॰चटर्जी द्वारा की गई थी।[9] इस नाम पर आरम्भ में इसके नाम पर काफ़ी विरोध हुआ, क्योंकि अन्य पूर्वोत्तर राज्यों की भांति, जिनके नाम उनके निवासियों से संबंधित थे, जैसे मिज़ोरम: मिज़ो जनजाति, नागालैण्ड: नागा लोग, असम: असोम या अहोम लोग के नाम पर है; किन्तु मेघालय शब्द से स्थानीय गारो, खासी या जयंतिया जनजातियों का नाम कहीं सम्बन्धित नहीं होता है। किन्तु कालान्तर में इसे अपना लिया गया।[10]
अपने अन्य पड़ोसी पूर्वोत्तर-भारतीय राज्यों के साथ ही, मेघालय भी पुरातात्त्विक रुचि का केन्द्र रहा है। यहाँ लोग नवपाषाण युग से निवास करते आ रहे हैं। अब तक खोजे गए नवपाषाण स्थल प्रायः ऊँचे स्थानों पर मिले हैं, जैसे यहाँ के खासी और गारो पर्वत एवं पड़ोसी राज्यों में भी। यहाँ नवपाषाण शैली की झूम कृषि शैली अभी तक अभ्यास में है। यहाँ के हाईलैंड पठार खनिज संपन्न मृदा के साथ साथ प्रचुर वर्षा होने पर भी बाढ़ से रोकथाम करने में सहायक होते हैं।[11] मानव इतिहास में मेघालय का महत्त्व धान की फसल के घरेलु व्यवसायीकरण से जुड़ा हुआ है। चावल के उद्गम से जुड़े प्रतिस्पर्धी सिद्धांतों में आयन ग्लोवर के सिद्धांत के अनुसार, "भारत 20,000 से अधिक पहचान वाली प्रजातियों के साथ घरेलु चावल की सबसे बड़ी विविधता का केंद्र है और पूर्वोत्तर भारत घरेलु चावल की उत्पत्ति का इकलौता क्षेत्र है जो सबसे अनुकूल है।" [12] मेघालय की पहाड़ियों में की गयी सीमित पुरातात्विक शोध सुझाती है कि यहाँ मानव का निवास प्राचीन काल से रहा है। भारत 20,000 से अधिक पहचान वाली प्रजातियों के साथ घरेलु चावल की सबसे बड़ी विविधता का केंद्र है और उसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र घरेलु चावल की उत्पत्ति का अकेला सबसे अनुकूल क्षेत्र है।
मेघालय का गठन असम राज्य के दो बड़े जिलों संयुक्त खासी हिल्स एवं जयन्तिया हिल्स को असम से अलग कर 21 जनवरी, 1972 को किया गया था। इसे पूर्ण राज्य का दर्जा देने से पूर्व 1970 में अर्ध-स्वायत्त दर्जा दिया गया था।[13]
19वीं शताब्दी में ब्रिटिश राज के अधीन आने से पूर्व गारो, खासी एवं जयंतिया जनजातियों के अपने राज्य हुआ करते थे। कालांतर में ब्रिटिश ने 1935 में तत्कालीन मेघालय को असम के अधीन कर दिया था।[14] तब इस क्षेत्र को ब्रिटिश राज के साथ एक संधि के तहत अर्ध-स्वतंत्र दर्जा मिला हुआ था। 16 अक्तूबर 1905 में लॉर्ड कर्ज़न द्वारा बंगाल के विभाजन होने पर मेघालय नवगठित प्रांत पूर्वी बंगाल एवं असम का भाग बना। हालाँकि इस विभाजन के 1912 में वापस पलट दिये जाने पर मेघालय असम का भाग बना। 3 जनवरी 1921 को भारत सरकार के 1919 के अधिनियम की धारा 52ए के अनुसरण में, गवर्नर-जनरल-इन-काउन्सिल ने मेघालय के खासी राज्य के अलावा अन्य सभी क्षेत्रों को पिछड़े क्षेत्र घोषित कर दिया था। इसके बाद, ब्रिटिश प्रशासन ने भारत सरकार के अधिनियम 1935 के तहत इसे अधिनियमित किया। इस अधिनियम के अंतर्गत पिछड़े क्षेत्रों को दो श्रेणियों,- अपवर्जित एवं आंशिक अपवर्जित में पुनर्समूहीकृत किया।
1947 में स्वतंत्रता के समय, वर्तमान मेघालय में असम के दो जिले थे और यह क्षेत्र असम राज्य के अधीन होते हुए भी सीमित स्वायत्त क्षेत्र था।
1960 में एक पृथक पर्वतीय राज्य की मांग उठने लगी।[13] 1969 के असम पुनर्संगठन (मेघालय) अधिनियम के अन्तर्गत मेघालय को स्वायत्त राज्य बनाया गया। यह अधिनियम 2 अप्रैल 1970 को प्रभाव में आया और इस तरह असम से मेघालय नाम के एक स्वायत्त राज्य का जन्म हुआ। भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अनुसार इस स्वायत्त राज्य के पास एक 37 सदस्यीय विधान सभा बनी।
1971 में संसद ने पूर्वोत्तर पुनर्गठन अधिनियम पास किया जिसके अन्तर्गत्त मेघालय को 21 जनवरी 1972 को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ और अपनी स्वयं की मेघालय विधान सभा बनी।[13]
मेघालय पूर्वोत्तर भारत की सात बहनों वाले राज्य में से एक है। यह एक पर्वतीय राज्य है जिसमें घाटियों और पठारों तथा ऊँची-नीची भूमि वाले क्षेत्र हैं। यहाँ पर भूगर्भीय सम्पदा भी प्रचुर उपलब्ध है। यहाँ मुख्यतः आर्कियन पाषाण संरचनाएं हैं। इन पाषाण शृंखलाओं में कोयला, चूना पत्थर, यूरेनियम और सिलिमैनाइट जैसे बहुमूल्य खनिजों के भंडार हैं।
मेघालय में बहुत सी नदियाँ भी हैं जिनमें से अधिकांश वर्षा आश्रित और मौसमी हैं।
दक्षिणी खासी पर्वतीय क्षेत्र में इन नदियों द्वारा गहरी गॉर्ज रूपी घाटियां एवं ढेरों नैसर्गिक जल प्रपात निर्मित हुए हैं।
पठार क्षेत्र की ऊँचाई 150 मी॰ (490 फीट) से 1,961 मी॰ (6,434 फीट) के बीच है। पठार के मध्य भाग में खासी पर्वतमाला के भाग हैं जिनकी ऊँचाई अधिकतम है। इसके बाद दूसरे स्थान पर जयंतिया पर्वतमाला वाला पूर्वी भाग आता है। मेघालय का उच्चतम स्थान शिलाँग पीक है, जहाँ बड़ा वायु सेना स्टेशन है। यह खासी पर्वत का भाग है और यहाँ से शिलाँग शहर का मनोहारी एवं विहंगम दृश्य दिखाई देता है। शिलांग पीक की ऊँचाई 1,961 मी॰ (6,434 फीट) है। पठार के पश्चिमी भाग गारो पर्वत में है और अधिकतर समतल है। गारो पर्वतमाला का उच्चतम शिखर नोकरेक पीक है जिसकी ऊँचाई 1,515 मी॰ (4,970 फीट) है।
कुछ क्षेत्रों में वार्षिक औसत वर्षा 12,000 मि॰मी॰ (470 इंच) के साथ मेघालय पृथ्वी पर आर्द्रतम स्थान अंकित है।[15] पठार का पश्चिमी भाग, जिसमें गारो पर्वतों के निचले भाग आते हैं वर्ष पर्यंत उच्च तापमान में रहता है। ऊँचाईयों वाले शिलाँग एवं निकटवर्ती क्षेत्रों में प्रायः कम तापमान रहता है। इस क्षेत्र का अधिकतम तापमान यदा कदा ही 28 °से. (82 °फ़ै) से ऊपर जाता होगा,[16] जबकि शीतकालीन उप-शून्य तापमान यहाँ सामान्य हैं।
राजधानी शिलाँग के दक्षिण में खासी पर्वत स्थित सोहरा (चेरापूंजी) कस्बा एक कैलेंडर माह में सर्वाधिक वर्षा का कीर्तिमान धारक है, जबकि निकटवर्ती मौसिनराम ग्राम वर्ष भर में विश्व की सर्वाधिक वर्षा का कीर्तिमान धारक है।[17]
राज्य का लगभग 70% से अधिक भाग वनाच्छादित है, जिसमें से 9,496 कि॰मी2 (3,666 वर्ग मील) सघन प्राथमिक उपोष्णकटिबंधीय वन हैं।[6] मेघालयी वन एशिया के प्रचुरतम वनस्पति निवासों में से एक हैं। इन वनों को भरपूर वर्षा उपलब्ध रहती है और यहाँ प्रचुर मात्रा में वनस्पति एवं वन्य जीव अपनी विविधता के संग मिलते हैं। मेघालय के वनों का एक लघु भाग भारत के पवित्र वृक्षों (सैक्रेड ग्रोव्स) के नाम से जाना जाता है। प्राचीन वनों के कुछ छोटे भाग हैं जिन्हें समुदायों द्वारा सैंकड़ों वर्षों से धार्मिक एवं सांस्कृत विश्वास के कारण संरक्षित किया जाता रहा है। ये वन भाग धार्मिक कृत्यों हेतु रक्षित रहते हैं और किसी भी प्रकार के शोषण से सुरक्षित रखे जाते हैं। इन पवित्र ग्रोव्स में बहुत से दुर्लभ पादप एवं पशु आते हैं। पश्चिम गारो हिल्स में नोकरेक बायोस्फ़ेयर रिज़र्व एवं दक्षिण गारो हिल्स में बालफकरम राष्ट्रीय उद्यान को मेघालय के सर्वाधिक जैवविविधता बहुल स्थलों में गिना जाता हैं। मेघालय में तीन वन्य जीवन अभयारण्य हैं: नोंगखाईलेम, सिजू अभयारण्य एवं बाघमारा अभयारण्य, जहां कीटभोजी घटपर्णी (पिचर प्लांट) नेपेन्थिस खासियाना का पौधा मिलता है जिसे स्थानीय भाषा में "मे'मांग कोकसी" कहते हैं।
