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काँच (glass) एक अक्रिस्टलीय ठोस पदार्थ है। काँच आमतौर भंगुर और अक्सर प्रकाशीय रूप से पारदर्शी होते हैं।
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काँच अथवा शीशा अकार्बनिक पदार्थों से बना हुआ वह पारदर्शक अथवा अपारदर्शक पदार्थ है जिससे शीशी बोतल आदि बनती हैं। काँच का आविष्कार संसार के लिए बहुत बड़ी घटना थी और आज की वैज्ञानिक उन्नति में काँच का बहुत अधिक महत्व है।
किन्तु विज्ञान की दृष्टि से 'काँच' की परिभाषा बहुत व्यापक है। इस दृष्टि से उन सभी ठोसों को काँच कहते हैं जो द्रव अवस्था से ठण्डा होकर ठोस अवस्था में आने पर क्रिस्टलीय संरचना नहीं प्राप्त करते।
सबसे आम काच सोडा-लाइम काच है जो शताब्दियों से खिड़कियाँ और गिलास आदि बनाने के काम में आ रहा है। सोडा-लाइम काँच में लगभग 75% सिलिका (SiO2), सोडियम आक्साइड (Na2O) और चूना (CaO) और अनेकों अन्य चीजें कम मात्रा में मिली होती हैं।
काँच यानी SiO2 जो कि रेत का अभिन्न अंग है। रेत और कुछ अन्य सामग्री को एक भट्टी में लगभग 1500 डिग्री सैल्सियस पर पिघलाया जाता है और फिर इस पिघले काँच को उन खाँचों में बूँद-बूँद करके उड़ेला जाता है जिससे मनचाही चीज़ बनाई जा सके। मान लीजिए, बोतल बनाई जा रही है तो खाँचे में पिघला काँच डालने के बाद बोतल की सतह पर और काम किया जाता है और उसे फिर एक भट्टी से गुज़ारा जाता है।
किंवदंती के अनुसार, मुनष्य को काँच का पता तब चला जब कुछ व्यापारियों ने सीरिया में फ़ीनीशिया के समुद्रतट पर शोरों के ढेलों पर भोजन के पात्र चढ़ाए। अग्नि के प्रज्वलित होने पर उन्हें द्रवित काँच की धारा बहती हुई दिखाई दी। यह काँच बालू और शोरे के संयोग से बन गया था।
ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वप्रथम बर्तनों पर काँच के समान चमक उत्पन्न करने की रीति का आविष्कार मेसोपोटामिया (इराक) में ईसा से प्राय: 12,000 वर्ष पूर्व हुआ।
प्राचीनतम काँच साँचे में ढले हुए ताबीज के रूप में मिस्र में पाया गया है, जिसका निर्माणकाल ईसा से 7,000 वर्ष पूर्व माना जाता था।
ईसा से लगभग 1,200 वर्ष पूर्व, मिस्रवासियों ने खुले साँचों में काँच को दबाने का कार्य आरंभ किया और इस विधि से काँच की तश्तरियाँ, कटोरे आदि बनाए गए। ईसा के 1,550 वर्ष पूर्व से लेकर ईसा युग के आरंभ तक मिस्र काँच निर्माण का केंद्र बना रहा।
फुँकनी द्वारा तप्त काँच को फूँकने की क्रिया मानव का एक महान आविष्कार था और इसका श्रेय भी फ़ीनीशियावासियों को ही है। इस आविष्कार की अवधि ईसा से 320-20 वर्ष पूर्व है। इस आविष्कार द्वारा काँच के अनेक प्रकार के खोखले पात्र बनाए जाने लगे। वस्तुत: आजकल के काँच निर्माण के आधुनिक यंत्रों में भी इसी क्रिया का उपयोग किया जाता है।
काँच उद्योग का व्यापारिक विस्तार ईसा काल से आरंभ होता है। इटली के रोम तथा वेनिस प्रदेशों में इसका निर्माण चरम सीमा पर पहुँचा।
