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अपशिष्ट पदार्थों को नए उत्पादों में परिवर्तित करना विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
पुनरावर्तन में संभावित उपयोग में आने वाली सामग्रियों के अपशिष्ट की रोकथाम कर नए उत्पादों में संसाधित करने की प्रक्रिया ताजे कच्चे मालों के उपभोग को कम करने के लिए, उर्जा के उपयोग को घटाने के लिए वायु-प्रदूषण को कम करने के लिए (भस्मीकरण से) तथा जल प्रदूषण (कचरों से जमीन की भराई से) पारंपरिक अपशिष्ट के निपटान की आवश्यकता को कम करने के लिए, तथा अप्रयुक्त विशुद्ध उत्पाद की तुलना में ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को कम करने के लिए पुनरावर्तन में प्रयुक्त पदार्थों को नए उत्पादों में प्रसंस्करण की प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं।[1][2] पुनरावर्तन आधुनिक अपशिष्ट को कम करने में प्रमुख तथा अपशिष्ट को "कम करने, पुनः प्रयोग करने, पुनरावर्तन करने" की क्रम परम्परा का तीसरा घटक है।
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पुनरावर्तनीय पदार्थों में कई किस्म के कांच, कागज, धातु, प्लास्टिक, कपड़े, एवं इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं। हालांकि प्रभाव में एक जैसा ही लेकिन आमतौर पर जैविक विकृतियों के अपशेष से खाद बनाने अथवा अन्य पुनः उपयोग में लाने - जैसे कि भोजन (पके अन्न) तथा बाग़-बगीचों के कचरों को पुनरावर्तन के लायक नहीं समझा जाता है।[2] पुनरावर्तनीय सामग्रियों को या तो किसी संग्रह शाला में लाया जाता है अथवा उच्छिस्ट स्थान से ही उठा लिया जाता है, तब उन्हें नए पदार्थों में उत्पादन के लिए छंटाई, सफाई तथा पुनर्विनीकरण की जाती है।
सही मायने में, पदार्थ के पुनरावर्तन से उसी सामग्री की ताजा आपूर्ति होगी, उदाहरणार्थ, इस्तेमाल में आ चुका कागज़ और अधिक कागज़ उत्पादित करेगा, अथवा इस्तेमाल में आ चुका फोम पोलीस्टाइरीन से अधिक पोलीस्टाइरीन पैदा होगा। हालांकि, यह कभी-कभार या तो कठिन अथवा काफी खर्चीला हो जाता है (दूसरे कच्चे मालों अथवा अन्य संसाधनों से उसी उत्पाद को उत्पन्न करने की तुलना में), इसीलिए कई उत्पादों अथवा सामग्रियों के पुनरावर्तन में अन्य सामग्रियों के उत्पादन में (जैसे कि कागज़ के बोर्ड बनाने में) बदले में उनकें ही अपने ही पुनः उपयोग शामिल हैं। पुनरावर्तन का एक और दूसरा तरीका मिश्र उत्पादों से, बचे हुए माल को या तो उनकी निजी कीमत के कारण (उदाहरणार्थ गाड़ियों की बैटरी से शीशा, या कंप्यूटर के उपकरणों में सोना), अथवा उनकी जोखिमी गुणवत्ता के कारण (जैसे कि, अनेक वस्तुओं से पारे को अलग निकालकर उसे पुनर्व्यव्हार में लाना) फिर से उबारकर व्यवहार योग्य बनाना है।
पुनरावर्तन की प्रक्रिया में आई लागत के कारण आलोचकों में निवल आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों को लेकर मतभेद हैं और उनके सुझाव के अनुसार पुनरावर्तन के प्रस्तावक पदार्थों को और भी बदतर बना देते हैं तथा अनुभोदन एवं पुष्टिकरण के पक्षपातपूर्ण पूर्वग्रह झेलना पड़ता है। विशेषरूप से, आलोचकों का इस मामले में तर्क है कि संग्रहीकरण एवं ढुलाई में लगने वाली लागत एवं उर्जा उत्पादन कि प्रक्रिया में बचाई गई लागत और उर्जा से घट जाती (तथा भारी पड़ जाती हैं) और साथ ही यह भी कि पुनरावर्त के उद्योग में उत्पन्न नौकरियां लकड़ी उद्योग, खदान एवं अन्य मौलिक उत्पादनों से जुड़े उद्योगों की नौकरियां को निकृष्ट सकझा जाती है; और सामग्रियों जैसे कि कागज़ की लुग्दी आदि का पुनरावर्तक सामग्री के अपकर्षण से कुछ ही बार पहले हो सकता है जो और आगे पुनरावर्तन के लिए बाधक हैं। पुनरावर्तन के प्रस्तावकों के ऐसे प्रत्येक दावे में विवाद है और इस संदर्भ में दोनों ही पक्षों से तर्क की प्रामाणिकता ने लम्बे विवाद को जन्म दिया है।
मानव सभ्यता के इतिहास में पुनरावर्तन एक आम दस्तूर रहा है, जिसके 400 ईसापूर्व से प्लेटो जैसे हिमायती रहें हैं। ऎसी अवधियों में जब संसाधनों का अभाव रहा है अपशिष्ट कूड़े कर्कटों के प्राचीन पुरातात्विक अध्ययनों से पता चलता है कि घरों के कूड़े कर्कट (जैसे कि राख, टूटे-फूटे औजार एवं बर्तन इत्यादि) कम होतें थे — जिससे यह प्रमाणित होता है कि नए के अभाव में ज्यादा से ज्यादा कूड़े-कर्कट को पुनरावर्तित कर लिया जाता था।[3]
ऐसे भी प्रमाण है कि प्राक औद्योगिक काल में, यूरोप में कांसे एवं अन्य धातुओं की कतरनों को एकचित्र कर फिर से इस्तेमाल में लाने के लिए गलाया जाता था।[4] ब्रिटेन में कूड़ा-कर्कट बटोरने वालों को कोयले की आग से इकठ्ठा की गई राख और धूल को मूल सामग्री के रूप में इस्तेमाल कर ईट बनाने में पुनरावृत कर लिया जाता था। इन पुनरावृति के के प्रभेदों में प्रमुख परिचालक पुनरावृत पुननिर्वेश
योग्य सामान के स्टॉक की आर्थिक अनुकूलता थी, न कि कच्चे सुद्ध सामान की उपलब्धता साथ ही साथ धनी आबादी वाले इलाकों में कूड़ा-कर्कट की सफाई में कमी भी थी।[3] वर्ष 1813 में, बेटली, यॉर्कशाइर बेंजामिन कानून ने चिथड़ों को "मोटे कपड़ों" तथा 'मांगो' उनी वस्त्रों में बदल देने की प्रक्रिया विकसित की। इस पदार्थ में पुनरावृत रेशों के साथ शुद्ध ऊन को मिश्रित कर दिया गया। पश्चिमी यॉर्कशायर के शहरों मरण मोटे खुरदरे कपड़ों के उद्योग उदाहरणार्थ बेटली और ड्यूसबरी, 19वीं सदी से आरंभ कर कम से कम प्रथम विश्व युद्ध तक बरकरार रहे।
विश्वयुद्धों के समय संसाधनों के अभाव, एवं ऐसे ही विश्व-परिवर्तनीय घटनाओं ने पुनरावर्तन को प्रोत्साहित किया।[5] विश्वयुद्ध द्वित्तीय में शामिल हरेक देश में सरकारी स्तर पर पुनरावर्त का व्यापक रूप से प्रोत्साहन हेतु प्रचार-प्रसार किया गया, नागरिकों से देश भक्ति भावना प्रदर्शन करने हेतु यह निवेदन किया गया कि वे धातुओं और इस्तेमाल हो चुके वस्त्रों को दान कर दें। युद्ध के दौरान संसाधनों के संरक्षण हेतु परियोजनाएं लागू की गईं जो कुछ देशों में जहां प्राकृतिक संसाधनों के प्राचुर्य का अभाव था जैसे कि जापान में, युद्ध की समाप्ति के बाद भी जरी रही।
उर्जा के लागत में वृद्धि के कारण, पुनरावर्तन में सबसे बड़ा निवेश 1970 के दशकों के दौरान हुआ। एल्यूमीनियम के पुनरावर्तन में शुद्ध उत्पादन हेतु केवल 5 प्रतिशत उर्जा की ही आवश्यकता होती हैं; कांच, कागज़ तथा धातुओं में नाटकीय रूप से कम किन्तु बहुत ही उल्लेखनीय रूप से उर्जा की बचत होती है, जब पुनरावर्तित जमे संसाधन के स्टॉक को उपयोग में लाया जाता है।[6]
समूचे संयुक्त राज्य में न्यूजर्सी वुड्बरी ही पुनरावर्तन को अधिदेशाधीन करने वाला एकमात्र प्रथम शहर था।[7] रोज़ रोवाने के नेतृत्व[8] में 1970 के आरंभिक दशकों में, अपशिष्ट प्रबंधन की गाड़ी के पीछे पुनरावर्तन ट्रेलर को खींचने का ख्याल आया ताकि कचरे तथा जमने वाली पुनरावर्तनीय सामग्री को साथ ही साथ संगृहीत भी किया जा सके। इस पद्यति का अनुकरण दूसरे कस्बों और शहरों ने भी किया और आज संयुक्त राज्य में कई शहर पुनरावर्तन के लिए आवश्यक सामग्री जुटा लेते हैं।
वर्ष 1987 में, मोब्रो 4000 जलयान कूड़ा-कर्कट के भण्डार को न्यूयॉर्क से दक्षिणी केरोलिना ढ़ो कर ले गया; जहां उसे लेने से मना कर दिया गया। तब इसे बेलीज़ भेज दिया गया; वहां भी इसी तरह इसे लेने से मना कर दिया गया। जलयान न्यूयॉर्क लौट आया और कूड़ा-कर्कट के उस अम्बर को जलाकर भस्म कर दिया गया। इस घटना से अपशिष्ट के निष्पादन तथा पुनरावर्तन को लेकर मीडिया में गरमागरम बहस छिड गई। यह अक्सर 1990 के दशकों की पुनरावर्तन के "पागलपन" को प्रज्ज्वलित करने वाली घटना के रूप में मानी जाती है।[4]
