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ऑस्ट्रेलियन इतिहास विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
ऑस्ट्रेलिया का इतिहास कॉमनवेल्थ ऑफ ऑस्ट्रेलिया और इससे पूर्व के मूल-निवासी तथा औपनिवेशिक समाजों के क्षेत्र और लोगों के इतिहास को संदर्भित करता है। ऐसा माना जाता है कि ऑस्ट्रेलिया की मुख्य भूमि पर ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों का पहली बार आगमन लगभग 40,000 से 60,000 वर्षों पूर्व इंडोनेशियाई द्वीप-समूह से नाव द्वारा हुआ। उन्होंने पृथ्वी पर सबसे लंबे समय तक बची रहने वाली कलात्मक, संगीतमय और आध्यात्मिक परंपराओं में कुछ की स्थापना की।
सन् 1606 में ऑस्ट्रेलिया पहुँचे डच नाविक विलेम जैन्सज़ून यहाँ निर्विरोध उतरने वाले पहले यूरोपीय व्यक्ति थे। इसके बाद यूरोपीय खोजकर्ता लगातार यहाँ आते रहे। सन् 1770 में जेम्स कुक ने ऑस्ट्रेलिया की पूर्वी तट को ब्रिटेन के लिए चित्रित कर दिया और वे बॉटनी बे (अब सिडनी में), न्यू साउथ वेल्स में उपनिवेश बनाने का समर्थन करने वाले विवरणों के साथ वापस लौटे। एक दंडात्मक उपनिवेश की स्थापना करने के लिए ब्रिटिश जहाजों का पहला बेड़ा जनवरी 1788 में सिडनी पहुँचा। ब्रिटेन ने पूरे महाद्वीप में अन्य उपनिवेश भी स्थापित किए। पूरी उन्नीसवीं सदी के दौरान आंतरिक भागों में यूरोपीय खोजकर्ताओं को भेजा गया। इस अवधि के दौरान नए रोगों के संपर्क में आने और ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के साथ हुए संघर्ष ने ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को बहुत अधिक कमज़ोर बना दिया।
सोने की खानों और कृषि उद्योगों के कारण समृद्धि आई और उन्नीसवीं सदी के मध्य में सभी छः ब्रिटिश उपनिवेशों में स्वायत्त संसदीय लोकतंत्रों की स्थापना की शुरुआत हुई। सन् 1901 में इन उपनिवेशों ने एक जनमत-संग्रह के द्वारा एक संघ के रूप में एकजुट होने के लिए मतदान किया और आधुनिक ऑस्ट्रेलिया अस्तित्व में आया। विश्व-युद्धों में ऑस्ट्रेलिया ब्रिटेन की ओर से लड़ा और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान शाही जापान द्वारा संयुक्त राज्य अमरीका को धमकी मिलने पर ऑस्ट्रेलिया संयुक्त राज्य अमरीका का दीर्घकालिक मित्र साबित हुआ। एशिया के साथ व्यापार में वृद्धि हुई और युद्धोपरांत एक बहु-सांस्कृतिक आप्रवास कार्यक्रम के द्वारा 6.5 मिलियन से अधिक प्रवासी यहाँ आए, जिनमें प्रत्येक महाद्वीप के लोग शामिल थे। अगले छः दशकों में जनसंख्या तिगुनी होकर 2010 में लगभग 21 मिलियन तक पहुँच गई, जहाँ 200 देशों के मूल नागरिक मिलकर विश्व की चौदहवीं सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था का निर्माण करते हैं।[1]
ऐसा माना जाता है कि ऑस्ट्रेलिया के मूल-निवासियों के पूर्वज शायद 40,000 से 60,000 वर्षों पूर्व ऑस्ट्रेलिया में आए, लेकिन संभव है कि वे और पहले लगभग 70,000 वर्षों पूर्व यहाँ आए हों.[2][3] उन्होंने शिकारी संग्राहकों की जीवन-शैली विकसित की, वे आध्यात्मिक तथा कलात्मक परंपराओं का पालन करते थे और उन्होंने पाषाण प्रौद्योगिकियों का प्रयोग किया। ऐसा अनुमान है कि यूरोप से हुए पहले संपर्क के समय इनकी जनसंख्या कम से कम 350,000 थी,[4][5] जबकि हाल के पुरातात्विक शोध बताते हैं कि कम से कम 750,000 की जनसंख्या रही होगी। [6][7] ऐसा प्रतीय होता है कि हिमनदीकरण (Glaciation) की अवधि के दौरान लोग समुद्र के रास्ते यहाँ आए थे, जब न्यू गिनी और तस्मानिया इसी महाद्वीप से जुड़े हुए थे। हालांकि, इसके बावजूद भी इस सफर के लिए समुद्री-यात्रा की आवश्यकता होती थी, जिसके चलते वे लोग विश्व के शुरुआती समुद्री यात्रियों में से एक बन गए।[8]
जनसंख्या का सबसे अधिक घनत्व दक्षिणी और पूर्वी क्षेत्रों, विशेषतः मुरे नदी की घाटी, में विकसित हुआ। ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों ने द्वीप पर दीर्घकाल तक बने रहने के लिए संसाधनों का प्रयोग उचित ढंग से किया और कभी-कभी वे शिकार तथा संग्रह का कार्य बंद कर दिया करते थे, ताकि जनसंख्या और संसाधनों को पुनः विकसित होने का अवसर मिल सके। उत्तरी ऑस्ट्रेलियाई लोगों द्वारा "फायरस्टिक कृषि" का प्रयोग ऐसी वनस्पतियाँ उगाने के लिए किया जाता था, जिनकी ओर पशु आकर्षित होते थे।[9] यूरोपीय उपनिवेशों की स्थापना से पूर्व ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी पृथ्वी की सबसे प्राचीन, सबसे दीर्घकालिक व सर्वाधिक एकाकी संस्कृतियों में से थे। इसके बावजूद ऑस्ट्रेलिया के पहले निवासियों के आगमन ने इस महाद्वीप को लक्षणीय रूप से प्रभावित किया और संभव है कि ऑस्ट्रेलिया के पशु-जीवन के विलुप्त होने में मौसम परिवर्तन के साथ ही इसका भी योगदान रहा हो। [10] संभव है कि ऑस्ट्रेलिया की मुख्य-भूमि से थाइलेसाइन, तस्मानियाई डेविल और तस्मानियाई मूल-मुर्गी के विलुप्त होने में मानव द्वारा किये जाने वाले शिकार के साथ ही लगभग 3000-4000 वर्षों पूर्व ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी लोगों द्वारा प्रस्तुत डिंगो डॉग (dingo dog) का भी योगदान रहा हो। [11][12]
अभी तक मिले प्राचीनतम मानव अवशेष लेक मुंगो में मिले हैं, जो कि न्यू साउथ वेल्स के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक झील है। मुंगो पर प्राप्त अवशेष विश्व के सर्वाधिक प्राचीन दाह-संस्कारों में से एक की ओर सूचित करते हैं और इस प्रकार वे मनुष्यों के बीच प्रचलित धार्मिक रीति-रिवाजों का प्रारम्भिक प्रमाण प्रतीत होते हैं।[13][14] ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों की पौराणिक मान्यताओं तथा इन प्रारम्भिक ऑस्ट्रेलियाई लोगों के वंशजों के जीववादी ढांचे के अनुसार ड्रीमिंग (Dreaming) एक भयानक युग था, जिसमें पूर्वज टोटेमिक आत्माओं ने सृष्टि की रचना की। ड्रीमिंग ने समाज के नियम व संरचनाएं स्थापित कीं और रीति-रिवाजों का पालन जीवन व भूमि की निरंतरता को सुनिश्चित करने के लिए किया जाता था। यह ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों की कला की एक मुख्य विशेषता थी और आज भी बनी हुई है।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों की कला विश्व की प्राचीनतम कला-परंपरा है, जो आज भी जारी है।[15] ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों की कला के प्रमाण कम से कम 30,000 वर्षों पूर्व तक देखे जा सकते हैं और वे पूरे ऑस्ट्रेलिया में मिलते हैं (विशेषतः उत्तरी क्षेत्र के उलुरू (Uluru) तथा काकाडु राष्ट्रीय उद्यान में).[16][17] आयु और बहुतायत के संदर्भ में, ऑस्ट्रेलिया की गुफा-कला की तुलना यूरोप के लैसकॉक्स व एल्टामिरा से की जा सकती है।[18][19]
पर्याप्त सांस्कृतिक निरंतरता के बावजूद, ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के लिए जीवन महत्वपूर्ण परिवर्तनों से अछूता नहीं था। लगभग 10-12,000 वर्षों पूर्व तस्मानिया मुख्य भूमि से अलग हो गया और कुछ पाषाण प्रौद्योगिकियाँ तस्मानियाई लोगों तक नहीं पहुँच सकीं (जैसे पत्थर के औज़ारों की मूठ जोड़ना और बूमरैंग का प्रयोग).[20] भूमि भी सदैव ही दयालु नहीं रही; दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों को "एक दर्जन से अधिक ज्वालामुखी विस्फोटों का सामना करना पड़ा…जिनमें माउंट गैम्बियर भी (शामिल) है, जिसका विस्फोट केवल 1,400 वर्षों पूर्व हुआ था। "[21] इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि आवश्यकता होने पर, ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी अपनी जनसंख्या-वृद्धि पर नियंत्रण रख सकते थे और सूखा पड़ने या जल की कमी होने के दौरान जल की विश्वसनीय आपूर्ति बनाये रख पाने में सक्षम थे। [उद्धरण चाहिए] दक्षिण पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में, वर्तमान में मौजूद लेक कोंडा के पास, मधुमक्खियों के छत्तों के आकार के अर्ध-स्थायी गांव विकसित हुए, जहाँ आस-पास भोजन की प्रचुर आपूर्ति उपलब्ध थी।[22] कई सदियों तक, ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी तट पर रहने वाले ऑस्ट्रेलियाई मूल-निवासियों का मकासान व्यापार, विशेष रूप से उत्तर-पूर्वी आर्नहेम लैंड के योलंगु लोगों के साथ, बढ़ता रहा।
सन 1788 तक, जनसंख्या 250 स्वतंत्र राष्ट्रों के रूप में मौजूद थी, जिनमें से अनेक की एक-दूसरे के साथ संधि थी और प्रत्येक राष्ट्र के भीतर अनेक जातियाँ थीं, जिनकी संख्या पांच या छः से लेकर 30 या 40 तक हुआ करती थी। प्रत्येक राष्ट्र की अपनी स्वयं की भाषा होती है और इनमें से कुछ राष्ट्रों में एक से अधिक भाषाओं का प्रयोग भी किया जाता था, इस प्रकार 250 से अधिक भाषाएँ अस्तित्व में थीं, जिनमें से लगभग 200 अब विलुप्त हो चुकी हैं। "संबंधों के जटिल नियम लोगों के सामाजिक संबंधों को व्यवस्थित रखते थे और कूटनीतिक संदेशवाहक तथा भेंट के रीति-रिवाज समूहों के बीच संबंधों को सुचारु बनाते थे," जिसके चलते समूहों के बीच संघर्ष, जादू-टोना और आपसी विवाद कम से कम हुआ करते थे।[23]
प्रत्येक राष्ट्र की जीवन-शैली और भौतिक संस्कृति में बहुत अधिक अंतर था। विलियम डैम्पियर जैसे कुछ प्रारम्भिक यूरोपीय पर्यवेक्षकों के ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों की शिकार-संग्राहक जीवन-शैली का वर्णन कठिन व "तकलीफदेह" कहकर किया है। इसके विपरीत, कैप्टन कुक ने अपनी जर्नल में लिखा है कि संभवतः "न्यू हॉलैंड के मूल-निवासी" वास्तव में यूरोपीय लोगों की तुलना में बहुत अधिक प्रसन्न थे। पहले बेड़े के सदस्य वॉटकिन टेन्च, ने सिडनी के ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों को अच्छे स्वभाव वाले और अच्छे हास्य-बोध वाले ओग कहकर उनकी प्रशंसा की है, हालांकि उन्होंने एयोरा व कैमेरायगल लोगों के बीच हिंसक शत्रुता का वर्णन भी किया है और अपने मित्र बैनेलॉन्ग व उसकी पत्नी बैरंगारू के बीच हिंसक घरेलू झगड़े का भी उल्लेख किया है।[24] उन्नीसवीं सदी के उपनिवेशवादियों, जैसे एडवर्ड कर, ने पाया कि ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी "अधिकांश सभ्य (जैसे) लोगों की तुलना में कम दुखी थे और जीवन का अधिक आनंद उठा रहे थे। "[25] इतिहासकार जेफरी ब्लेनी ने लिखा कि ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के लिए जीवन के भौतिक मानक सामान्यतः उच्च थे, जो कि डचों द्वारा ऑस्ट्रेलिया की खोज के समय की यूरोपीय जीवन-शैली से बहुत अधिक बेहतर थे।[26]
स्थायी यूरोपीय उपनिवेशवादी सन 1788 में सिडनी पहुँचे और उन्नीसवीं सदी के अंत तक उन्होंने महाद्वीप के अधिकांश भाग पर कब्ज़ा कर लिया। काफी हद तक अनछुए रहे ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी समाजों के गढ़ बीसवीं सदी तक बचे रहे, विशिष्ट रूप से उत्तरी व पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में, जब अंततः 1984 में गिब्सन मरुस्थल के पिंटुपी लोगों के एक समूह के सदस्य बाहरी लोगों के संपर्क में आने वाले अंतिम लोग बने। [27][27] हालांकि अधिकांश ज्ञान नष्ट हो चुका था, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों की कला, संगीत व संस्कृति, जिसका संपर्क के प्रारम्भिक काल में यूरोपीय लोगों द्वारा अक्सर तिरस्कार किया जाता था, बची रही और समय-समय पर व्यापक ऑस्ट्रेलियाई समुदाय द्वारा इसकी प्रशंसा भी की गई।
नौवहन मार्गदर्शक जेम्स कुक ने, मौजूदा निवासियों के साथ कोई समझौता किये बिना ही, सन 1770 में ब्रिटेन के लिए ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर दावा किया। पहले गर्वनर, आर्थर फिलिप, को स्पष्ट रूप से निर्देश दिया गया था कि वे ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के साथ मित्रता व अच्छे संबंध स्थापित करें और पूरे औपनिवेशिक काल के दौरान- सिडनी के प्रारम्भिक संभाषियों बेनेलॉन्ग व बंगारी द्वारा प्रदर्शित आपसी उत्सुकता से लेकर, सिडनी क्षेत्र के पेमुल्वाय और विंड्रेडाइन, अथवा पर्थ के पास स्थित यागन के प्रत्यक्ष विरोध तक- प्रारम्भिक नवागतों एवं प्राचीन भू-स्वामियों के बीच अंतःक्रियाओं में बहुत अधिक परिवर्तन आते रहे। बेनेलॉन्ग व उनके एक साथी यूरोप की समुद्री-यात्रा करने वाले पहले ऑस्ट्रेलियावासी बने और किंग जॉर्ज तृतीय से उनका परिचय करवाया गया। बंगारी ने ऑस्ट्रेलिया के पहले पूर्ण-नौवहन (circumnavigation) अभियान में मैथ्यु फ्लिंडर्स की सहायता की। सन 1790 में पहली बार किसी श्वेत उपनिवेशवादी की हत्या का आरोप पेमुल्वाय पर लगा और विंड्रेडाइन ने ब्लू माउंटेन्स के आगे ब्रिटिशों के विस्तार का सामना किया।[28]
इतिहासकार जेफरी ब्लेनी के अनुसार, औपनिवेशिक काल के दौरान, ऑस्ट्रेलिया में: "हज़ारों सुनसान स्थानों पर गोलीबारी और भाला-युद्ध की घटनाएं होतीं थीं। इससे भी बदतर यह है कि स्मालपॉक्स, खसरा, ज़ुकाम और दूसरी नई बीमारियाँ ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के एक बस्ती से दूसरी बस्ती तक फैलने लगीं… ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के मुख्य विजेता रोग और उसका साथी, नैतिक-पतन, थे।[29] यहाँ तक कि स्थानीय जिलों में यूरोपीय उपनिवेशवादियों के आगमन से पूर्व अक्सर यूरोपीय बीमारियाँ पहले पहुँच जाया करतीं थीं। सन 1789 में सिडनी में स्मालपॉक्स की महामारी फैलने की घटना दर्ज की गई है, जिसने सिडनी के आस-पास के लगभग आधे ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों का खात्मा कर दिया." इसके बाद यह यूरोपीय उपनिवेशों की तत्कालीन सीमाओं से काफी बाहर तक फैल गई, जिसमें दक्षिण पूर्वी ऑस्ट्रेलिया का अधिकांश भाग शामिल था और सन 1829-1830 में यह फिर उभरी और इसने ऑस्ट्रेलियाई जनसंख्या के 40-60% को नष्ट कर दिया। [30]
ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के जीवन के लिए यूरोपीय लोगों का प्रभाव बहुत अधिक हानिकारक साबित हुआ, हालांकि हिंसा की सीमा के संबंध में विवाद है, लेकिन सरहद पर बहुत अधिक संघर्ष हुआ था। उसी समय, कुछ उपनिवेशवादियों को इस बात का अहसास था कि वे ऑस्ट्रेलिया में अन्यायपूर्वक ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों का स्थान ले रहे थे। सन 1845 में, उपनिवेशवादी चार्ल्स ग्रिफिथ्स ने यह लिखकर इसे सही ठहराने का प्रयास किया कि; "प्रश्न यह है कि ज़्यादा सही क्या है-वह असभ्य जंगली मनुष्य, जो एक ऐसे देश में जन्मा और निवास करता है, जिस पर अधिकार होने का दावा वह शायद ही कर सकता हो…या वह सभ्य मनुष्य, जो इस…अनुत्पादक देश में, जीवन का समर्थन करने वाले उद्योग के साथ आता है। "[31]