अपनी आवश्यकताओं और वैज्ञानिक उन्नति के साथ प्रत्येक देश में विभिन्न गुणों के काँच के निर्माण में उन्नति होती गई। काँच उद्योग की आधुनिक उन्नति का बहुत कुछ श्रेय इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी और संयुक्त राज्य अमरीका को है। उदाहरणत:, सन् 1557 ई. में सीसयुक्त स्फटिक का लंदन में आविष्कार हुआ; सन् 1668 में पट्टिका काँच ढालने की विधि का पेरिस में आविष्कार हुआ; सन् 1880 में लेंस (लेंंज़ा) आदि बनाने योग्य अनेक प्रकार के काँचो का आविष्कार जर्मनी में शाट एवं एवी द्वारा हुआ; 1879 में काँच बनाने के लिए पूर्ण स्वचालित यंत्र ओवेन का निर्माण हुआ; सन् 1915 में ऊष्माप्रतिरोधक 'पाइरेक्स' काँच का निर्माण हुआ, जो तप्त करके ठंडे पानी में डुबा देने पर भी नहीं तड़कता; सन् 1928 में निरापद काँच (सेफ़्टी ग्लास) का निर्माण हुआ जो चोट लगने पर चटख तो जाता है, परंतु उसके टुकड़े अलग होकर छटकते नहीं। यह मोटरकारों में लगाया जाता है; 1931 ई. में काँच के धागों और वस्त्रों का निर्माण हुआ; सन् 1902 में, संयुक्त राज्य अमरीका के पिट्सबर्ग नगर में और बेल्ज़ियम में 'लिबी ओवेंस' और 'फ़ूरकाल्ट' प्रणालियों द्वारा चद्दरी काँचो का निर्माण होना आंरभ हुआ।
प्राचीन भारत में भी महाभारत, यजुर्वेद संहिता, रामायण और योगवाशिष्ठ में काँच शब्द का उपयोग कई जगह किया गया है। प्राचीन भारत में स्फटिक (Quartz) से बनी सामग्री, उत्तम वस्तु मानी जाती थी। भारत में कई प्रदेशों में प्राचीन काँच के टुकड़े प्राप्त हुए हैं। भारतीय काँच का विवरण वास्तव में 16वीं शताब्दी से आरंभ होता है। उस समय यहाँ से अनिर्मित काँच बहुत अधिक मात्रा में यूरोप और उत्तरी इटली को निर्यात किया जाता था; यहाँ तक कि काँच निर्माण के लिए रासायनिक पदार्थ भी वेनिस भेजे जाते थे। 19वीं शताब्दी में भारत के प्रत्येक प्रांत में काँच की चूड़ियों, शीशियों और खिलौनों का निर्माण होता था।
आधुनिक भारतीय काँच उद्योग सन् 1870 से आरंभ हुआ और सन् 1915 तक कितने ही काँच के कारखाने खोले गए, पर वे सब असफल रहे। प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय काँच उद्योग को खूब प्रोत्साहन मिला। परंतु युद्धोपरांत भारतीय बाजार काँच के विदेशी माल से भर गया, फलस्वरूप कई भारतीय कारखाने बंद हो गए। काँच उद्योग की जाँच और उन्नति के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने एक समिति का संगठन किया और उसकी संस्तुतियों को सरकार ने मान्यता दी। उसी समय से काँच उद्योग में तीव्रता के साथ उन्नति हो रही है और अब भारत में काँच की सब प्रकार की वस्तुओं का निर्माण आधुनिक ढंग से हो रहा है।
आजकल अब कांच बनाने का सारा काम मशीनों से होता है। उच्च ताप पर कांच की श्यानता इतनी कम होती है कि उसको हवा भरके किसी आकार में ढाला जा सके, पर ये इतना तरल भी नहीं होता कि पानी की तरह बह जाये। इस प्रक्रिया को ग्लास ब्लोइंग कहते हैं और इससे तरह तरह के आकार बनाये जा सकते हैं।
आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में 'काच' शब्द से
द्रव काच ही वास्तविक काच है; केवल द्रव काच के विद्युत् और प्रकाशीय गुण सब दशाओं में एक से होते हैं। द्रव काच को ठंडा करने पर उसमें श्यानता (Viscosity) बढ़ती है और धीरे-धीरे बिना काचीय गुणों का साधारण ठोस काच बन जाता है।
काच बनाने के लिए उपयोग के अनुसार कई प्रकार के कच्चे माल विभिन्न मात्राओं में मिलाकर, ऊँचे ताप पर द्रवित किए जाते हैं। द्रवित काच को सिलिकेटों तथा बोरेटों का पारस्परिक विलयन कहा जा सकता है। इस विलयन में ताप के अनुसार बहुत कुछ अवयव आक्साइडों में विमुक्त हो जाते हैं। विलयन में वे अतिरिक्त आक्साइड भी होते हैं, जो रासायनिक योगिकों के निर्माण की आवश्कताओं से अधिक मात्रा में होते हैं।
काच को 'अधिशीतलित' (Under-cooled) द्रव भी कहा जा सकता है, क्योंकि द्रव अवस्था से ठोस अवस्था में काच का परिवर्तन क्रमश: होता है और ठोस काच में उसकी द्रवास्था के सभी भौतिक गुण, जैसे ऊष्माचालकता इत्यादि, होते हैं।
काच निर्माण के लिए मुख्य पदार्थ सिलिका (Si O2) है और यह प्रकृति में मुक्त अवस्था एवं सिलिकेट यौगिकों के रूप में पाया जाता है। प्रकृति में सिलिका अधिकतर क्वार्ट्ज़ के रूप में पाया जाता है। इसका विशुद्ध रूप बिल्लौर पत्थर है। काच निर्माण के लिए सबसे उपयुक्त सामग्री बालू, बालुका प्रस्तर और क्वार्ट्ज़ाइट (Quratzite) चट्टानें हैं। यदि पाने की सुविधा, प्राप्य मात्रा और ढुलाई बराबर हो तो बालू ही सबसे उपयुक्त पदार्थ है। काच निर्माण के लिए सबसे उपयुक्त वही बालू है जिसमें सिलिका की मात्रा कम से कम 99 प्रतिशत हो और फ़ेरिक आक्साइड (Fe2O3) के रूप में लोहा 0.1 प्रतिशत से कम हो। बालू के कण भी 0.5-0.25 मिलीमीटर के व्यास के हों। अच्छे काच निर्माण के लिए बालू को जल द्वारा धो भी लिया जाता है। इलाहाबाद में शंकरगढ़ और वरगढ़ के बालू के निक्षेप काच निर्माण के लिए अति उत्तम हैं और उत्तर प्रदेश सरकार ने वहाँ पर बालू धोने के कुछ यंत्र भी लगा दिए हैं।
साधारण काच निर्माण के लिए कुछ क्षारीय पदार्थ जैसे सोडा ऐश (Sodium carbonate) का होना भी अति आवश्यक है। इस मिश्रण से द्रवणंक कम और द्रवण क्रिया सरल हो जाती है। केवल इन दो पदार्थों के द्रवण से जो काच बनता है वह जल काच (Water glass) के नाम से प्रसिद्ध है, क्योंकि यह जल विलेय है। काच को स्थायी बनाने के लिए कोई द्विसमाक्षारीय (dibasic) आक्साइड जैसे कैल्सियम आक्साइड (चूना) या सीस आक्साइड को भी मिलाना पड़ता है। रासायनिक नियम के अनुसार, जितने ही अधिक पदार्थ मिलाए जाते हैं द्रवणंक भी उतना ही कम हो जाता है। प्रत्येक पदार्थ काच में कुछ विशेष गुण उत्पन्न करता है और इन गुणों को ही ध्यान में रखते हुए काच के मिश्रण बनाए जाते हैं।
