ब्रह्मवैवर्त पुराण
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ब्रह्मवैवर्त पुराण वेदमार्ग का दसवाँ पुराण है। अठारह पुराणों में प्राचीनतम पुराण ब्रह्मवैवर्त पुराण को माना गया है। इस पुराण में जीव की उत्पत्ति के कारण और ब्रह्माजी द्वारा समस्त भू-मंडल, जल-मंडल और वायु-मंडल में विचरण करने वाले जीवों के जन्म और उनके पालन पोषण का सविस्तार वर्णन किया गया है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण और देवी श्रीराधा की गोलोक-लीला और भगवान राम और जानकी जी की साकेत-लीला की लीलाओ का विस्तृत वर्णन तथा अवतार-लीलाका सुन्दर विवेचन है। साथ ही अनेक देवी-देवताओ की महिमा एवं एकरूपता और उनकी साधना-उपासनाका सुन्दर निरूपण किया गया है। अनेक भक्तिपरक आख्यानों एवं स्तोत्रोंका भी इसमें अद्भुत संग्रह है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण | |
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![]() गीताप्रेस गोरखपुर का आवरण पृष्ठ | |
लेखक | वेदव्यास |
देश | भारत |
भाषा | संस्कृत |
श्रृंखला | पुराण |
विषय | राधाकृष्ण भक्तिरस |
प्रकार | हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ |
पृष्ठ | १८,००० श्लोक |
इस पुराण में चार खण्ड हैं। ब्रह्मखण्ड, प्रकृतिखण्ड, श्रीकृष्णजन्मखण्ड और गणेशखण्ड। इन चारों खण्डों से युक्त यह पुराण अठारह हजार श्लोकों का बताया गया है। यह वैष्णव पुराण है। इस पुराण में श्रीकृष्ण को ही प्रमुख इष्ट मानकर उन्हें सृष्टि का कारण बताया गया है। 'ब्रह्मवैवर्त' शब्द का अर्थ है- ब्रह्म का विवर्त अर्थात् ब्रह्म की रूपान्तर राशि। ब्रह्म की रूपान्तर राशि 'प्रकृति' है। प्रकृति के विविध परिणामों का प्रतिपादन ही इस 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में प्राप्त होता है। कहने का तात्पर्य है प्रकृति के भिन्न-भिन्न परिणामों का जहां प्रतिपादन हो वही पुराण ब्रह्मवैवर्त कहलाता है। विष्णु के अवतार कृष्ण का उल्लेख यद्यपि कई पुराणों में मिलता है, किन्तु इस पुराण में यह विषय भिन्नता लिए हुए है। 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में कृष्ण को ही 'परब्रह्म' माना गया है, जिनकी इच्छा से सृष्टि का जन्म होता है। 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में श्रीकृष्ण लीला का वर्णन 'भागवत पुराण' से काफी भिन्न है। 'भागवत पुराण' का वर्णन साहित्यिक और सात्विक है जबकि 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' का वर्णन श्रृंगार रस से परिपूर्ण है। इस पुराण में सृष्टि का मूल श्रीकृष्ण को बताया गया है।