सन 1960 के दशक से, ऑस्ट्रेलियाई लेखकों ने ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के बारे में यूरोपीय धारणाओं का पुनर्मूल्यांकन करना प्रारम्भ किया-इसमें एलन मूरहेड का द फैटल इम्पैक्ट (1966) और जेफरी ब्लेनी की युगांतरकारी ऐतिहासिक रचना ट्रायंफ ऑफ द नोमैड्स (1975) शामिल हैं। सन 1968 में, मानविकीविद् डब्ल्यू.ई.एच. स्टैनर ने यूरोपीय लोगों व ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के बीच संबंधों के ऐतिहासिक विवरणों की कमी का वर्णन "महान ऑस्ट्रेलियाई मौन (great Australian Silence)" के रूप में किया।[32][33] इतिहासकार हेनरी रेनॉल्ड्स का तर्क है कि 1960 के दशक के अंत तक इतिहासकारों द्वारा ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों को "ऐतिहासिक रूप से उपेक्षित" किया जाता रहा। [34] अक्सर प्रारम्भिक व्याख्याओं में यह वर्णन मिलता है कि यूरोपीय लोगों के आगमन के बाद ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों को विलुप्त होने का अभिशाप मिला। विक्टोरिया के उपनिवेश पर सन 1864 में विलियम वेस्टगार्थ द्वारा लिखित पुस्तक के अनुसार; "विक्टोरिया के ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों का मामला इस बात की पुष्टि करता है…यह प्रकृति का एक लगभग अपरिवर्तनीय नियम प्रतीत होता है कि ऐसी निम्न अश्वेत प्रजातियाँ विलुप्त हो जाएं."[35] हालांकि, सन 1970 के दशक के प्रारम्भिक काल तक आते-आते लिंडाल रयान, हेनरी रेनॉल्ड्स तथा रेमण्ड इवान्स जैसे इतिहासकार सीमा पर हुए संघर्ष और मानवीय संख्या का आकलन करने और इसे लेखबद्ध करने का प्रयास करने लगे थे।
ऐसी अनेक घटनाएं हैं, जो इस बात को प्रदर्शित करती हैं कि जब ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों ने घुसपैठ से अपनी ज़मीनों की रक्षा करने और उपनिवेशवादियों व पादरी-समर्थकों (Pastoralists) ने अपनी उपस्थिति को स्थापित करने का प्रयास किया, तो उनके बीच विरोध व हिंसा हुई। मई 1804 में, वैन डाइमेन की भूमि (Van Diemen's Land),[36] रिडन कोव पर नगर में पहुँचने पर शायद 60 ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों की हत्या कर दी गई।[37] सन 1803 में, ब्रिटिशों ने वैन डाइमेन की भूमि (तस्मानिया) में एक नई चौकी स्थापित की। हालांकि तस्मानियाई इतिहास आधुनिक इतिहासकारों द्वारा सर्वाधिक विवादित इतिहास में से एक है, लेकिन उपनिवेशवादियों व ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के बीच हुए संघर्ष का उल्लेख कुछ समकालीन विवरणों में अश्वेत युद्ध (Black War) के रूप में किया गया.[38] बीमारियों, बेदखली, अंतःविवाह और संघर्ष के संयुक्त प्रभाव के कारण सन 1830 के दशक तक आते-आते ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों की जनसंख्या घटकर केवल कुछ सैकड़ा रह गई, जबकि ब्रिटिशों के आगमन के समय यह कुछ हज़ार थी। उस अवधि के दौरान मार दिये गए लोगों की संख्या अनुमान 300 से शुरु होता है, हालांकि वास्तविक आंकड़ों की पुष्टि कर पाना अब असंभव है।[39][40] सन 1830 में, गवर्नर जॉर्ज आर्थर ने बिग रिवर (Big River) तथा ऑइस्टर बे (Oyster Bay) जनजातियों को ब्रिटिश उपनिवेशों वाले जिलों से बाहर खदेड़ने के लिए एक सशस्र दल (ब्लैक लाइन) को रवाना किया। यह प्रयास विफल रहा और सन 1833 में जॉर्ज ऑगस्टस रॉबिन्सन ने शेष जन-जातीय लोगों के साथ मध्यस्थता के लिए निहत्थे जाने का प्रस्ताव दिया.[41] एक मार्गदर्शक व अनुवादक के रूप में ट्रुगैनिनी की सहायता से, रॉबिन्सन ने जन-जातीय लोगों को फ्लिंडर्स आइलैंड पर एक नए, पृथक उपनिवेश पर बसने के लिए आत्मसमर्पण करने पर राज़ी कर लिया, जहाँ बाद में बीमारी के कारण उनमें से अधिकांश की मृत्यु हो गई।[42][43]
सन 1838 में, न्यू साउथ वेल्स की मेयॉल क्रीक में कम से कम अठ्ठाइस ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों की हत्या कर दी गई, जिसके परिणामस्वरूप एक अभूतपूर्व फैसले में औपनिवेशिक अदालतों ने सात श्वेत उपनिवेशवादियों को फांसी की सज़ा सुनाई.[44] ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों ने भी श्वेत उपनिवेशवादियों पर हमला किया-सन 1838 में, ओवेन्स रिवर के ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों द्वारा पोर्ट फिलिप डिस्ट्रिक्ट में ब्रोकन रिवर पर चौदह यूरोपीय लोगों की हत्या कर दी गई, जो कि निश्चित ही ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी महिलाओं के साथ किये गए दुर्व्यवहार का बदला था।[45] पोर्ट फिलिप डिस्ट्रिक्ट के कैप्टन हटन ने एक बार ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के मुख्य संरक्षक जॉर्ज ऑगस्टस रॉबिन्सन से कहा कि "यदि किसी जनजाति का कोई एक सदस्य भी विरोध करे, तो पूरी जनजाति को नष्ट कर दिया जाए."[46] क्वीन्सलैंड के औपनिवेशिक सचिव ए.एच. पामर ने सन 1884 में लिखा कि "अश्वेतों का स्वभाव इतना अधिक कपटपूर्ण था कि वे केवल भय के द्वारा ही संचालित होते थे-वस्तुतः ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों पर…शासन कर पाना…केवल क्रूर बलप्रयोग द्वारा ही संभव हो सकता था। "[47] ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों का सबसे हालिया नरसंहार सन 1928 में उत्तरी क्षेत्र के कॉनिस्टन में हुआ था। ऑस्ट्रेलिया में नरसंहार के अनेक अन्य स्थल मौजूद हैं, हालांकि इस बात का समर्थन करने वाले दस्तावेज भिन्न-भिन्न हैं।
सन 1830 के दशक से, औपनिवेशिक सरकारों ने मूल-निवासी लोगों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार से बचने और उन पर भी सरकारी नीतियों को लागू करने के प्रयास में प्रोटेक्टर ऑफ ऐबोरिजिन्स (Protector of Aborigines) के कार्यालय स्थापित किये, जो कि अब विवादित हैं। ऑस्ट्रेलिया स्थित ईसाई चर्चों ने ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों को धर्मांतरित करने का प्रयास किया और कल्याण व समावेश की नीतियों को लागू करने के लिए सरकार द्वारा अक्सर उनका प्रयोग किया जाता था। औपनिवेशिक चर्च के सदस्यों, जैसे सिडनी के पहले कैथलिक आर्चबिशप, जॉन बीड पोल्डिंग, ने दृढ़ता से ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के अधिकारों व सम्मान की वकालत की[48] और ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के प्रसिद्ध कार्यकर्ता नोएल पीयर्सन (जन्म 1965), जिनका लालन-पालन केप यॉर्क के एक लूथरन मिशन में हुआ था, ने लिखा है कि ऑस्ट्रेलिया के पूरे औपनिवेशिक इतिहास के दौरान ईसाई मिशनों ने "ऑस्ट्रेलियाई सीमा पर नारकीय जीवन को संरक्षण प्रदान किया और साथ ही उपनिवेशवाद की सहायता की".[49]
सन 1932-4 के कैलेडन बे संकट के दौरान मूलनिवासी और गैर-मूलनिवासी ऑस्ट्रेलिया की 'सीमा' पर हिंसक अंतःक्रिया की अंतिम घटना हुई, जिसकी शुरुआत तब हुई, जब योलंगु महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार कर रहे जापानी मछुआरों पर बरछियों से हमला किये जाने के बाद एक पुलिसवाले की हत्या कर दी गई। इस संकट का पता चलने पर, राष्ट्रीय जनमत ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के पक्ष में खड़ा हो गया और एक ऑस्ट्रेलियाई मूलनिवासी की ओर से हाईकोर्ट ऑफ ऑस्ट्रेलिया (High Court of Australia) में पहली अपील दायर की गई। इस संकट के बाद, मानविकीविद् डोनाल्ड थॉम्पसन को सरकार द्वारा योलंगु समुदाय के बीच रहने के लिए भेजा गया।[50] इसी समय के दौरान अन्य स्थानों पर, सर डगलस निकोल्स जैसे कार्यकर्ता स्थापित ऑस्ट्रेलियाई राजनैतिक तंत्र के भीतर ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के अधिकारों के लिए अपने अभियान की शुरुआत कर रहे थे और सीमावर्ती संघर्ष समाप्त हो गया।
ऑस्ट्रेलिया में सीमांत मुठभेड़ें सदैव ही नकारात्मक नहीं साबित हुईं. प्रारम्भिक यूरोपीय खोजकर्ताओं, जो अक्सर ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के मार्गदर्शन व सहायता पर निर्भर होते थे, के संस्मरणों में ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के रीति-रिवाजों व संपर्क के सकारात्मक विवरण भी दर्ज किये गए हैं: चार्ल्स स्टर्ट ने मुरे-डार्लिंग की खोज करने के लिए ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी प्रतिनिधि नियुक्त किये; बर्के और विल्स के अभियानों में जीवित बचे एकमात्र व्यक्ति का उपचार स्थानीय ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों द्वारा किया गया था और प्रसिद्ध ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी खोजकर्ता जैकी जैकी ने ईमानदारी से अपनी बदकिस्मत मित्र एडमण्ड केनेडी का केप यॉर्क तक साथ निभाया। [51] सम्मानपूर्ण अध्ययन किये गए, जैसे वॉल्टर बाल्डविन स्पेंसर और फ्रैंक गिलन का प्रसिद्ध मानविकी अध्ययन द नेटिव ट्राइब्स ऑफ सेंट्रल ऑस्ट्रेलिया (1899), तथा आर्नहेम लैंड के डोनाल्ड थॉम्पसन द्वारा (1935-1943 के दौरान किया गया). भीतरी ऑस्ट्रेलिया में ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी पशुपालकों की कुशलता का बहुत अधिक सम्मान किया जाने लगा और बीसवीं सदी में, विन्सेंट लिंगियारी जैसे ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी पशुपालक, बेहतर वेतन और सुविधाओं के लिए चलाये गए उनके अभियानों के कारण राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो गए।[52]
मूल-निवासी बच्चों को हटाये जाने, जिसे मानवाधिकारों और समान अवसर के कमीशन (Human Rights and Equal Opportunity Commission) ने जातिसंहार का एक प्रयास करार दिया,[53] का मूलनिवासियों की जनसंख्या पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा.[54] कीथ विंडशटल का तर्क है कि ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के इतिहास की ऐसी व्याख्या को राजनैतिक या विचारधारात्मक कारणों से अतिरंजित किया या गढ़ा गया है।[55] यह बहस उस बात का एक हिस्सा है, जिसे ऑस्ट्रेलिया के भीतर इतिहास युद्धों (History Wars) के रूप में जाना जाता है।
कई लेखकों ने यह साबित करने का प्रयास किया है कि यूरोपीय लोग सोलहवीं सदी के दौरान ऑस्ट्रेलिया पहुँचे। केनेथ मैक्लिंटियर और अन्य लेखकों का तर्क है कि सन 1520 के दशक में पुर्तगालियों द्वारा गुप्त रूप से ऑस्ट्रेलिया की खोज कर ली गई थी।[56] डायेपी नक्शों (Dieppe Maps) पर "जेव ला ग्रांडे (Jave la Grande) " नामक एक भू-खण्ड की उपस्थिति का उल्लेख अक्सर "पुर्तगाली खोज" के प्रमाण के रूप में किया जाता है। हालांकि, डायेपी नक्शे स्पष्ट रूप से उस काल में वास्तविक व सैद्धांतिक, दोनों ही प्रकार के, भौगोलिक ज्ञान की अपूर्ण अवस्था को भी प्रदर्शित करते हैं।[57] और यह तर्क भी दिया जाता रहा है कि जेव ला ग्रांडे एक काल्पनिक अवधारणा थी, जो कि सोलहवीं सदी की सृष्टिवर्णन की धारणाओं को प्रतिबिम्बित करती है। हालांकि सत्रहवीं सदी के पूर्व यूरोपीय लोगों के आगमन के सिद्धांत ऑस्ट्रेलिया में लोकप्रिय रुचि को आकर्षित करना जारी रखे हुए हैं और अन्य स्थानों पर उन्हें सामान्यतः विवादपूर्ण और मज़बूत प्रमाणों से रहित माना जाता है।
विलेम जैन्सज़ून को सन 1606 में ऑस्ट्रेलिया की पहली अधिकृत यूरोपीय खोज का श्रेय दिया जाता है।[58] उसी वर्ष लुइस वाएज़ डी टॉरेस (Luis Váez de Torres) टॉरेस जलडमरूमध्य से होकर गुज़रे थे और संभव है कि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी तट को देखा हो। [59] जैन्सज़ून की खोजों ने अनेक नाविकों को उस क्षेत्र के नक्शे बनाने पर प्रेरित किया, जिनमें डच खोजकर्ता एबेल तस्मान शामिल थे।
सन 1616 में, हेंडेरिक ब्रॉवर द्वारा केप ऑफ गुड होप से रोअरिंग फोर्टीज़ होकर बाटाविया तक जाने वाले हाल ही में खोजे गए मार्ग पर बढ़ने का प्रयास करते हुए डच समुद्री-कप्तान डर्क हार्टोग बहुत दूर निकल गए। ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर पहुँचकर वे 25 अक्टूबर 1616 को शार्क बे में केप इन्स्क्रीप्शन पर उतरे. उनका नाम पश्चिमी ऑस्ट्रेलियाई तट पर पहुँचने वाले पहले यूरोपीय के रूप में दर्ज किया गया है।
हालांकि एबेल तस्मान को सन 1642 के उनके समुद्री अभियान के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है; जिसमें वे वैन डाइमेन की भूमि (बाद में तस्मानिया) और न्यूज़ीलैंड के द्वीपों पर पहुँचने वाले तथा फिजी द्वीपों को देखने वाले पहले ज्ञात यूरोपीय बने, उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के मानचित्रण में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। सन 1644 में, अपने दूसरे समुद्री अभियान पर तीन जहाजों (लिमेन, ज़ीमीयुव और टेंडर ब्रेक) के साथ, वे पश्चिम की ओर न्यू गिनी के तट पर बढ़े. उन्होंने न्यू गिनी और ऑस्ट्रेलिया के बीच टॉरेस जलडमरूमध्य को खो दिया, लेकिन उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई तट के साथ-साथ अपना समुद्री अभियान जारी रखा और ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी तट के मानचित्रण के साथ इसका समापन किया, जिसमें भूमि और यहाँ के लोगों के बारे में विवरण शामिल थे।[60]
सन 1650 के दशक तक आते-आते डच खोजों के परिणामस्वरूप, अधिकांश ऑस्ट्रेलियाई तट का इतना मानचित्रण हो चुका था, जो कि तत्कालीन नौवहन मानकों के लिए पर्याप्त रूप से विश्वसनीय था और इसे सन 1655 में न्यू एम्सटर्डम स्टैधुइस (Stadhuis) ("टाउन हॉल") के बर्गरज़ाल (Burgerzaal) ("बर्गर्स हॉल") के फर्श पर जड़े विश्व के नक्शे में सब लोगों के देखने के लिए उजागर किया गया। हालांकि उपनिवेशीकरण के लिए विभिन्न प्रस्ताव दिये गए, उल्लेखनीय रूप से सन 1717 से 1744 तक पियरे पुरी (Pierre Purry) द्वारा, लेकिन उनमें से किसी पर भी आधिकारिक रूप से प्रयास नहीं किय गया।[61] यूरोपीय लोगों, भारतीयों, ईस्ट इंडीज़, चीन व जापान के साथ व्यापार कर पाने में ऑस्ट्रेलियाई मूलनिवासियों की रुचि कम थे और वे इसमें सक्षम भी नहीं थे। डच ईस्ट इंडिया कम्पनी का निष्कर्ष यह था कि "वहाँ कुछ भी अच्छा नहीं किया जा सकता". उन्होंने पुरी की योजना इस टिप्पणी के साथ अस्वीकार कर दी कि "इसमें कम्पनी के प्रयोग या लाभ की कोई संभावना नहीं है, इसके बजाय इसमें निश्चित रूप से बहुत अधिक लागत शामिल है".