कैसियम आक्साइड काच को रासायनिक स्थायित्व प्रदान करता है, पर अधिक मात्रा में होने पर काच में विकाचण (devitrification) होने की प्रवृत्ति आ जाती है। साधारण काच बालू, सोडा और चूना के मिश्रण से बनाया जाता है।
कैल्सियम आक्साइड के लिए काच मिश्रण में चूना या चूना-पत्थर मिलाया जाता है। बोरिक अम्ल या सुहागा से काच में विशेष भौतिक गुण उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे न्यून प्रसार-गुणांक और अधिक तनाव सहनशीलता, तापीय सहन शक्ति एवं अधिक जल-प्रतिरोधकता। इन गुणों के कारण तापमापी नली, लालटेन की चिमनी और भोजन पकाने के पात्र आदि आकस्मिक ताप परिवर्तन सहनेवाली वस्तुओं का निर्माण करने में, बोरिक आक्साइड की मात्रा अधिक से अधिक और क्षार की मात्रा कम से कम रखी जाती है।
सोडियम कोर्बोनेट के स्थान में अन्य क्षार जैसे पोटैशियम कार्बेनेट का भी उपयोग विशेष काचों में किया जाता है। बहुधा क्षार, सल्फ़ेट लवण के रूप में प्रयुक्त होता है।
सीस आक्साइड के लिए अधिकतर लाल सीस (सिंदूर) का उपयोग किया जाता है। इस आक्साइड द्वारा काच का घनत्व और वर्तनांक दोनों बढ़ते हैं और इस कारण ऐसा काच प्रकाशीय (optical) काचों, भाजन एवं पीने के पात्रों और कृत्रिम रत्नों के निर्माण के उपयोग में आता है। सीसयुक्त काच शीघ्र ही काटे और पालिश किए जा सकते हैं। पोटाश क्षार का सीसयुक्त काच सबसे अधिक चमकदार होता है।
ऐल्यूमिनियम आक्साइड (Al2O3), अधिकतर फ़ेल्स्पार द्वारा काच में सम्मिलित किया जाता है। इस आक्साइड से काच में उष्माजनित प्रसार, कठोरता, स्थायित्व, प्रत्यास्थता, तनन शक्ति, चमक और अम्ल प्रतिरोधकता बढ़ती है। इसके द्वारा काच में समांगता और वैज्ञानिक कार्यों में उपयोगी अन्य गुणों की वृद्धि होती है। यह आक्साइड काच का प्रसार गुणांक और मृदुकरण (annealing) ताप कम करता है। यह विकाचण को रोकता है और इसके प्रयोग से काच का द्रवण और शोध सरल हो जाता है।
जस्ता आक्साइड (Zn O) प्राय: जस्ता कार्बोनेट (ZnCO3) द्वारा काच में सम्मिलित किया जाता है। यह पदार्थ काच के प्रसार गुणांक को बहुत कम करता है। काच में अधिक स्थायित्व एवं उष्माजनित कम प्रसार उत्पन्न करने के कारण यह रासायनिक काच के निर्माण में प्रयुक्त होता है। कुछ काचों में मैग्नीशियम या बेरियम आक्साइड भी सम्मिलित किया जाता है। कुछ पदार्थ काच में विशेष रासायनिक गुण उत्पन्न करने के उद्देश्य से सम्मिलित किए जाते हैं। सीस युक्त काचों में कुछ आक्सीकारक पदार्थ, जेसे पोटैशियम नाइट्रेट या शोरा का होना आवश्यक होता है।
काच के द्रवित होने पर उसमें गैस के बहुधा असंख्य छोटे-छोटे बुलबुले, जिनको 'बीज' कहते हैं, फँस जाते हैं। काच को इनसे मुक्त करने के लिए कुछ रासायनिक पदार्थों का उपयोग किया जाता है। ये पदार्थ द्रव काच में गैस हो जाते हैं और बीजों को अपने साथ काच के बाहर निकाल लाते हैं। इन पदार्थों को 'शोधक द्रव्य' कहते हैं। साधारणत: शोधक द्रव्य के लिए कार्बन ऐमोनियम लवण या आरसेनिक प्रयुक्त होता है। आलू, चुकंदर और भीगी लकड़ी के टुकड़े द्रवित काच में डालकर भी कहीं-कहीं काच का शोधन किया जाता है।