यहाँ के मौसम और स्थलीय स्थितियों में विविधता के कारण मेघालय के वनों में पुष्पों की प्रजातियों का बाहुल्य है। इनमें परजीवी, अधिपादप, रसभरे पौधों और झाड़ियों की बड़ी विविध प्रजातियां मिलती हैं। यहाँ की सबसे महत्वपूर्ण वृक्ष किस्मों में से दो हैं साल का पेड (शोरिया रोबस्टा) और टीक (टेक्टोना ग्रैंडिस) हैं। मेघालय फल, सब्जियों, मसालों और औषधीय पौधों की ढेरों किस्म का घर है। मेघालय अपने विभिन्न प्रकार के 325 से अधिक किस्मों के ऑर्किड्स के लिए भी प्रसिद्ध है। इनमें से सर्वाधिक पाई जाने वाली किस्में खासी पर्वतों के मासस्माई, माल्मलुह और सोहरारीम जंगलों में पाई जाती है।
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मेघालय में स्तनधारियों, पक्षियों, सरीसृपों एवं कीट, कृमियों की भी अनेक किस्में पायी जाती हैं।[20] स्तनधारियों की महत्त्वपूर्ण प्रजातियों में हाथी, भालू, लाल पाण्डा,[21] सिवेट, नेवले, रासू, कृंतक, गौर, जंगली भैंस,[22] हिरण, जंगली सूअर और कई नरवानर गण और साथ ही चमगादड़ की प्रचुर प्रजातियां भी मिलती हैं। मेघालय की चूनापत्थर गुफाएँ जैसे सीजू की गुफाओं में देश की कई लुप्तप्राय एवं दुर्लभ चमगादड़ प्रजातियाँ मिलती हैं। यहाँ के लगभग सभी जिलों में हूलॉक जिब्बन भी दिखाई देता है।[23]
यहाँ के सामान्यतया पाये जाने वाले सरीसृपों में छिपकलियाँ, मगरमच्छ और कछुए आते हैं। मेघालय में बड़ी संख्या में सर्पों की प्रजातियाँ मिलती हैं, जिनमें अजगर, कॉपरहैड, ग्रीन ट्री रेसर, नाग, कोरल स्नेक तथा वाइपर्स भी आते हैं।[24]
मेघालय के वनों में पक्षियों की 660 प्रजातियाँ मिलती हैं जिनमें से अधिकाँश हिमालय की तलहटी क्षेत्रों, तिब्बत एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया की स्थानिक हैं। यहाँ पायी जाने वाली पक्षी प्रजातियों में से 34 विश्वव्यापी लुप्तप्राय (एनडेन्जर्ड) प्रजाति सूची एवं 9 लुप्तप्राय प्रजाति सूची में आती हैं।[18] मेघालय में प्रायः दिखाई देने वाली पक्षी प्रजातियों में फैसियनिडी, एनाटिडी, पोडिसिपेडिडी, सिकोनाईडी, थ्रेस्कियोर्निथिडी, आर्डेडी, पेलिकनिडी, फैलाक्रोकोरैसिडी, एन्हिन्जिडी, फ़ैल्कोनिडी, एसिपिट्रिडी, ओटिडिडी, आदि बहुत सी किस्में हैं।[18] इन प्रत्येक किस्म में बहुत सी प्रजातियाँ हैं। ग्रेट इण्डियन हॉर्नबिल मेघालय का सबसे बड़ा पक्षी है। अन्य क्षेत्रीय पक्षियों में सलेटी मयूर-तीतर, बड़े भारतीय तोते (इण्डियन पैराकीट), हरे कबूतर एवं ब्लू जे पक्षी आते हैं। [25] मेघालय 250 से अधिक तितलियों का भी गृह स्थान है जो भारत में पायी जाने वाली कुल प्रजातियों का लगभग एक-चौथाई है।
जनसंख्या वृद्धि | |||
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गणना वर्ष | जनसंख्या | %± | |
1951 | 6,06,000 | — | |
1961 | 7,69,000 | 26.9% | |
1971 | 10,12,000 | 31.6% | |
1981 | 13,36,000 | 32.0% | |
1991 | 17,75,000 | 32.9% | |
2001 | 23,19,000 | 30.6% | |
2011 | 29,64,007 | 27.8% | |
स्रोत: भारत जी जनगणना[26] |
मेघालय की जनसंख्या का अधिकाँश भाग जनजातीय लोग हैं। इनमें खासी सबसे बड़े समूह हैं, इसके बाद गारो और फिर जयंतिया लोग आते हैं। ये उन लोगों में से थे जिन्हें अंग्रेज लोग "पहाड़ी जनजाति" कहा करते थे। इनके अलावा अन्य समूहों में बियाट, कोच, संबंधित राजबोंगशी, बोरो, हाजोंग, दीमासा, कुकी, लखार, तीवा (लालुंग), करबी, राभा और नेपाली शामिल हैं।
जनगणना.2011 की प्रावधानिक रिपोर्ट के अनुसार, सभी सात उत्तर-पूर्वी राज्यों में से मेघालय में 27.82% की उच्चतम, दशक की जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई। 2011 तक मेघालय की जनसंख्या 29,64,007 हो जाने का अनुमान है; जिसमें से 14,92,668 महिलाएँ एवं 14,71,339 पुरुष होने का अनुमान है। भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में लिंग अनुपात प्रति 1000 पुरुषों पर 986 महिलाएँ रहा जो राष्ट्रीय औसत 940 से कहीं अधिक है। यहाँ का शहरी महिला लिंगानुपात 985 ग्रामीण लिंगानुपात 972 से अधिक है।[1]
मेघालय की कुल जनसंख्या में से 11,85,619 लोग कार्यसाधक गतिविधियों में संलग्न हैं। 77.7% कार्यकर्त्ता अपने इन कार्यों को मुख्य कार्य बताते हैं (6 माह या अधिक से संलग्न) जबकि 22.3% लोग आंशिक रूप से (6 माह से कम) हैं। इन 11,85,619 कार्यकर्त्ताओं में से 4,11,270 कृषक रूप में (स्वामी या सह-स्वामी) संलग्न हैं, जबकि 1,14,642 कार्यकर्त्ता कृषक मजदूर रूप में संलग्न हैं।
कुल | पुरुष | स्त्री | |
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कुख्य कार्यकर्त्ता | 921,575 | 585,520 | 336,055 |
कृषक | 411,270 | 243,805 | 167,465 |
कृषक मजदूर | 114,642 | 70,460 | 44,182 |
घरेलू उद्योग | 11,969 | 6,459 | 5,510 |
अन्य मजदूर | 383,694 | 264,796 | 118,898 |
आंशिक मजदूर | 264,044 | 118,189 | 145,855 |
अकार्यशील | 1,781,270 | 788,123 | 993,147 |
मेघालय भारत के उन तीन राज्यों में से एक है जहाँ ईसाई बाहुल्य है। यहाँ की लगभग 75% जनसंख्या ईसाई धर्म का अनुसरण करती है जिनमें प्रेस्बिटेरियन, बैपटिस्ट और कैथोलिक आम संप्रदायों में आते हैं। मेघालय में लोगों का धर्म उनकी जाति से निकटता से संबंधित है। गारो जनजाति के 90% और खासी जनजाति के लगभग 80% लोग ईसाई है, जबकि हजोंग जनजाति के 97% से अधिक, कोच के 98.53% और राभा जनजातियों के 94.60% लोग हिंदू हैं।
2001 की जनगणना के अनुसार मेघालय में रहने वाली 6,89,639 गारो जनसंख्या में से अधिकाँश ईसाई हैं, और दूरदराज के इलाकों में रहने वाले कुछ लोग ही सोंगसेरेक धर्म का पालन करते हैं। 11,23,490 खासी लोगों में से अधिकाँश ईसाई थे, 2,02,978 स्वदेशी नियाम खासी / शॉनोंग / नियाम्त्रे, 17,641 हिंदू थे और 2,977 मुस्लिम थे। मेघालय में कई कम जनसंख्या वाली जनजातियाँ भी हैं, जिनमें हाजोंग (३१,३८१ - ९७.२३% हिंदू), कोच (३१,३८१ -९८.५३% हिंदू), राभा (२८,१५३ - ९४.६०% हिंदू), मिकिर (११,३९९ - ५२% ईसाई और ३०% हिंदू) शामिल हैं, तीवा (लालंग) (८,८ - ९६.१५% ईसाई) और बियाट (१०,०८५ - ९७.३०% ईसाई)।
स्वदेशी से ईसाईयत को धर्मान्तरण ब्रिटिश काल में १९वीं शताब्दी से आरम्भ हुआ। १८३० में अमेरिकन बापटिस्ट फ़ारेन मिशनरी सोसायटी पूर्वोत्तर में सक्रिय हुई और स्वदेशी से इनका धर्मान्तरण ईसाईयत को किये जाने की प्रक्रिया आरम्भ हुई। [28] कालान्तर में उन्हें चेरापुञ्जी, मेघालय तक अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार करने का प्रस्ताव भी मिला किन्तु पर्याप्त संसाधनों की कमी के कारण उन्होंने मना कर दिया। वैल्श प्रेसबाईटेरियन ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और चेरापुञ्जी मिशन क्षेत्र में कार्य आरम्भ कर दिया। १९०० के आरम्भ तक प्रोटेस्टैण्ट ईसाई मिशन भी मेघालय में सक्रिय होने लगे थे। विश्व युद्ध के आरम्भ होने के कारण यहां के प्रचारकों को इस कार्य को छोड़ कर यूरोप एवं अमेरिका में अपने घरों को लौटने पर बाध्य होना पड़ा। यही वह काल था जब कैथोलिकन मत ने मेघालय व पडोसी क्षेत्रों में अपनी जड़ें फ़ैलानी आरम्भ की थीं। २०वीं श्ताब्दी में यूनियन क्रिश्चियन कालेज ने बड़ापानी, शिलांग में अपना संचालन शुरू किया। वर्तमान में प्रेसबाईटेरियन और कैथोलिक ही यहां के सर्वाधिक प्रचलित ईसाई मत हैं।[29]
राज्य की आधिकारिक एवं सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा अंग्रेजी है।[30] इसके अलावा यहां की अन्य प्रधान भाषाएं हैं खासी और गारो।