पुनरावर्तन की परियोजना को कारगर बनाने में, व्यापक रूप से, पुनरावर्तनीय पदार्थ की सतत आपूर्ति कठिन है। ऐसी आपूर्ति की सृष्टि के लिए तीन वैकल्पिक विधान प्रयोग में लाए जाते हैं: अनिवार्य (आदेशात्मक) पुनरावर्तन संग्रहण, पात्र (कनेक्टर) में जमा करने का कानूनी आदेश, तथा अपशिष्ट पर प्रतिबन्ध. अनिवार्य (आदेशात्मक) संग्रहण कानूनों ने सहरों में परावर्तन के उद्देश्यों को आमतौर पर निश्चित तिथि तक सहर के कचरे का निर्धारित प्रतिशत अवश्य ही विस्थापित कर दिए जाने को लक्ष्य बनाया। तब शहर इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए उत्तरदायी हो गए।[2]
संग्राहक पात्र (कंटेनर) में जमा करने के कानून में कुछ कंटेनरों को लौटाने के एवज में कुछ राशि लौटने की पेशकश की गई, खासतौर पर कांच, प्लास्टिक और धातु. ऐसे कंटेनर में जब कोई उत्पाद ख़रीदा जाता था, एक अल्प अतिरिक्त शुल्क उसके मूल्य पर धार्य होता था। अगर कंटेनर को संग्रह-केंद्र पर लौटा दिया जाता था तो उपभोक्ता द्वारा यह अतिरिक्त शुल्क वापस मांग लिया जा सकता था। ये परियोजनाएं अक्सर 80% पुनरावर्तन के परिणाम के दर से काफी सफल रहीं। ऐसे परिणामों के बावजूद, संग्रहण आंचलिक सरकारों से हटकर उद्योग तथा उपभोक्ताओं के पास स्थानांतरित हो जाने के कारण कुछ क्षेत्रों में ऎसी योजनाओं को सशत्त प्रतिरोध का सामना करना पड़ा.[2]
पुनरावर्तनीय पदार्थों की आपूर्ति में वृद्धि की तीसरी पद्यति कुछ पदार्थों को अपशिष्ट के रूप में कूड़ा-कर्कट में निष्पादन पर प्रतिबन्ध लगाना है, जिनमें अक्सर इस्तेमाल हो चुके तेल, पुरानी बैटरियां, टायर्स तथा बाग़-बगीचों के कूड़े-कर्कट शामिल हैं। प्रतिबंधित उत्पादों के उचित निष्पादन के लिए व्यवहार्य आर्थिक स्थिति उत्पन्न करना ही इस पद्यति का प्रमुख उद्देश्य है। इस बारे में सावधानी बरतनी चाहिए कि ऐसी परावर्तनीय सेवाएं अधिकाधिक संख्या में मौजूद न हों, अथवा ऐसे प्रतिबंध गैरकानूनी तरीके से कूड़े-कर्कट का बहुत बड़ा अम्बार न खड़ा कर दे। [2]
पुनरावर्ततित पदार्थों के लिए मांग को बढ़ाने एवं बरकरार रखने के लिए भी कानून का प्रयोग किया गया। ऐसी चार क़ानूनी पद्धतियां मौजूद हैं: कम-से-कम पुनरावर्तित मात्रा के अधिदेश, उपयोगिता की दरें, अधिप्राप्ति की नीतियां, पुनरावर्तित उत्पाद के वर्गीकरण एवं नामकरण.[2]
कम से कम पुनरावर्तित मात्रा के अधिदेश तथा उपयोगिता की दरों ने उत्पादकों को उनके प्रचालन में परावर्तन को शामिल करने को सीधे बाध्य कर दिया। मात्रा के अधिदेशों में यह साफ़-साफ़ जाहिर है कि नए उत्पाद के कुछ निश्चित प्रतिशत में पुनरावर्तित पदार्थ का होना आवश्यक है। उपयोगिता की दरें अधिक लचीले विकल्प हैं; प्रचालन के किसी भी बिंदु पर अथवा यहां तक कि विपनीय ऋणों के लिए विनिमय में परावर्तन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उद्योगों को अनुबंध की भी अनुमति दे दी गई है। इन दोनों ही पद्धतियों के विरोधियों का निशाना उन्ली आवश्यकताओं को बाधा-चढ़ाकर पेश करने और यह दावा करने की कि वे उद्योगों से उनके जरुरी लचीलेपन को जबरदस्ती ले लेते हैं।[2][9]
सरकारों ने उनकी अपनी क्रुय, क्षमता का प्रयोग परावर्तनीय मोग को बढ़ाने के लिए जिस जरिए किया है उसे "प्रापण प्रबंध" नीति कहते हैं। इन नीतियों को या तो "दर किनार" कर दिया गया है, जो पुनरावृत उत्पादों में पूरी तरह खर्च करने के एक निश्चित परिमाण पर अपनी छाप छोड़ता है, अथवा "मूल्य की प्राथमिकता" की परिकल्पनाएं करता है जो पुनरावृत सामनों के खरीद जाने पर बड़े बजट का प्रावधान करता है। अतिरिक्त अधिनियम विशिष्ट मामलों को ही अपना लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं: संयुक्त राज्य अमेरिका में, उदाहरणार्थ, पर्यावरणीय संरक्षण एजेंसी के तेल, कागज़, टायर तथा पुनरावृत अथवा यथासंभव पुनः संशोधित आवास में इस्तेमाल हुए रोधन (इन्सुलेशन) की खरीद पर अधिदेश जारी करती है।[2]
अंतिम रूप से सरकारी अधिनियम पुनरावृत उत्पाद की लेबलिंग (पृथक्करण और नामकरण) की बढ़ती हुई भाग को लेकर है। जब उत्पादकों को उनकी पुनरावृत पदार्थों के उत्पाद के परिणाम के साथ पैकेजिंग पर लेबलिंग (पृथककरण एवं नामकरण की जरुरत होती है पैकेजिंग के साथ) उपभोक्ता ही उचित समझदारी वाला चुनाव कर सकते हैं। क्रय करने की प्रचुर क्षमता वाले उपभोक्ता तब अधिक पर्यावरणनीय सचेतन विकल्प का चुनाव कर सकते हैं, उत्पादकों को उनके उत्पादों में पुनरावृत पदार्थ के परिमाण में वृद्धि के लिए तत्पर करते हैं, तथा परोक्ष रूप से मांग में वृद्धि करते हैं। परावर्तन के पृथक्करण एवं नामकरण के स्तरीकरण में भी पुनरावर्तीय आपूर्ति के घनात्मक प्रभाव हो सकते हैं अगर लेबलिंग में वे सूचनाएं भी शामिल हो कि कैसे और कहां उत्पादों को पुनरावर्तित किया जा सकता है।[2]
पुनरावर्तीय पदार्थों को आम अपशिष्ट की बिखरी हुई सिलसिलेवार कतार से संग्रह कर एकत्रित करने की कई अलग-अलग प्रणालियां लागू की गई हैं। ये प्रणालियां आम जनता की सुविधा और सरकारी आसानी एवं खर्च के बीच व्यावसायिक प्रतिबिम्ब बनाती हैं। एकत्रीकरण की तीन प्रमुख श्रेणियां "कचरा फेंके जाने वाले केंद्र", पुनः खरीदे जाने वाले केंद्र एवं नियंत्रित क्षेत्र के एकत्रीकरण हैं।[2]
जहां कचरा गिराए जाते हैं ऐसे केन्द्रों में अपशिष्ट उत्पादकों को पुनरावर्तीय पदार्थों को केंद्रीय इलाके में, या तो स्थापित या फिर भ्राम्यमान संग्रहण स्टेशन अथवा खुद पुनः परिचालित संयत्र तक ढ़ोकर ले जाना पड़ता है। एकत्रीकरण के सबसे आसान तरीके तो ये मान लिए गए हैं, लेकिन अपेक्षित कार्यकलाप से अनभिज्ञ और कम होने के कारण सहना पड़ता है। पुनः ख़रीदे जाने वाले केंद्र पुनरावर्तनीय पदार्थों की खरीद और सफाई के मामले में चूंकि भिन्न हैं, अतः के निरंतर आपूर्ति एवं इस्तेमाल के लिए स्पष्ट प्रोत्साहन प्रदान करती है। तब संसाधनों परान्त पदार्थ को बेचा जा सकता है, इस आशा के साथ कि इससे लाभ होगा। दुर्भाग्यवश सरकारी आर्थिक सहायताएं पुनः खरीद जाने वाले केन्द्रों को उपयोगी लाभप्रद उद्योग बनाने के लिए सरकारी आर्थिक सहायताएं आवश्यक हैं, जैसा कि युनाइटेड स्टेट्स नेशन सॉलिड वेस्ट्स मैनेजमेंट के अनुसार एक टन सामग्री को प्रोसेस (संसाधित) करने में इसकी लागत औसतन 50 अमेरिकी डॉलर के आसपास आती है, जिसे केवल 30 अमेरिकी डॉलर पर ही फिर से बेचा जा सकता है।[2]
प्रतिबंधित क्षेत्र से एकत्रीकरण में कई प्रणालियां हैं जिनमें सूक्ष्म अंतर विशेषकर इस बात को लेकर है कि पुनरावर्तीय पदार्थों को कहां अलग-अलग कर साफ़ किया गया है। मिश्रित अपशिष्ट के एकत्रीकरण की प्रमुख श्रेणियां मिश्रित पुनरावर्तनीय तथा स्रोत से ही पृथक्करण है।[2] अपशिष्ट को एकत्रित कर ढ़ोने वाली गाड़ी आमतौर पर कूड़ा-कर्कट उठाती है।
इस प्रतिबिम्ब के एक छोर पर मिश्रित अपशिष्ट का एकत्रीकरण है, जिसमें सभी पुनरावर्तनीय पदार्थों को बाक़ी बचे दूसरे कूड़ा-कर्कट के साथ ही मिश्रित रूप में ही एकत्रित किया जाता है और तब बांछित पदार्थों के एक केंद्रीय छांटने वाले सुविधाजनक स्थान पर अलग-अलग कर साफ़ कर लिया जाता है। इसके फलस्वरूप एक बड़ी मात्रा में पुनरावर्तनीय अपशिष्ट, खासकर कागज़ इतने अधिक सड़ जाते हैं कि फिर से संसाधित हो ही नहीं सकते, बच जाते हैं, लेकिन इसके फायदे भी हैं; शहर को पुनरावर्तनी पदार्थों को अलग से एकत्रित करने के लिए न तो कुछ भुगतान ही करना पड़ता है, नहीं इसके लिए आम लोगों को कुछ सिखाने की जरुरत ही पड़ती है। जो पदार्थ पुनरावर्तनीय हैं उनमें कोई भी परिवर्तन लागू करना आसान है क्योंकि छांटने की प्रक्रिया एक निर्धारित केन्द्रीय स्थल पर ही होती है।[2]