हालांकि, पश्चिम की ओर डचों के भावी दौरों के अपवाद के अलावा, पहले ब्रिटिश अन्वेषण तक ऑस्ट्रेलिया का एक बड़ा भाग यूरोपीय लोगों से अछूता रहा। सन 1769 में, एचएमएस एंडीवर (HMS Endeavour) के कप्तान के रूप में लेफ्टिनेंट जेम्स कुक ने शुक्र ग्रह के पारगमन का निरीक्षण करने और इसे दर्ज करने के लिए ताहिति (Tahiti) की यात्रा की। इसके अलावा कुक को एडमिरल की ओर से संभावित दक्षिणी महाद्वीप को ढूंढने के गुप्त निर्देश भी मिले थे:[62] "इस बात की कल्पना करने का पर्याप्त कारण मौजूद है कि एक महाद्वीप, या बहुत बड़े विस्तार वाली भूमि, पूर्व नाविकों के मार्ग की दक्षिणी दिशा में जाने पर ढूंढी जा सकती थी।"[63] 19 अप्रैल 1770 को, एंडीवर के नाविक-दल ने ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट को देखा और इसके दस दिनों बाद वे बॉटनी बे पर उतरे. कुक ने पूर्वी किनारे को इसकी उत्तरी सीमा तक मानचित्रित किया और जहाज के प्रकृतिवादी, जोसेफ बैंक्स, के साथ मिलकर बॉटनी बे में एक उपनिवेश की स्थापना की संभावनाओं का समर्थन करने वाली रिपोर्ट प्रस्तुत की।
सन 1772 में, लुइस एलीनो डी सेंट एलोआर्न (Louis Aleno de St Aloüarn) के नेतृत्व में आया एक फ्रेंच अभियान ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर औपचारिक रूप से स्वायत्तता का दावा करने वाला पहला यूरोपीय दल बना, लेकिन इसके बाद उपनिवेश की स्थापना का कोई प्रयास नहीं किया गया।[64]
सन 1786 में स्वीडन के राजा गुस्ताव तृतीय की अपने देश के लिए स्वान रिवर (Swan River) पर एक उपनिवेश बनाने की आकांक्षा जन्म लेते ही समाप्त हो गई।[65] ऐसा सन 1788 तक नहीं हो सका, जब ग्रेट ब्रिटेन की आर्थिक, प्रौद्योगिकीय और राजनैतिक परिस्थितियों ने उस देश के लिए इस बात को संभव व लाभकर बनाया कि वे न्यू साउथ वेल्स में अपना पहला बेड़ा भेजने का बड़े पैमाने पर प्रयास करें। [66]
ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर कुक के आगमन के सत्रह वर्षों बाद ब्रिटिश सरकार ने बॉटनी बे पर एक उपनिवेश स्थापित करने का निर्णय लिया।
सन 1799 में सर जोसेफ बैंक्स, प्रसिद्ध वैज्ञानिक जो लेफ्टिनेंट जेम्स कुक की सन 1770 की समुद्री-यात्रा के दौरान उनके साथ थे, ने एक उपयुक्त स्थल के रूप में बॉटनी बे की अनुशंसा की। [67] बैंक्स ने सन 1783 में अमरीकी राजभक्त जेम्स मैट्रा द्वारा दिये गए सहयोग के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। मैट्रा ने सन 1770 में जेम्स कुक के नेतृत्व वाले एंडीवर में जूनियर ऑफिसर के रूप में बैंक्स के साथ बॉटनी बे की यात्रा की थी। बैंक्स के मार्गदर्शन में, उन्होंने जल्द ही "न्यू साउथ वेल्स में उपनिवेश की स्थापना के लिए एक प्रस्ताव (A Proposal for Establishing a Settlement in New South Wales)" की रचना की, जिसमें अमरीकी राजभक्तों, चीनियों तथा दक्षिणी समुद्री द्वीपवासियों (लेकिन अपराधी नहीं) से मिलकर बने एक उपनिवेश की स्थापना के कारणों का एक पूरी तरह विकसित समुच्चय प्रस्तुत किया गया था।[68]
ये कारण थे: यह देश शक्कर, कपास व तंबाकू के उत्पादन के लिए उपयुक्त था; न्यूज़ीलैंड की लकड़ी और भांग या पटसन मूल्यवान वस्तुएं साबित हो सकती हैं; यह चीन, कोरिया, जापान, अमरीका के उत्तर-पश्चिमी तट और मोलुकास (Moluccas) के साथ व्यापार का एक केन्द्र बन सकता है; और यह विस्थापित अमरीकी राजभक्तों के लिए एक उपयुक्त मुआवजा साबित हो सकता है।[69] मार्च 1784 में सेक्रेटरी ऑफ स्टेट लॉर्ड सिडनी के साथ मुलाकात के बाद, मेट्रा ने अपने प्रस्ताव को संशोधित करके उपनिवेश के सदस्यों के रूप में अपराधियों को भी शामिल किया, जिसके पीछे यह विचार था कि इससे "जनता को अर्थव्यवस्था का तथा व्यक्ति को मानवीयता का" लाभ मिलेगा.[70]
मेट्रा की योजना को "न्यू साउथ वेल्स में उपनिवेश के लिए मूल रूप-रेखा प्रदान करने वाली योजना" के रूप में देखा जा सकता है".[71] दिसंबर 1784 का एक केबिनेट ज्ञापन दर्शाता है कि न्यू साउथ वेल्स में एक उपनिवेश की स्थापना पर विचार करते समय सरकार ने मेट्रा की योजना पर ध्यान दिया था।[72] सरकार ने उपनिवेशीकरण की इस योजना में नॉर्फोक द्वीप (Norfolk Island), लकड़ी और पटसन के इसके आकर्षणों के कारण, पर उपनिवेश बसाने की परियोजना भी शामिल की थी, जिसका प्रस्ताव बैंक्स के रॉयल सोसाइटी के सहयोगियों, सर जॉन कॉल व सर जॉर्ज यंग द्वारा दिया गया था।[73]
उसी समय, ब्रिटेन के मानवतावादियों व सुधारकों ने ब्रिटिश जेलों और पुराने जहाजों की घटिया अवस्था के खिलाफ अभियान चला रखा था। सन 1777 में जेलों के सुधारक जॉन हॉवर्ड ने "द स्टेट ऑफ प्रिज़न्स इन इंग्लैंड एण्ड वेल्स (The State of Prisons in England and Wales) " लिखी, जिसने जेलों की वास्तविकता का भयावह चित्र प्रस्तुत किया और भीतर छिपी ऐसी कई बातें …सभ्य समाज के सामने उजागर कीं."[74] दंड निर्वासन पहले से ही अंग्रेज़ी दंड संहिता के मुख्य बिंदु के रूप में स्थापित हो चुका था और स्वतंत्रता के अमरीकी युद्ध (American War of Independence) तक प्रतिवर्ष लगभग एक हज़ार अपराधी मैरीलैंड और वर्जिनिया भेज दिये जाते थे।[75] यह कानून के उल्लंघन को रोकने के लिए एक शक्तिशाली निवारक सिद्ध हुआ। उस समय, "यूरोपीय लोग ग्लोब के भूगोल के बारे में बहुत कम जानते थे" और "इंग्लैंड के अपराधियों के लिए बॉटनी बे में निर्वासन एक डरावनी संभावना थी।" ऑस्ट्रेलिया "कोई दूसरा ग्रह भी हो सकता था। "[76]
1960 के दशक के प्रारम्भ में, इतिहासकार जेफरी ब्लेनी ने इस पारंपरिक दृष्टिकोण पर प्रश्न उठाया कि न्यू साउथ वेल्स की स्थापना पूरी तरह केवल अपराधियों को भेजने के स्थान के रूप में ही की गई थी। उनकी पुस्तक द टाइरनी ऑफ डिस्टन्स (The Tyranny of Distance)[77] में यह सुझाव दिया गया है कि संभवतः अमरीकी उपनिवेशों में हार के बाद पटसन और लकड़ी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए भी ब्रिटिश सरकार को प्रेरणा मिली हो और नॉर्फोक आइलैंड ब्रिटिश निर्णय की कुंजी था। अनेक इतिहासकारों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी और इस विवाद के फलस्वरूप उपनिवेशीकरण के कारणों से संबंधित अतिरिक्त स्रोत बहुत बड़ी मात्रा में सामने आए। [78]
न्यू साउथ वेल्स में उपनिवेश स्थापित करने का निर्णय तब लिया गया था, जब ऐसा प्रतीत होने लगा कि नीदरलैंड्स में गृह-युद्ध का विद्रोह एक ऐसे युद्ध में बदल सकता है, जिसमें इंग्लैंड को तीन नौसैनिक शक्तियों, फ्रांस, हॉलैंड और स्पेन, के गठबंधन का पुनः सामना करने पड़ेगा, जिनसे सन 1783 में उसे हार का मुंह देखना पड़ा था। इन परिस्थितियों में, न्यू साउथ वेल्स में एक उपनिवेश, जिसका वर्णन जेम्स मेट्रा के प्रस्ताव में किया गया था, से मिलने वाले रणनीतिक लाभ आकर्षक थे।[79] मेट्रा ने लिखा था कि ऐसा उपनिवेश दक्षिण अमरीका और फिलीपीन्स के स्पेनी उपनिवेशों, तथा ईस्ट इंडीज़ के डच क्षेत्रों पर ब्रिटिश आक्रमणों के लिए सहायक हो सकता है।[80] सन 1790 में, नूटका संकट (Nootka Crisis) के दौरान, अमरीकी महाद्वीप तथा फिलीपीन्स पर स्पेन के अधिकार के विरुद्ध नौसैनिक अभियानों की योजना बनाई गई, जिसमें न्यू साउथ वेल्स को "विश्राम, संपर्क और शरण" के एक अड्डे के रूप में कार्य करने की भूमिका सौंपी गई। अगले डेढ़ दशक के दौरान उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भिक काल में, जब ब्रिटेन और स्पेन के बीच युद्ध का खतरा मंडरा रहा था या युद्ध छिड़ गया था, तब इन योजनाओं को पुनर्जीवित किया गया और प्रत्येक मामले में विरोध की संक्षिप्त लंबाई की अवधिoय ने उन्हें अमल में लाने से रोका.[81]
जर्मन वैज्ञानिक तथा साहित्यकार जॉर्ज फ्रॉस्टर, जिन्होंने रिज़ॉल्यूशन (1772-1775) के समुद्री अभियान के दौरान कैप्टन जेम्स कुक के नेतृत्व में यात्रा की थी, ने सन 1786 में इंग्लिश उपनिवेश की भावी संभावनाओं के बारे में लिखा: "न्यू हॉलैंड, विशाल विस्तार वाला एक द्वीप या ऐसा कहा जा सकता है कि तीसरा महाद्वीप, नये सभ्य समाज की भावी जन्मभूमि है और भले ही इसकी शुरुआत चाहे कितनी ही निकृष्ट प्रतीत होती हो, लेकिन इसके बावजूद यह थोड़े ही समय में बहुत महत्वपूर्ण बन जाने का वादा करती है।[82]
जनवरी 1788 में कैप्टन आर्थर फिलिप के नेतृत्व में 11 जहाजों के पहले बेड़े के आगमन के साथ ही न्यू साउथ वेल्स के ब्रिटिश उपनिवेश की स्थापना हुई. इसमें एक हज़ार से अधिक उपनिवेशवादी थे, जिनमें 778 अपराधी (192 महिलाएँ और 586 पुरुष) शामिल थे।[83] बॉटनी बे पर आगमन के कुछ दिनों बाद यह बेड़ा अधिक उपयुक्त स्थान पोर्ट जैक्सन की ओर बढ़ गया, जहाँ 26 जनवरी 1788 को सिडनी कोव में एक बस्ती की स्थापना की गई।[84] बाद में यह तिथि ऑस्ट्रेलिया का राष्ट्रीय दिवस, ऑस्ट्रेलिया डे, बन गई। 7 फ़रवरी 1788 को गवर्नर फिलिप द्वारा सिडनी में इस उपनिवेश की आधिकारिक घोषणा की गई।
दावा किये गए क्षेत्र में भूमध्य रेखा के 135° पूर्व से लेकर ऑस्ट्रेलिया का समस्त पूर्वी भाग तथा प्रशांत महासागर में केप यॉर्क एवं वैन डायमेन की भूमि के दक्षिणी छोर (तस्मानिया) के अक्षांशों के बीच स्थित सभी द्वीप शामिल थे। एक विस्तृत द्वावा, जिसने उस समय की उत्तेजना को प्रकट किया: "साम्राज्य का विस्तार रचना की भव्यता की मांग करता है", लेखक वॉटकिन टेन्च, जो कि फर्स्ट फ्लीट के एक अधिकारी थे, ने अपनी पहली रचना अ नरेटिव ऑफ द एक्सपीडिशन टू बॉटनी बे (A Narrative of the Expedition to Botany Bay) में लिखा.[85] "सचमुच एक आश्चर्यजनक विस्तार!" टेन्च की पुस्तक के डच अनुवादक ने टिप्पणी की: "एक अकेला प्रान्त, जो बिना किसी संदेह के, पृथ्वी की पूरी सतह पर सबसे बड़ा है। उनकी परिभाषा के अनुसार, पूर्व से पश्चिम के इसके सबसे बड़े विस्तार में यह वस्तुतः ग्लोब के पूरे परिमाप के एक चौथाई को घेर लेता है".[86]
इस कॉलोनी में वर्तमान न्यूज़ीलैंड के द्वीप भी शामिल थे, जिसका प्रशासन न्यू साउथ वेल्स के एक भाग के रूप में किया जाता था। सन 1817 में, ब्रिटिश सरकार ने दक्षिणी प्रशांत पर व्यापक क्षेत्राधिकार का दावा वापस ले लिया। व्यावहारिक रूप से, सरकार का आज्ञापत्र दक्षिणी प्रशांत के द्वीपों में क्रियान्वित न होता हुआ देखा जाता रहा है।[87] चर्च मिशनरी सोसाइटी साउथ सी आइलैंड्स के मूल निवासियों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों और अराजकता से निपटने में न्यू साउथ वेल्स सरकार की अप्रभावकारिता को लेकर चिंतित थी। इसके परिणामस्वरूप, 27 जून 1817 को संसद ने महारानी के उपनिवेशों में न आने वाले स्थानों में की गई हत्याओं व नरसंहार के लिए अधिक प्रभावपूर्ण सजा के लिए एक कानून (Act for the more effectual Punishment of Murders and Manslaughters committed in Places not within His Majesty's Dominions) पारित किया, जिसके अनुसार ताहिती, न्यूज़ीलैंड और दक्षिणी प्रशांत के अन्य द्वीप महाराज के उपनिवेशों में शामिल नहीं थे।[88]
सन 1788 में न्यू साउथ वेल्स में उपनिवेश की स्थापना के बाद ऑस्ट्रेलिया को सिडनी स्थित औपनिवेशिक सरकार के प्रशासन के अधीन न्यू साउथ वेल्स नामक एक पूर्वी अर्ध-भाग तथा न्यू हॉलैंड नामक एक पश्चिमी अर्ध-भाग में विभाजित किया गया।
दक्षिणी प्रशांत में स्थित नॉर्फोक आइलैंड की सुंदरता, सुहावने मौसम और उपजाऊ मिट्टी के रूमानी वर्णनों के परिणामस्वरूप सन 1788 में ब्रिटिश सरकार ने वहाँ न्यू साउथ वेल्स के उपनिवेश की एक सहायक बस्ती की स्थापना की। ऐसी आशा की गई थी कि नॉर्फोक आइलैंड चीड़ के जंगली रूप से उग आने वाले विशाल वृक्ष तथा पटसन के पौधे एक स्थानीय उद्योग के लिए आधार बनेंगे, जो विशेषतः पटसन के मामले में, रूस को एक ऐसी सामग्री की आपूर्ति का एक वैकल्पिक स्रोत प्रदान करेगा, जो कि ब्रिटिश नौसेना के लिए जहाजों के रस्से और पlाअ बनाने के लिए आवश्यक थी। हालांकि, इस द्वीप पर कोई भी सुरक्षित बंदरगाह मौजूद नहीं था, जिसके फलस्वरूप सन 1807 में इस उपनिवेश को समाप्त कर दिया गया और इसके नागरिकों को तस्मानिया में बसाया गया।[89] सन 1824 में इस द्वीप को एक दण्डात्मक उपनिवेश के रूप में पुनः बसाया गया।
सन 1798 में, जॉर्ज बास और मैथ्यू फ्लिंडर्स ने वैन डायमेन की भूमि की जलीय-परिक्रमा पूरा किया, जिससे यह साबित हो गया कि वह एक द्वीप था। सन 1802 में, फ्लिंडर्स ने पहली बार सफलतापूर्वक ऑस्ट्रेलिया की जलीय-परिक्रमा पूर्ण की।