खासी (जिसे खसी, खसिया या क्यी भी कहते हैं) ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाओं के मोन-ख्मेर परिवार की एक शाखा है। २००१ की भारतीय जनगणना के अनुसार खासी भाषा को बोलने वाले ११,२८,५७५ लोग मेघालय में रहते हैं। खासी भाषा के बहुत से शब्द की इण्डो-आर्य भाषाएं जैसे नेपाली, बांग्ला एवं असमिया से लिये गए हैं। इसके अलावा खासी भाषा की अपनी कोई लिपि नहीं है और यह भारत में अभी तक चल रही मोन-ख्मेर भाषाओं में से एक है।
गारो भाषा का तिब्बती-बर्मी भाषा-परिवार की सदस्य कोच एवं बोडो भाषाओं से निकट सामीप्य है। गारो भाषा अधिकांश जनसंख्या द्वारा बोली जाती है और इसकी कई बोलियां प्रचलित हैं, जैसे अबेंग या अम्बेंग,[31] अटोंग, अकावे (या अवे), मात्ची दुआल, चोबोक, चिसक मेगम या लिंगंगम, रुगा, गारा-गञ्चिंग एवं माटाबेंग।
इनके अलावा मेघालय में बहुत सी अन्य भाषाएं भी बोली जाती हैं, जैसे प्नार भाषा पश्चिम एवं पूर्वी जयन्तिया पर्वत पर पर बहुत से लोगों द्वारा बोली ज्ती हैं। यह भाषा खासी भाषा से संबंधित है। अन्य भाषाओं के अलावा वार जयन्तिया (पश्चिम जयन्तिया पर्वत), मराम एवं लिंगंगम (पश्चिम खासी पर्वत), वार पिनर्सिया (पूर्वी खासी पर्वत), के लोगों द्वारा बहुत सी बोलियां भी बोली जाती हैं। री-भोई जिले के तीवा लोगों द्वारा तीवा भाषा बोली जाती है। मेघालय के असम से लगते दक्षिण-पूर्वी भागों में बसने वाले बड़ी संख्या में लोगों द्वारा बियाट भाषा बोली जाती है। नेपाली भाषा राज्य के लगभग सभी भागों में बोली जाती है।
विभिन्न जातीय और जनसांख्यिकीय समूहों में अंग्रेजी एक समान भाषा के रूप में बोली जाती है। शहरी क्षेत्रों में अधिकतर लोग अंग्रेजी बोल सकते हैं; ग्रामीण निवासियों की क्षमता में भिन्नता मिलती है।
मेघालय में भाषाएं[2][35] | ||
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भाषा | भाषा परिवार | भाग |
खासी | ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाएं | ४७.०५% |
गारो | तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार | ३१.४१% |
बंगाली | हिंद-आर्य | ८.०१% |
नेपाली/गोरखी | हिंद-आर्य | २.२५% |
हिन्दी | हिंद-आर्य | २.१६% |
मराठी | हिंद-आर्य | १.६७% |
असमिया | हिंद-आर्य | १.५८% |
हैजोंग | हिंद-आर्य | १.०६% |
बियाट | तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार | १.०१% |
तीवा (लालंग) | तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार | १.०२% |
राभा | तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार | ०.९७% |
कोच | तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार | ०.९०% |
कुकी | तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार | ०.% |
मेघालय में वर्तमान में ११ जिले हैं।[36]
जयन्तिया हिल्स मंडल:
खासी हिल्स मंडल
गारो हिल्स मंडल:
जयन्तिया हिल जिला २२ फ़रवरी १९७२ को सृजित किया गया था। इसका कुल भौगोलिक क्षेत्रफ़ल 3,819 वर्ग किलोमीटर (1,475 वर्ग मील) है और भारत की जनगणना २०११ के अनुसार यहां की जनसंख्या २,९५,६९२ है। यहां का जिला मुख्यालय जोवाई में स्थित है। जयन्तिया हिल्स जिला राज्य में कोयले का सबसे बड़ा उत्पादक जिला है। जिले भर में कोयले की खानें दिखाई देती हैं। इसके अलावा यहां चूनेपत्थर का खनन भी वृद्धि पर है क्योंकि सीमेण्ट उद्योग यहां जोरों पर है और उसमें चूनेपत्थर की ऊंची मांग है। हाल के कुछ वर्षों में ही इस बड़े जिले को दो छोटे जिलों: पश्चिम जयतिया एवं पूर्वी जयन्तिया हिल्स में बांट दिया गया था।
पूर्वी खासी हिल्स जिले को खासी हिल्स में से २८ अक्तूबर १९७६ को निकाल कर नया जिला बनाया गया था। जिले का विस्तार 2,748 वर्ग किलोमीटर (1,061 वर्ग मील) में है और भारत की जनगणना २०११ के अनुसार यहां की जनसंख्या ६,६०,९२३ है। ईस्ट खासी हिल्स जिले का मुख्यालय राज्य की राजधानी शिलांग में है।
री-भोइ जिले की स्थापना ईस्ट खासी जिले को विभाजित कर ४ जून १९९२ को हुई थी। री-भोई जिले का कुल क्षेत्रफ़ल 2,448 वर्ग किलोमीटर (945 वर्ग मील) है और भारत की जनगणना २०११ के अनुसार यहां की कुल जनसंख्या १,९२,७९५ है। जिले का मुख्यालय नोंगपोह में है। यहां की भूमि पर्वतीय है और वनाच्छादित है। री-भोई जिला अपने अनानासों के लिये प्रसिद्ध है और राज्य में अनानास का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है।[37][38]
पश्चिम खासी हिल्स जिला राज्य का सबसे बड़ा जिला है औ इसका क्षेत्रफ़ल 5,247 वर्ग किलोमीटर (2,026 वर्ग मील) है और भारत की जनगणना २०११ के अनुसार जिले की जनसंख्या २,९४,११५ है। यह जिला खासी हिल्स जिले से काटकर २८ अक्तूबर १९७६ को बनाया गया था। जिले का मुख्यालय नोंगस्टोइन में है।
ईस्ट गारो हिल्स जिले की स्थापना १९७६ में की गयी थी और इसकी जनसंख्या २००१ की जनगणना अनुसार २,४७,५५५ है। इस जिले का विस्तार 2,603 वर्ग किलोमीटर (2.802×1010 वर्ग फुट) में है। जिले का मुख्यालय विलियमनगर में है जिसे पहले सिमसानगिरि बोला जाता था। नोंगलबीबरा जिले का एक कस्बा है जहां बड़ी संख्या में कोयले की खानें हैं। यहां से राष्ट्रीय राजमार्ग ६२ द्वारा कोयला ग्वालपाड़ा और जोगीघोपा को भेजा जाता है।
पश्चिम गारो हिल्स जिला राज्य के पश्चिमी भाग में स्थित है और इसका भौगोलिक विस्तार 3,714 वर्ग किलोमीटर (1,434 वर्ग मील) में है। २००१ की जनगणनानुसार जिले की जनसंख्या ५,१५,८१३ है और जिले का मुख्यालय तुरा में है।
द्क्षिण गारो हिल्स जिला १८ जून १९९२ को तत्कालीन पश्चिम गारो हिल्स जिले को विभाजित कर बनाया गया था। जिले का कुल भौगोलिक क्षेत्र 1,850 वर्ग किलोमीटर (710 वर्ग मील) है और वर्ष २००१ की जनगणनानुसार यहां की जनसंख्या ९९,१०० है। जिले का मुख्यालय बाघमारा में है।
वर्ष २०१२ के स्थितिनुसार राज्य में ११ जिले, १६ नगर व कस्बे और अनुमानित ६,०२६ ग्राम थे।[39]
मेघालय में विद्यालय राज्य सरकार, निजी संगठनों एवं धार्मिक संस्थानों द्वारा संचालित होते हैं। शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी ही है। अन्य भारतीय भाषाएं जैसे असमिया, बंगाली, हिन्दी, गारो, खासी, मीज़ो, नेपाली और उर्दु वैकल्पिक विषयों की श्रेणी में पढ़ाई जाती हैं। माध्यमिक शिक्षा की शिक्षा बोर्ड्स से सम्बद्ध है जैसे काउंसिल ऑफ इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्ज़ामिनेशंस (आईसीएसई), केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई), राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (ओपन स्कूल) और मेघालय शिक्षा बोर्ड।
१०+२+३ शिक्षा पद्धति के अन्तर्गत्त, माध्यमिक शिक्षा पूर्ण होने के उपरान्त विद्यार्थी प्रायः २ वर्ष कनिष्ठ महाविद्यालय (जूनियर स्कूल) में शिक्षण लेते हैं जिसे प्री-युनिवर्सिटी कहते हैं, या फ़िर उच्चतर माध्यमिक शिक्षा सुविधा वाले किसी मेघालय शिक्षा बोर्ड या केन्द्रीय शिक्षा बोर्ड से सम्बद्ध विद्यालय में प्रवेश लेते हैं। विद्यार्थी तीन में से किसी एक विधा को चुनते हैं: कला, वाणिज्य या विज्ञान। दो वर्ष का कार्यक्रम सफ़लतापूर्वक पूर्ण करने के उपरान्त विद्यार्थी किसी सामान्य या व्यावसायिक स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकते हैं।
इनके अलावा बहुत से अन्य संस्थान जैसे:
मेघालय के वर्तमान राज्यपाल गंगा प्रसाद राज्य के प्रमुख हैं।[40]
मेघालय विधान सभा में वर्तमान में ६० सदस्य होते हैं। मेघालय राज्य के दो प्रतिनिधि लोक सभा हेतु निर्वाचित होते हैं, प्रत्येक एक शिलांग और एक तुरा निर्वाचन क्षेत्र से। यहां का एक प्रतिनिधि राज्य सभा में भी जाता है।