एक मिश्रित अथवा एकल-धारा वाली प्रणाली में, एकत्रित किए जाने वाले सभी पुनरावर्तनीय पदार्थों को एक साथ मिला दिया जाता है लेकिन दूसरे अपशिष्ट से अलग ही रखा जाता है। इससे एकत्रीकरण के उपरान्त परिस्कृत किए जाने की आवश्यकता काफी कम तो हो जाती है किन्तु आम लोगों को यह सिखाने की जरुरत पड़ जाती है कि कौन-कौन से पदार्थ पुनरावर्तनीय है।[2][4]
दूसरी पद्यति स्रोत से अलग-अलग कर देने की है, जिसमें एकत्रीकरण से पूर्व ही प्रत्येक पदार्थ को अलग-अलग कर साफ़ कर लिया जाता है। इस पद्यति में एकत्रीकरण के पश्चात सबसे कम छांटन की जरुरत पड़ती है तथा उत्तम पुनरावर्तनीय पदार्थों की उत्पत्ति होती है, लेकिन प्रत्येक अलग-अलग छांटे गए पदार्थ के एकत्रीकरण के लिए अतिरिक्त परिचालन लागत आती है। इसमें विशद रूप से लोगों को प्रशिक्षित करने की परियोजना की भी आवश्यकता होती है जिसका सफल होना अवश्य ही अनिवार्य है अगर पुनरावर्तनीय पदार्थ में मिलावट से बचना है तो.[2]
स्रोत से ही छांटन की पद्यति को सर्वाधिक प्राथमिकता प्रदान की गई है क्योंकि मिश्रित एकत्रीकरण में अलग करने में काफी लागत आती है। छांटने और अलग-अलग करने की तकनीक में विकास के कारण (नीचे छांटन देखें), हालांकि इनमें काफी उल्लेखनीय गिरावट आ गई है-कई क्षेत्रों में जहां स्रोत से अलगाव की परिकल्पना विकसित की जा चुकी है, मिश्रित एकत्रीकरण की और मुड़ गए हैं।[4]
एक बार जब मिश्रित परावर्तनीय पदार्थ एकत्रित कर लिए जाते हैं और केंद्रीय एकत्रीकरण सुविधा को सुपुर्द कर दिए जाते हैं तब विभिन्न प्रकार के पदार्थों को अवश्य ही अलग-अलग छांट लेना चाहिए। यह कई स्तरों की श्रृंखला में की जाती है, जिसमें कई स्वचालित प्रक्रियाएं भी शामिल हैं जैसे कि पदार्थ से भरी लदी ट्रक की एक घंटे से भी इस समय में छंटाई कर ली जा सकती है।[4] कुछ संयत्र ऐसे हैं जो पदार्थों को स्वचालित तरीके से अलग-अलग छांट सकते हैं, जिन्हें एकल-पद्यति का पुनरावर्तन कहा जा सकता है। पुनरावर्तन दर में 30 प्रतिशत की वृद्धि उन क्षेत्रों में देखी गई है जहां ये संयत्र मौजूद हैं।[10]
प्रारंभ में पुनरावर्तनीय पदार्थ एकत्रीकरण वाले वाहनों से अलग कर लिए जाते हैं और उन्हें वाहक पट्टो पर एक स्तर में फैला कर रख दिया जाता है। गत्ते के बड़े-बड़े टुकड़े और प्लास्टिक के थैलियों को हाथ से इस चरण में अलग कर लिया जाता है क्योंकि वे बाद में चलकर मशीन को जाम कर सकते हैं।[4]
बाद में, स्वाचालित मशीन परावर्तनीय पदार्थों को वजन के आधार पर अलग-अलग कर देती है, जिसमें भारी वजनी कांच और धातु से हल्के वजन-वाले कागज़ तथा प्लास्टिक अलग कर लिए जाते हैं। गत्तों को मिले-जुले कागजों से अलग कर लिया जाता है और सबसे अधिक सामान्य प्रकार के प्लास्टिक, PET (#1) और HDPE (#2), एकत्रित किए जाते हैं। यह छंटाई आमतौर पर, हाथ से ही की जाती है, लेकिन कुछ छंटाई केन्द्रों में अब यह स्वचालित हो गई है: आत्मसात तरंगदैर्य के आधार पर स्पेक्टेरोस्कोपिक स्कैनर यंत्र के जरिए विभिन्न प्रकार के कागज़ और प्लास्टिक अलग-अलग कर लिए जाते हैं और साथ ही साथ प्रत्येक पदार्थ को तदनुसार अलग-अलग दिशाओं में एकत्रीकरण के सही चैनलों में भेज दिया जाता है।[4]
लोहमय (फेरस) धातुओं को अलग करने के लिए शक्तिशाली चुम्बकों का प्रयोग किया जाता है, जैसा कि लोहा, इस्यात एवं टिन-के पत्तर लगे इस्पात के पात्र ("टिन कैन्स")। गैर लौहमय धातुओं को चुम्बकीय चक्रवातीय प्रवाहों के बल से बाहर निकाल लिया जाता है जिससे एल्युमीनियम के पात्रों के चरों और घूर्णी चुम्बकीय क्षेत्र वैधुतिक तरंग उत्प्रेरित करते हैं, जो बदले में, पत्रों के भीतर चुम्बकीय चक्रावातीया तरंग पैदा करते हैं। ये चुंबकीय चक्रावातीया तरंग एक बड़े चुम्बकीय क्षेत्र के द्वारा विकर्षित हो जाते हैं और पात्र बाकी बचे परावर्तीय प्रवाह से रिक्त हो जाता है।[4]
अंत में, कांच को भी हाथ से ही भूरा, कहुरुवा, हरा अथवा स्वच्छ पारदर्शी रंगों में अलग-अलग छांट दिया जाता है।[4]
परावर्तन क्या आर्थिक दृष्टि से प्रभावी है या नहीं, इस बारे में कुछ विर्तक हैं। नगरपालिकाएं पुनरावर्तन की परियोजना को लागू करने में अक्सर राजकोषीय लाभ देखती हैं, व्यापक रूप से जमीन की भराई में क्रम लागत आने के कारण.[13] टेक्नीकल यूनिवर्सिटी ऑफ़ डेनमार्क के द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला कि 83% मामलों में घरेलू कूड़े-कचरों को निपटाने के लिए पुनरावर्तन ही सबसे अधिक प्रभावी पद्यति है।[4][6] हालांकि, डेनिश इन्वाइरन्मेन्टल असेसमेंट इंस्टीट्युट द्वारा वर्ष 2004 में किए आकलन के आधार पर यह निष्कर्ष निकला कि जलाकर भस्मीकरण कर देना ही पेय पात्रों, यहां तक कि एल्युमिनियम तक को निपटा कर नस्ट कर देने का सबसे कारगर तरीका है।[14]
राजकोषीय क्षमता आर्थिक क्षमता से सर्वथा अलग है। परावर्तन के आर्थिक विश्लेषण के अर्थशास्त्रियों की भाषा में बहिमुर्खता या बाहरीपन समाविष्ट हैं, जो निजी लेन-देनों से बाहर व्यक्तियों के लाभार्थ नहीं आंकी गई लागत है। उदाहरणों में शामिल हैं: घटता हुआ वायु-प्रदूषण तथा जलाकर भस्मीकरण की प्रक्रिया से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन जमीन की भराई से जोखिमी अपशिष्ट का विक्षालन (घुलकर बह जाना), उर्जा की घटती खपत, घटता हुआ अपशिष्ट एवं संसाधनों की खपत, जो अंततः खनन एवं लकड़ी के क्रियाकलाप की पर्यावरणीय क्षति में कमी लाती है। लगभग 4000 खनिजों की पहचान की जा चुकी है, जिनमें से 100 के आसपास आम हैं, दूसरे कई सौ तुलनात्मक रूप से अपेक्षाकृत आम और साधारण है और बाक़ी बचे दुर्लभ हैं।[15] अधिकाधिक पुनरावर्तन के बिना, वर्ष 2037 तक ही जस्ते का होना संभव है, इण्डियन एवं हाफनियम वर्ष 2017 तक पूरी तरह खर्च हो जाएंगे और टर्बियम तो वर्ष 2012 से पहले ही जा चुका होगा। [16] मेकनीज़म्स के बिना जैसे कि कर एवं आर्थिक सहायताएं बाह्य्पन को आंतरिक करने में अगर लगाईं जाती हैं तो समाज पर लगाए गए लागतों के बावजूद व्यापार उनकी अनदेखी करेंगे। ऐसे गैर वित्तीय लाभों को आर्थिक दृष्टि से प्रासंगिक बनाने के लिए, समर्थन करने वाले अधिवत्ताओं ने विद्यायी (क़ानूनी) कार्यवाई पर जोर डालने को कहा है ताकि पुनरावर्ती पदार्थों की मांग में वृद्धि हो। [2] संयुक्त राज्य अमेरिका पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA) ने पुनरावर्तन के पक्ष में निष्कर्ष निकाला है, यह कहते हुए कि पुनरावर्तन के प्रयासों से देश के कार्बन उत्सर्जन में 2005 में निवल 49 मिलियन मेट्रिकटन तक की कमी आ गई है।[4] यूनाइटेड किंगडम में, अपशिष्ट और संसाधन कार्य परियोजना (वेस्ट ऐंड रिसोर्सेस ऐक्शन प्रोग्राम) के कथानुसार ग्रेट ब्रिटेन के पुनरावर्तन प्रयासों ने कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन को प्रतिवर्ष 10 से 15 मिलियन टन तक कम कर दिया है।[4] घनी आबादी वाले इलाकों में पुनरावर्तन अधिक प्रभावशाली है, क्योंकि वहां की आर्थिक व्यवस्था पैमाने पर आधारित है।[2]
पुनरावर्तन को आर्थिक रूप से व्यवहार्य और पर्यावरण की दृष्टि से कारीगर बनाने के लिए कुछ निश्चित आवश्यकताओं की पूर्ती अवश्य की जानी चाहिए। इनमें पुनरावर्तनीय पदार्थों का पर्याप्त स्रोत, कचरे की कतार से पुनरावर्तनीय पदार्थों को बाहर निकालने की प्रणाली, आसपास ही कारखाने की अवस्थिति जो पुनरावर्तनीय पदार्थों के पुनर्संसाधन में सक्षम हो, तथा पुनरावर्तित उत्पादों की संभावित मांग शामिल हैं। इन अंतिम दो आवश्यकताओं की अक्सर अनदेखी कर दी जाती है - संग्रहित पदार्थों को उत्पादन के उपयोग में लसे वाले औद्योगिक बाजार के बिना एवं उत्पादित माल के लिए उपभोक्ता बाजार के बिना, पुनरावर्तन अधूरा है और वास्तव में केवल "एकत्रीकरण" है।[2]