सलिवन बे पर एक उपनिवेश, जिसे अब विक्टोरिया के नाम से जाना जाता है, को बसाने के एक विफल प्रयास के बाद वैन डायमेन की भूमि, जिसे अब तस्मानिया के नाम से जाना जाता है, को सन 1803 में बसाया गया, इसके बाद विभिन्न समयों पर पूरे महाद्वीप में अन्य ब्रिटिश उपनिवेश स्थापित किये गए, जिनमें से अनेक असफल भी रहे। सन 1823 में ईस्ट इंडिया ट्रेड कमिटी ने डचों को पहले ही रोक देने के लिए उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के तट पर एक उपनिवेश स्थापित करने की अनुशंसा की और कैप्टन जे.जे.जी.ब्रेमर, आरएन (RN), को बाथर्स्ट आइलैंड और कोबोर्ग पेनिन्सुला के बीच एक उपनिवेश की स्थापना के लिए नियुक्त किया गया। सन 1824 में ब्रेमर ने उपनिवेश के स्थल के रूप में मेल्विल आइलैंड स्थित फोर्ट डन्डास को चुना और चूंकि यह सन 1788 में घोषित सीमा से पर्याप्त रूप से पश्चिम में स्थित था, अतः अक्षांश 129˚ पूर्व तक समस्त पश्चिमी क्षेत्र पर ब्रिटिशों के अधिकार की घोषणा की गई।[90]
नई सीमा में मेल्विल और बाथर्स्ट आइलैण्ड तथा निकटवर्ती मुख्य-भूमि शामिल थी। सन 1826 में, ब्रिटिशों का दावा पूरे ऑस्ट्रेलियाई महाद्वीप तक फैल गया, जब मेजर एडमंड लॉकियर ने किंग जॉर्ज साउंड (बाद के एल्बनी नगर का आधार) में एक उपनिवेश की स्थापना की, लेकिन वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया की पूर्वी सीमा अक्षांश 129˚ पूर्व पर अपरिवर्तित बनी रही। सन 1824 में, ब्रिस्बेन नदी के मुहाने पर एक दण्डात्मक उपनिवेश (बाद के क्वीन्सलैंड के उपनिवेश का आधार) की स्थापना की गई। सन 1829 में, स्वान रिवर कॉलोनी और इसकी राजधानी पर्थ को पश्चिमी तट पर बसाया गया और उस पर किंग जॉर्ज साउंड के नियंत्रण को मान्यता दी गई। प्रारम्भ में एक स्वतंत्र उपनिवेश रहे पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया ने बाद में मजदूरों की भारी कमी के कारण ब्रिटिश अपराधियों को स्वीकार कर लिया।
सन 1788 और 1868 के बीच, लगभग 161,700 अपराधियों (जिनमें से 25,000 महिलाएँ थीं) को निर्वासित करके न्यू साउथ वेल्स, वैन डायमेन की भूमि और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के ऑस्ट्रेलियाई उपनिवेशों में भेज दिया गया।[91] इतिहासकार लॉयड रॉब्सन का अनुमान है कि शायद इनमें से दो तिहाई कामकाजी वर्ग के नगरों, विशेषतः मिडलैंड्स और इंग्लैंड के उत्तरी भाग, से थे। इनमें से अधिकांश आदतन अपराधी थे।[92] निर्वासन ने चाहे सुधार के अपने लक्ष्य को प्राप्त किया हो या न किया हो, लेकिन इनमें से कुछ अपराधी ऑस्ट्रेलिया में जेल प्रणाली को छोड़ पाने में सक्षम हो सके; सन 1801 के बाद वे अच्छे व्यवहार के लिए "रिहाई का टिकट" हासिल कर सकते थे और मजदूरी के बदले उन्हें स्वतंत्र लोगों को उनका काम करने के लिए सौंपा जा सकता था। उनमें से कुछ को उनकी सज़ा के अंत में क्षमादान दे दिया गया और वे मुक्त हो चुके व्यक्तियों (Emancipists) के रूप में जीवन बिता पाने में सफल रहे। महिला अपराधियों के पास कम अवसर थे।
कु्छ अपराधियों, विशिष्ट रूप से आइरिश अपराधियों, को राजनैतिक अपराधों या सामाजिक विद्रोहों के लिए ऑस्ट्रेलिया में निर्वासित किया गया था, अतः इसके परिणामस्वरूप अधिकारीगण आइरिश लोगों के प्रति आशंकित थे और उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में कैथलिकवाद की पद्धति को प्रतिबंधित कर दिया। सन 1804 में आइरिशों के नेतृत्व में हुए कैसल हिल विद्रोह ने इस संशय और दमन को और अधिक बढ़ाने का कार्य किया।[93] इस दौरान चर्च ऑफ इंग्लैंड के पादरी-वर्ग ने गवर्नरों के साथ निकटता से कार्य किया और गवर्नर आर्थर फिलिप ने फर्स्ट फ्लीट के पादरी रिचर्ड जॉन्सन को उपनिवेश में "सार्वजनिक नैतिकता" में सुधार लाने का जिम्मा सौंपा और साथ ही वे स्वास्थ्य व शिक्षा में भी बहुत अधिक सहभागी थे।[94] रेवरेंड सैम्युएल मार्सडेन (1765-1838) के पास मजिस्ट्रेट संबंधी कर्तव्य थे और इसलिए अपराधियों द्वारा उनकी तुलना अधिकारियों से की गई, उनकी सजाओं की गंभीरता के कारण उन्हें 'कोड़े मारने वाले पादरी (floging parson)' के नाम से जाना जाने लगा। [95]
फर्स्ट फ्लीट के साथ आए नौसैनिकों को कार्यमुक्त करने के लिए सन 1789 में इंग्लैंड में एक स्थायी रेजिमेंट के रूप में न्यू साउथ वेल्स कोर का गठन किया गया। जल्दी ही इस कोर के अधिकारी उपनिवेश में रम के भ्रष्ट व आकर्षक व्यापार में शामिल हो गए। सन 1808 के रम विद्रोह में, कोर, जो कि ऊन के नव-स्थापित व्यापारी जॉन मैकार्थर के साथ मिलकर कार्य कर रही थी, ने ऑस्ट्रेलियाई इतिहास में सरकार पर एकमात्र सफल सशस्र नियंत्रण प्रदर्शित किया, गवर्नर विलियम ब्लाय को अपदस्थ कर दिया गया और सन 1810 में ब्रिटेन से गवर्नर लैक्लान मैक्वेरी के आगमन से पूर्व तक उपनिवेश में चले सैन्य-शासन की शुरुआत हुई। [96]
सन 1810 से 1821 तक मैक्वेरी ने न्यू साउथ वेल्स के अंतिम निरंकुश गवर्नर के रूप में कार्य किया और न्यू साउथ वेल्स, जो कि एक दण्डात्मक उपनिवेश से एक उभरते हुए मुक्त समाज में रूपांतरित हो रहा था, के सामाजिक व आर्थिक विकास में उनकी एक मुख्य भूमिका रही। उन्होंने सार्वजनिक सुविधाएं, एक बैंक, चर्च और धर्मार्थ संस्थाएं स्थापित कीं और ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के साथ अच्छे संबंध बनाने का प्रयास किया। सन 1813 में, उन्होंने ब्लाक्सलैंड, वेंटवर्थ और लॉसन को ब्लू माउंटेन के उस पार भेजा, जहाँ उन्होंने आंतरिक भाग के विशाल मैदानों की खोज की। हालांकि, मुक्त हो चुके व्यक्तियों (Emancipists) के साथ किया जाने वाला व्यवहार मैक्वेरी की नीति के केन्द्र में था, जिनके बारे में उन्होंने आज्ञा दी कि उनके साथ उपनिवेश के स्वतंत्र-व्यक्तियों की तरह ही व्यवहार किया जाना चाहिये। विरोध के खिलाफ जाकर, उन्होंने मुक्त हो चुके व्यक्तियों को मुख्य शासकीय पदों पर नियुक्त किया, जिनमें औपनिवेशिक वास्तुकार के रूप में फ्रैंसिस ग्रीनवे तथा मजिस्ट्रेट के रूप में विलियम रेडफर्न शामिल थे। लंडन ने उनके सार्वजनिक कार्यों को बहुत अधिक खर्चीला माना और मुक्त हो चुके व्यक्तियों (Emancipists) के प्रति उनके व्यवहार के कारण समाज में नाराज़गी फैल गई।[97] इसके बावजूद, समय के साथ-साथ ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों के बीच समतावाद को केन्द्रीय मूल्य के रूप में स्वीकार किया गया।
न्यू साउथ वेल्स के गवर्नरों में से प्रथम पांच ने मुक्त उपनिवेशवादियों को प्रोत्साहित करने की अविलंब आवश्यकता महसूस की, लेकिन ब्रिटिश सरकार का मत इससे बहुत अधिक भिन्न था। सन 1790 में ही, गवर्नर आर्थर फिलिप ने लिखा था; "महामहिम आप संभवतः मेरे…पत्रों के द्वारा यह देख सकेंगे कि हमने भूमि की जुताई कर पाने में कितनी कम प्रगति कर सके हैं… वर्तमन में यह उपनिवेश केवल एक व्यक्ति को वहन कर सकता है, जिसे मैं भूमि को जोतने के लिए नियुक्त कर सकूं…"[98] सन 1820 के दशक से मुक्त उपनिवेशवादियों का बड़ी संख्या में आगमन प्रारम्भ हुआ और मुक्त उपनिवेशवादियों को प्रोत्साहित करने के लिए शासकीय योजनाएं प्रस्तुत की गईं। परोपकारी व्यक्तियों, कैरोलाइन काइशोम और जॉन डानमोर लैंग, ने अपनी स्वयं की आप्रवासन योजनाएं विकसित कीं. गवर्नरों द्वारा शाही भूमि का आवंटन किया गया और आप्रवासियों पर उपनिवेश की योजनाओं, जैसे एडवर्ड गिबन वेकफील्ड की योजनाओं, का कुछ हद तक उत्साहपूर्ण प्रभाव पड़ा, जिसके कारण संयुक्त राज्य अमरीका या कनाडा के विपरीत वे ऑस्ट्रेलिया की लंबी यात्राएं करने लगे। [99]
सन 1820 के दशक से अनाधिकृत निवासियों (Squatters) की बढ़ती हुई संख्या[100] ने यूरोपीय उपनिवेशों की सीमाओं के बाहर स्थित भूमि पर कब्ज़ा कर लिया। अपेक्षाकृत कम खर्च के साथ लंबे स्टेशनों पर भेड़ों को चराने वाले ये अनधिकृत निवासी काफी लाभ कमा लेते थे। सन 1834 तक, ऑस्ट्रेलिया से लगभग 2 मिलियन किलोग्राम ऊन का ब्रिटेन को निर्यात किया गया।[101] सन 1850 तक आते-आते, केवल 2,000 अनधिकृत निवासियों ने 30 मिलियन हेक्टेयर भूमि हासिल कर ली थी और अनेक उपनिवेशों में उन्होंने एक शक्तिशाली और "सम्मानीय" रुचि समूह स्थापित कर लिया था।[102]
सन 1835 में, ब्रिटिश कॉलोनियल ऑफिस ने गवर्नर बॉर्क की घोषणा (Proclamation of Governor Bourke), जिसके आधार पर ब्रिटिश उपनिवेशों की स्थापना की गई थी, जारी की, जिसके द्वारा टेरा नलियस (terra nullius) के कानूनी सिद्धांत को लागू किया गया, जिसके बाद यह धारणा पुनः प्रभावी हुई कि ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा अपने अधिकार में लिए जाने से पूर्व तक वह भूमि किसी की भी नहीं थी और जॉन बैटमैन के साथ की गई संधि सहित, ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के साथ संधियों की किसी भी संभावना को ख़ारिज कर दिया गया। इसके प्रकाशन का अर्थ यह था कि उसके बाद से, सरकार की अनुमति के बिना भूमि पर कब्ज़ा किये हुए पाये जाने वाले सभी लोगों को अवैध प्रवेशकर्ता माना जाएगा.[103]
न्यू साउथ वेल्स के भागों से पृथक बस्तियाँ और बाद में उपनिवेश स्थापित किये गए: सन 1836 में साउथ ऑस्ट्रेलिया, सन 1840 में न्यूज़ीलैंड, सन 1834 में पोर्ट फिलिप डिस्ट्रिक्ट, जो बाद में सन 1851 में विक्टोरिया उपनिवेश बना और सन 1859 में क्वीन्सलैंड. सन 1863 में साउथ ऑस्ट्रेलिया के एक भाग के रूप में नॉर्दर्न टेरिटरी की स्थापना की गई। सन 1840 से 1868 के बीच अपराधियों के ऑस्ट्रेलिया में निर्वासन को बंद कर दिया गया।
यूरोपीय उपनिवेशीकरण के पहले 100 वर्षों में कृषि और अन्य कार्यों के लिए भूमि को बड़े पैमाने पर साफ किया गया। स्वाभाविक प्रभावों के अलावा भूमि की इस प्रारम्भिक सफाई और सख्त-खुरों वाले जानवरों को लाये जाने का विशिष्ट क्षेत्रों की पारिस्थितिकी पर प्रभाव पड़ा, इसने ऑस्ट्रेलियाई मूल-निवासियों को बहुत अधिक प्रभावित किया क्योंकि वे अपने भोजन, निवास और अन्य आवश्यकताओं के लिए जिन संसाधनों पर आश्रित रहते थे, उनमें कमी आ गई। इससे वे क्रमशः अधिक छोटे क्षेत्रों की ओर जाने पर मजबूर कर दिये गए और उनकी संख्या भी कम हो गई क्योंकि नई बीमारियों और संसाधनों की कमी के कारण बड़ी संख्या में उनकी मृत्यु हो गई। उपनिवेशवादियों के विरुद्ध मूल-निवासियों का विरोध व्यापक था और सन 1788 से सन 1920 के दशक तक चली लंबी लड़ाई के परिणामस्वरूप कम से कम 20,000 मूल-निवासियों और 2,000 से 2500 के बीच यूरोपीय लोगों की मृत्यु हो गई।[104] उन्नीसवीं सदी के मध्य से अंत के दौरान, अनेक दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के अनेक ऑस्ट्रेलियाई मूल-निवासियों को, अक्सर बलपूर्वक, आरक्षित क्षेत्रों व मिशनों की ओर स्थलांतरित कर दिया गया। इनमें से अनेक संस्थाओं के स्वरूप ने बीमारियों को तेज़ी से फैलाने में सहायता की और इनमें से अनेक को इसलिए बंद कर दिया गया क्योंकि उनमें रहनेवालों की संख्या घट गई थी।
पारंपरिक रूप से एडवर्ड हैमण्ड हार्ग्रेव्ज़ को फरवरी 1851 में बाथर्स्ट, न्यू साउथ वेल्स के पास ऑस्ट्रेलिया में सोने की खोज करने का श्रेय दिया जाता है। इसके बावजूद ऑस्ट्रेलिया में सोने की मौजूदगी के लक्षण सर्वेक्षणकर्ता जेम्स मैक्ब्रायन द्वारा 1823 में ही खोजे जा चुके थे। चूंकि अंग्रेज़ी कानून के मुताबिक समस्त खनिज राजा की संपत्ति थे, अतः प्रारम्भ में "एक ग्राम्य अर्थव्यवस्था के अंतर्गत विकसित हो रहे एक उपनिवेश में वास्तव में समृद्ध सोने की खदानों की खोज के लिए बहुत कम प्रेरणा मौजूद थी।"[105] रिचर्ड ब्रूम का यह भी तर्क है कि कैलिफोर्निया में सोने की प्राप्ति से हुए अप्रत्याशित लाभ (California Gold Rush) ने प्रारम्भ में ऑस्ट्रेलियाई खोजों को पूरी तरह अपने प्रभाव में ले लिया, जब तक कि "मई 1852 में माउंड एलेक्ज़ेंडर का समाचार इंग्लैंड पहुँचा, जिसके कुछ ही समय बाद आठ टन सोना लेकर छः जहाज आए."[106]
तेज़ी से मिलते सोने के कारण अनेक ग्रेट ब्रिटेन, आयरलैंड, महाद्वीपीय यूरोप, उत्तरी अमरीका और चीन के अनेक आप्रवासी ऑस्ट्रेलिया आए। विक्टोरिया के उपनिवेश की जनसंख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई और यह 1850 में 76,000 से बढ़कर 1859 में 530,000 तक जा पहुँची.[107] लगभग तुरंत ही खदान-कर्मियों, विशिष्ट रूप से भीड़-भरी विक्टोरियाई खदानों में कार्यरत, के मन में असंतोष उभर आया। औपनिवेशिक सरकार का खुदाई का प्रशासन और सोने के लाइसेंस की प्रणाली इसके कारण थे। सुधार के लिए किये गए कई विरोधों और याचिकाओं के बाद, 1854 के अंत में बैलाराट में हिंसा भड़क उठी.