काच का उपयोग ऐसी कई प्रकार की वसतुओं में किया जाता है जिनमें विभिन्न भौतिक गुणों की आवश्यकता रहती है। काच के भौतिक गुणों में भिन्नता विभिन्न आक्साइडों द्वारा लाई जा सकती है। भौतिक गुण काच में उपस्थित प्रत्येक आक्साइड की आपेक्षिक मात्रा पर भी निर्भर करता है।
घनत्व- काच में सबसे अधिक घनत्व सीस आक्साइड द्वारा आता है और सबसे कम बोरिक आक्साइड द्वारा।
वैद्युत गुण- काच की विद्युच्चालकता उसकी रचना, ताप एवं वातावरण पर निर्भर होती है। आजकल काच का उपयोग अचालक (insulator) के लिए भी किया जा रहा है।
तापीय गुण- तप्त करने पर काच प्रसारित होता है, पर बोरिक आक्साइड एवं मैग्नीशियम आक्साइड के काच में न्यूनतम प्रसार होता है और क्षारीय आक्साइड से अधिकतम प्रसार।
उष्मा चालकता- काच उष्मा का अधम चालक है; सिलिका तथा बोरिक आक्साइड से काच में उष्मा-चालकता कम होती है। काच के अन्य भौतिक गुण, जैसे यंग का प्रतयास्थता-गुणांक, तनाव शक्ति, दृढ़ता तथा तापीय सहनशीलता, काच में पड़े आक्साइडों पर निर्भर होते हैं। काच में इनके प्रभाव का वैज्ञानिक अध्ययन करके रासायनिक काच (जिसपर किसी रासायनिक पदार्थ या ताप का प्रभाव नहीं पड़ता), उष्माप्रतिरोधक काच, जो लाल तप्त कर एकदम बर्फ में ठंडे किए जा सकते हैं और तापमापी काच का निर्माण किया जाता है।
पट्टिका काच की शक्ति के परीक्षण के लिए पट्टिका को चारों किनारों पर रखते हैं और ज्ञात भार के इस्पात के एक गोले को विभिन्न ऊँचाई के काच के माध्य में स्वतंत्रतापूर्वक गिरने देते हैं। जिस ऊँचाई से गोले को गिराने पर काच में दारार पड़ जाए वह ऊँचाई काच की पुष्टता की मात्रिक माप होती है। बोतलों की पुष्टता की परीक्षा के लिए बोतलों के भीतर जल भरकर जल की दाब धीरे-धीरे बढ़ाई जाती हे कि बोतलें फट जाएँ।
तापीय सहनशीलता- अचानक ताप परिवर्तन की उस मात्रा को, जिसे काच बिना टूटे सहन कर सके, काच की तापीय सहनशीलता कहते हैं। इस गुण के परीक्षण के लिए काच की वस्तुओं को जल में विभिन्न तापों तक गरम कर बर्फ से ठंडे किए गए जल में अचानक डुबो देते हैं।
पाश्चरीकरण, भोजन बनाने के बर्तन, लैंप की चिमनियाँ, रासायनिक काच और तापमापी की नली के लिए, उच्च तापीय सहनशीलतावाले काच की आवश्यकता होती है। काच में अधिक तापीय सहनशीलता उत्पन्न करने के लिए सिलिका की मात्रा अधिक और क्षार की मात्रा कम होनी चाहिए तथा काच में कुछ मात्रा में जस्ता आक्साइड, बोरन आक्साइड और ऐल्युमिनियम आक्साइड भी होना चाहिए।