पुनरावर्तनीय की सेवाएं मुहैया कराने के लिए कई अर्थशास्त्री माध्यम स्तर पर सरकारी हस्तक्षेप के पक्ष में हैं। इस मानसिकता वाले अर्थशास्त्रियों की संभावित दृष्टि में उत्पाद निपटान उत्पादन का बाहरीपन है और साथ ही साथ में उनका तर्क है कि ऐसी दुविधा वाली संकटपूर्ण स्थिति को समाप्त करने में सर्वाधिक सक्षम है। हालांकि, नगरपालिका के पुनरावर्तन के प्रति ऐसे अहस्त्क्षेप वाले दृष्टिकोण के लिए सेवा के रूप में उत्पाद निष्पादन देखें जिसका मूल्यांकन उपभोक्ता करते हैं। एक मुक्त बाजार की दृष्टिमंगी उपभोक्ताओं की प्राथमिकता के साथ अधिक मेल खाती है चूंकि सरकार की तुलना में लाभार्जन तलाशने वाले व्यवसाय गुणवत्ता संपन्न उत्पादों के उत्पादन या सेवा पर अधिक बल देते हैं। इसके अलावा, अर्थशास्त्री हमेशा किसी भी बाजार में थोडा अथवा एकदम ही बाहरीपन नहीं के साथ सरकारी घुसपैठ के खिलाफ सलाह देते हैं।[17]
कुछ देश असंसाधित परावर्तनीय पदार्थों का व्यवसाय करते हैं। कुछ ने शिकायत की है कि दूसरे देशों को बेच दिए गए पुनरावर्तित पदार्थों का अंतिम भविष्य अज्ञात है और पुनर्संसाधन के बदले में उनकी अंतिम नियति जमीन की भराई ही है। एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में, 50-80% कम्प्यूटर्स जिनकी नियति पुनरावर्तित होने में है वे वास्तव में पुनरावर्तित होते ही नहीं। [18][19] चीन के लिए अवैध अपशिष्ट आयात की ख़बरें भी हैं, जहां मौद्रिक लाभ के लिए उन्हें उपकरणों को पूरी तरह अलग-अलग कर पुनरावर्तित किया जाता है, श्रमिकों के स्वास्थ्य अथवा पर्यावरणीय क्षति के बारे में विचार किए बिना. हालांकि चीन की सरकार ने इन प्रथाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है, फिर भी पूरी तरह से उन्मूलित करने में वह सक्षम नहीं है।[20] वर्ष 2008 में, पुनरावर्तनीय अपशिष्ट की कीमतें वर्ष 2009 में टकराकर आई हुई गेंद की तरह अचानक गिर गई। सन 2004 से 2008 के बीच कार्डबोर्ड औसतन 53 पाउंड टन से गिरकर 19 पाउंड टन तक पहुंच गया और फिर मई 2009 में 59 टन तक ऊपर उठ गया। PET प्लास्टिक औसतन लगभग £156/टन से £75/टन तक गिर कर फिर मई 2009 में £195/टन तक ऊपर उठ गया।[21] कुछ अंचलों में जितना पुनरावर्तन कर पाते हैं उतना ही पदार्थ निर्यात कर पाने में कठिनाई है। यह समस्या सबसे अधिक कांच के साथ पहले से ही जुड़ी हुई है ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों ही देश हरे रंग की कांच की बोतलों में प्रचुर परिमाण शराब आयात करते हैं। यद्यपि इस कांच की आधिकारिक मात्रा पुनरावर्तन के लिए भेज दी जाती है, अमेरिका के मध्य पश्चिम में इतने सारे पुनः संसाधित वस्तुओं को उपयोग में ला पाने जितनी शराब का उत्पादन नहीं कर पाते हैं। आवश्यकता से अधिक को भवन-निर्माण में पुनः पुनरावर्तित कर लिया जाता है अथवा फिर से नियमित अपशिष्ट की धारा में छोड़ दिया जाता है।[2]
ठीक इसी प्रकार, अखबारों के पुनरावर्तन के लिए बाजार तलाशने में उत्तरी पश्चिम संयुक्त राज्य में कठिनाई का सामना करना पड़ता है, जबकि इन अंचलों को कागज़ की लुगदी बनाने के कारखाने बड़ी संख्या में बना दिए गए हैं साथ ही साथ एशियाई बाजारों की सभी पता भी मिल गई है। संयुक्त राज्य के दूसरे अंचलों में, हालांकि इस्तेमाल की जा चुकी अखबारी कागज़ की मांग में काफी उतार-चढ़ाव दिखाई भी देता है।[2]
संयुक्त राज्य के कुछ राज्यों में, रीसाइकल बैंक के नाम से जाने जाने वाला कार्यक्रम लोगों को रीसाइकल के कूपन दिए जाते हैं जो स्थानीय नगरपालिकाओं से जमीन की भराई में छूट के लिए, जिसे खरीद लिया जाना जरुरी है अर्थ (मुद्रा) पाने के लिए। इसमें एकल धारा की प्रक्रिया काम में लाई जाती है ज्सिमें सभी सामानों को स्वचालित तरीके से छांट कर अलग-अलग कर लिया जाता है।[22]
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पुनरावर्तन में आनेवाली कठिनाई का अधिकांश इस तथ्य में निहित है कि अधिकतर उत्पाद पुनरावर्तन को दिमाग में रखकर डिजाइन नहीं किए जाते. सर्वदा उपलब्ध होने वाली डिजाइन की अवधारणा का लक्ष्य इस समस्या को सुलझाना है और इसे पहली बार एक पुस्तक में "Cradle to Cradle: Remaking the Way We Make Things " भवन शिल्पकार (आर्किटेक्ट) विलियम मैकडोनो तथा सायानविद माइकेल ब्राउनगर्ट ने उल्लेख किया है। उनकें परामर्शानुसार प्रत्येक उत्पाद (एवं सभी प्रकार की पैकेजिंग ज्सिकी उन्हें आवश्यकता होती है) को परिपूर्ण "बंद-लूप" प्रत्येक अंश के लिए लगा होना चाहिए यह एक ऐसा तारका है जिसमें प्रत्येक अंग या तो जैविक क्षरण अथवा अनिश्चित रूप से पुनरावर्तित प्राकृतिक पर्यावरणीय प्रणाली में लौट जाएगा.[4]
जैसा कि पर्यावरण के अर्थ-शास्त्र के साथ लागत और होने वाले लाभों के दृष्टिकोण से सावधानी अवश्य बरतनी चाहिए। उदाहरण के लिए, खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग के लिए गत्ते (कार्डबोर्ड) को प्लास्टिक की तुलना में आसानी से पुनरावर्तित कर दिया जा सकता है, लेकिन इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने में वजनी हो जाता है और नस्ट होकर अधिक कचरा पैदा कर सकता है।[23]
समीक्षा हेतु पुनरावर्तन में प्रयुक्त ये कई विचारणीय बिंदु हैं।
इस बारे में विवाद है कि पुनरावर्तन के माध्यम से कितनी उर्जा बचाई जा सकती है। ऊर्जा सूचना प्रशासन (द एनर्जी इन्फौर्मेशन एडमिनिसट्रेशन EIA) के इसके अपने वेबसाईट पर उल्लेख करने के अनुसार "कागज़ की एक मिल पुनरावर्तित कागज़ से कागज़ बनाने में 40 प्रतिशत कम ऊर्जा का उपयोग करती है तुलनात्मक रूप से नये रूप से कागज़ की लुग्दी से कागज़ बनाने में जितनी उर्जा लगती है".[24] समीक्षक अक्सर यह तर्क देते हैं कि पूरी प्रक्रिया में पुनरावर्तित उत्पादों के उत्पादों के उत्पादन में अधिक उर्जा की खपत होती है जितनी कि उन्हें परंपरागत जमीन की भराई में रद्दी के रूप कचरा बनाकर फेंक देने की पद्यति में. पुनरावर्तनीय पदार्थों के कूड़ेदानों के किनारे से एकत्रीकरण ने ही इस तर्क को जन्म दिया है, जिसे समीक्षकों के अनुसार अक्सर कचरे को किनारे से दूसरे ट्रकों से उठाया जाता है। पुनरावर्तन के प्रस्तावकों का मानना है कि दूसरी लकड़ी की अथवा बड़े-बड़े कुंदों को ढ़ोने वाले ट्रक को हटा दिया जाता है जब पुनरावर्तन के लिए कागज़ को एकत्रित किया जाता है।
उर्जा की खपत अथवा अपशिष्ट के निस्पादन की प्रक्रिया में उत्पादन की सही मात्रा का निर्धारण करना कठिन है। पुनरावर्तन में कितनी उर्जा का इस्तेमाल हुआ यह व्यापक रूप से पुनरावर्तित पदार्थों के प्रकार पर तथा ऐसा करने के लिए इस्तेमाल में लाई गयी प्रक्रिया पर निर्भर करता है। आमतौर पर सभी इस बात से सहमत हैं कि खुरचनों से ऐल्युमीनियम के उत्पादन में ऊर्जा की खपत की तुलना में ऐल्युमीनियम पुनरावर्तन में कम ऊर्जा लगती है। EPA के वक्तव्यानुसार "उदहारण के लिए एल्यूमीनियम के पात्रों के पुनरावर्तन से 95 प्रतिशत ऊर्जा की बचत होती है जो इतने ही परिमाण में अपने प्राकृतिक स्रोत बॉक्साइट से एल्युमीनियम के उत्पादन में लगती है।[25]
अर्थशास्त्री स्टीवन लैंड्सबर्ग ने सलाह दी है कि जमीन की खाली जगह की भराई में कभी से एकमात्र लाभ ऊर्जा की आवश्कता तथा पुनरावर्तन की प्रक्रिया में प्रतिफलित प्रदूषण है।[26] हालांकि दूसरों ने तो फिर भी जीवन-चक्र के माध्यम से गणना करते हुए यह आकलन किया है, कि पुनरावर्तित कगाज के उत्पादन में खेतीबारी फसल की कटाई-बुनाई, लुग्दी बनाई, प्रसंस्करण तथा मूलरूप से मौजूदा पेड़ों आदि की परिवहन में ढुलाई की तुलना में कम उर्जा और जल का व्यवहार कम किया जाता है।[27] कम पुनर्नवीनीकरण किए गए कागज का उपयोग कर के, फार्मिंग (कृषि द्वारा उगाए गए) वनों के सृजन एवं रख-रखाव के लिए तब तक अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है जबतक कि ये वन कोरे प्राकृतिक रूप से विकसित वनों की तरह आत्म-निर्भर एवं स्वतः संपोषित नहीं हो जाते.