राज्य के सृजन से ही यहां गौहाटी उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र रहा है। १९७४ से ही गौहाटी उच्च न्यायालय की एक सर्किट बेञ्च यहां स्थापित है। मार्च २०१३ में मेघालय उच्च न्यायालय को गौहाटी उच्च न्यायालय से विलग कर दिया गया और अब राज्य का अपना उच्च न्यायालय है।
राष्ट्र की ग्रामीण जनता को स्थानीय स्व-सरकार उपलब्ध कराने हेतु भारतीय संविधान में प्रायोजन किये गये हैं। इनके अनुसार पंचायती राज संस्थान की स्थापना की गयी है। पूर्वोत्तर राज्यों के भिन्न रीति रिवाजों एवं मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए, क्षेत्र के लिये एक अलग राजनीतिक एवं प्रशासनिक ढांचे का निर्माण किया गया है[उद्धरण चाहिए] क्षेत्र की कुछ जनजातियों की अपनी पारम्परिक राजनीतिक प्रणालियां हैं। इनके चलते यह महसूस किया गया कि पंचायती राज प्रणाली यहां लागू की जाने से विवाद उत्पन्न करेगी। गोपीनाथ बोरदोलोई की अध्यक्षता में बनी एक उपसमिति की सिफ़ारिशों को संविधान में संलग्न किया गया। इसके तहत मेघालय सहित पूर्वोत्तर के कई ग्रामीण क्षेत्रों में स्वायत्त जिला परिषदों का गठन कर उनका अपना संविधान लागू किया गया। मेघालय में ऐसी एडीसी परिषदें निम्न हैं:
मेघालय में मुख्य रूप से कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है। कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों में ही लगभग मेघालय की दो-तिहाई जनशक्ति कार्यरत है। हालांकि इस क्षेत्र का राज्य की एनएसडीपी में योगदान मात्र एक-तिहाई ही है। राज्य में कृषि की कम उत्पादकता का प्रमुख कारण गैर-टिकाऊ कृषि परम्पराएं हैं। इन्हीं कारणों से कृषि में जनसंख्या के बड़े भाग के संलग्न होने के बावजूद भी राज्य को अन्य भारतीय राज्यों से भोजन आयात करना पड़ता है।[उद्धरण चाहिए] बुनियादी ढांचे की बाधाओं ने राज्य की अर्थव्यवस्था को भारत के बाकी भागों के मुकाबले उस तेजी से उच्च आय की नौकरियां सृजित करने से रोक रखा है।
मेघालय का वर्ष २०१२ का सकल राज्य घरेलू उत्पाद वर्तमान मूल्यों पर ₹16,173 करोड़ (US$2.36 अरब) अनुमानित था।[41][42][42] २०१२ में भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, राज्य की लगभग १२% जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे थी जिसमें से ग्रामीण क्षेत्रों में १२.५% एवं शहरी क्षेत्रों में ९.३% जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे थी।[43]
मेघालय मूलतः एक कृषि प्रधान राज्य है जिसकी ८०% जनसंख्या अपनी आजीविका हेतु पूर्ण रूपेण कृषि पर ही निर्भर है। मेघालय के कुल भौगोलिक क्षेत्रफ़ल का लगभग १०% कृषि में प्रयोग किया जाता है। राज्य में कृषि प्रायः आधुनिक तकनीकों के अभाव या अति-सीमित प्रयोग के साथ होती है जिसके परिणामस्वरूप कम उत्पादन और कम उत्पादकता ही हाथ आती है। अतः इन कारणों से कृषि में लगी अधिकांश जनसंख्या के बावजूद भी राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि उत्पादन का योगदान कम है, और कृषि में लगी अधिकांश जनसंख्या गरीब ही रहती है। खेती वाले क्षेत्र का एक भाग यहां की परंपरागत स्थानांतरण कृषि, जिसे स्थानीय भाषा में लोग झूम कृषि कहते हैं, के तहत है। मेघालय में वर्ष २००१ में २,३०,००० टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ था। धान यहां की मुख्य खाद्यान्न फ़सल है जो राज्य के कुल खाद्यान्न उत्पादन का ८०% उत्तरदायी है। इसके अलावा अन्य महत्त्वपूर्ण खाद्यान्नों में मक्का, गेहूं और कुछ अन्य अनाज एवं दालें भी उगायी जाती हैं। इनके अलावा यहां आलू, अदरख, हल्दी, काली मिर्च, सुपारी, तेजपत्ता, पान, शार्ट स्टेपल सूत, सन, मेस्ता, सरसों और कैनोला का भी उत्पादन किया जाता है। धान और मक्का जैसे प्रधान खाद्य फ़सलों के अलाव मेघालय बागों की फ़सलों जैसे सन्तरों, नींबू, अनानास, अमरूद, लीची, केले, कटहल और कई फ़ल जैसे आड़ू, आलूबुखारे एवं नाशपाती के उत्पादन में भी योगदान देता है।[44]
अनाज और मुख्य खाद्यान्न उत्पादन यहां की कुल कृषि भूमि का ६०% घेर लेता है। १९७० के दशक के मध्य में उच्चोत्पादन देने वाली फ़सल की किस्मों के प्रयोग आरम्भ किये जाने से खाद्यान उत्पादन में उल्लेखनीय सुधार आया था। धान की उच्चोत्पादन वाली किस्मों जैसे मसूरी, पंकज, आईआर-८, आरसीपीएल[45] एवं अन्य बेहतर किस्मों की शृंखला-विशेषकर आईआर-३६ जो रबी के मौसम के अनुकूल है, के प्रयोग से एक बड़ी सफ़लता प्राप्त की गयी, जिसके उप्रान्त वर्ष में तीन फ़सलें बोई जाने लगी थीं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा धान की शीत सहिष्णु किस्मों जैसे मेघा-१ एवं मेघा-२ के विकास कर यहां प्रयोग किये जाने से पुनः बड़ी सफ़लता मिली थी। परिषद के शिलांग के निकट उमरोई स्थित पूर्वोत्तर क्षेत्र केन्द्र द्वारा इन किस्मों को १९९१-९२ में उच्च ऊँचाई क्षेत्रों के लिए विकसित की गयी थी, जहां तब तक कोई उच्चोत्पादन किस्म नहीं होती थीं। आज राज्य यह दावा कर सकता है कि धान उत्पादन के कुल क्षेत्र का लगभग ४२% क्षेत्र उच्चोत्पादन किस्मों द्वारा रोपा जाता है और इनकी औसत उत्पादकता 2,300 कि॰ग्राम/हे॰ (2,100 पौंड/एकड़) है। ऐसा ही हाल मक्का और धान उत्पादन के लिये भी रहा है जहां एचवाईवी के प्रयोग किये जाने से उत्पादन १९७१-७२ में 534 कि॰ग्राम/हे॰ (476 पौंड/एकड़) से 1,218 कि॰ग्राम/हे॰ (1,087 पौंड/एकड़) मक्का और गेहूं 611 कि॰ग्राम/हे॰ (545 पौंड/एकड़) से 1,490 कि॰ग्राम/हे॰ (1,330 पौंड/एकड़) हो गया।[46]
कैनोला, सरसों, अलसी, सोयाबीन,अरण्डी और तिल जैसे तिलहन यहां लगभग 100 कि॰मी2 (1.1×109 वर्ग फुट) पर उगाए जाते हैं। कैनोला और सरसों यहां के सबसे महत्वपूर्ण तिलहन हैं,[47] जो यहां के लगभग ६.५ हजार टन के कुल तिलहन उत्पादन के दो-तिहाई से अधिक भाग देते हैं। कपास, सन और मेस्टा जैसी फ़सलें ही यहां की मुख्य नकदी फसलों में आती हैं और गारो पर्वत में उगाए जाते हैं।[48] हाल के वर्षों में इनके उत्पादन में गिरावट आयी है जो इनको बोई जाने वाली कृषि भूमि में होती कमी से भी दिखाई देता है।
मेघालय की जलवायु यहां फ़ल, सब्जियों, पुष्पों, मसालों, मशरूम जैसी फ़लदार फ़सलों के अलावा चिकित्सकीय पौधों की विभिन्न किस्मों की उपज में बहुत सहायक है।[44] ये उच्च मूल्य फ़सल आंकी जाती हैं, किन्तु घरेलु उपयोगी फ़सलों की अत्यावश्यकता यहां के किसानों को इनकी खेती अपनाने से रोकती है। कुछ मुख्य फ़लदार फ़सलों में यहां रसीले फ़ल, अनानास, पपीते और केले आते हैं। इनके साथ साथ ही बड़ी मात्रा में यहां सब्जियां जैसे फ़ूलगोभी, बंदगोभी और मूली, आदि भी उगायी जाती हैं।
पूरे राज्य भर में सुपारी के बाग खूब दिखायी देते हैं, विशेषकर गुवाहाटी से शिलांग राजमार्ग के किनारे के क्षेत्र में। इनके अलावा अन्य उद्यान फ़सलें जैसे चाय, कॉफ़ी और काजू यहां काफ़ी समय बाद पहुंचे किन्तु अब इनका प्रचलन भी बढ रहा है। मसालों, पुष्पों और मशरूमों की बड़ी किस्मों का उत्पादन राज्य भर में किया जाता है।
मेघालय में प्राकृतिक सम्पदा का बाहुल्य है। इनमें कोयला, चूनापत्थर, सिलिमैनाइट, चीनी मिट्टी और ग्रेनाइट आते हैं। मेघालय भर में वृहत स्तर के वनाच्छादन, समृद्ध जैव विविधता और प्रचुर जल सोत हैं। यहां निम्नस्तरीय औद्योगिकीकरण एवं अपेक्षाकृत खराब बुनियादी ढांचा राज्य की अर्थव्यवस्था के हित में इन प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के लिए बाधा के रूप में कार्य करता है। हाल के वर्षों में ९०० एमटीडी(मीट्रिक टन प्रतिदिन) से अधिक उत्पादन क्षमता वाले दो बड़े सीमेंट निर्माण संयंत्र जयन्तिया हिल्स जिले में लुम्श्नौंग और नौङ्ग्स्निङ्ग में लगे हैं एवं इस जिले में उपलब्ध उच्च गुणवत्ता वाले चूना पत्थर के समृद्ध भण्डार का उपयोग करने के लिए कई और निर्माण प्रक्रिया में हैं।[49]