रविवार 3 दिसम्बर 1854 की सुबह, ब्रिटिश सेना और पुलिस ने यूरेका लीड पर निर्मित एक बंदी शिविर पर आक्रमण कर दिया और कुछ असंतुष्ट खदान-कर्मियों को बंधक बना लिया। कुछ ही समय तक चली इस लड़ाई में, कम से कम 30 श्रमिक मारे गए और घायलों की संख्या ज्ञात नहीं हो सकी। [108] लोकतांत्रिक अधिस्वर के साथ हो रहे विरोध के प्रति अपने भय के कारण अपना विवेक खो चुके स्थानीय कमिश्नर रॉबर्ट रीड ने महसूस किया था कि “यह अत्यंत आवश्यक था कि खदान-श्रमिकों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाए”.[109]
लेकिन इसके कुछ ही महीनों बाद, एक शाही कमिशन ने विक्टोरिया की सोने की खदानों के प्रशासन में आमूलचूल परिवर्तन किये। इसकी अनुशंसाओं में लाइसेंस व्यवस्था को हटाना, पुलिस बल में सुधार और खनन का अधिकार प्राप्त खदान-कर्मियों के लिए मतदान का अधिकार शामिल थे।[110] कुछ लोग गंभीरतापूर्वक इस बात पर विचार करने लगे थे कि बैलाराट के खदान-कर्मियों का प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रयोग किये जाने वाले यूरेका के ध्वज को ऑस्ट्रेलियाई ध्वज के एक विकल्प के रूप में अपनाया जाना चाहिये क्योंकि यह लोकतांत्रिक सुधारों का प्रतीक बन चुका था।
सन 1890 के दशक में, प्रवासी लेखक मार्क ट्वेन ने यूरेका की लड़ाई का वर्णन अपने इस प्रसिद्ध विवरण में इस प्रकार किया:
“ The finest thing in Australasian history. It was a revolution-small in size, but great politically; it was a strike for liberty, a struggle for principle, a stand against injustice and oppression...it is another instance of a victory won by a lost battle.[111] ”
बाद में, सोने की तीव्र प्राप्ति सन 1870 के दशक में पाल्मर रिवर, क्वीन्सलैंड में तथा 1890 के दशक में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में कूलगार्डी और कैलगूर्ली में हुई। सन 1950 के दशक और सन 1960 के दशक के प्रारम्भ में न्यू साउथ वेल्स में विक्टोरिया और लैम्बिंग फ्लैट में बकलैंड रिवर पर चीनी और यूरोपीय खदान-कर्मियों को मुठभेड़ें हुईं. इतिहासकार जेफरी सर्ल के अनुसार कछारी (सतही) सोना समाप्त हो जाने पर चीनियों के प्रयासों को मिली सफलता के कारण यूरोपीय ईर्ष्या से संचालित, इन मुठभेड़ों ने उभरते हुए ऑस्ट्रेलियाई दृष्टिकोणों को एक श्वेत ऑस्ट्रेलिया की नीति के समर्थन में स्थापित कर दिया। [112]
सन 1855 में, न्यू साउथ वेल्स ज़िम्मेदारीपूर्ण सरकार प्राप्त करने वाला पहला उपनिवेश बना और ब्रिटिश साम्राज्य का भाग बना रहकर भी यह अपने अधिकांश कार्यों का प्रबंध स्वयं करने लगा। सन 1856 में विक्टोरिया, तस्मानिया और साउथ ऑस्ट्रेलिया; सन 1859 में अपनी स्थापना के साथ ही क्वीन्सलैंड; और सन 1890 में वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया भी ऐसा ही करने लगे। कुछ मामलों का नियंत्रण लंदन के औपनिवेशिक कार्यालय के हाथों में ही बना रहा, जिनमें विदेशों से जुड़े मामले, रक्षा व अंतर्राष्ट्रीय नौवहन उल्लेखनीय हैं।
स्वर्ण-युग के परिणामस्वरूप उन्नति का एक लंबा काल आया, जिसे कभी-कभी “द लॉन्ग बूम” कहा जाता है।[113] रेलमार्ग, नदी और समुद्र के रास्ते होने वाले दक्ष परिवहन में वृद्धि के अलावा ब्रिटिश निवेश तथा ग्राम्य व खनिज उद्योगों ने भी इसके विकास में सहायता प्रदान की। सन् 1891 तक, ऑस्ट्रेलिया में भेड़ों की संख्या 100 मिलियन होने का अनुमान लगाया गया। सन् 1850 के दशक से ही सोने के उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई थी, लेकिन फिर भी उस वर्ष इसका मूल्य £5.2 मिलियन था।[114] अंततः आर्थिक विस्तार अपनी समाप्ति पर पहुँचा और 1890 का दशक आर्थिक मंदी लेकर आया, जिसका सबसे ज्यादा असर विक्टोरिया और इसकी राजधानी मेलबर्न में महसूस किया गया।
हालांकि उन्नीसवीं सदी के अंतिम भाग में, दक्षिण पूर्वी ऑस्ट्र्रेलिया के शहरों में अत्यधिक विकास देखा गया। सन 1900 में ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या (जिसमें ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी शामिल नहीं थे क्योंकि उन्हें जनगणना से अलग रखा गया था) 3.7 मिलियन थी, जिनमें से लगभग 1 मिलियन लोग मेलबर्न व सिडनी में रहा करते थे।[115] उस सदी की समाप्ति तक आते-आते कुल जनसंख्या के दो तिहाई से अधिक लोग शहरों में निवास करने लगे, जिससे ऑस्ट्रेलिया “पश्चिमी विश्व के सर्वाधिक शहरीकृत समाजों में से एक” बन गया।[116]
पारंपरिक ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी समाज का संचालन वरिष्ठ-जनों की समितियों और एक व्यापारिक निर्णय प्रक्रिया के द्वारा किया जाता था, लेकिन सन 1788 के बाद स्थापित यूरोपीय-शैली की प्रारम्भिक सरकारें स्वायत्त हुआ करतीं थीं और उनका संचालन नियुक्त किये गए गवर्नरों द्वारा किया जाता था – हालांकि अधिप्राप्ति के सिद्धांत (doctrine of reception) के आधार पर ऑस्ट्रेलियाई उपनिवेशों में अंग्रेज़ी विधि प्रत्यारोपित की गई थी और इस प्रकार उपनिवेशवादी मैग्ना कार्टा तथा बिल ऑफ राइट्स 1689 द्वारा स्थापित अधिकारों व प्रक्रियाओं की अवधारणा को ब्रिटेन से लाये। उपनिवेशों की स्थापना के शीघ्र बाद प्रतिनिधिक सरकार के गठन के लिए प्रदर्शन शुरु हो गए।[117]
ऑस्ट्रेलिया की सबसे पुरानी विधायी समिति, न्यू साउथ वेल्स लेजिस्लेटिव काउंसिल, का गठन सन 1825 में न्यू साउथ वेल्स के गवर्नर को परामर्श देने के लिए नियुक्त एक समिति के रूप में हुआ। न्यू साउथ वेल्स के लिए एक लोकतांत्रिक सरकार की मांग करने के लिए सन 1835 में विलियम वेंटवर्थ ने ऑस्ट्रेलियन पैट्रियोटिक असोसियेशन (ऑस्ट्रेलिया का पहला राजनैतिक दल) की स्थापना की। सुधारवादी एटर्नी जनरल, जॉन प्लंकेट, ने उपनिवेश के प्रशासन पर सूचना के सिद्धांतों को लागू करने का प्रयास किया, जिसके अंतर्गत, ज्यूरी के अधिकार पहले मुक्त हो चुके व्यक्तियों (emancipists) तक विस्तारित करके और उसके बाद अपराधियों, आवंटित सेवकों और ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों तक विधिक सुरक्षा का विस्तार करके, कानून के समक्ष बराबरी के सिद्धांत का पालन किया गया। प्लंकेट ने ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के साथ मेयॉल क्रीक नरसंहार के उपनिवेशवादी अपराधियों पर दो बार हत्या का आरोप लगाया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अपराधी करार दिया गया और प्लंकेट के सन 1836 के ऐतिहासिक चर्च ऐक्ट ने चर्च ऑफ इंग्लैंड को समाप्त कर दिया तथा एंग्लिकन, कैथलिक, प्रेस्बीस्टेरियन और बाद में मेथोडिस्ट लोगों के बीच वैधानिक समानता स्थापित की। [118]
सन 1840 में, एडीलेड सिटी काउंसिल तथा सिडनी सिटी काउंसिल की स्थापना हुई। जिन पुरुषों के पास 1000 पाउंड कीमत की संपत्ति हो, वे चुनाव लड़ पाने के योग्य थे और धनवान भू-स्वामियों को प्रत्येक चुनाव में चार तक मतों की अनुमति दी गई। ऑस्ट्रेलिया के प्रथम संसदीय चुनाव सन 1843 में न्यू साउथ वेल्स लेजिस्लेटिव काउंसिल के लिए आयोजित किये गए, जिसमें मतदान का अधिकार (केवल पुरुषों के लिए) को पुनः संपत्ति के स्वामित्व या आर्थिक क्षमता के साथ जुड़ा हुआ था। आगे सन 1850 में न्यू साउथ वेल्स में मतदाताओं के अधिकारों का विस्तार हुआ और विक्टोरिया, साउथ ऑस्ट्रेलिया व तस्मानिया में विधायी समितियों के लिए चुनाव आयोजित किये गए।[119]
उन्नीसवीं सदी के मध्य तक, ऑस्ट्रेलिया के उपनिवेशों में प्रतिनिधिक व उत्तरदायी सरकार के गठन के लिए तीव्र इच्छा उत्पन्न हो चुकी थी, जिसे यूरेका के बंदी शिविरों में हुए गोल्ड-फील्ड्स प्रमाण की लोकतांत्रिक भावना तथा यूरोप, संयुक्त राज्य अमरीका और ब्रिटिश साम्राज्य को झकझोर रहे पूर्ण सुधार आंदोलन के विचारों ने प्रेरणा दी। अपराधियों के निर्वासन की समाप्ति के कारण सन 1840 के दशक और सन 1850 के दशक में सुधारों में तेज़ी आई. द ऑस्ट्रेलियन कॉलोनीज़ गवर्नमेन्ट ऐक्ट (The Australian Colonies Government Act) [1850] एक ऐतिहासिक विकास था, जिसने न्यू साउथ वेल्स, विक्टोरिया, साउथ ऑस्ट्रेलिया और तस्मानिया को प्रतिनिधिक संविधान प्रदान किये और ये उपनिवेश ऐसे संविधानों के लेखन के लिए उत्साह के साथ तैयार हो गए, जिनके फलस्वरूप लोकतांत्रिक रूप से उन्नत संसदों का जन्म हुआ – हालांकि सामान्यतः ये संविधान सामाजिक और आर्थिक “हितों” के प्रतिनिधियों के रूप में औपनिवेशिक उच्च सदन की भूमिका निभाते रहे तथा सभी ने संवैधानिक राजतंत्रों की स्थापना की, जिनमें ब्रिटेन की महारानी राज्य की सांकेतिक प्रमुख थीं।[120]
सन 1855 में, लंदन द्वारा न्यू साउथ वेल्स, विक्टोरिया, साउथ ऑस्ट्रेलिया व तस्मानिया को सीमित स्व-शासन का अधिकार प्रदान किया गया। सन 1856 में, विक्टोरिया, तस्मानिया और साउथ ऑस्ट्रेलिया में पहली बार गुप्त मतदान की अभिनव अवधारणा प्रस्तुत की गई, जिसमें सरकार ने उम्मीदवारों के नामों वाले मतपत्र प्रदान किये और मतदाता गुप्त-रूप से उम्मीदवार का चयन कर सकते थे। इस प्रणाली को पूरी दुनिया में अपनाया गया और इसे “ऑस्ट्रेलियाई मतपत्र” के नाम से जाना जाने लगा। सन 1855 में ही साउथ ऑस्ट्रेलिया में 21 वर्ष या उससे अधिक आयु की समस्त पुरुष ब्रिटिश प्रजा को मतदान का अधिकार प्रदान किया गया। इस अधिकार को सन 1857 में विक्टोरिया तक और अगले वर्ष न्यू साउथ वेल्स तक विस्तारित किया गया। अन्य उपनिवेशों ने भी इसका पालन किया और सन 1896 में तस्मानिया समस्त पुरुषों को मताधिकार प्रदान करने वाला अंतिम उपनिवेश बना। [119]
सन 1861 में साउथ ऑस्ट्रेलिया के उपनिवेश में संपत्तिधारी महिलाओं को स्थानीय चुनावों में (लेकिन संसदीय चुनावों में नहीं) मतदान करने का अधिकार प्रदान किया गया। सन 1884 में, हेनरिटा डगडेल (Henrietta Dugdale) ने मेलबर्न, विक्टोरिया में ऑस्ट्रेलियाई महिला मतदाताओं के पहले संगठन की स्थापना की। सन 1895 में महिलाओं को पार्लियामेंट ऑफ साउथ ऑस्ट्रेलिया के लिए मतदान करने का अधिकार मिला। यह महिलाओं को राजनैतिक पदों के लिए होने वाले चुनाव लड़ने की अनुमति देने वाला विश्व का पहला कानून था और सन 1897 में, कैथरीन हेलन स्पेंस किसी राजनैतिक पद के लिए चुनाव लड़ने वाली पहली महिला राजनैतिक उम्मीदवार बनीं, हालांकि ऑस्ट्रेलियाई संघ के संघीय सम्मेलन (Federal Convention on Australian Federation) के एक प्रतिनिधि के चयन के लिए हुए इस चुनाव में उनकी हार हुई। वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया ने सन 1899 में महिलाओं को मतदान का अधिकार प्रदान किया।[121][122]
जब विक्टोरिया, न्यू साउथ वेल्स, तस्मानिया तथा साउथ ऑस्ट्रेलिया ने 21 वर्ष से अधिक आयु वाली समस्त पुरुष ब्रिटिश प्रजा को मतदान का अधिकार प्रदान किया, तो सामान्यतः इसी काल में ऑस्ट्रेलियाई मूल-निवासी पुरुषों को भी कानूनी रूप से मतदान का अधिकार मिल गया – केवल क्वीन्सलैंड और वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया ने ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों को मताधिकार से वंचित रखा। इस प्रकार, ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी पुरुषों और महिलाओं ने सन 1901 में पहली राष्ट्रमंडल संसद (Commonwealth Parliament) के लिए कुछ न्याय-क्षेत्रों में मतदान किया। हालांकि शुरुआती संघीय संसदीय सुधारों और न्यायिक व्याख्याओं ने व्यावहार में ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के मताधिकार को सीमित करने का प्रयास किया – यह स्थिति सन 1940 के दशक में अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा अभियान छेड़े जाने तक बनी रही। [123]
हालांकि ऑस्ट्रेलिया की विभिन्न संसदें लगातार बनतीं रहीं हैं, लेकिन चयनित संसदीय सरकार के मुख्य आधार ने ऑस्ट्रेलिया में सन 1850 के दशक से लेकर इक्कीसवीं सदी में प्रवेश तक भी अपनी ऐतिहासिक निरंतरता कायम रखी है।
सन 1880 के दशक के अंत तक आते-आते, ऑस्ट्रेलियाई उपनिवेशों में रहने वाले अधिकांश लोग ऐसे थे, जिनका जन्म उसी भूमि पर हुआ था, हालांकि उनमें से 90% से ज्यादा लोग ब्रिटिश और आइरिश मूल के थे।[124] इतिहासकार डॉन गिब का सुझाव है कि भगोड़ा (bushranger) नेड केली मूल-निवासियों के उभरते रुख के एक पहलू का प्रतिनिधित्व करता है। परिवार और साथियों के साथ मज़बूत पहचान रखने वाला केली उस बात का विरोधी था, जिसे वह पुलिस और शक्तिशाली अनाधिकृत निवासियों द्वारा किया जाने वाला अन्याय मानता था। इतिहासकार रसेल वार्ड द्वारा बाद में परिभाषित ऑस्ट्रेलियाई रूढ़िवाद को लगभग प्रतिबिम्बित करता केली “एक कुशल भगोड़ा बन गया, जो कि बंदूकों, घोड़ों तथा मुक्कों के प्रयोग में माहिर था और उसे उस जिले के अपने साथियों की प्रशंसा प्राप्त थी।”[125] पत्रकार वैन्स पामर का सुझाव है कि हालांकि केली “आने वाली पीढ़ियों के लिए देश के विद्रोही व्यक्तित्व का प्रतीक बन गया, लेकिन (वास्तव में) वह…किसी अन्य काल से संबंधित था। ”[126]
विशिष्ट रूप से ऑस्ट्रेलियाई चित्रकला के मूल को इसी काल से तथा सन 1880-1890 के दशक की हीडेलबर्ग पद्धति (Heidelberg School) से जोड़कर देखा जाता है।[127] आर्थर स्ट्रीटन, फ्रेडरिक मैक्युबिन और टॉम रॉबर्ट्स जैसे कलाकारों ने ऑस्ट्रेलियाई भूदृश्य में दिखाई देने वाले प्रकाश और रंगों के एक अधिक वास्तविक अर्थ के साथ अपनी कला की पुनर्रचना का प्रयास किया। यूरोपीय प्रभाववादियों के समान, वे भी खुली हवा में चित्रकारी किया करते थे। इन कलाकारों ने उस अद्वितीय प्रकार और रंग से प्रेरणा प्राप्त की, जो कि ऑस्ट्रेलियाई झाड़ी की विशेषता है। उनके सर्वाधिक प्रसिद्ध कार्य में ग्राम्य तथा जंगली ऑस्ट्रेलिया के दृश्य शामिल हैं, जिनमें ऑस्ट्रेलियाई ग्रीष्म-काल के भड़कीले और यहाँ तक कि कठोर, रंग शामिल हैं।[128]
ऑस्ट्रेलियाई साहित्य में भी समान रूप से विशिष्ट स्वर का विकास हो रहा था। प्रतिष्ठित ऑस्ट्रेलियाई लेखक हेनरी लॉसन, बैंजो पैटरसन, माइल्स फ्रैंक्लिन, नॉर्मन लिंडसे, स्टील रड, मैरी गिल्मोर, सी जे डेनिस व डोरोथिया मैक्केलर सभी विकसित होती हुई राष्ट्रीयता की इसी भट्टी में तपकर तैयार हुए थे- और वस्तुतः वे भी इस आग को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुए. कई बार ऑस्ट्रेलिया के दृष्टिकोण में टकराव भी उत्पन्न होता था – लॉसन व पैटरसन ने द बुलेटिन मैगज़ीन में लेखों की एक श्रृंखला में योगदान दिया, जिसमें वे ऑस्ट्रेलिया में जीवन के स्वरूप को लेकर एक साहित्यिक बहस में शामिल हो गए: लॉसन (एक रिपब्लिकन समाजवादी) ने पैटरसन को रूमानी करार देकर उनका उपहास किया, जबकि पैटरसन (ग्रामीण क्षेत्र में जन्मे एक शहरी वकील) का मानना था कि लॉसन दुर्भाग्य व उदासी से परिपूर्ण थे। सन 1895 में पैटरसन ने अत्यधिक प्रसिद्ध लोकगीत वॉल्ट्ज़िंग मैटिल्डा की रचना की। [129] अक्सर इस गीत को ऑस्ट्रेलिया का राष्ट्रगीत बनाये जाने का सुझाव दिया जाता रहा है और एडवान्स ऑस्ट्रेलिया फेयर, जो कि सन 1970 के दशक के अंतिम काल से ऑस्ट्रेलिया का राष्ट्रगीत है, वस्तुतः सन 1887 में लिखा गया था। डेनिस ने छोटे नायकों के बारे में ऑस्ट्रेलियाई मातृभाषा में लिखा, जबकि मैक्केलर ने इंग्लैंड के सुहावने ग्राम्य जीवन के प्रति प्रेम को नकारते हुए, अपनी आदर्शवादी कविता: माय कण्ट्री (1903) में उस देश का समर्थन किया, जिसे उन्होंने “धूप से झुलसा हुआ देश (Sunburnt Country)” कहा है।[130]
उन्न्सवीं सदी के अंतिम दौर की संपूर्ण राष्ट्रवादी कला, संगीत और लेखन की साझा विषय-वस्तु रूमानी ग्राम्य या बुश मिथ (bush myth) थी और यह विडम्बना ही है कि इसकी रचना विश्व के सर्वाधिक शहरीकृत समाजों में से एक के द्वारा की गई थी।[131] पैटरसन की प्रसिद्ध कविता, सन 1889 में लिखित, क्लैंसी ऑफ द ओवरफ्लो, इस रूमानी कथा का आह्वान करती है। एक ओर जहाँ बुश बैले (bush ballads) ने संगीत के और साहित्य के विशिष्ट रूप से ऑस्ट्रेलियाई लोकप्रिय माध्यम का प्रमाण प्रस्तुत किया, वहीं दूसरी ओर एक अधिक पारंपरिक सांचे में ढले ऑस्ट्रेलियाई कलाकारों – जैसे ओपेरा गायक डेम नेली मेल्बा और चित्रकार जॉन पीटर रसेल तथा रूपर्ट बनी – ने बीसवीं सदी के प्रवासी ऑस्ट्रेलियाई लोगों के आदिरूप को चित्रित किया, जो ‘स्टॉकयार्ड और रेलों’ के बारे में बहुत कम जानते थे, लेकिन जिनकी विदेश यात्राओं का पश्चिमी कला और संस्कृति पर प्रभाव पड़ा.[132]