प्रकाशीय गुण- लेंसों (लेंज़ों) में प्रकाशीय गुण, जैसे उच्च वर्तनांक एवं विक्षेपण भी, काच में भिन्न आक्साइडों की मात्राओं पर निर्भर हैं और इसलिए सीस आक्साइड, बेरियम आक्साइड और कैल्सियम की मात्राओं को घटाकर बढ़ाकर प्रत्येक भाँति के विशेष वर्तनांक और विक्षेपण के बहुमूल्य काच तैयार किए जा सकते हैं।
पराबैंगनी (ultra-violet) प्रकाश के पारगमन के लिए पारदवाष्पदीप का काच काचीय सिलिका का बनाया जाता है, क्योंकि ये रश्मियाँ साधारण व्यापारिक काच के पार नहीं जा सकती है; परंतु द्रवित क्वार्ट्ज़ के पार ये सरलता से जा सकती हैं।
श्यानता- काच निर्माण में श्यानता भी एक आवश्यक गुण है, क्योंकि काच का धमन (फूँकना), पीडन, कर्षण और बेलना, बहुत कुछ काच की श्यानता पर ही निर्भर रहते हैं; अभितापन में विकृति को हटाना भी श्यानता से ही सीधा संबंधित है। काच की श्यानता काच के आक्साइड अवयवों पर निर्भर करती है। सिलिका की मात्रा बढ़ाने से काच का श्यानता-परास (रेंज़) बढ़ जाता है; चूने की वृद्धि से श्यानता बढ़ती है, परंतु श्यानता-परास कम होता है। सोडा की मात्रा बढ़ाने से श्यानता घटती है, पर श्यानता-परास बढ़ता है।
जब काच की वस्तु को गरम किया जाता है तो बाहर की सतह भीतर के भागों के अपेक्षा अधिक गरम हो जाती है और इसी प्रकार जब तप्त द्रवित काच को ठंडा करके ठोस किया जाता है तब ठोस होते समय काच के बाहर की सतह भीतर की अपेक्षा अधिक ठंडी हो जाती है। ताप में अंतर होने के कारण काच में असमान प्रसार या आकुंचन आ जाता है, जिसके फलस्वरूप उसके भीतर प्रतिबल उत्पन्न हो जाते हैं और काच में तदनुरूप विकृतियाँ आ जाती हैं।
निर्माण के समय काच तप्त रहता है, इसलिए ठंडा होने पर काच की वस्तुओं में प्रतिबल और विकृतियाँ आ जाती हैं। इनको हटाने की क्रिया को काच का अभितापन (annealing) कहा जाता है। इस विधि में काच की वस्तुओं को फिर से काच को कोमल होनेवाले ताप से कुछ कम ताप पर एक समान तप्त कर दिया जाता है। इससे श्यानता के परिवर्तन के कारण काच विकृतियों से मुक्त हो जाता है। तब काच को बहुत धीरे-धीरे ठंडा किया जाता है। यह अभितापन-परास भी काच के आक्साइड अवयवों पर निर्भर रहता है। अधिक क्षारयुक्त काच पर्याप्त निम्न ताप पर अभितापित किए जा सकते हैं। जटिल काच का, जैसे रासायनिक काच उष्मा प्रतिरोधक काच का, अभितापन ताप बहुत ऊँचा होता है। प्रकाशीय काचों के अभितापन में बहुत अधिक सम लगता है; क्योंकि उनको बहुत धीरे-धीरे ठंडा करना होता है जिनमें वे प्राय: विकृतिहीन हों। संसार के सबसे बड़े 200 इंच व्यास वाले दूरवीक्षण यंत्र के काच को ठंडा करने के लिए एक वर्ष से ऊपर समय लगा था।
जिन काच पात्रों में औषधि, भोजन या पेय रखा जाता है, उनके काचों पर बहुत समय तक द्रवों की रासायनिक क्रियाहोने की संभावना रहती है। सभी रासायनिक काच-वस्तुओं को जल, अम्ल और क्षार का संक्षारण (corrosion) सहना पड़ता है। द्वारवाले एवं प्रकाशीय काचों को ऋतुक्षारण सहना पड़ता है। अत: यह आवश्यक है कि इन काचों में ऐसे गुण हों कि पूर्वोक्त संक्षारणों का उनपर न्यूनतम प्रभाव पड़े।