मेघालय के ऊंचे पर्वतों, गहरी घाटियों और प्रचुर वर्षा के कारण यहां बड़ी मात्रा में अप्रयुक्त जलविद्युत क्षमता संचित है। यहां की मूल्यांकित उत्पादन क्षमता ३००० मेगावाट से अधिक है। राज्य में वर्तमान स्थापित क्षमता १८५ मेगावाट है, किन्तु राज्य स्वयं ६१० मेगावॉट का उपभोग करता है, अर्थात् दूसरे शब्दों में, यह बिजली आयात करता है।[50] राज्य की आर्थिक वृद्धि के साथ साथ ही बिजली की बढ़ती मांग भी जुडी है। राज्य में जलविद्युत से उत्पन्न बिजली निर्यात करने एवं उससे मिलने वाली आय से अपनी आंतरिक विकास योजनाओं के लिए आय अर्जित करने की पर्याप्त क्षमता है। राज्य में भी कोयले के भी बड़े भण्डार हैं, जो कि यहां ताप विद्युत संयंत्र की संभावना को भी बल देते हैं।
बहुत सी परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। नंगलबीबरा में प्रस्तावित ताप-विद्युत परियोजना के प्रचालन में आने पर ७५१ मेगावाट विद्युत अतिरिक्त उत्पादन की संभावना है। पश्चिम खासी हिल्स में एक २५० वॉट की परियोजना लगाने का भी प्रस्ताव है। राज्य सरकार अपना विद्युत उत्पादन २०००-२५०० मेगावॉट तक वर्धन करने का लक्ष्य रखता है जिसमें से ७००-९८० मेगावॉट ताप-विद्युत होगी तथा १४००-१५२० मेगावॉट जल-विद्युत होंगीं। राज्य सरकार ने अपने क्षेत्र में निजी क्षेत्र के निवेश में तेजी लाने हेतु एक साझा लागत वाले सार्वजनिक-निजी साझेदारी मॉडल की रूपरेखा तैयार की है।[51] विद्युत उत्पादन, परिवर्तन और वितरण मेघालय एनर्जी कॉरपोरेशन लिमिटेड को सौंपा गया है, जिसे बिजली आपूर्ति अधिनियम १९४८ के तहत गठित किया गया था। वर्तमान में पांच जल विद्युत स्टेशन और एक मिनी जल विद्युत संयंत्र हैं जिसमें उमियम हाइडल परियोजना, उमट्रू हाइडल परियोजना, माइंट्डू-लेशका-१ हाइडल परियोजना और सनपानी माइक्रो हाइडल (एसईएसयू) परियोजना सम्मिलित हैं।
भारत की १२वीं पंचवर्षीय योजना में, राज्य में अधिक जल विद्युत परियोजनाएं स्थापित करने का एक प्रस्ताव है जो इस प्रकार से हैं:
इनमें से जेपी समूह ने खासी पर्वत में किन्शी और उमंगोट परियोजनाओं के निर्माण के लिए बीड़ा उठाया है।.[53]
मेघालय की साक्षरता भारत की जनगणना २०११ के अनुसार दर ६२.५६ है जिसके साथ यह भारत का २७वां साक्षर राज्य है। यह दर २०११ में ७५.५ तक पहुंच गयी। वर्ष २००६ के आंकड़ों के अनुसार यहाँ ५८५१ प्राथमिक विद्यालय, १७५९ माध्यमिक विद्यालय एवं ६५५ उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हैं।
मेघालय[54] | भारत | |
---|---|---|
महिला | 72.89% | 64.63% |
पुरुष | 75.95% | 80.88% |
कुल | 74.% | 72.98% |
२००८ में, ५,१८,००० विद्यार्थी प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ रहे थे और २,३२,००० उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ रहे थे। राज्य अपने विद्यालयों में गुणवत्ता, पहुंच, बुनियादी ढांचे और शिक्षकों के प्रशिक्षण का ध्यान रखता है और उत्तरदायी है।[55]
शिलांग स्थित उच्च शिक्षा संस्थान भी हैं जैसे भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) एवं प्रौद्योगिकी एवं प्रबन्धन विश्वविद्यालय (यूएसटीएम) जो प्रथम भारतीय विश्वविद्यालय है जिसने क्लाउड कम्प्यूटिंग अभियान्त्रिकी को अध्ययन के क्षेत्र में स्थान दिया है। आईआईएम शिलांग राष्ट्र के सर्वोच्च श्रेणी के प्रबन्धन संस्थानों में से एक है।[56][57]
राज्य में १३ सरकारी औषधालय, २२ सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, ९३ प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र एवं ४०८ उप-केन्द्र हैं। यहाँ ३७८ चिकित्सक, ८१ भेषजज्ञ, ३३७ स्टाफ़ नर्सें एवं ७७ लैब तकनीशियन हैं। राज्य सरकार द्वारा तपेदिक, कुष्ठ रोग, कैंसर और मानसिक रोग के उपचार हेतु एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया है। हालांकि मृत्यु दर में लगातार गिरावट आयी है किन्तु राज्य के स्वास्थ्य विभाग के स्थिति पत्र (स्टेटस पेपर) के अनुसार जीवन प्रत्याशा में सुधार और स्वास्थ्य सम्बन्धी बुनियादी ढांचे में पर्याप्त वृद्धि के अभाव में राज्य की जनसंख्या का लगभग ४२.३% भाग स्वास्थ्य देखरेख से अभी भी अछूता है। यहां बहुत से अस्पताल निर्माणाधीन हैं, जो सरकारी व निजी दोनों ही प्रकार के हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार से हैं: सिविल अस्पताल, गणेश दास अस्पताल, के जे पी सायनोड अस्पताल, पूर्वोत्तर इंदिरा गांधी क्षेत्रीय स्वास्थ्य एवं चिकित्सा संस्थान (एन.ई.आई.जी.आर.आई.एच.एम.एस), नार्थ ईस्ट इन्स्टीट्यूट ऑफ़ आयुर्वेद (एनईआईएएच), आर.पी चेस्ट अस्पताल, वुडलैण्ड अस्पताल, नज़ारेथ अस्पताल एवं क्रिश्चियन अस्पताल, आदि।
मेघालय की मुख्य जनजातियां हैं खासी, गारो और जयन्तिया। प्रत्येक जनजाति की अपनी संस्कृति, अपनी परम्पराएं, पहनावा और अपनी भाषाएं हैं।
मेघालय के अधिकांश लोग और प्रधान जनजातियां मातृवंशीय प्रणाली का अनुसरण करते हैं, जहां विरासत और वंश महिलाओं के साथ चलता है। कनिष्ठतम पुत्री को ही सारी संपत्ति मिलती है और वही बुजुर्ग माता-पिता और किसी भी अविवाहित भाई बहन की देखभाल भी किया करती है।[14] कुछ मामलों में, जहां परिवार में कोई बेटी नहीं है या अन्य कारणों से, माता-पिता किसी और बेटी को नामांकित कर सकते हैं जैसे कि अपनी पुत्रवधू को, और घर के उत्तराधिकार और अन्य सभी संपत्तियों का अधिकार उसे ही मिलता है।
खासी और जयन्तिया जनजाति के लोग पारम्परिक मातृवंशीय प्रणाली का पालन करते जिसमें खुन खटदुह (अर्थात कनिष्ठतम पुत्री) घर की सारी सम्पत्ति की अधिकारी एवं वृद्ध माता-पिता की देखभाल की उत्तरदायी होती है। हालांकि पुरुष वर्ग, विशेषकर मामा इस सम्पत्ति पर परोक्ष रूप से पकड बनाए रहते हैं, क्योंकि वे इस सम्पत्ति के फ़ेरबदल, क्रय-विक्रय आदि के सम्बन्ध में लिये जाने वाले महत्त्वपूर्ण निर्णयों में सम्मिलित होते हैं। परिवार में कोई पुत्री न होने की स्थिति में खासी और जयन्तिया (जिन्हें सिण्टेंग भी कहा जाता है) में आइया रैप आइङ्ग का रिवाज होता है, जिसमें परिवार किसी अन्य परिवार की कन्या को दत्तक बना कर अपना लेता है, और इस तरह वह का ट्राई आइङ्ग (परिवार की मुखिया) बन जाती है। इस अवसर पर पूरे समुदाय में धार्मिक अनुष्ठान होते हैं व उत्सव मनाया जाता है।[58]
गारो वंश प्रणाली में, सबसे छोटी पुत्री को स्वतः रूप से परिवार की संपत्ति विरासत में मिलती है, यदि एक और पुत्री का नाम माता-पिता द्वारा नहीं निर्धारित किया जाता है। उसके बाद उसे नोकना, अर्थात् "घर के लिए" नामित किया जाता है। यदि किसी परिवार में कोई बेटियां नहीं हैं, तो चुनी हुई पुत्रवधू (बोहारी) या एक दत्तक पुत्री (डरागता) को घर में रखते हैं और उसे ही गृह सम्पत्ति मिल जाती है।
मेघालय में विश्व की सबसे बड़ी जीवित मातृवंशीय संस्कृति प्रचलन में है।
तीनों प्रधान जनजातियाँ, खासी, गारो एवं जयन्तिया समुदायों के अपने अपने पारम्परिक राजनीतिक संस्थान हैं जो सैंकड़ों वर्षों से चलते चले आ रहे हैं। ये राजनीतिक संस्थान गांव स्तर, कबीले स्तर और राज्य स्तर जैसे विभिन्न स्तरों पर काफी विकसित और कार्यरत हैं।.[59]