राष्ट्रवाद के महत्व को लेकर औपनिवेशिक समुदाय के कुछ वर्गों (विशेषतः छोटे उपनिवेशों में) व्याप्त आशंका के बावजूद अंतः औपनिवेशिक परिवहन व संचार, जिसमें सन 1877 में पर्थ को दक्षिण पूर्वी शहरों के साथ टेलीग्राफ द्वारा जोड़े जाने सहित,[133] अंतः औपनिवेशिक शत्रुताओं को कम करने में सहायक सिद्ध हुआ। सन 1895 तक आते-आते, विभिन्न औपनिवेशिक राजनेताओं, ऑस्ट्रेलियन नेटिव्ज़ एसोसियेशन और कुछ समाचार-पत्रों सहित शक्तिशाली रूचि-समूह एक संघ के निर्माण की वकालत करने लगे थे। सामूहिक राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्व की पहचान के अलावा लगातार बढ़ते राष्ट्रवाद, श्वेत औपनिवेशिक ऑस्ट्रेलियाई लोगों के बीच राष्ट्रीय पहचान की बढ़ती हुई भावना, तथा साथ ही एक राष्ट्रीय आव्रजन नीति (जो कि श्वेत ऑस्ट्रेलिया नीति बनने वाली थी) की इच्छा ने भी संघीय आंदोलन को प्रोत्साहित किया। हालांकि शायद अधिकांश उपनिवेशवादियों की साम्राज्यवाद के प्रति पूर्ण निष्ठा थी। सन 1890 में एक संघीय सम्मेलन भोज के दौरान, न्यू साउथ वेल्स से राजनेता हेनरी पार्क्स ने कहा कि
“ The crimson thread of kinship runs through us all. Even the native born Australians[134] are Britons as much as those born in London or Newcastle. We all know the value of that British origin. We know that we represent a race for which the purpose of settling new countries has never had its equal on the face of the earth... A united Australia means to me no separation from the Empire.[135] ”
कुछ उपनिवेशवादियों, लेखक हेनरी लॉसन, ट्रेड यूनियनवादी विलियम लेन और जैसा कि सिडनी बुलेटिन के पृष्ठों में मिलता है, के द्वारा एक पृथक ऑस्ट्रेलिया के एक अधिक उग्र दृष्टिकोण रखने के बावजूद, सन 1899 के अंत में और अत्यधिक औपनिवेशिक बहस के बाद, छः ऑस्ट्रेलियाई उपनिवेशों में से पांच के नागरिकों ने जनमत-संग्रहों में एक संघ के निर्माण के संविधान के समर्थन में मतदान किया था। जुलाई 1900 में वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया भी मतदान के द्वारा इनमें सम्मिलित हो गया। 5 जुलाई 1900 को “कॉमनवेल्थ ऑफ ऑस्ट्रेलिया कॉन्स्टिट्यूशन ऐक्ट (यूके)” पारित हुआ और 9 जुलाई 1900 को महारानी विक्टोरिया द्वारा इसे शाही सहमति प्रदान की गई।[136]
1 जनवरी 1901 को गवर्नर जनरल लॉर्ड होपटॉन द्वरा संघीय संविधान की घोषणा किये जाने पर कॉमनवेल्थ ऑफ ऑस्ट्रेलिया अस्तित्व में आया। मार्च 1901 में पहले संघीय चुनाव आयोजित किये गए और इन चुनावों में प्रोटेक्शनिस्ट पार्टी ने फ्री ट्रेड पार्टी को बहुत कम अंतर से पराजित किया, जबकि ऑस्ट्रेलियन लेबर पार्टी (एएलपी) तीसरे स्थान पर रही। लेबर पार्टी ने घोषणा की कि वह रियायतें देने वाली पार्टी का समर्थन करेगी और एडमण्ड बार्टन की प्रोटेक्शनिस्ट पार्टी ने सरकार बनाई, तथा एल्फ्रेड डीकिन एटर्नी जनरल के पद पर आसीन हुए.[137]
बार्टन ने “एक उच्च न्यायालय,… तथा एक कुशल संघ लोक सेवा के निर्माण का वचन दिया… उन्होंने समझौते व मध्यस्थता का विस्तार करने, पूर्वी राजधानियों के बीच एक समान चौड़ाई (gauge) वाले रेलमार्ग का निर्माण करने,[138] महिला संघीय प्रतिनिधि प्रस्तुत करने, वृद्धों की पेंशन प्रणाली लागू करने…का प्रस्ताव दिया.”[139] उन्होंने एशियाई या प्रशांत द्वीपीय श्रमिकों के किसी भी अंतः प्रवाह से “श्वेत ऑस्ट्रेलिया” की रक्षा करने वाला एक अधिनियम प्रस्तुत करने का वचन भी दिया।
लेबर पार्टी (जिसके हिज्जों को सन 1912 में “Labour” से बदलकर “Labor” कर दिया गया था) की स्थापना सन 1890 के दशक में, समुद्री श्रमिकों तथा भेड़ों से ऊन निकालने वालों की हड़ताल की विफलता के बाद हुई थी। इसकी शक्ति ऑस्ट्रेलियाई ट्रेड यूनियन आंदोलन में निहित थी, “और इसकी सदस्य संख्या, जो कि सन 1901 में 100,000 से भी कम थी, सन 1914 में 5,00,000 से अधिक हो गई।”[140] एएलपी (ALP) का मंच लोकतांत्रिक समाजवादी था। चुनावों में इसके बढ़ते समर्थन ने तथा इसके द्वारा संघीय सरकार की स्थापना, सन 1904 में क्रिस वॉटसन के नेतृत्व में तथा पुनः सन 1908 में, के साथ मिलकर सन 1909 में प्रतिस्पर्धी रूढ़िवादी, मुक्त बाज़ार के समर्थक तथा उदारवादी समाजवाद-विरोधियों को कॉमनवेल्थ लिबरल पार्टी में एकजुट करने में सहायता की। हालांकि, सन 1916 में इस पार्टी को विसर्जित कर दिया, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में इसके “उदारवाद” के एक संस्करण, जो कि कुछ हद तक व्यक्तिवाद के समर्थन और समाजवाद के विरोध के लिए मिल्शियाई उदारवादियों और बर्कियाई उदारवादियों के संयुक्त गठबंधन से मिलकर बना है, के उत्तराधिकारी आधुनिक लिबरल पार्टी में देखे जा सकते हैं।[141] ग्रामीण हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसानों के अनेक राज्य-आधारित दलों को मिलाकर सन 1913 में वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में तथा सन 1920 में राष्ट्रीय स्तर पर कण्ट्री पार्टी (वर्तमान नैशनल पार्टी) की स्थापना की गई।[142]
आप्रवासन प्रतिबंध अधिनियम 1901 (The Immigration Restriction Act 1901) नई ऑस्ट्रेलियाई संसद द्वारा पारित किये गए कुछ शुरुआती कानूनों में से एक था। एशिया (विशेषतः चीन) से होने वाले आप्रवासन को प्रतिबंधित करने पर केन्द्रित, इस कानून को राष्ट्रीय संसद में तगड़ा समर्थन मिला और इसके पक्ष में आर्थिक सुरक्षा से लेकर स्पष्ट नस्लवाद तक अनेक तर्क दिये गए।[143] इस कानून ने किसी भी यूरोपीय भाषा में एक लिखित परीक्षा आयोजित किये जाने की अनुमति दी, जिसका प्रयोग प्रभावी रूप से गैर-“श्वेत” आप्रवासियों को बाहर रखने के लिए किया जाना था। एएलपी (ALP) “श्वेत” नौकरियों की रक्षा करना चाहती थी और इसने अधिक स्पष्ट प्रतिबंधों पर ज़ोर दिया। कुछ राजनेताओं ने इस प्रश्न पर उन्मत्त बहस से बचने की आवश्यकता की बात कही. संसद-सदस्य ब्रुस स्मिथ ने कहा कि उनकी “निम्न-वर्ग के भारतीयों, चीनियों या जापानियों…को इस देश में झुण्ड बनाकर घूमता हुआ देखने की कोई इच्छा नहीं थी… लेकिन एक अनिवार्यता यह भी थी…कि उन देशों के शिक्षित-वर्ग का अनावश्यक विरोध न किया जाए”[144] तस्मानिया के एक सदस्य डोनाल्ड कैमरून ने विवाद की एक दुर्लभ टिप्पणी व्यक्त की:
“ [N]o race on...this earth has been treated in a more shameful manner than have the Chinese... They were forced at the point of a bayonet to admit Englishmen...into China. Now if we compel them to admit our people...why in the name of justice should we refuse to admit them here?[145] ”
यह कानून संसद के दोनों सदनों में पारित हो गया और सन 1950 के दशक में निरस्त किये जाने तक ऑस्ट्रेलिया के आव्रजन कानूनों का केन्द्रीय लक्षण बना रहा। सन 1930 के दशक में, लायोन्स सरकार ने ज़ेकोस्लोवाकियाई साम्यवादी लेखक एगॉन एर्विन किश को स्कॉटिश गैलिक में एक “श्रुतलेख परीक्षा” के माध्यम से ऑस्ट्रेलिया में प्रवेश से अलग रखने का एक असफल प्रयास किया। हाईकोर्ट ऑफ ऑस्ट्रेलिया (High Court of Australia) ने इस प्रयोग के विरूद्ध आदेश दिया और यह चिन्ताएं उभरने लगीं कि इस कानून का प्रयोग ऐसे राजनैतिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।[146][147]
सन 1901 के पूर्व तक, सभी छः ऑस्ट्रेलियाई उपनिवेशों की सैनिक-टुकड़ियाँ बोअर युद्ध में ब्रिटिश सेनाओं के एक भाग के रूप में सक्रिय रहीं थीं। सन 1902 में जब ब्रिटिश सरकार ने ऑस्ट्रेलिया से और अधिक टुकड़ियों की मांग की, तो ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने एक राष्ट्रीय टुकड़ी के साथ आभार व्यक्त किया। जून 1902 में इस युद्ध की समाप्ति तक लगभग 16,500 पुरुषों ने इसमें स्वेच्छा से अपनी सेवा दी थी।[148] लेकिन ऑस्ट्रेलियाई जनता ने शीघ्र ही अपने देश के पास ही खुद को असुरक्षित महसूस किया। सन 1902 के आंग्ल-जापानी गठबंधन ने “रॉयल नेवी को सन 1907 तक प्रशांत से अपने मुख्य जहाजों को हटा लेने की अनुमति दी. ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों ने युद्ध के समय स्वयं को एक वीरान, कम जनसंख्या घनत्व वाली एक चौकी पर महसूस किया।”[149] सन 1908 में यूएस (US) नेवी की ग्रेट व्हाइट फ्लीट के प्रभावपूर्ण आगमन ने सरकार को एक ऑस्ट्रेलियाई नौसेना के महत्व का अहसास दिलाया। सन 1909 के डिफेन्स ऐक्ट (Defence Act) ने ऑस्ट्रेलियाई रक्षा-पंक्ति को पुनर्स्थापित किया और फरवरी 1910 में लॉर्ड किचनर ने अनिवार्य सैन्य-सेवा पर आधारित एक रक्षा-योजना का सुझाव दिया। सन 1913 तक आते-आते, बैटल क्रूज़र ऑस्ट्रेलिया (Battle Cruiser Australia) अनुभवहीन रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी (Royal Australian Navy) का नेतृत्व करने लगा। इतिहासकार बिल गैमेज का अनुमान है कि युद्ध के मुहाने पर ऑस्ट्रेलिया में 200,000 पुरुष “किसी न किसी प्रकार के शस्रों” से लैस थे”.[150]
इतिहासकारों हम्फ्रे मैक्क्वीन का मानना है कि बीसवीं सदी के प्रारम्भ में ऑस्ट्रेलिया के श्रमिक वर्ग के लिए कार्यस्थल व जीवन की स्थितियाँ “अल्पव्यवयी सुविधाओं” वालीं थीं।[151] हालांकि श्रम-विवादों में मध्यस्थता के लिए एक न्यायालय की स्थापना को लेकर विवाद था, लेकिन यह ऐसे औद्योगिक निर्णयों की स्थापना की आवश्यकता की एक स्वीकारोक्ति थी, जिसमें किसी एक उद्योग के सभी कर्मचारी कार्य व वेतन की एक समान स्थितियों का आनंद प्राप्त करते थे। सन 1907 के हार्वेस्टर निर्णय ने एक मूल वेतन की अवधारणा की पहचान की और सन 1908 में संघीय सरकार ने भी एक वृद्धावस्था पेंशन योजना की शुरुआत की। इस प्रकार, इस नये कॉमनवेल्थ ने सामाजिक प्रयोगात्मकता तथा सकारात्मक उदारवाद की एक प्रयोगशाला के रूप में अपनी पहचान बनाई। [137]
सन 1890 के दशक के अंत और बीसवीं सदी के प्रारम्भ में विनाशकारी अकालों ने कुछ क्षेत्रों को महामारी से ग्रस्त बना दिया और रैबिट प्लेग के साथ मिलकर इसने ग्रामीण ऑस्ट्रेलिया में बहुत अधिक कठिन परिस्थियाँ उत्पन्न कर दीं। इसके बावजूद, अनेक लेखकों ने “एक ऐसे काल की कल्पना की, जब ऑस्ट्रेलिया संपत्ति और महत्व के संदर्भ में ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ देगा, जब इसकी खुली-भूमि पर कई एकड़ में फैले खेत और कल-कारखाने होंगे, जिनकी तुलना संयुक्त राज्य अमरीका के साथ की जा सकेगी. कुछ लेखकों ने भावी जनसंख्या 100 मिलियन, 200 मिलियन या उससे भी अधिक हो जाने का अनुमान किया।”[152] इनमें ई. जे. ब्रैडी शामिल थे, जिनकी सन 1918 में लिखी गई कियाब ऑस्ट्रेलिया अनलिमिटेड ने ऑस्ट्रेलिया की भूमि का वर्णन विकास करने और बसने के लिए तैयार हो चुकी भूमि के रूप में किया, “जिसके भाग्य में जीवन के साथ धड़कना ही लिखा था। ”[153]
अगस्त 1914 में यूरोप में युद्ध की शुरुआत होने पर “ब्रिटेन के सभी उपनिवेशों और राज्यों” को स्वतः ही इसमें शामिल होना पड़ा.[154] प्रधानमंत्री एन्ड्र्यू फिशर ने जुलाई के अंतिम दिनों में चुनावी अभियान के दौरान जो कहा, उसके द्वारा संभवतः वे अधिकांश ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों के विचारों को ही व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा था
“ Turn your eyes to the European situation, and give the kindest feelings towards the mother country...I sincerely hope that international arbitration will avail before Europe is convulsed in the greatest war of all time... But should the worst happen...Australians will stand beside our own to help and defend her to the last man and the last shilling.[154] ”
सन 1914 से 1918 के बीच प्रथम विश्व युद्ध के दौरान[155] 4.9 मिलियन की कुल राष्ट्रीय जनसंख्या में से 416,000 से अधिक ऑस्ट्रेलियाई पुरुषों ने स्वेच्छा से इस लड़ाई में हिस्सा लिया।[156] इतिहासकार लॉयड रॉब्सन इसे कुल योग्य पुरुष जनसंख्या के एक तिहाई और आधे के बीच मानते हैं।[157] सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड ने युद्ध की शुरुआत का उल्लेख ऑस्ट्रेलिया के “अग्नि के बपतिस्मा (Baptism of Fire)”[158] के रूप में की। तुर्की के तट पर, गैलीपोली की लड़ाई के 8 महीनों में 8,141 पुरुष मारे गए।[159] सन 1915 के अंत में, ऑस्ट्रेलियन इम्पीरियल फोर्सेस (Australian Imperial Forces) (AIF) को वापस बुला लिए जाने और पांच डिविजनों में विस्तारित किये जाने के बाद, इनमें से अधिकांश को ब्रिटिश आदेश के अधीन अपनी सेवाएं देने के लिए फ्रांस भेज दिया गया।
पश्चिमी सीमा पर एआईएफ (AIF) का युद्ध का पहला अनुभव ऑस्ट्रेलियाई सैन्य इतिहास की सबसे महंगी एकल मुठभेड़ भी था। जुलाई 1916 में, फ्रॉमेलेस (Fromelles) पर, सोमे की लड़ाई (Battle of the Somme) के दौरान एक पथांतरित आक्रमण के दौरान 24 घंटों के भीतर ही एआईएफ (AIF) के 5,533 जवानों की मृत या घायल हो गए।[160] सोलह माह बाद, पांच ऑस्ट्रेलियाई डिविजन ऑस्ट्रेलियन कोर (Australian Corps) बन गईं, जिनका नेतृत्व पहले जनरल बर्डवुड के हाथों में और बाद में ऑस्ट्रेलियन जनरल सर जॉन मोनाश के हाथों में रहा। सन 1916 और 1917 में ऑस्ट्रेलिया में अनिवार्य सैन्य सेवा को लेकर कटुतापूर्वक लड़े गए और विभाजक दो जनमत संग्रह आयोजित हुए. दोनों ही विफल रहे और ऑस्ट्रेलियाई सेना एक स्वयंसेवी बल बनी रही।
सैन्य कार्यवाही के नियोजन के प्रति मोनाश का नज़रिया अति-सतर्कतापूर्ण और उस समय के सैन्य विचारकों की दृष्टि में असामान्य था। हैमेल की अपेक्षाकृत छोटी लड़ाई में उनकी पहली कार्यवाही ने उनके नज़रिये की वैधता का प्रदर्शन कर दिया और बाद में सन 1918 की हिंडेनबर्ग लाइन से पूर्व की गई कार्यवाहियों से इसकी पुष्टि भी हो गई।
इस संघर्ष के दौरान 60,000 से अधिक ऑस्ट्रेलियाई मारे गए और 160,000 घायल हो गए, जो कि सुमद्रपार जाकर लड़े 330,000 लोगों में से एक बड़ा भाग था।[155] युद्ध में मारे गए लोगों को याद करने के लिए ऑस्ट्रेलिया का वार्षिक अवकाश प्रतिवर्ष एन्ज़ैक डे (ANZAC Day) पर 25 अप्रैल जो कि सन 1915 में गैलीपोली पर पहले अवतरण की तिथि है, को मनाया जाता है। इस दिन का चयन अक्सर गैर-ऑस्ट्रेलियाई लोगों को चकित करता है; आखिरकार यह गठबंधना द्वारा किया गया एक आक्रमण था, जिसका अंत सैन्य पराजय के रूप में हुआ था। बिल गैमेज का सुझाव है कि 25 अप्रैल के चयन का ऑस्ट्रेलियाई लोगों के लिए बहुत महत्व है क्योंकि गैलीपोली में, “आधुनिक युद्ध की महान मशीनों की संख्या इतनी पर्याप्त नहीं थी कि सामान्य नागरिक अपने पराक्रम का परिचय दे सकें.” फ्रांस में, सन 1916 और 1918 के बीच, “जब लगभग सात गुना (ऑस्ट्रेलियाई) मारे गए,...बंदूकों ने नृशंसतापूर्वक यह दिखा दिया कि व्यक्तियों की जान कितनी तुच्छ है। ”[161]
सन 1919 में, प्रधान मंत्री बिली ह्युजेस और पूर्व प्रधान मंत्री जोसेफ कुक ने वार्सेल्स शांति सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए पेरिस की यात्रा की। [162] ह्युजेस द्वारा ऑस्ट्रेलिया की ओर से वार्सेल्स की संधि (Treaty of Versailles) पर हस्ताक्षर करने की घटना ऑस्ट्रेलिया द्वारा किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर किये जाने की पहली घटना थी। ह्युजेस ने जर्मनी से भारी मुआवजे की मांग की और अक्सर उनकी अमरीकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन से बहस हुई। एक अवसर पर ह्युजेस ने घोषणा कर दी: “मैं 60 000 मृत [ऑस्ट्रेलियाई] लोगों की ओर से बोल रहा हूं”.[163] इसके बाद उन्होंने विल्सन से पूछा; "आप कितने लोगों की ओर से बोल रहे हैं?"