काच का स्थायित्व काच के भिन्न आक्साइड अवयवों की मात्राओं पर निर्भर है। स्थायित्व बढ़ाने के लिए सर्वोत्तम पदार्थ जस्ता आक्साइड है और इसके बाद ऐल्यूमिनियम, मैग्नीसियम और कैल्सियम आक्साइड हैं। क्षार की मात्रा अधिक हाने पर काच का स्थायित्व घटता है। बोरिक आक्साइड 12 प्रतिशत तक काच का स्थायित्व बढ़ाता है और तदुपरांत स्थायित्व घटता है। क्षारीय आक्साइड के स्थान में सिलिका बढ़ाने से भी स्थायित्व में वृद्धि आती है।
रंगीन काचों के निर्माण के लिए विभिन्न प्रकार के वर्णकों को काच-मिश्रण में डाला जाता है। इनका ब्योरा नीचे दिया जाता है।
पीला -- कैडिमियम सल्फ़ाइड—20-30 भाग, गंधक 5-10 भाग
भूरा (amber) -- कार्बन—5-10 भाग, गंधक 2-4 भाग
हरा -- क्रोमियम आक्साइड—1-2 भाग
नीला -- कोबाल्ट आक्साइड—1-3 भाग
उपल—क्रायोलाइट—100-120 भाग
आसमानी -- क्यूप्रिक आक्साइड—10-20 भाग
लाल -- स्वर्ण क्लोराइड—1-4 भाग
लाल -- सिलीनियम—8-15 भाग
काच निर्माण के लिए पिसे कच्चे पदार्थों को तौलकर खूब मिलाया जाता है और तदुपरांत उन्हें भट्ठी में रखकर द्रवित किया जाता है।
कुछ आदर्श काचों की संरचना और उपयुक्त काचमिश्रण नीचे दिए जा रहे हैं :
अवयव | % न्यूनतम | % अधिकतम |
SiO2 | 68,0 | 74,5 |
Al2O3 | 0,0 | 4,0 |
Fe2O3 | 0,0 | 0,45 |
CaO | 9,0 | 14,0 |
MgO | 0,0 | 4,0 |
Na2O | 10,0 | 16,0 |
K2O | 0,0 | 4,0 |
SO3 | 0,0 | 0,3 |
संरचना -- मिश्रण
सिलिका (SiO2) 74ऽ बालू 1000 भाग
कैल्सियम आक्साइड (CaO) 7ऽ चूना पत्थर 169 भाग
सोडियम आक्साइड (Na2O) 19ऽ सोडा ऐश 439 भाग
संरचना -- काच-मिश्रण
सिलिका (SiO2) 72ऽ बालू 1000 भाग
ऐल्युमिना (Al2O3) 1.6ऽ ऐल्युमिना 22 भाग
कैल्सियम आक्साइड (CaO) 10.4ऽ चूना पत्थर 257 भाग
सोडियम आक्साइड (Na2O) 16.0ऽ सोडा ऐश 380 भाग
संरचना काच मिश्रण
सिलिका (SiO2) 52.5ऽ बालू 100 भाग
सीस आक्साइड (PbO) 33.8ऽ लाल सीस 660 भाग
पोटैसियम आक्साइड (K2O) 13.3ऽ पोटाश 330 भाग
शोरा 40 भाग
संरचना काच-मिश्रण
सिलिका (SiO2) 72.5ऽ बालू 1000 भाग
ऐल्युमिना (Al2O3) 1.6ऽ ऐल्युमिना 22 भाग
कैल्सियम आक्साइड (CaO) 4.9ऽ चूना पत्थर 121 भाग
मैग्नीशियम आक्साइड (MgO) 3.5ऽ मैग्नेसाइट 101 भाग
सोडियम आक्साइड (Na2O) 17.5ऽ सोडा ऐश 413 भाग
संरचना काच-मिश्रण
सिलिका (SiO2) 73.9ऽ बालू 1000 भाग
ऐल्युमिना (Al2O3) 2.2ऽ ऐल्युमिना 30 भाग
सोडियम (Na2O) 6.7ऽ सोडा ऐश 155 भाग
बोरिक आक्साइड (B2O3) 16.5ऽ बोरिक अम्ल 395 भाग
सरंचना काच-मिश्रण
सिलिका (SiO2) 80.6ऽ बालू 1000 भाग
ऐल्युमिना (Al2O3) 2.2ऽ ऐल्युमिना 25 भाग
मैग्नीशियम आक्साइड (M2O) 0.3ऽ मैग्नेसाइट 8 भाग
बोरिक आक्साइड (B2O3) 11.9ऽ बोरिक अम्ल 262 भाग
सोडियम आक्साइड (Na2O) 3.9ऽ सोडा ऐश 83 भाग
पोटैशियम आक्साइड (K2O) 0.7ऽ पोटाश 13 भाग
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