खासियों की पारम्परिक राजनीतिक प्रणाली में प्रत्येक कुल या वंश की अपनी स्वयं की परिषद होती है जिसे दोरबार कुर कहते हैं और यह वंश के मुखिया की अध्यक्षता में संचालित होती है। यह परिषद या दोरबार वंश के आंतरिक मामलों की देखरेख करती है। इसी प्रकार प्रत्येक ग्राम की एक स्थानीय सभा होती है जिसे दोरबार श्वोंग कहते हैं, अर्थात् ग्राम परिषद। इसका संचालन भी ग्राम मुखिया कीअध्यक्षता में होता है। अन्तर-ग्राम मुद्दों पर निकटवर्ती ग्राम के लोगों से गठित एक राजनीतिक इकाई निर्णय लेती है। स्थानीय राजनीतिक इकाइयाँ रेड्स कहलाती हैं और ये सर्वोच्च राजनीतिक संस्थान साइमशिप के अधीन कार्य करती हैं। ये साइमशिप बहुत सी रे्ड्स का संघ होती है और इनका साईम या सीईएम (राजा) के नाम से जाना जाने वाला एक निर्वाचित प्रमुख होता है।[59] साइम ने एक निर्वाचित राज्य विधानसभा के माध्यम से खासी राज्य पर शासन करते हैं जिसे दरबार हिमा के नाम से जाना जाता है। सीईएम के पास उनके मंत्रियों से गठित एक मंत्रिमण्डल होता है जिनकी राय व सलाह से वह अपनी कार्यपालक का उत्तरदायित्त्व पूर्ण करता है। । इनके राज्य में कर एवं चुंगियां भी वसूली जाती हैं और करों को पिनसुक तथा टोल को क्रोंग कहा जाता था। क्रोंग राज्य का प्रधान आय स्रोत हुआ करती है। २०वीं शताब्दी के आरम्भ में राजा दखोर सिंह यहां का साइम हुआ करता था।[59]
मेघालय उत्सव | स्थानीय
कैलेण्डर माह | वैदिक
कैलेण्डर माह | ग्रेगोरियाई
कैलेण्डर माह |
---|---|---|---|
Den'bilsia | Polgin | फाल्गुन | फ़रवरी |
A'siroka | Chuet | चैत्र | मार्च |
A' galmaka | Pasak | वैशाख | अप्रैल |
Miamua | Asal | आषाढ | जून |
Rongchugala | Bado | भाद्र | अगस्त |
Ahaia | Asin | अश्विन | सितम्बर |
Wangala | Gate | कार्तिक | अक्तूबर |
क्रिस्मस | पोसी | पौष | दिसम्बर |
माघ | जनवरी |
जयन्तिया लोगों में भी त्रिस्तरीय राजनीतिक प्रणाली होती है जो खासी लोगों के लगभग समान ही होती है और इसमें भी रेड्स और साइम हुआ करते हैं।[61] रेड्स की अध्यक्षता डोलोइस करते हैं जो रेड्स स्तर पर कार्यपालक एवं रीति रिवाजों के साथ देख रेख किया करते हैं। प्रत्येक निर्वाचित स्तर की अपनी परिषद या दरबार हुआ करते हैं।
गारो समूह परम्परागत राजनीतिक प्रणाली में, गारो ग्रामों के एक समूह का एक राजा हुआ करता है जिसे ए-किंग कहते हैं। ए-किंग निक्माज़ के अधीन कार्य करता है। यह निक्मा गारों लोगों की एकमात्र राजनीतिक एवं प्रशासनिक प्राधिकारी होता है और यही सब न्यायिक और विधायी कार्य भी किया करता है। ये विभिन्न निक्माज़ विभिन्न ए-किंग्स के मुद्दों को सुलझाने हेतु मुल कर कार्य किया करते हैं। गारो लोगों के बीच कोई सुव्यवस्थित परिषद या दरबार नहीं हुआ करते हैं।[उद्धरण चाहिए]
नृत्य खासी जीवन की संस्कृति का मुख्य रिवाज है, और राइट्स आफ़ पैसेज का एक भाग भी है। नृत्यों का आयोजन श्नोंग (ग्राम), रेड्स(ग्राम समूह) और हिमा(रेड्स का समूह) में किया जाता है। इनके उत्सवों में से कुछ हैं: का शाद सुक माइनसिएम, का पोम-ब्लांग नोंगक्रेम, का शाद शाङ्गवियांग, का-शाद काइनजो खास्केन, का बाम खाना श्नोंग, उमसान नोंग खराई और शाद बेह सियर।[60]
जयन्तिया हिल्स के लोगों के उत्सव अन्य जनजातियों की ही भांति उनके जीवन व संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। ये प्रकृति और अपने लोगों के बीच सन्तुलन एवं एकजुटता को मनाते हैं। जयन्तिया लोगों के उत्सवों में से कुछ हैं: बेहदियेनख्लाम, लाहो नृत्य एवं बुआई का त्योहार।[60]
गारों लोगों के लिये उत्सव उनके सांस्कृतिक विरासत का भाग हैं। ये अपने धार्मिक अवसरों, प्रकृति और मौसम और साथ ही सामुदायिक घटनाएं जैसे झूम कृषि अवसरों को मनाते हैं। गारों समुदाय के प्रमुख त्योहारों में डेन बिल्सिया, वङ्गाला, रोंगचू गाला, माइ अमुआ, मङ्गोना, ग्रेण्डिक बा, जमाङ्ग सिआ, जा मेगापा, सा सट रा चाका, अजेयोर अहोएया, डोरे राटा नृत्य, चेम्बिल मेसारा, डो'क्रुसुआ, सराम चा'आ और ए से मेनिया या टाटा हैं जिन्हें ये बडी चाहत से मनाया करते हैं।[60]
हैजोंग लोग अपने पारम्परिक त्योहारों के साथ साथ हिन्दू त्योहार भी मनाते हैं। गारो पर्वत की पूरी समतल भूमि में हैजोंग लोगों का निवास है, ये कृषक जनजाति हैं। इनके प्रमुख पारम्परिक उत्सवों में पुस्ने, बिस्वे, काटी गासा, बास्तु पुजे और चोर मगा आते हैं।
बियाट लोगों के कई प्रकार के त्योहार एवं उत्सव होते हैं; नल्डिंग कूट, पम्चार कूट, लेबाङ्ग कूट, फ़वाङ्ग कूट, आदि। हालांकि अपने भूतकाल की भांति अब ये नल्डिंग कूट के अलावा इनमें से कोई त्योहार अब नहीं मनाते हैं। नल्डिंग कूट (जीवन का नवीकरण) हर वर्ष जनवरी के माह में आता है और तब ये लोग गायन, नृत्य और पारम्परिक खेल आदि खेलते हैं। इनका पुजारी - थियांपु चुङ्ग पाठियान नामक देवता की अर्चना कर के उससे इनकी खुशहाली एवं समृद्धि को इनके जीवन के हल पहलु में भर देने की प्रार्थना करता है।
दक्षिण मेघालय में मावसिनराम के निकट मावजिम्बुइन गुफाएं हैं। यहां गुफा की छत से टपकते हुए जल में मिले चूने के जमाव से प्राकृतिक बना हुआ एक शिवलिंग है। १३वीं शताब्दी से चली आ रही मान्यता अनुसार यह हाटकेश्वर नामक शिवलिंग जयन्तिया पर्वत की गुफा में रानी सिंगा के समय से चला आ रहा है।[62] जयन्तिया जनजाति के दसियों हजारों सदस्य प्रत्येक वर्ष यहां हिन्दू त्योहार शिवरात्रि में भाग लेते हैं एवं जोर शोर से मनाते हैं।[63][64]
मेघालय में जीवित जड पुलों का निर्माण भी मिलता है। यहां फ़ाइकस इलास्टिका (भारतीय रबर वृक्ष) की हवाई जडों को धीरे धीरे जोड कर सेतु तैयार किये जाते हैं। ऐसे सेतु मावसिनराम की घाटी के पूर्व में पूर्वी खासी हिल्स के क्षेत्र में एवं पूर्वी जयन्तिया हिल्स जिले में भी मिल जाते हैं। इनका निर्माण खासी एवं जयन्तिया जनजातियों द्वारा किया जाता रहा है[65][66] ऐसे सेतु शिलांग पठार के दक्षिणी सीमा के साथ लगी पहाडी भूमि पर भी मिल जाते हैं। हालांकि ऐसी संस्कृतिक धरोहरों में से बहुत से सेतु अब ध्वंस हो चुके हैं, जो भूस्खलन या बाढ की भेंट चढ गये या उनका स्थान अधिक मजबूत आधुनिक स्टील सेतुओं ने ले लिया।[67]
१९४७ में भारत के विभाजन से पूर्वोत्तर की मूल अवसंरचना को काफ़ी धक्का पहुंचा जिसका एक कारण यह भी था कि इस क्षेत्र का मात्र २% भाग ही देश के शेष हिस्से से लगता था। भूमि का एक बहुत ही संकरा सा भाग पूर्वोत्तर को मुख्यभूमि में सिलिगुड़ी गलियारे के द्वारा पश्चिम बंगाल से जुड़ा हुआ है। मेघालय भूमि से घिरा राज्य है जहां दूर दूर तक छोटी बडी बस्तियां व आबादी बसी हुई है। अतः यहां परिवहन का एकमात्र साधन सडक ही है। हालांकि राजधानी शिलांग सडकों द्वारा भली भांति जुडी हुई है, अधिकांश अन्य भाग इस मामले में पीछे ही हैं। राज्य की सडकों का एक बड़ा भाग अभी भी कच्चा ही है। मेघालय में अधिकांश आवाजाही निकटवर्ती राज्य असम की राजधानी गुवाहाटी से ही होती है जो शिलांग से १०३ किमी पर स्थित है। गुवाहाटी समूचे देश से नियमित रेल और वायु सेवा द्वारा भली प्रकार से जुडा हुआ है।