कृषि अन्य जंगलों के सृजन और रख-रखाव में अतिरिक्त उर्जा की आवश्यकता होती है, जनता की नीति के विश्लेषक जेम्स वी, डेलाँग ने इशारा किया है कि पुनरावर्तन निर्माण की एक प्रक्रिया है और कई पद्धतियों में तो जितना बचाते हैं उससे कहीं अधिक उर्जा का इस्तेमाल होता है। ऊर्जा के उपयोग के अतिरिक्त, उन्होंने इस बात पर गौर किया है कि पुनरावर्तन में पूंजी और श्रम की जरुरत होती है जब भी अपशिष्ट से कुछ उत्पादन करना होता है। इन प्रक्रियाओं को मौलिक कच्चे पदार्थ तथा/अथवा पुनरावर्तन के लिए पारंपरिक कचरों के निपटान में अधिक उन्नत सक्षम और कारगर पद्यति की जरुरत है।[28]
पुनरावर्तन से वास्तव में जिस मुद्रा की जितनी रकम बचती है वह पुनरावर्तन में प्रयुक्त प्रोग्राम की कार्यकारी क्षमता पर निर्भर करती है। द इंस्टीट्युट फॉर लोकल सेल्फ-रिलायेन्स का तर्क है कि पुनरावर्तन में लागत पुनरावर्तन करने वाले किसी समुदाय विशेष के चतुर्दिक कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि जमीन की भराई शुल्क एवं पुनरावर्तन करने वाले समुदाय के निपटान का परिमाण. इसके कथनानुसार, समुदाय के लोग जब पुनरावर्तन को अपनी पारंपरिक अपशिष्ट प्रणाली के स्थानापन्न के रूप में मानने लगते हैं तो वे मुद्रा की बचत करने लगते है न कि अपने काम के साथ जुड़ जाने वाला एक अतिरिक्त काम मानते हैं तथा अपने एकत्रीकरण के नियत कार्यों तथा/अथवा ट्रकों का पुनर्विन्यास करते हैं।"[29]
कई मामलों में, पुनरावर्तनीय पदार्थों की लागत भी कच्चे मालों की कीमत से काफी अधिक बढ़ जाती है। पुनरावर्तित रेज़ीन की कीमत से शुद्ध अप्रयुक्त प्लास्टिक रेज़ीन की कीमत 40% कम है।[30] इसके अतिरिक्त, संयुक्त राज्य पर्यावरणीय संरक्षण एजेंसी (EPA) के एक अध्ययन के अनुसार जिसने 15 जुलाई से 2 अगस्त 1991 के बीच टूटे-फूटे साफ़ कांच के टुकड़ों की कीमत की लगातार परख करता रहा, पाया कि प्रतिटन औसत लागत 40 अमेरिकी यु.एस से 60 डॉलर तक पहुंचकर सीमाबद्ध रहा[31] जबकि USGS रिपोर्ट यह दर्शाता है कि सन् 1993 से सन् 1997 के बीच अपरिस्कृत सिलिका के रेतीले बुरादे की प्रति टन की मत 17.33 यूएस डॉलर और 18.10 यूएस डॉलर के बीच गिर गई।[32]
सन् 1996 के द न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख में, जॉन टायर्नी ने तर्क देते हुए यह कहा कि न्यूयॉर्क सिटी के कूड़ा-कचरों को पुनरावर्तित करने के लिए जमीन की भराई में इसे निपटान करने की तुलना में अधिक मौद्रिक लागत आती है। टायर्नी ने तर्क देते हुए यह भी कहा कि पुनरावर्तन की प्रक्रिया में अतिरिक्त अपशिष्ट निपटान, छंटाई, जांच-परख की खातिर अधिक लोगों को काम पर लगाया जाता है तथा कई प्रकार के शुल्क धार्य होते हैं क्योंकि उत्पाद को अंतिम रूप देने के लिए प्रसंस्करण की लागत उत्पाद की बिक्री के लाभ से अक्सर अधिक आती है।[33] टायर्नी ने सॉलिड वेस्ट एसोसिएशन ऑफ़ नॉर्थ अमेरिका (SWANA) के द्वारा चलाए गए अध्ययन को भी संदर्भित किया जिसने छः समुदायों के लोगों के बीच चलाए गए अध्ययन में पाया कि, नुक्कड़ों या कूड़ादानों के आसपास चलाए गए पुनरावर्तन की योजना के अलावा सब में और सभी कूड़ा-खाद बनाने के ऑपरेशनों तथा अपशिष्ट निपटान की लगत में वृद्धि कर दी। [34]
टायर्नी इस बात की ओर संकेत देते हैं कि "कि कटी-छंटी (स्कैप) सामग्री के लिए भुगतान की गई कीमतें पुनरावर्तनीय के रूप में अपने पर्यावरणीय मूल्य के लिए उपाय स्वरूप हैं। एल्यूमिनियम के कटे-छंटे से ऊंची कीमतें मिलती हैं क्योंकि पुनरावर्तन की प्रक्रिया में नए एल्यूमीनियम की मेनूफैक्च्युरिंग में आयी ऊर्जा पर लागत की तुलना में बहुत कम आती है।
आलोचक अक्सर यह तर्क देते हैं कि जब पुनरावर्तन रोजगार के मौके पैदा कर सकता हैं, लेकिन ऐसे रोजगार जिनमें मजदूरी तो कम मिलती ही लेकिन कार्यप्रणाली अनुकूलनता भयंकर रूप से विपरीत पाई जाती है।[35] इन नौकरियों को कभी-कभी उन लोगों के लिए समझा जाता है, जो उतना उत्पादन नहीं देते जितने के लिए उन्हें तनख्वाह दी जाती है। ऐसे अंचलों में जहां पर्यावरणीय विनियम नहीं लागू होते हैं तथा/अथवा मजदूरों की सुरक्षा गौरतलब नाहिंन होती हैं, पुनरावर्तन से संबधित कामों में जैसे कि जहाज को तोड़ने में कर्मचारियों और आसपास के निवासी समुदायों के बीच दुखद परिस्थतियां पैदा हो सकती हैं।
पुनरावर्तन के प्रस्तावकों ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि समान परिमाण में कच्चे शुद्ध माल को जुटाने-बटोरने में इससे भी बद्तर काम पैदा होते हैं। लकड़ी की कटाई तथा अयस्क का खनन कागज़ के पुनरावर्तन एवं धातु के पुनरावर्तन से अधिक खतरनाक हैं।[उद्धरण चाहिए]
अर्थशास्त्री स्टीवन लैंड्सबर्ग ने यह दावा किया है कि कागज़ के पुनरावर्तन से पेड़ों की आबादी घटती है। उन्होंने तर्क दिया हैं कि कागज़ की कंपनियों को उनके अपने जंगलों को फिर से पेड़ों से भी देने के लिए प्रोत्साहन राशियां प्रदान की जाती हैं। क्योंकि कागज़ की विशाल मांग विशाल जंगलों की कम मांग की आपूर्ति के लिए छोटे-मोटे "कृषिज्ञ" जंगलों की जरुरत पड़ती है।[36] ऎसी ही तर्क द फ्री मार्केट के एक लेख में सन् 1995 में अभिव्यक्त किए गए।[37]
जब जंगल का रख-रखाव करने वाली कंपनियों ने पेड़ों को काट कर गिरा दिए, उन जगहों पर उनसे अधिक की संख्या में, पेड़ लगाए गए। अधिकांश कागज़ लुग्दी के जंगलों से आते हैं जो कागज़ के उत्पादन के लिए खासतौर से लगाए गए हैं।[28][34][37][38] कई पर्यावरणविद् यह संकेत देतें हैं कि, कई मायनों में कृषिज्ञ (उगाये गए) जंगल प्राकृतिक रूप स्वतः जन्में जंगलों की तुलना में निम्नतर कोटिके हैं। खेती-बारी कर तैयार किए गए (कृषिज्ञ) जंगल प्राकृतिक जंगलों की तरह गड्ढों मिट्टी को उतनी जल्दी भरकर मरम्मत कर देने में सक्षम नहीं है, जिससे व्यापक पैमाने पर कटाव (भूमि-स्खलन) पैदा होता और अक्सर इससे बचने के लिए बड़ी माया में खाद की आवश्यकता होती है जबकि छोटे-छोटे आकार के पेड़ों वाले तथा वन्य जीवन में, जेवी विविधता बनाए रखने के लिए प्राकृतिक जंगलों की तुलना में जरुरत पड़ती है।[39] इसके अलावा, नए पेड़ जो लगाए गए वे उन पेड़ों जितने बड़े नहीं हैं जो काट दिए गए और यह तर्क कि और भी "अधिक संख्या में पेड़" लगाए जायेंगे, जंगल के पक्षधर समर्थकों को सहमति पर मजबूर नहीं कर पाते हैं जब वे नए लगाएं गए पौधों की गिनती करते हैं।
कागज की पुनरावर्तन को उष्णकटिबंधीय जंगल की रक्षा के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए। कई लोगों को यह गलत धारणा है कि कागज़ बनाने के कारण ही उष्णकटिबंधीय वर्षों वाले वनों की कटाई हो रही है लेकिन शायद ही कागज़ के लिए किसी उष्णकटिबंधीय जंगल की खेतीबारी हो रही है। जंगलों की कटाई का एक मात्र कारण है जनसंख्या का दबाव जैसे कि कृषि एवं कास-स्थान निर्माण के लिए अधिक भूमी की मांग. इसलिए, कागज का पुनरावर्तन, हालांकि पेड़ों की मांग को कम करता है, उष्णकटिबंधीय वर्षा वाले जंगलों को इससे कोई लाभ नहीं पहुंचता है।[40]
संसार के कुछ समृद्ध और कई कम समृद्ध देशों में, पुनरावर्तन का पारंपरिक पेशे को गरीब उद्यमियों द्वारा अंजाम दिया जाता है जैसे कि कारुंग गुनी, जैबेलीन, कूड़े-कर्कट और हड्डियां बटोरने वाले, अपशिष्ट चुनने वाले तथा कबाड़ी. बड़े पैमाने पर पुनरावर्तन के प्रतिष्ठानों के जन्म के कारण विधि-व्यवस्था अथवा आर्थिक पैमाने पर लाभप्रद हो सकते हैं,[41][42] गरीबों को पुनरावर्तन एवं पुनउत्पादन के बाजार से बाहर निकाल दिए जाने की अधिक संभावना हो जाती है। गरीबों के आय में होने वाले नुक्सान की भरपाई के लिए, किसी सोसाइटी को गरीबों के सहायतार्थ अतिरिक्त सामाजिक कार्यक्रमों की सृष्टि करने की आवश्यकता है।[43] टूटी खिड़की की नीति-कथा की तरह इससे गरीबों के लिए निवल नुक्सान है और संभवतः पूरी की पूरी सोसाइटी को भी पुनरावर्तन को कृत्रिम रूप से विधिसम्मत तरीकें से लाभप्रद बनाने में.