ह्युजेस ने मांग की नवगठित लीग ऑफ नेशन्स (League of Nations) में ऑस्ट्रेलिया को स्वतंत्र प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाना चाहिये और वे जापानी नस्लीय समानता प्रस्ताव को सम्मिलित किये जाने के सर्वाधिक प्रमुख विरोधी थे, जो कि उनके व अन्य लोगों के द्वारा चलाये गए अभियान के कारण अंतिम संधि में शामिल नहीं किया गया, जिससे जापान बहुत अधिक नाराज़ हुआ। ह्युजेस जापान के उदय से चिंतित थे। सन 1914 में यूरोपीय युद्ध की घोषणा के कुछ महीनों के भीतर ही; जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड ने दक्षिण पश्चिमी प्रशांत में सभी जर्मन क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया। हालांकि जापान ने ब्रिटेन के आशीर्वाद से जर्मन क्षेत्रों पर कब्ज़ा किया था, लेकिन ह्युजेस इस नीति के प्रति सतर्क हो गए।[164] सन 1919 में औपनिवेशिक नेताओं के एक शांति सम्मेलन में न्यूज़ीलैंड, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया ने जर्मन समोआ, जर्मन साउथ वेस्ट अफ्रीका और जर्मन न्यू गिनी के क्षेत्रों पर अपने कब्ज़े को बनाये रखने के पक्ष में तर्क प्रस्तुत किये; इन क्षेत्रों के लिए संबंधित उपनिवेशों को “क्लास सी अधिदेश (Class C Mandates)” प्रदान किये गए। एक समान-समान सौदे में, जापान ने विषुवत् के उत्तर में इसके द्वारा अधिग्रहित जर्मन क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल कर लिया।[164]
युद्ध के बाद, प्रधानमंत्री विलियम मॉरिस ह्युजेस ने एक नये उदारवादी दल, नैशनलिस्ट पार्टी, जिसका निर्माण पुरानी लिबरल पार्टी और अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण को लेकर हुए गंभीर और कटु विभाजन के बाद लेबर पार्टी (जिसमें वे सबसे बड़े नेता थे) के टूटे हुए समूह को मिलाकर हुआ था, का नेतृत्व किया। एक अनुमान के मुताबिक सन 1919 की स्पैनिश फ्लू महामारी, जो कि लगभग निश्चित रूप से घर वापस लौट रहे सैनिकों द्वारा लाई गई थी, के परिणामस्वरूप लगभग 12,000 ऑस्ट्रेलियाई मारे गए।[165]
रूस में बोल्शेविक क्रांति की सफलता ने अनेक ऑस्ट्रेलियाई लोगों की नज़रों में खतरा उत्पन्न कर दिया, हालांकि समाजवादियों के एक छोटे समूह के लिए यह प्रेरणादायी घटना थी। सन 1920 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ ऑस्ट्रेलिया की स्थापना हुई और हालांकि यह चुनावी रूप से महत्वहीन बनी रही, लेकिन इसने ट्रेड यूनियन आंदोलन में कुछ प्रभाव हासिल कर लिया था और हिटलर-स्टैलिन समझौते का समर्थन करने के कारण द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसे प्रतिबंधित कर दिया गया तथा मेन्ज़ीस सरकार ने कोरियाई युद्ध के दौरान इसे पुनः प्रतिबंधित करने का असफल प्रयास किया। विभाजनों के बावजूद यह पार्टी शीत-युद्ध की समाप्ति पर हुए अपने विसर्जन तक सक्रिय बनी रही। [166][167]
सन 1920 में कण्ट्री पार्टी (आज की नैशनल पार्टी) की स्थापना कृषि-वाद (agrarianism) के इसके संस्करण, जिसे इसने “ग्रामीणप्रवृत्ति (Countrymindedness)” करार दिया, के प्रचार के लिए की गई। इसका लक्ष्य चरवाहों (भेड़ों के बड़े फार्म के संचालकों) और छोटे किसानों की अवस्था को सुधारना तथा उनके लिए सब्सिडी सुरक्षित करना था।[168] लेबर पार्टी के अलावा किसी भी अन्य बड़े दल से अधिक लंबे समय तक टिके रहते हुए, इसने सामान्यतः लिबरल पार्टी के साथ गठबंधन में कार्य किया है (सन 1940 के दशक से) और यह ऑस्ट्रेलिया में सरकार की एक प्रमुख पार्टी बन चुकी है – विशिष्ट रूप से क्वीन्सलैंड में.
अन्य उल्लेखनीय युद्धेतर प्रभावों में लगातार जारी औद्योगिक असंतोष शामिल है, जिसमें सन 1923 की विक्टोरियाई पुलिस हड़ताल भी शामिल है।[169] औद्योगिक विवाद सन 1920 के दशक के ऑस्ट्रेलिया का प्रतीक हैं। अन्य प्रमुख हड़तालें जलीय सीमा पर, कोयले की खदानों में और लकड़ी उद्योगों में सन 1920 के दशक के अंतिम दौर में हुईं. कार्य की स्थितियों को परिवर्तित करने और यूनियनों की शक्ति को घटाने के नैशनलिस्ट सरकार के प्रयासों की प्रतिक्रिया के रूप में सन 1927 में यूनियन आंदोलन ने ऑस्ट्रेलियन काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स (एसीटीयू [ACTU]) की स्थापना की।
जैज़ संगीत, मनोरंजन की संस्कृति, नई प्रौद्योगिकी और उपभोक्तावाद, जो कि सन 1920 के दशक के अमरीका का प्रतीक हैं, कुछ हद तक, ऑस्ट्रेलिया में भी पाये जाते थे। ऑस्ट्रेलिया में शराबबंदी लागू नहीं की गई थी, हालांकि अल्कोहल-विरोधी शक्तियाँ होटलों को शाम 6 बजे के बाद बंद करवाने और कुछ शहरीय उपनगरों में इन्हें पूरी तरह बंद करवाने में सफल रहीं थीं।’[170]
इस पूरे दशक के दौरान अनुभवहीन फिल्म उद्योग में गिरावट देखी गई और प्रति सप्ताह 2 मिलियन से अधिक ऑस्ट्रेलियाई 1250 स्थानों पर सिनेमा देखा करते थे। सन 1927 में, एक रॉयल कमीशन सहयोग कर पाने में विफल रहा और एक ऐसा उद्योग, जिसने विश्व की पहली फीचर फिल्म, द स्टोरी ऑफ द केली गैंग (The Story of the Kelly Gang) (1906) के साथ धमाकेदार शुरुआत की थी, सन 1970 के दशक में इसका पुनरुत्थान किये जाने तक कमज़ोर हो गया।[171][172]
सन 1923 में, नैशनल पार्टी की सरकार के सदस्यों द्वारा डब्ल्यू.एम. ह्यूजेस को हटाने के पक्ष में मतदान किये जाने पर स्टैनली ब्रुस प्रधानमंत्री बने. सन 1925 के प्रारम्भ में अपने संबोधन में ब्रुस ने अनेक ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों की प्राथमिकताओं और आशावाद को यह कहते हुए संक्षेप में प्रकट किया कि "पुरुष, धन व बाज़ार ऑस्ट्रेलिया की अनिवार्य आवश्यकताओं को सटीक ढ़ंग से परिभाषित करते हैं" और वे ब्रिटेन से यहि पाने की इच्छा रखते थे।[173] सन 1920 के दशक में डेवलपमेंट एन्ड माइग्रेशन कमीशन द्वारा संचालित आप्रवास अभियान के द्वारा लगभग 300,000 से अधिक ब्रिटिशवासी ऑस्ट्रेलिया आए,[174] हालांकि आप्रवासियों और वापस लौटे सैनिकों को “भूमि पर (on the land)” बसाने की योजना सामान्यतः सफल नहीं हो सकी। "वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया और क्वीन्सलैंड की डॉसन वैली में नये सिंचाई-क्षेत्र विनाशक साबित हुए"[175]
ऑस्ट्रेलिया में, मुख्य निवेश लागतों की पूर्ति पारंपरिक रूप से राज्य व संघीय सरकारों द्वारा की जाती थी और सन 1920 के दशक में सरकारों ने विदेशों से बहुत अधिक कर्ज़ लिया। कर्ज़, जिसका दो-तिहाई से अधिक विदेशों से आया था, के मामलों में सहायता करने के लिए सन 1928 में लोन काउंसिल (Loan Council) का गठन किया गया।[176] साम्राज्य की प्राथमिकता के बावजूद, ब्रिटेन के साथ व्यापारिक संतुलन सफलतापूर्वक प्राप्त नहीं किया जा सका। "सन 1924..से..1928 के पांच वर्षों में, ऑस्ट्रेलिया ने अपना 43.4% आयात ब्रिटेन से खरीदा और अपने निर्यात का 38.7% उसे बेचा। गेहूं और ऊन का निर्यात ऑस्ट्रेलिया के कुल निर्यात का दो तिहाई से अधिक था," जो कि निर्यात की केवल दो वस्तुओं पर एक खतरनाक निर्भरता थी।[177]
ऑस्ट्रेलिया ने परिवहन और संचार की नई प्रौद्योगिकीयाँ अपनाईं. तटीय क्षेत्रों में चलने वाले जहाजों का स्थान अंततः भाप ने ले लिया और रेल तथा मोटर परिवहन ने कार्य व मनोरंजन में नाटकीय परिवर्तनों की शुरुआत की। सन 1918 में पूरे ऑस्ट्रेलिया में 50,000 कारें व भारवाहन थे। सन 1929 तक आते-आते इनकी संख्या बढ़कर 500,000 हो गई।[178] सन 1853 में स्थापित स्टेज कोच कम्पनी, कॉब एण्ड कं (Cobb and Co) को अंततः 1924 में बंद कर दिया गया।[179] सन 1920 में, क्वीन्सलैंड एण्ड नॉर्दर्न टेरिटरी एरियल सर्विस (Queensland and Northern Territory Aerial Service) (जो बाद में ऑस्ट्रेलियाई एयरलाइन क्वांटास [QANTAS] बनी) की स्थापना हुई। [180] सन 1928 में रेवरेंड जॉन फ्लिन ने विश्व की पहली वायु ऐम्बुलेन्स, रॉयल फ्लाइंग डॉक्टर सर्विस (Royal Flying Doctor Service) की स्थापना की। [181] दुस्साहसी पायलट, सर चार्ल्स किंग्सफोर्ड स्मिथ सन 1927 में ऑस्ट्रेलिया सर्किट का एक चक्र पूरा करते हुए तथा सन 1928 में वायुयान सदर्न क्रॉस में हवाई और फिजी होते हुए अमरीका से ऑस्ट्रेलिया तक प्रशांत महासागर का चक्कर लगाकर नई उड़ान मशीनों को सीमा से परे ले गए। आगे वे वैश्विक प्रसिद्धि तक पहुँचे और सन 1935 में सिंगापुर में एक रात्रिकालीन उड़ान के दौरान गुम होने से पहले तक उन्होंने हवाई रिकॉर्डों की एक श्रृंखला खड़ी कर दी। [182]
प्रथम विश्व युद्ध के बाद, वेस्टमिन्स्टर अधिनियम (Statute of Westminster) के अंतर्गत ऑस्ट्रेलिया को स्वतंत्र संप्रभु राष्ट्र का दर्जा प्राप्त हुआ। इसने सन 1926 की बेल्फोर घोषणा की स्थापना की, जो कि सन 1926 में ब्रिटिश साम्राज्य के नेताओं के लंदन में आयोजित सम्मेलन के परिणामस्वरूप प्राप्त एक रिपोर्ट थी, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के उपनिवेशों को इस प्रकार परिभाषित किया
“ They are autonomous Communities within the British Empire, equal in status, in no way subordinate one to another in any aspect of their domestic or external affairs, though united by a common allegiance to the Crown, and freely associated as members of the British Commonwealth of Nations.[183] ”
हालांकि, ऑस्ट्रेलिया ने सन 1942 तक वेस्टमिन्स्टर अधिनियम को अंगीकार नहीं किया। इतिहासकार फ्रैंक क्रोले के अनुसार, ऐसा इसलिए था क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के संकट से पूर्व तक ब्रिटेन के साथ अपने संबंधों को पुनर्परिभाषित करने में ऑस्ट्रेलिया की बहुत कम रुचि थी।[184]
ऑस्ट्रेलिया एक्ट 1986 (Australia Act 1986) ने ब्रिटिश संसद और ऑस्ट्रेलियाई राज्यों के बीच सभी शेष संबंधों को भी हटा दिया।
1 फ़रवरी 1927 से 12 जून 1931 के पूर्व तक, उत्तरी क्षेत्र (Northern Territory) 20°द अक्षांश पर नॉर्थ ऑस्ट्रेलिया और सेंट्रल ऑस्ट्रेलिया के रूप में विभाजित था। सन 1915 में न्यू साउथ वेल्स को जर्विस बे टेरिटरी (Jervis Bay Territory) नामक एक और क्षेत्र प्राप्त हुआ, जिसका क्षेत्रफल 6,677 हेक्टेयर था। ये बाहरी क्षेत्र भी शामिल किये गए: नॉर्फोक आइलैंड (1914); ऐशमोर आइलैंड, कार्शियर आइलैंड (1931); ब्रिटेन से स्थानांतरित ऑस्ट्रेलियाई अंटार्क्टिक टेरिटरी (1933); हर्ड आइलैंड, मैक्डोनाल्ड आइलैंड, तथा ब्रिटेन से ऑस्ट्रेलिया को सौंपा गया मैक्वायर आइलैंड (1947).