जब मेघालय को १९७२ में असम से काट कर एक स्वायत्त राज्य के रूप में अलग किया गया था, तब इसे १७४ किमी के राष्ट्रीय राजमार्ग सहित २७८६.६८ किमी की कुल सडकें विरासत में मिली थीं। तब राज्य का सडक घनत्व १२.४२ वर्ग किमी प्रति १०० वर्ग किमी राज्य क्षेत्रफ़ल था। २००४ तक के आंकड़ों के अनुसार कुल सडक लम्बाई ९३५० किमी तक पहुंच गयी थी, जिसमें ५,८५७ किमी पक्की व पेव्ड भी थी। मार्च २०११ तक के आंकडों के अनुसार सडक घनत्व ४१.६९ वर्ग किमी पहुंच चुका था, हालांकि इस मामले में मेघालय राष्ट्रीय औसत ७४ किमी प्रति १०० वर्ग किमी से नीचे ही रहा। राज्य के लोगों को बेहतर सेवा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से मेघालय लोक सेवा आयोग (मेघालय पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेण्ट) वर्तमान सडकों एवं सेतुओं के सुधार और उन्नयन हेतु निरन्तर प्रयासरत है एवं अनेक कदम उठा रहा है।[39]
मेघालय में सडक जाल की कुल लम्बाई 7,633 किलोमीटर (4,743 मील) किमी है, जिसमें से 3,691 किलोमीटर (2,293 मील) किमी तारकोल की सडक है एवं शेष 3,942 किलोमीटर (2,449 मील) किमी सडक रोड़ी की है। मेघालय राज्य असम में सिल्चर, मिजोरम में आईजोल और त्रिपुरा में अगरतला से राष्ट्रीय राजमार्गों से भली-भांति जुड़ा हुआ है। बहुत सी निजी बसें एवं टैसी संचालक गुवाहाटी से शिलांग यात्रियों को लाते ले जाते हैं। यह मार्ग लगभग ढाई घंटे का है। शिलांग से मेघालय के सभी प्रधान नगरों, पूर्वोत्तर की अन्य राजधानियों एवं असम के नगरों के लिये दिवस एवं रात्रि बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
मेघालय में रेलमार्ग का एकमात्र मार्ग मेहंदीपत्थर तक है जहां से गुवाहाटी तक नियमित रेल सेवा चलती है। यह सेवा ३० नवंबर २०१४ को आरम्भ हुई थी।[68][69][70] राज्य में एक औपचारिक पर्वतीय रेल चेरा कम्पनीगंज स्टेट रेलवे पहले चला करती थी। शिलांग से 103 किलोमीटर (64 मील) पर गुवाहाटी निकटतम रेलवे स्टेशन है जो पूर्वोत्तर क्षेत्र को ब्रॉडगेज लाइन द्वारा देश के शेष भाग से जोड़ा करता है। गुवाहाटी से रेलवे लाइन को बायर्नीहाट (20 किलोमीटर (12 मील)) तक जोड़ने का प्रस्ताव विचाराधीन है जो आगे शिलांग तक विस्तृत की जायेगी।
राज्य की राजधानी शिलांग का विमानक्षेत्र उमरोई में स्थित है। यह शिलांग मुख्य शहर से 30 किलोमीटर (19 मील) पर गुवाहाटी-शिलांग राजमार्ग पर स्थित है। इसका नया टर्मिनल भवन ₹30 करोड़ (US$4.38 मिलियन) की लागत से बना है जिसका उद्घाटन जून २०११ में हुआ था।[71] एअर इंडिया क्षेत्रीय अपनी उड़ान शिलांग विमानक्श्झेत्र से कोलकता तक प्रतिदिन भरता है। एक हैलीकॉप्टर सेवा भी शिलांग से गुवाहाटी और तुरा के लिये चलती है। तुरा के निकट बाल्जेक विमानक्षेत्र २००८ में प्रचालन में आया था।[72] भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण इसकी देख रेख कर रहा है। प्राधिकरण विमानक्षेत्र को एटीआर ४२ एवं एटीआर ७२ सीटर के लिये विकसित कर रहा है। असम में अन्य निकटवर्ती विमानक्षेत्रों में बोरझार, गुवाहाटी विमानक्षेत्र(IATA: GAU) शिलांग से लगभग 124 किलोमीटर (77 मील) पर स्थित है।
बहुत पहले विदेशी पर्यटकों को उन क्षेत्रों में प्रवेश पूर्व अनुमति लेनी होती थी, जिनसे मिल कर अब मेघालय बना है। हालांकि प्रतिबन्ध १९५५ में हटा लिए गए थे। राज्य के पर्वतों, पठारी ऊंची-नीची भूमि, कोहरे व धूंध से भरे इलाकों और नैसर्गिक दृश्यों आदि को देखते हुए मेघालय की तुलना स्कॉटलैण्ड से की जाती रही है और इसे पूर्व का स्कॉटलैण्ड (स्कॉटलैण्ड ऑफ़ द ईस्ट) भी कहा गया है।[14] राज्य में देश के सबसे घने प्राथमिक वन उपस्थित हैं और इस कारण से यह भारत के सबसे महत्त्वपूर्भ पारिस्थित्तिक क्षेत्रों में से एक गिना जाता रहा है। मेघालयी उपोष्णकटिबंधीय वनों में पादप एवं जीव जगत की वृहत किस्में पायी जाती है। राज्य में २ राष्ट्रीय उद्यान एवं ३ वन्य जीवन अभयारण्य हैं।
मेघालय बहुत से साहसिक पर्यटन जैसे पर्वतारोहण, रॉक क्लाइम्बिंग, ट्रेकिंग, हाइकिंग, गुफा भ्रमण एवं जल-क्रीड़ा के अवसर भी प्रदान करता है। राज्य में कई ट्रेकिंग मार्ग भी उपलब्ध हैं जिनमें से कुछ में तो दुर्लभ जानवरों से भी सामना संभव होता है। उमियम झील में जल क्रीड़ा (वॉटर स्पोर्ट्स) परिसर हैं, जहां रो-बोट्स, पैडलबोट्स, सेलिंग नौकाएं, क्रूज-बोट, वॉटर स्कूटर और स्पीडबोट जैसी सुविधाएं हैं भी मिलती हैं। चेरापुंजी पूर्वोत्तर भारत के सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल में से एक है। यह राजधानी शिलांग से दक्षिण दिशा में स्थित है तथा एक मनोहारी प्राकृतिक अवलोकन वाले सड़क मार्ग द्वारा यह राजधानी शिलांग से जुड़ा हुआ है।
चेरापुंजी के निकटस्थ ही जीवित जड़ सेतु पर्यटकों के लिये आकर्षण हैं।[73] प्रसिद्ध दोहरा जड़ीय सेतु अन्य बहुत से इस प्रकार के सेतुओं सहित पर्यटकों को स्तंभित कर देने वाला आकर्षण है। इस प्रकार के बहुत से सेतु नोंगथिम्मई, माइन्टेंग एवं टाइनरोंग में मिल जाते हैं।[74] जड़ सेतु मिलने वाले अन्य स्थानों में मावैलनोंग के पर्यटन ग्राम के निकट रिवाई ग्राम, पायनर्सिया और विशेषकर पश्चिम जयन्तिया हिल्स जिले के रांगथाइल्लाइंग एवं मावकिरनॉट गाँव हैं, जहाँ निकटवर्ती गांवों में बहुत से जड़ सेतु देखने को मिल जाते हैं।[65]
राज्य के प्रमुख एवं प्रसिद्ध जलप्रपातों में एलिफ़ैण्ट फ़ॉल्स, शाडथम प्रपात, वेइनिया प्रपात, बिशप प्रपात, नोहकालिकाई प्रपात, लांगशियांग प्रपात एवं स्वीट प्रपात, क्रिनोलाइन जलप्रपात, काइनरेम जलप्रपात, नोहस्गिथियांग जलप्रपात, बीदों जलप्रपात, मार्गरेट जलप्रपात और स्प्रैड इगल जलप्रपात कुछ हैं। इनके अलावा यहाँ विशेषकर मॉनसून के काल में ढेरों झरने मिलते हैं। मावसिनराम के निकट स्थित जकरेम के गर्म जल के झरने में औषधीय एवं चिकित्सकीय गुण पाये जाने की मान्यता है।[75]
पश्चिम खासी हिल्स जिले में स्थित नोंगखनम द्वीप मेघालय का सबसे बड़ा एवं एशिया का दूसरा सबसे बड़ा नदी द्वीप है।[76] यह नोंगस्टोइन से १४ किमी॰ दूर स्थित है। यह द्वीप किन्शी नदी के फान्लियान्ग और नाम्लियान्ग नदियों में विभाजित हो जाने से बना है। रेतीली तटरेखा वाली फान्लियान्ग नदी बहुत ही सुन्दर झील बनाती है। इसके आगे आगे जाते हुए फान्लियान्ग नदी एक गहरी घाटी में गिरने से पूर्व एक ६० मी॰ ऊँचे जलप्रपात से गिरती है। यह प्रपात शादथम फ़ॉल्स नाम से प्रसिद्ध है।
मेघालय अपने पवित्र वृक्षों के लिये भी प्रसिद्ध है। ये वन, उद्यान या प्राकृतिक सम्पदा का छोटा या बड़ा भाग होते हैं, जिन्हें स्थानीय लोग कई पीढियों से किसी स्थानीय देवता को समर्पित कर उसके प्रतीक के रूप में पूजते रहे हैं। ये प्राचीन काल से मान्यता रही है और इनके अनुसार इन वृक्षों में पवित्र आत्मा का निवास होता है। ऐसे स्थान भारत पर्यन्त मिल जाएंगे और इनका अनुरक्षण एवं देखभाल स्थानीय लोग करते हैं, तथा इनकी पत्तियों व अन्य भागों को या इनमें निवास करने वाले जीव जन्तुओं को किसी भी प्रकार की क्षति पहुंचाना या तोड़ना निषेध होता है। मावफ्लांग सैकरेड फ़ॉरेस्ट (मावफलांग पवित्र वन) जिसे "लॉ लिंगडोह" भी कहा जाता है, मेघालय के सैकरेड फ़ॉरेस्ट्स में से एक है। यह शिलाँग से लगभग २५ कि॰मी॰ पर मावफलांग में स्थित है। यह एक नैसर्गिक दश्य वाला पवित्र स्थान है जहां पवित्र रुद्राक्ष भी मिल जाते हैं।[77]
मेघालय का ग्रामीण जीवन एवं ग्राम पूर्वोत्तर की पर्वतीय जीवनशैली का दर्शन कराते हैं। ऐसा एक गांव भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित है, जिसे मावलिन्नॉंग कहते हैं। इसके बारे में पत्रिका डिस्कवर इण्डिया में विस्तृत लेख निकला था।[78] यह गांव पर्यटन के लिये जाना जाता है और यहां एक जीवित जड़ सेतु, हाइकिंग ट्रेल और चट्टान संरचनाएं हैं।