पुनरावर्तन के काम में लगे गरीबों के आय में नुक्सान की तुलना में किसी देश का सामाजिक समर्थन कम होने के कारण, इस बात की अधिक संभावना हो जाती है कि गरीब पुनरावर्तन के बड़े प्रतिष्ठानों के साथ संघर्ष के लिए उतांरू हो जाएंगे.[44][45] इसका मतलब यह है कि कम ही लोग इस बात का निर्णय ले सकेंगे कि क्या कुछ ख़ास अपशिष्ट अपने मौजूदा रूप में आर्थिक दृष्टि से अधिक पुनः प्रयोज्य हैं बजाय पुनरावर्तित होने के. गरीबों के द्वारा पुनरावर्तन के विरुद्ध हो सकता है उनके पुनरावर्तनकी दक्षता कुछ सामग्रियों के लिए वास्तव में उंची हो क्योंकि 'अपशिष्ट' समझी जाने वाली सामग्रियों पर व्यक्ति विशेष का नियंत्रण अधिक होता है।[43]
एक श्रम साध्य अव्यवह्त अपशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक एवं कंप्यूटर है। चूंकि यह अपशिष्ट अब भी व्यवहार में आने योग्य हो सकता है और विशेषकर गरीबों द्वारा इसकी मांग बनी रहती है इसलिए गरीब बेचारों को इसे बेच सकने अथवा इसे काम में लाने की क्षमता पुनरावर्तकों से अधिक है।
पुनरावर्तन के कई पक्षधरों का मानना है कि यह अहस्तक्षेप व्यक्ति विशेष पर आधारित पुनरावर्तन पूरे समाज के पुनरावर्तन की जरूरतों को पूरा नहीं करता है। इस प्रकार, यह सुव्यस्थित पुनरावर्तन के कार्यक्रम को नहीं नकारता है।[43] स्थानीय सरकार अक्सर गरीबों के पुनरावर्तन की गतिविधियों को संपत्ति की क्षति पूर्ति के रूप में विचार करती है।
संसार में पुनरावर्तित फाइबर (रेशों) से अखबारी कागज़ के निम् उत्पादन की प्रतिशत की उच्चतम सीमा है। पुनरावर्तन की प्रकृति ने ही स्वतः सबसे स्पष्ट उपरी सीमा निर्धारित कर दी है। कुछ ऐसे फाइबर (रेशे) हैं जो लुग्दी बनाने के कारखाने में लुग्दी बनाने की प्रक्रिया में ही नस्ट हो जाते हैं, कारण प्रक्रिया में निहित अक्षमता होई है। फ्रेंड्स ऑफ़ द अर्थ के युनाइटेड किंगडम चैप्टर की वेबसाईट के अनुसार[46] केवल लकड़ी के फाइबर का सामान्य रूप से फाइबर की क्षति के प्रति अपने अनुभव के कारण पांच बार पुनरावर्तन किया जा सकता है। इस प्रकार, जबतक अखबारी कागज़ कि मात्रा विश्वभर में व्यवह्ह्त होती है उतनी खो दिए गए फाइबर की मात्रा को प्रतिबंधित करने में अस्वीकार करती है, नए (अव्यवह्ह्त) फाइबर की निश्चित मात्रा की विश्वभर में प्रतिवर्ष जरुरत पड़ती है, हालांकि यह भी हो सकता है कि कुछ अखबारी कागज़ के कारखाने शत-प्रतिशत पुनरावर्तित फाइबर का ही उपयोग जारी रखें.
इसके अतिरिक्त, कुछ पुराने अखबार कभी भी पुनरावर्तन के प्लांट में नहीं भेजे जाते, क्योंकि विभिन्न प्रकार के घरेलू और औद्योगिक अनुप्रयोगों में अथवा केवल जमीन की भराई के ही काम आकर समाप्त हो जाते हैं। पुनरावर्तन की दर (वार्षिक अखबारी कागज की खपत का प्रतिशत जो फिर से पुनरावर्तित होती है) एक देश से दूसरे देश में तथा, देशों के भीतर भी, एक शहर से ग्रामीण क्षेत्रों में साथ ही साथ एक शहर से दूसरे शहर में भी घटती बढ़ती रहती है। द अमेरिकन फॉरेस्ट एंड पेपर एसोसिएशन का अनुमान है कि 72% से अधिक अखबारी कागज़ जो 2006 में उत्तरी अमेरिका में उत्पादित हुआ उसे फिर से उपयोग में लाने के लिए या निर्यात के लिए उद्धार किया गया जिसका 58% पुनः प्रयोग के लिए कागज़ की मिल अथवा पेपर बोर्ड के कारखाने में भेज दिया गया, 16% का उपयोग लुग्दी की मिलों में (अंडे के कार्टून्स जैसे उत्पाद बनाने के लिए) किया गया और बाकी बची मात्रा को समुद्री रास्ते से दूसरे देशों को भेज दिया गया। उत्तरी अमेरिका की कागज़ मिलों अथवा पेपर बोर्ड की मिलों द्वारा पुनव्य्वह्ह्त का प्रतिशत AFPA के अनुमान से लगभग एक तृतीयांश अखबारी कागज़ के मैनुफैक्च्यर के लिए वापस जाता है। पुनरावर्तन की दर भी समयानुसार पुराने अखबारों के लिए बाज़ार द्वारा दिए गए मूल्य जो काफी अस्थिर हो सकते हैं, बदलती रहती है। उदाहरण के लिए, हाल-फिलहाल के वर्षों में चीन के विभिन्न प्रकार के कागज़ और पैकेजिंग के उत्पादन के रूप में उभरने के साथ-साथ उल्लेखनीय मात्रा में पुनरावर्तित फाइबर को संयुक्त राज्य अथवा अन्य कहीं से भी आयातित कर - पुराने अखबारी कागज़ों की इसकी मांग एक समय काफी ऊपर उठ गई जिसने विश्वभर में पुनरावर्तित फाइबर की कीमतों पर काफी असर डाला। हालांकि पुनर्नवीनीकरण वाले फाइबर की ऊंची कीमतें जमीन की भराई की मात्रा को कम करने के लक्ष्य की दिशा में अच्छी खबर के रूप में हैं, वे पुनर्नवीनीकरण किए गए फाइबर का उपयोग करने वाले कागज-मिलों के मुनाफे को प्रभावित कर सकते हैं।
अखबारी कागज़ के मिलों द्वारा लागत के अलावे फाइबर के चयन में एक महत्वपूर्ण सोच-विचार फाइबर के चयन में अखबार छापने की आधुनिक मशीनों तथा आधुनिक समाचार पत्र के मुद्रण प्रेस की उच्च गति को लेकर किया जाता है। संयुक्त राज्य में अखबार छापने की ऐसी भी मशीनें हैं, जो 1400 मीटर प्रति मिनट की गति तक पहुंचकर परिचालित होती हैं, उद्योग समूह की जानकारी वाली संस्था, RISI इंक. के अनुसार, संसार की नवीनतम मशीनों में (जिनमें से कुछ को हाल ही में चीन में स्थापित किया गया) 1800 मीटर प्रतिमिनट की गति की ऊंचाई भी छु सकती है। आधुनिक अखबार के प्रेस प्रति घंटे 90,000 प्रतियां छाप सकने की गति तक परिचालित हो सकते हैं (प्रकाशन उद्योग संघ IFRA के अनुसार), जबकि कुछ तो 1,00,000 प्र.प्र.ध की गति तक भी पहुंच जाती हैं।
ऐसी ऊंची गति-सम्पन्नता को सहने के लिए कागज़ फलक (पन्ने) की मैनुफैक्च्युरिंग की प्रक्रिया के दौरान कागज़ की मशीन पर तथा मुद्रण के दौरान प्रेस पर दोनों ही स्थितियों में क्षमता की मांग करता है। विश्वभर में एक बड़ी संख्या में अखबारी कागज़ की मिलें 100% पुनरावर्तनीय फाइबर (रेशों) का इस्तेमाल करते हुए वाणिज्यिक तौर पर स्वीकार्य गुणवत्ता वाले अखबारी कागज़ का उत्पादन करती हैं। हालांकि, ऐसी मिलों के ऑपरेटर को अपशिष्ट की शुद्धता के बारे में काफीचयनात्मक होना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे कम-से-कम न्यूनतम मिलावटों को काम में लगा रहे हैं तथा जितनी संभव हो उतने लंबे अखबारी रेशों को शामिल कर रहे हैं। विशुद्ध (अव्यव्ह्ह्त) अखबारी कागज़ लंबे फाइबर (रेशों) वाले (नरम लकड़ियों) पेड़ों जैसे कि दवादारू, मोखा (गुलमेहंदी) और चीड़ (पाइन) से बनते हैं, जबकि कुछ कागज़ और पेपर बोर्ड (गत्तों) के उत्पाद छोटे फाइबर वाली सख्त लकड़ियों से उत्पादित होते हैं। अखबारी कागज़ छापने की मिलें पुराने अखबारों, अथवा पुराने अखबारों और पुरानी पत्रिकाओं के मिश्रण को पसंद करते हैं न कि दूसरे ग्रेड के कागज़ का पुनरावर्तन को। जैसा कि संयुक्त राज्य अमेरिका की नगरपालिकाओं ने हाल ही में "एकल स्ट्रीम" के पुनरावर्तन की ओर कदम बढ़ाया हैं - अनेक प्रकार अपशिष्ट उत्पादों को एक वाहन के एक डब्बे में एकत्रित करते हुए - मिलों को बाध्य कर दिया गया है कि वे स्वच्छ, उचित अपशिष्ट की धारा को ही लुग्दी बनाने के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अधिक राशी खर्च करें।
सन् 1996 में द न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख में, जॉन टायर्नी ने यह दावा किया कि सरकार ने यह जनादेश जारी किया कि पुनरावर्तन में बचाने की तुलना में संसाधनों का खर्च अधिक होता है।[23] लेख के विशिष्ट अंश इस प्रकार हैं:
टायर्नी के लेख को पर्यावरण सुरक्षा कोष से संदर्भित समालोचना की सलाह मिली, जिसमें यह दर्शाया गया कि "यह लेख एवं चिन्तनशील लोगों और सलाहकारों के एक वर्ग से प्राप्त उद्धरणों एवं सूचनाओं पर पूरी तरह निर्भरशील है जो परावर्तन के बारे सशक्त वैचारिक आपत्ति रखते हैं।[47] सन् 2003 में, कैलिफोर्निया के सांता क्लारिटा शहर $28 अमेरिकी डॉलर प्रतिटन कचरे से जमीन की भराई के लिए भरपाई कर रहा था। तब इस शहर ने पुनरावर्तन कार्यक्रम के लिए एक अनिवार्य डायापर (नैपकिन) के इस्तेमाल को अपनाया जिससे प्रतिटन $1800 अमेरिकी डॉलर की लागत आई.[48] ड्यूक युनिवर्सीटी के राजनीति विज्ञान के प्रधान, माइकल मुंगेर ने सन् 2007 में अपने एक लेख में लिखा "...नये सामानों के उपयोग करने की तुलना में अगर पुनरावर्तन अधिक खर्चीला है तो, यह किसी भी प्रकार कारगर हो ही नहीं सकता, कोई भी सामन संसाधन है।.. या केवल कचरा ही है इसे निर्धारित करने का एक साधारण-सा परीक्षण है।.. किसी सामन के लिए अगर आपको कोई भुगतान करता है, तो यह संसाधन है।. लेकिन अगर कोई सामन आपके पास से ले जाने के लिए आपको किसी को भुगतान करना पड़ता है, तो समझ लीजिए वह सामान कचरा है।"[49] कैटो इंस्टीट्युट में प्राकृतिक संसाधन अध्ययन के निदेशक, जेरी टेलर, ने द हार्टलैंड इंस्टीट्युट के लिए सन् 2002 के एक लेख में लिखा, "अगर बाजार में नई उत्पादित प्लास्टिक को वितरित करने के लिए लागत X आती है, उदाहरण के लिए, लेकिन फिर से इस्तेमाल कि जा चुकी प्लास्टिक को बाजार में वितरित करने के लिए 10X लागत आएगी, इससे हम यह निस्कर्ष निकाल सकते हैं कि व्यवह्ह्त प्लास्टिक के पुनरावर्तन के लिए जिन संसाधनों की जरुरत होती है वे टूटे-फूटे टुकड़ों से प्लास्टिक बनाने के जरुरी संसाधनों की तुलना में दस गुना ज्यादा दुर्लभ हैं और क्योंकि पुनरावर्तन को संसाधनों के संरक्षण के रूप में मान लिया गया है, इसलिए उन परिस्थितियों पुनरावर्तन के लिए जनादेश जारी करना अच्छा करने से अधिक नुकसानदेह हो सकता है।"[50] सन् 2002 में, WNYC ने अपनी एक रिपोर्ट में उल्लेख किया कि न्यूयॉर्क शहर के निवासी पुनरावर्तन के लिए कचरे का 40% जो छांट कर अलग करते हैं वह दर असल जमीन की भराई में ही समाप्त हो जाता है।[51]
ऐसी कई अलग-अलग तरह की सामग्रीयां हैं जो पुनरावर्तित हो सकती हैं लेकिन हर प्रकार के लिए अलग-अलग तकनीक की आवश्यकता है।
विध्वंस को ढाल देने वाले इलाकों से एकत्रित कुल ठोस सामग्रियों को चूर-चूर कर पीसने वाली मशीन (चक्की) से गुज़ारा जाता है, जिसमें अक्सर ऐस्फौल्ट, ईंट, गंदगी के गुबार एवं चट्टानें शामिल होती हैं। नए निर्माण की परियोजनाओं के लिए बजरी के रूप में कंक्रीट के छोटे-छोटे टुकड़ों का इस्तेमाल होता है। पीसे हुए पुनरावर्तित कंक्रीट का भी इस्तेमाल एकदम से नई कंक्रीट के साथ सूखा सूखा मिलाकर भी किया जा सकता है अगर यह मिलावटी से मुक्त है तो. यह दूसरे चट्टानों के खोद कर निकाले जाने की जरुरत को कम करता है, जिससे बदले में पेड़-पौधों और पर्यावरण की रक्षा होती है।[52]
बैटरियों के आकार और प्रकार में व्यापक भिन्नता उनके पुनरावर्तन को बेहद मुश्किल बना देती है: सबसे पहले उन्हें एक प्रकार में छांट कर अवश्य अलग-अलग कर लेना चाहिए और हर प्रकार के लिए पुनरावर्तन की अलग प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त, पुरानी बैटरियों में पारा और कैडमियम होते हैं, जो हानिकारक पदार्थ हैं जिनकी देखभाल रखरखाव संभाल कर की जानी चाहिए। पर्यावरणीय क्षति करने की उनकी क्षमता के कारण, कई अंचलों में इस्तेमाल की जा चुकी बैटरियों के उचित निपटान के लिए कानूनी नियमों की आवश्यकता है। दुर्भाग्यवश, इस जनादेश को लागू किया जाना काफी दुष्कर हो गया है।[53]
शीशा-अम्ल (लेड-एसिड) वाली बैटरियां, जैसे कि ऑटोमोबाइल में इस्तेमाल में आने वाली बैटरियों की तरह, पुनरावर्तन करने में अपेक्षाकृत आसान हैं एवं कई अंचलों में विक्रेताओं को इस्तेमाल में आ चुके उत्पादों को स्वीकार करने के मामले में कानून की जरुरत होगी। संयुक्त राज्य अमेरिका में, 80% तक पुनरावर्तित सामग्री धारण करने वाली नई बैटरियों कि पुनरावर्तन दर 90% है।[53]
रसोईघर, बगीचा, एवं अन्य हरे अपशिष्टों को सड़ाकर उपयोगी खाद में पुनरावर्तित किया जा सकता है। यह प्रक्रिया प्राकृतिक वायुजीवी बैक्टेरिया को अपशिष्ट विखंडित होने देती है जो मिटटी कि उर्वर के उपरी सतह का निर्माण करती है। सड़ाकर खाद बनाने का काम अधिकतर घरेलू पैमाने पर ही होता है, लेकिन इसके साथ ही साथ नगरपालिका द्वारा भी हरे अपशिष्ट के एकत्रीकरण का कार्यक्रम भी मौजूद है। उत्पादित उपरी उर्वर मिट्टी को बेचकर इन कार्यक्रमों के पूरक के लिए निधीयन हो सकता है।
प्रेषण अथवा गमागमन के जरिए वस्त्रों का पुनरावर्तन काफी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। वस्त्रों के गमागमन (स्वैप) में, लोगों का एक समूह एक नियत स्थान पर एकत्रित, होकर आपस में वस्त्रों का आदान-प्रदान करते हैं। क्लोथिंग स्वैप इनका जैसी संस्थाओं में लावारिस कपड़ों को स्थानीय दान करने के लिए दान स्वरूप दे दिया जाता है।
बिजली के उपकरणों के प्रत्यक्ष निपटान-जैसे कि कंप्यूटर और मोबाइल फोन- कुछ अंदरूनी घटकों के विषाक्त होने के कारण - कई अंचलों में प्रतिबंधित कर दिए गए हैं। पुनरावर्तन की प्रक्रिया धातुओं, प्लास्टिक तथा सर्किट बोर्ड्स जो उन उपकरणों में निहित हैं उन्हें स्वतः यंत्रवत अलग करती है। जब यह एक अपशिष्ट पुनरावर्तन संयंत्र में बड़े पैमाने पर कर लिया जाता है घटक को उद्धार करने का कार्य लागत-प्रभावी तरीके से संपादित किया जा सकता है।
लोहा और इस्पात संसार के सर्वाधिक पुनरावर्तित पदार्थ हैं, एवं पुनरावर्तन किए जाने वाले सामानों में सबसे आसान, क्योकि चुम्बक का इस्तेमाल कर उन्हें अपशिष्ट के ढ़ेर से अलग किया जा सकता है। इस्पात के कारखाने से होकर पुनरावर्तन की प्रक्रिया गुजरती है: वैधुतिक भट्टी में (90-100% स्क्रैप) को या तो फिर से गला दिया जाता है अथवा बेसिक ऑक्सीजन की भट्टी में (लगभग 25% स्क्रैप) का इस्तेमाल चार्ज के एक अंश के रूप में कर लिया जाता है।[54] किसी भी दरजे के इस्पात उच्च कोटि के नये धातु, में पुनरावर्तित किया जा सकता है, गुणवत्ता के लिहाज से ऊंचे दर ने से नीचे दरजे में जिसकी पदावनति नहीं होती है क्योंकि इस्पात का बार-बार पुनरावर्तित किया जा सकता है। उत्पादित कच्चे इस्पात का 42% पुनरावर्तित पदार्थ ही तो है।[55]
एल्यूमिनियम व्यापक रूप से पुनरावर्तित पदार्थों में से सर्वाधिक सक्षम है।[56][57] एल्यूमीनियम को कसकर दबाकर छोटे-छोटे टुकड़ों में पीस लिया जाता है, अथवा गाठों के रूप में कुचल दिया जाता है। इन टुकड़ों या गाठों को पिघले एल्यूमीनियम का उत्पादन करने के लिए एल्यूमीनियम पिघलाने वाली एक भट्टी पिघलाया जाता है। इस चरण तक पुनरावर्तित एल्यूमीनियम की विशुद्ध एल्यूमीनियम की अलग से पहचान नहीं हो पाती है और दोनों के लिए ही आगे चलकर संसाधन एक समान ही होता है। इस प्रक्रिया से धातु में कोई परिवर्तन नहीं पैदा होता है; अतः एल्युमिनियम अनिश्चितकाल तक के लिए पुनरावर्तित हो सकता है।
नए एल्यूमीनियम के संसाधन करने की तुलना में एल्यूमीनियम के पुनरावर्तन से 95% उर्जा के लागत की बचत होती है।[6] यह केवल इस कारण कि पुनरावर्तित लगभग शुद्ध, एल्यूमीनियम को पिघलाने में 600 °C तापमात्रा की आवश्यकता होती है, जबकि एल्यूमीनियम के अयस्क से खनिज एल्यूमीनियम के निष्कर्षण के लिए 900 °C तापक्रम की जरुरत पड़ती है। इतने ऊंचे तापमान तक पहुंचने के लिए अधिक से अधिक उर्जा की आवश्यकता होती है जिससे एल्यूमीनियम के पुनरावर्तन से ऊंचे पर्यावरणीय लाभ की ओर पहुंचा जाता है। अमेरिकी प्रतिवर्ष प्रचुर परिमाण एल्यूमीनियम फेंक देते हैं ताकि पूरे वाणिज्यिक हवाई बड़े का पुननिर्माण कर सकें. इसके अलावा एक एल्यूमीनियम के पात्र के पुनरावर्तन से बचाई गई उर्जा एक टेलीविज़न-सेट को तीन घंटे तक चलाने के लिए काफी है।[12]
नुक्कड़ों पर रखे कूड़ेदानों से कांच की बोतलें और मर्तबान (जार कंटेनर) इकट्ठे कर संग्रह करने वाले ट्रक तथा बोतल-बैंकों में एकत्रित कर लिए जाते हैं जहां कांच को रंगों के वर्गीकरण के अनुसार छांट कर अलग-अलग कर लिया जाता है। टूटे-फूटे कांच के टुकड़ों को कांच के पुनरावर्तन संयंत्र में ले जाया जाता है जहां इसकी शुद्धता पर नजर रखी जाती है और मिलावट की गंदगियों को हटा दिया जाता है। कांच के टुकड़ों को कुचल दिया जाता है और कच्चे माल के एक मिश्रण के साथ मिलाकर पिघलाने वाली मट्टी में डाल दिया जाता है। तब इसे यांत्रिक तरीके से हवा से फुलाकर अथवा पिघला कर नए आकार के जोरों या बोतलों में गाढ़ा जाता है। कांच के टूटे-फूटे टुकड़ों का भी इस्तेमाल समग्र और ग्लासफॉल्ट के रूप में निर्माण उद्योग में किया जाता है। ग्लासफॉल्ट सड़क पर बिछाया जाने वाला एक पदार्थ है जिसमें पुनरावर्तित कांच का 30% शामिल है। कांच का पुनरावर्तन अनिश्चितकाल तक किया जा सकता है जैसा कि जब इसका पुनसंसाधन किया जाता है इसकी संरचना नस्ट होकर विकृत नहीं होती.