मेघालय में बहुत से प्राकृतिक एवं कृत्रिम झीलें व सरोवर हैं। गुवाहाटी-शिलाँग राजमार्ग पर स्थित उमियम झील (जिसे बड़ापानी झील भी कहते हैं: उम=बड़ा+यम =पानी) यहां आने वाले पर्यटकों के लिये एक बड़ा आकर्षण है। मेघालय में बहुत से उद्यान भी हैं, थांगखरान्ग पार्क, ईको पार्क, बॉटैनिकल गार्डन एवं लेडी हैदरी पार्क इनमें से कुछ हैं। शिलांग से ९६ कि॰मी॰ दूर स्थित डॉकी बांग्लादेश का द्वार है। यहां से मेघालय और बांग्लादेश सीमा के कुछ सर्वोच्च पर्वतों के नैसर्गिक दृश्य दिखाई देते हैं।
बलफकरम राष्ट्रीय उद्यान अपने प्राचीन आवास और दृश्यों के साथ यहां का एक प्रमुख आकर्षण है।[79] गारो पर्वत पर स्थित नोकरेक राष्ट्रीय उद्यान में भरपूर वन्य जीवन मिलता है जिसकाअपना ही आनन्द है।[80]
मेघालय में अनुमानित ५०० प्राकृतिक चूनापत्थर एवं बलुआपत्थर की गुफाएं हैं, जो राज्य भर में फ़ैली हुई हैं। इनमें से उपमहाद्वीप की अधिकांश सबसे लम्बी और सबसे गहरी गुफाएं हैं। इनमें क्रेम लियाट प्रा सबसे लम्बी और सायन्रियांग पामियंग सबसे गहरी गुफा है। ये दोनों ही जयन्तिया पर्वत में स्थित है। बहुत से देशों जैसे यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, आयरलैंड एवं संयुक्त राज्य से ढेरों गुफा प्रेमी यहां दशकों से आते रहते हैं और इन गुफाओं में अन्वेषण करते रहते हैं।
मेघालय अपने जीवित जड़ सेतुओं के लिये भी प्रसिद्ध है। ये एक प्रकार के निलंबन सेतु होते हैं जिनका निर्माण रबड़ के पेड़ की जड़ों एवं मूलों को आपस में गूंथ कर आमने सामने के नदी तटों के आरपार किया जाता है। ऐसे सेतु चेरापुंजी, नोंगतलांग, कुडेंग रिम एवं कुडेंग थिम्माई गांवों में देखने को मिल जाते हैं। इस प्रकार का एक दोहरा सेतु नोंग्रियाट ग्राम में मिलता है।
मेघालय में अन्य पर्यटक आकर्षण इस प्रकार से हैं:
राज्य के प्रमुख मुद्दों में बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों का प्रवेश, हिंसा की घटनाएं, राजनीतिक अस्थिरता, खेतों के लिये काट कर जलाने की प्रथा के चलते वनों की अवैध कटाई आते हैं। स्थानीय निवासी खासियों और बांग्लादेशी मुसलमानों के बीच झड़पों एवं हिंसा की अनेक वारदातें होती रहती हैं।
बांग्लादेश की सीमा से लगते हुए राज्यों में अवैध अप्रवासन एक प्रमुख मुद्दा बन गया है - पश्चिम में पश्चिम बंगाल, उत्तर में मेघालय और असम, पूर्व में त्रिपुरा, मणिपुर एवं मिज़ोरम। भारतीय अर्थ-व्यवस्था के उन्नत होने के कारण लाखों बांग्लादेशी यहां घुसपैठ करते रहे हैं।इन बांग्लादेशी प्रवासियों का यहां घुसपैठ करने का मुख्य उद्देश्य वहां की हिंसा, गरीबी, बेरोजगारी और साथ ही इस्लामिक बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे धार्मिक अत्याचार से बचाव ही होता है। मेघालय में दर्जनों राजनीतिक एवं नागरिक स्मूहों व दलों की लम्बे समय से यह मांग रही है कि इस घुसपैठ पर रोक लगायी जाए या कम से कम इसे नियन्त्रित स्तर तक ही अनुमत किया जाए अन्यथा इससे इन राज्यों की अर्थ एवं कानून व्यवस्था पर बुरा प्रभाव व अवांछित भार पड़ता है।[81] बांग्लादेश और मेघालय की सीमा लगभग ४४० किलोमीटर लम्बी है जिसमें से ३५० कि॰मी॰ पर बाड़ लगी हुई है, किन्तु सीमा की लगातार अन्वरत गश्त संभव नहीं है अतः इसमें घुसपैठ की संभावनाएं हैं। इसे पूर्णतया बाड़ लगाने एवं प्रवेश को अनुमति या अनुज्ञा पत्र द्वारा नियन्त्रित करने के प्रयास जारी हैं।[82]
तत्कालीन मुख्य मंत्री मुकुल संगमा ने अगस्त २०१२ में केन्द्र सरकार को पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में हो रही अवैध घुसपैठ को नियन्त्रण से बाहर होने से पूर्व पर्याप्त प्रयास करने की मांग की थी।[83]
वर्ष २००६ से २०१३ के अन्तराल में शून्य से २८ नागरिक प्रतिवर्ष मेघालय( या शून्य से १ व्यक्ति प्रति १ लाख व्यक्ति) में मारे गये थे, जिन्हें राज्य के प्राधिकारियों द्वारा आतंक-संबंधी साभिप्राय हिंसा ्में वर्गीकृत किया गया है।[84] विश्व की साभिप्राय हिंसा के कारण होने वाली मत्यु की औसत वार्षिक दर हाल के वर्षों में ७.९ प्रति १ लाख व्यक्ति रही है।[85] आतंक-संबन्धी हत्याएं प्रायः जनजातीय समूहों में और बांग्लादेशी प्रवासियों का विरोध करते हुए होती रही हैं। राजनीतिक संकल्प और वार्ता के साथ-साथ, विभिन्न ईसाई संगठनों ने भी हिंसा को रोकने और समूहों के बीच चर्चा की प्रक्रिया में सहायक होने के लिए पहल की है।[86]
राज्य की स्थापना के बाद से यहां २३ सरकारें बन चुकी हैं, जिनका औसत कार्यकाल १८ माह से कम ही है। मात्र ३ सरकारें ३ वर्ष से अधिक चली हैं। इस राजनीतिक अस्थिरता का दुष्प्रभाव राज्य की अर्थ-व्यवस्था पर पड़ता रहा है।[87] हालांकि हाल के वर्षों में राजनीतिक स्थिरता में वृद्धि दिखाई दे रही है और आशा है कि ये राज्य के लिये लाभदायक होगी। २००८ में चुनी गयी सरकार के ५ वर्ष पूरे होने पर अन्तिम विधान सभा २०१३ में चुनी गयी थी जिसका कार्यकाल प्रगति पर है।[88]
मेघालय में झूम कृषि अर्थात् वृक्ष काटो एवं जलाओ और कृषि भूमि पाओ -- का अभ्यास पुरातन समय से चलता आ रहा है।[89] यह यहां की लोककथाओं के द्वारा सांस्कृतिक रूप से स्थानीय लोगों की कृषि शैली में बस चुका है। इस लोककथा के अनुसार वायु के देवता ने ओलावृष्टि एवं तूफ़ान के देवता के साथ मिलकर आकाशीय वृक्ष (देवताओं के वृक्ष) को झकझोड़कर हिला दिया जिससे उसके बहुत से बीज पृथ्वी पर आ गिरे और एक दो’ अमिक नामक पक्षी ने उन्हें खेतों में बो दिया। ये असल में धान के बीज थे। ईश्वर ने इस तरह से मानव को धान के बीज देकर इन्हें झूम कृषि के निर्देश दिये, साथ ही ये भी कहा कि प्रत्येक फसल पर अपनी उपज का एक भाग मुझे समर्पित किया करोगे।
मेघालय के गारो पर्वतों की एक अनु लोककथा के अनुसार बोने-निरेपा-जाने-नितेपा नामक व्यक्ति ने मिसि-कोकडोक नामक एक शिला के निकट की भूमि को साफ़ करके वहां धान और बाजरे की खेती की और अच्छी उपज पायी। तब उसने यह तकनीक अन्य लोगों को भी बतायी, और वर्ष के प्रत्येक माह का नाम इस कृषि के एक चरण के नाम पर रख दिया, इससे स्थानीय लोगों को इसके नाम का अभ्यास सरल रूप से सुलभ हो जाये।[90]
आधुनिक काल में यह स्थानांतरण वाली कृषि परम्परा मेघालय की जैवविविधता के लिये बड़ा खतरा बन गयी है।[91] २००१ के एक उपग्रह चित्र के चित्र से ज्ञात होता है कि ये स्थानांतरण कृषि जारी है और सघन वनों के क्षेत्र, संरक्षित जीवमंडलों से भी इसके कारण छंटते जा रहे हैं। [92] झूम कृषि न केवल प्राकृतिक जैवविविधता के लिये खतरा है, बल्कि ये कृषि का न्यून-उपज वाला हानिकारक तरीका है। मेघालय में अधिकांश जनसंख्या के कृषि पर आधारित होने के आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए ये माना जा रहा है कि ये यहां के लिये एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।[93][94] स्थानांतरण कृषि केवल भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में ही नहीं की जाती, वरन दक्षिण-पूर्व एशिया में भर में इसका चलन है।[95]
राज्य में कुछ प्रमुख मीडिया पत्र इस प्रकार से हैं:[उद्धरण चाहिए]
पिछले कई वर्षों में राज्य में बहुत से सामयिक, साप्ताहिक और दैनिक पत्र आरम्भ हुए हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार से हैं:
राज्य में प्रकाशित साप्ताहिक रोजगार समाचार पत्र:
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