रंग अक्सर सरकार परिचालित घरेलू खतरनाक अपशिष्ट की सुविधाओं से इकट्ठा किया जाता है। वहां से, इसे पेंट पुनर्चक्रण संयंत्रों में ले जाया जाता है, जहां गुणवत्ता के आधार पर अलग किया जाता है। रंग के उपयोग जिन्हें पुनः संसाधित नहीं किया जा सकता और फिर से बेचा नहीं जा सकता पुनर्चक्रण द्वारा इसकी भिन्नताएं निर्धारित होती हैं।
कागज का पुनरावर्तन इसे लुग्दी बनाकर तथा नई कटाई वाली लकड़ी की लुग्दी के साथ मिलाकर किया जा सकता हैं। जैसा कि पुनरावर्तन की प्रक्रिया कागज़ के रेशों को तोड़ती जाती है, अतः जितनी बार कागज़ का पुनरावर्तन होता अहि, इसकी गुणवत्ता में कमी आती जाती है। इसका मतलब यह है कि या तो ऊंचे प्रतिशत में नए रेशों को जरुर जोड़ा जाना चाहिए या कागज को नीची गुणवत्ता वाले उत्पादों में पुनरावर्तित कर देना चाहिए। कोई लेखन या कागज पर रंग सर्वप्रथम डीइंकिंग के द्वारा हटा दिया जाना चाहिए, जो फिलर्स, मिटटी, तथा रेशों (फाइबर) के टुकड़ों को भी हटा देता है।[58]
आज तो लगभग सभी कागज पुनरावर्तित किए जा सकते हैं, किन्तु ऐसे भी प्रकार के कागज़ है जिन्हें दूसरों की तुलना में पुनरावर्तित करना कठिन है। कागज़ जो प्लास्टिक कोटेड होते हैं या एल्यूमीनियम फ़ॉयल, तथा ऐसे कागज़ जिनपर मोम का लेपन होता है, पेस्टेड या गोंद लगे होते हैं उनका आमतौर पर पुनरावर्तन नहीं होता है क्योंकि यह प्रक्रिया काफी महंगी है। उपहार-सामग्रियों को लपेटने वाले कागज़ भी अपनी ख़राब गुणवत्ता के कारण पुनरावर्तित नहीं हो सकते.[58]
कभी कभी पुनरावर्तक अख़बारों से चमकीले आवेषण को हटा देने को कहते हैं क्योंकि वे एक अलग ही प्रकार के कागज़ हैं। चमकीले आवेषणों पर मिट्टी की एक भारी परत होती है जिसे कुछ कागज़ की मिलें स्वीकार नहीं करती हैं। पुनरावर्तित कागज़ की लुग्दीसे अधिकांश मिट्टी को हटा दिया जाता है जिसका जरुर ही निपटान कर दिया कीचड़ के र्रोप में किया जाना चाहिए। अगर परत चढ़े कागज़ (कोटेड पेपर) मिट्टी के वजन के कारण 20% अधिक है तो चमकदार कागज के प्रति टन से 200 किलोग्राम से भी अधिक कीचड़ और 800 किलोग्राम से भी कम फाइबर पैदा होगा। [58]
प्लास्टिक का पुनरावर्तन स्क्रैप अथवा अपशिष्ट प्लास्टिकों को उबारने तथा पदार्थ को उपयोगी उत्पादों में पुनर्संसाधित करने की प्रक्रिया है। कांच अथवा धातु के सामानों से तुलना की जाय तो प्लास्टिक को अपूर्व चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। प्लास्टिक के प्रकारों की विशाल संख्या होने के कारण, प्रत्येक प्रकार के पास रेज़ीन का पहचान कोड होता है और पुनरावर्तन से पूर्व उन्हें अवश्य ही छांट कर अलग लेना चाहिए। हो सकता है यह महंगा हो, क्योंकि वैद्युतिक चुम्बकों का उपयोग कर धातुओं को जब अलग-अलग किया जा सकता है ऐसी कोई 'आसान छंटाई' वाली क्षमता-संपन्न उपाय या साधन प्लास्टिक के लिए उपलब्ध नहीं है। इसके अतिरिक्त, पुनरावर्तन के लिए बोतलों से लेबलों को हटा दी जाने की जरुरत नहीं होती लेकिन ढक्कन अक्सर अलग तरह के अप्रवर्तनीय प्लास्टिक से बने होते हैं।
विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक के सामानों में पदार्थों की अलग-अलग पहचान कर पाने के सहायतार्थ, छः आम प्रकार के पुनरावर्तनीय प्लास्टिक रेज़िन्स की पहचान के लिए 1 से 6 तक के रेज़िन्स आइडेंटीफिकेशन कोड नंबर्स आवंटित किए गए हैं। प्रत्येक रेज़ीन कोड को सम्मिलित करते हुए मानकीकृत प्रतीक उपलब्ध हैं।
कपड़े या वस्त्र के पुनरावर्तन का ख्याल आते ही यह अवश्य समझ लेना चाहिए कि यह किस पदार्थ से बना हैं। अधिकतर कपड़े रुई (प्राकृतिक तरीके से स्वतः सड़नशील पदार्थ) एवं सिंथेटिक प्लास्टिक के संयोजन हैं। कपड़े की संरचना इसके टिकाउपन और पुनरावर्तन की पद्धति को प्रभावित करेगी।
श्रमिक एकचित्र कपड़ों को छांटते और अच्छी क्वालिटी के वस्त्रों तथा जूतों को जिनका दोबारा इस्तेमाल हो सकता या जो पहने जा सकते हैं, उन्हें अलग करते हैं। ऐसी सुविधाओं को विकसित देशों से विकासशील देशों तक या तो दान की खातिर या सस्ती कीमतों पर बेच दिए जाने के लिए मुहैया करने की प्रवृति है।[59] कई अंतराष्ट्रीय संगठन इस्तेमाल किए जा चुके वस्त्रों को दान-स्वरूप इकठ्ठा करते हैं और उन्हें तीसरी दुनिया के देशों को दान में दे देते है। पुनरावर्तन की इस आदत को प्रोत्साहित किया जाता है क्योंकि यह अवांछित को कम करने में मदद देती है साथ ही साथ जरुरत मंदों को वस्त्र मुहैया कराती है।[60] नस्ट हो गए वस्त्रों को आगे चलकर ग्रेडों में छांट लिया जाता है जिनसे औद्योगिक झाड़न-पोंछन के कपड़े बनाए जाते हैं तथा कागज़ के विनिर्माण में या फाइबर उद्धार के लिए उपयोगी सामग्री में तथा भराई के उत्पादों के उपयोग में लाते हैं। अगर टेक्सटाइल के पुनर्संसाधक संयंत्र जीले अथवा सड़े-गले कपड़े पाते हैं, हालांकि इन्हें फिर भी जमीन की भराई में निपटा दिया जाता है, क्योंकि छांटन इकाइयों में धोने और सुखाने की सुविधाएं मौजूद नहीं हैं।[61]
रेशों के पुनरुद्धार की मिलें, फाइबर के प्रकार और रंग के आधार पर वस्त्रों को छांटती हैं। रंग की छंटाई पुनरावर्तित वस्त्रों को फिर से रंगने की आवश्यकता को कम करती है। वस्त्रों को "घटिया" फाइबर में कसकर बांध दिया जाता है और दूसरे चयनित फाइबरों के साथ एकसाथ मिला दिया जाता है पुनरावर्तित सूते के अंतिम उपयोग के इरादे पर निर्भर होकर. एकसाथ मिला हुआ यह मिश्रण घुनकर साफ़ कर दिया जाता है तथा बुनाई सिलाई के लिए काटकर तैयार कर दिया जाता. इन फाइबरों संकुचित कर गद्दे का उत्पादन भी किया जाता है। इन कपड़ों को गद्दों में भरने वाले उद्योगों के लिए कसकर दबाकर भेज दिया जाता है जो गाड़ियों के इन्सुलेशन में भरने वाली सामग्री के रूप में छत के फेल्ट्स, लाउडस्पीकर के कोन, पैनेल की लाइनिंग तथा फर्नीचर की पैडिंग के काम में लाया जाता है।
पर्यावरण की दृष्टि से उपयोगी उत्पाद होने की अपनी छवि के कारण लकड़ी का पुनरावर्तन लोकप्रिय हो गया है, उपभोक्ताओं के इस आमविश्वास के साथ कि पुनरावर्तित लकड़ी की खरीद से हरी लकड़ी की मांग में कमी आएगी और अंततोगत्वा पर्यावरण लाभान्वित होगा। ग्रीनपीस भी पुनरावर्तित लकड़ी को पर्यावरण के लिए मित्रवत उपयोगी उत्पाद की दृष्टि से देखता है, उनकी अपनी वेबसाईट पर इसे लकड़ी के पसंदीदा बेहतर स्रोत के रूप में हवाला देते हुए. निर्माण के उत्पाद के उत्पाद के रूप में पुनरावर्तित लकड़ी का आगमन उभरते हुए उद्योग तथा जंगल की कटाई एवं लकड़ी मीलों को बढ़ावा देने तथा पर्यावरण के प्रति मित्रवत सहयोग के अभ्यास को अपनाने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं।
लकड़ी का पुनरावर्तन एक ऐसा विषय है जिसने हाल के वर्षों में हमारे जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका अपना ली है। हालांकि, समस्या यह है कि, यद्यपि कई स्थानीय अधिकारी पुनरावर्तन के विचार को पसंद तो करते हिं, लेकिन वे पूरी तरह इसका समर्थन नहीं करते हैं। अनगिनत उदाहरणों में से एक जो समाचारों की सुरिवर्यों में बना रहा वह सचमुच लकड़ी के पुनरावर्तन की अवधारणा है जो शहरों में बढ़ती जा रही है। उदाहरण के लिए लकड़ी के पुनरावर्तन, पेड़ों एवं अन्य स्रोतों के नाम लिए जा सकते हैं।[62]
कई दूसरी सामग्रियां भी आमतौर पर पुनरावर्तित की जा सकती हैं, अक्सर एक औद्योगिक स्तर पर.
जहाज को तोड़ना एक ऐसा उदाहरण है जो पर्यावरणीय, स्वास्थ्य, तथा सुरक्षा के जोखिमों से उस अंचल के लिए जुड़ा है जहां यह ऑपरेशन (कार्य संचालन) संपादित होता है, इन सब विचारों में संतुलन एक पर्यावरणीय न्याय की समस्या है।
टायर का पुनरावर्तन भी आम बात है। इस्तेमाल में आ चुके टायरों को एसफॉल्ट के साथ मिलाकर सड़क की सतहों पर बिछाने में अथवा रबड़ के नकली घास-पात बनाने के काम में आ सकते हैं जो खेल के मैदानों की सुरक्षा के लिए व्यवह्ह्त होते हैं। इनका इन्सुलेशन एवं ताप के अवशोषण निर्गमन सामग्रियों में खासकर मिट्टी के जहाज कहे जाने वाले निर्मित घरों में अक्सर इस्तेमाल भी होया है।
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