प्रस्तावित नई संघीय राजधानी कैनबरा (सन 1901 से 1927 तक सरकार का केन्द्र मेलबर्न था) के लिए स्थान प्रदान कर ने हेतु सन 1911 में न्यू साउथ वेल्स में संघीय राजधानी क्षेत्र (Federal Capital Territory) (एफसीटी) (FCT) की स्थापना की गई। सन 1938 में एफसीटी (FCT) का नाम बदलकर ऑस्ट्रेलियाई राजधानी क्षेत्र (Australian Capital Territory) (एसीटी) (ACT) कर दिया गया। सन 1911 में नॉर्दर्न टेरिटरी का नियंत्रण साउथ ऑस्ट्रेलिया की सरकार से कॉमनवेल्थ को सौंप दिया गया।
सन 1930 के दशक की महान मंदी का ऑस्ट्रेलिया पर गहरा प्रभाव पड़ा, विशेष रूप से निर्यात, विशिष्टतः ऊन और गेहूं जैसे प्राथमिक उत्पादों, पर इसकी अत्यधिक निर्भरता के कारण,[185] सन 1920 के दशक में बहुत अधिक मात्रा में लगातार कर्ज़ लेने के कारण ऑस्ट्रेलियाई व राज्य सरकारें “सन 1927, जब अधिकांश आर्थिक सूचक एक बुरे दौर की ओर संकेत कर रहे थे, से ही बहुत अधिक असुरक्षित स्थिति में थीं। निर्यात पर ऑस्ट्रेलिया की निर्भरता ने इसे विश्व बाज़ार में होने वाले उतार-चढ़ावों के प्रति असामान्य रूप से असुरक्षित बना दिया," जैसा कि आर्थिक इतिहासकार ज्यॉफ स्पेंसली का मत है।[186] दिसंबर 1927 तक ऑस्ट्रेलिया द्वारा लिए गए कुल ॠण का लगभग आधा केवल न्यू साउथ वेल्स राज्य द्वारा लिया गय था। इस स्थिति को देखकर कुछ राजनेता और अर्थशास्री चिंतित हो गए, जिनमें यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के एडवर्ड शॉन का नाम उल्लेखनीय है, लेकिन अधिकांश राजनैतिक, यूनियन व व्यापारिक नेता गंभीर समस्याओं को स्वीकार करने से हिचकते रहे। [187] सन 1926 में, ऑस्ट्रेलियन फाइनेंस (Australian Finance) मैगज़ीन ने वर्णन किया कि ॠण एक “परेशान कर देने वाली आवृत्ति (disconcerting frequency)” पर उत्पन्न हो रहे थे, जो कि ब्रिटिश साम्राज्य में अद्वितीय थी: "यह ॠण किसी पूर्ण हो चुके ॠण को चुकाने के लिए लिया गया ॠण या मौजूदा ॠणों पर ब्याज चुकाने के लिए लिया गया ॠण, अथवा बैंकरों से लिए गए किसी अस्थायी ॠण को लौटाने के लिए लिया गया ॠण हो सकता है। ..[188] इस प्रकार, सन 1929 की वॉल स्ट्रीट क्रैश (Wall Street Crash) से बहुत पहले से ही, ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था गंभीर समस्याओं का सामना करती आ रही थी। जब सन 1927 में अर्थव्यवस्था की गति धीमी पड़ गई, तो उत्पादन में भी कमी आई और मुनाफा घटने तथा बेरोज़गारी बढ़ने के कारण देश मंदी की चपेट में आ गया।[189]
अक्टूबर 1929 में हुए चुनावों में लेबर पार्टी भारी बहुमत के साथ सत्ता में आई, यहाँ तक कि पूर्व प्रधानमंत्री स्टैनली ब्रुस स्वयं भी अपना चुनाव हार गए। नये प्रधानमंत्री जेम्स स्कलिन और उनकी बड़े पैमाने पर अनुभवहीन सरकार को लगभग तुरंत ही संकटों की एक श्रृंखला का सामना करना पड़ा. सीनेट पर नियंत्रण कर पाने, बैंकिंग तंत्र पर नियंत्रण रख पाने में उनकी विफलता और इस स्थिति से निपटने के सर्वश्रेष्ठ तरीकों को लेकर पार्टी में मतभेद के कारण सरकार को ऐसे उपाय स्वीकार करने पड़े, जो अंततः पार्टी को विभाजित कर देते, जैसा कि सन 1917 में हुआ। कुछ लोगों का झुकाव न्यू साउथ वेल्स प्रीमियर लैंग की ओर, तो कुछ लोग प्रधानमंत्री स्कलिन की ओर रहा.
इस संकट से निपटने की विभिन्न “योजनाओं” का सुझाव दिया गया; सर ओटो नायमेयर (Sir Otto Niemeyer), अंग्रेज़ी बैंकों के एक प्रतिनिधि, जिन्होंने सन 1930 के मध्य में ऑस्ट्रेलिया की यात्रा की थी, ने एक अपस्फीतिकर योजना प्रस्तावित की, जिसमें सरकारी खर्चों और वेतन में कटौती करना शामिल था। कोषपाल, टेड थियोडोर (Ted Theodore) ने एक आंशिक रूप से अपस्फीति पूर्ण योजना प्रस्तावित की, जबकि लेबर पार्टी के न्यू साउथ वेल्स के प्रीमियर, जैक लैंग (Jack Lang) ने एक उग्र सुधारवादी योजना का प्रस्ताव दिया, जिसमें विदेशी कर्ज़ों को नामजूंर कर दिया जाना प्रस्तावित था।[190] अंततः संघीय व राज्य सरकारों द्वारा जून 1931 को “प्रीमियर की योजना (Premier's Plan)” स्वीकार कर ली गई, जिसके बाद नायमेयर द्वारा समर्थित अपस्फीतिकर मॉडल को अपनाया गया और इसमें सरकारी खर्चों में 20% की कटौती, बैंक की ब्याज दरों में कमी और कर-वृद्धि शामिल थी।[191] मार्च 1931 में, लैंग ने घोषणा की कि लंदन को दिया जाने वाला ब्याज नहीं चुकाया जाएगा और संघीय सरकार को ॠण की पूर्ति करने के लिए दखल देना पड़ा. मई में, न्यू साउथ वेल्स की गवर्नमेंट सेविंग्स बैंक (Government Savings Bank) को बंद कर देना पड़ा. मेलबर्न प्रीमियरों के सम्मेलन में अत्यधिक अपस्फीतिकर नीति के एक भाग के रूप में वेतन तथा पेंशन में कटौती पर सहमति बनी, लेकिन लैंग ने यह योजना अस्वीकार कर दी। सन 1932 में सिडनी हार्बर ब्रिज के शानदार उदघाटन ने भी इस युवा संघ को परेशान करने वाले लगातार बढ़ते संकट से बहुत थोड़ी राहत दी। लाखों पाउंड तक बढ़ चुके कर्ज़, सार्वजनिक प्रदर्शनों और लैंग व स्कलिन, उसके बाद लायोन्स संघीय सरकारों, के बीच चालों और प्रति-चालों के साथ न्यू साउथ वेल्स के गवर्नर फिलिप गेम संघीय खज़ाने में धन का भुगतान न करने के लैंग के निर्देशों का परीक्षण कर रहे थे। गेम का निष्कर्ष था कि ऐसा करना ग़ैरकानूनी था। लैंग ने अपना आदेश वापस लेने से इंकार कर दिया और 13 मई को गवर्नर गेम को बरखास्त कर दिया गया। जून में हुए चुनावों में लैंग लेबर की सीट ढह गई।[192]
मई 1931 में एक नई उदारवादी राजनैतिक शक्ति, लेबर पार्टी से निकले सदस्यों और नैशनलिस्ट पार्टी के सदस्यों के बनी यूनाइटेड ऑस्ट्रेलिया पार्टी, का निर्माण हुआ। दिसंबर 1931 के संघीय चुनावों में, यूनाइटेड ऑस्ट्रेलिया पार्टी ने पूर्व लेबर सदस्य जोसेफ लायोन्स के नेतृत्व में आसानी से जीत दर्ज कर ली। वे सितंबर 1940 तक सत्ता में बने रहे। अक्सर लायोन्स की सरकार को मंदी से उबरने का श्रेय दिया जाता है, हालांकि इस बात को लेकर विवाद है कि इसमें उनकी नीतियों का कितना हाथ था।[193] स्टुअर्ट मैसिन्टायर इस बात की ओर भी सूचित करते हैं कि भले ही ऑस्ट्रेलिया की सकल उत्पाद दर (जीडीपी) (GDP) सन 1931-2 और 1938-9 के बीच £386.9 मिलियन से बढ़कर £485.9 मिलियन हो गया था, लेकिन जनसंख्या का प्रति व्यक्ति घरेलू उत्पाद अभी भी "1938-39 (£70.12) में सन 1920-21 (£70.04) के मुकाबले केवल कुछ ही शिलिंग बढ़ा था।[194]
ऑस्ट्रेलिया में बेरोज़गारी के विस्तार की सीमा को लेकर विवाद है, जिसके बारे में अक्सर उल्लेख किया जाता है कि सन 1932 में 29% के साथ यह अपने शीर्ष पर थी। इतिहासकार वेंडी लोवेन्स्टीन ने मंदी के मौखिक इतिहासों के अपने संग्रह में लिखा कि "अधिकांशतः ट्रेड यूनियन के आंकड़ों का उल्लेख किया जाता है, लेकिन जो लोग वहाँ थे…वे मानते हैं कि ये आंकड़े बेरोजगारी की भयावहता को कम करके बताते हैं”.[195] हालांकि, डेविड पॉट्स का तर्क है कि “पिछले तीस वर्षों में…इस काल के इतिहासकारों ने या तो उस आंकड़े (चरम वर्ष सन 1932 में 29%) को किसी भी आलोचना के बिना स्वीकार किया है, जिसमें ‘एक तिहाई’ बढ़ा दिया जाना शामिल है, या फिर उन्होंने क्रोधपूर्वक यह तर्क दिया है कि एक तिहाई बहुत कम है। "[196] पॉट्स बेरोज़गारी के एक उच्चतम राष्ट्रीय आंकड़े के रूप में 25% का सुझाव देते हैं।[197]
हालांकि, इस बात को लेकर बहुत कम आशंका दिखाई देती है कि बेरोज़गारी के स्तरों में बहुत अधिक अंतर था। इतिहासकार पीटर स्पीअररिट द्वारा एकत्रित आंकड़े दर्शाते हैं कि आरामदेह सिडनी के वूलाहरा उपनगर में सन 1933 में 17.8% पुरुष और 7.9% महिलाएँ बेरोज़गार थीं। कर्मचारी वर्ग के उपनगर पैडिंग्टन में, 41.3% पुरुष और 20.7% महिलाएँ बेरोज़गार के रूप में सूचीबद्ध थीं।[198] जेफरी स्पेंसली का तर्क है कि पुरुषों और महिलाओं के बीच अंतर के अलावा, बेरोज़गारी कुछ उद्योगों, जैसे इमारतों और निर्माण उद्योग, में बहुत अधिक थी, जबकि सार्वजनिक प्रशासन और व्यावसायिक क्षेत्रों में यह अपेक्षाकृत कम थी।[199] ग्रामीण क्षेत्रों में, सबसे बुरा प्रभाव उत्तर-पूर्वी विक्टोरिया और वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के गेहूं उत्पादक क्षेत्रों में रहने वाले छोटे किसानों पर पड़ा, जिन्होंने पाया कि उनकी अधिकांश आय ब्याज चुकाने में ही समाप्त हो गई थी।[200]
सन 1930 के दशक के अंतिम भाग से पूर्व तक, रक्षा ऑस्ट्रेलियाई लोगों के लिए कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं थी। सन 1937 के चुनावों में, दोनों राजनैतिक दलों ने, चीन में बढ़ते जापानी दखल और यूरोप में जर्मनी के बढ़ते दखल के संदर्भ में, रक्षा खर्च में वृद्धि की वकालत की. हालांकि इस बात को लेकर मतभेद था कि रक्षा खर्च का आवंटन किस प्रकार किया जाए. यूएपी (UAP) सरकार ने “साम्राज्यवादी रक्षा की एक नीति” के तहत ब्रिटेन के साथ सहयोग पर ज़ोर दिया। इसका आधार सिंगापुर स्थित ब्रिटिश नौसैनिक अड्डा और रॉयल नेवी का जंगी बेड़ा था, “जिसके बारे में यह आशा की जा रही थी कि आवश्यकता के समय इसका प्रयोग किया जाएगा."[201] युद्ध के वर्षों के दौरान किये गए रक्षा-खर्च से यह प्राथमिकता प्रतिबिम्बित होती है। सन 1921-1936 की अवधि में आरएएन (RAN) पर कुल £40 मिलियन, ऑस्ट्रेलियाई सेना पर £20 और आरएएफ (RAAF) (तीनों सेनाओं में “सबसे युवा” जिसकी स्थापना सन 1921 में हुई थी) पर £6 मिलियन खर्च किये गए। सन 1939 में, नौसेना, जिसमें दो हेवी क्रूज़र और चार लाइट क्रूज़र शामिल थे, युद्ध के लिए सज्जित सर्वश्रेष्ठ सैन्य-दल था।[202]
प्रशांत में जापानी इरादों के भय से, मेन्ज़ीस ने टोक्यो और वॉशिंगटन में स्वतंत्र दूतावासों की स्थापना की, ताकि गतिविधियों के बारे में स्वतंत्र सलाह प्राप्त की जा सके। [203] गैविन लॉन्ग का तर्क है कि लेबर विरोध ने उत्पादन के माध्यम से अत्यधिक राष्ट्रीय आत्म-निर्भरता तथा सेना व आरएएएफ (RAAF) पर अधिक बल दिया, जैसी कि जनरल स्टाफ के प्रमुख, जॉन लावारैक ने भी समर्थन किया था।[204] नवंबर 1936 में, लेबर नेता जॉन कर्टिन ने कहा कि "हमारी सहायता के लिए सेना भेजने हेतु ब्रिटिश राजनेताओं के सामर्थ्य, इच्छा तो दूर की बात है, पर ऑस्ट्रेलिया की निर्भरता ऑस्ट्रेलिया की रक्षा नीति के लिए एक बहुत बड़ा संकट है। "[205] जॉन रॉबर्ट्सन के अनुसार, "कुछ ब्रिटिश नेताओं को यह अहसास भी हो था कि उनका देश एक ही समय पर जापान और जर्मनी का सामना नहीं कर सकता." लेकिन "ऑस्ट्रेलियाई और ब्रिटिश रक्षा योजनाकारों के बीच…किसी भी बैठक (कों), जैसे सन 1937 की इम्पीरियल कॉन्फ्रेन्स (1937 Imperial Conference), में इस पर खुलकर चर्चा नहीं की गई ".[206]
सितंबर 1939 तक आते-आते ऑस्ट्रेलियाई सेना के नियमित सैनिकों की संख्या 3,000 हो गई।[207] सन 1938 के अंत में चलाये गए एक भर्ती अभियान, इसका नेतृत्व मेजर-जनरल थॉमस ब्लेमी ने किया था, ने आरक्षित नागरिक-सेना की संख्या बढ़ाकर लगभग 80,000 कर दी। [208] युद्ध के लिए प्रशिक्षित पहले डिविजन को छ्ठें डिविजन और दूसरे एआईएफ (AIF) का नाम दिया गया क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध में कागज़ पर 5 नागरिक सेना डिविजन और पहला एआईएफ (AIF) था।[209]
3 सितंबर 1939 को, प्रधानमंत्री, रॉबर्ट मेन्ज़ीस, ने एक रेडियो प्रसारण के द्वारा राष्ट्र को संबोधित किया:
“ My fellow Australians. It is my melancholy duty to inform you, officially, that, in consequence of the persistence by Germany in her invasion of Poland, Great Britain has declared war upon her, and that, as a result, Australia is also at war.[210] ”
इस प्रकार 6 वर्षों के वैश्विक संघर्ष में ऑस्ट्रेलिया की सहभागिता की शुरुआत हुई। ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों को स्थानों की एक असामान्य विविधता में लड़ना था, जिसमें तोब्रुक (Tobruk) में जर्मन टैंकों का सामना करने से लेकर यूरोप के ऊपर बमवर्षक मिशन और जापानी ज़ीरोस (Zeros) के खिलाफ राबौल पर हवाई हमले से लेकर, बॉर्नियो के जंगलों में युद्ध शामिल थे।[211]
घरेलू और विदेशों में सेवा देने के लिए एक स्वयंसेवी सैन्य बल, दूसरी ऑस्ट्रेलियाई इम्पीरियल फोर्स, की घोषणा की गई और स्थानीय सुरक्षा के लिए एक नागरिक सेना संगठित की गई। सिंगापुर में सुरक्षा-बलों की संख्या बढ़ाने में ब्रिटेन की विफलता से परेशान, मेन्ज़ीस यूरोप में टुकड़ियों को भेजने की प्रतिबद्धता में सतर्क थे। जून 1940 के अंत तक, फ्रांस, नॉर्वे और निम्न देश नाज़ी जर्मनी से हार चुके थे और ब्रिटेन अपने उपनिवेशों के साथ अकेला खड़ा था। मेन्ज़ीस से “सभी को युद्ध के लिए बाहर आने” का आह्वान किया और संघीय शक्तियों को बढ़ाया तथा अनिवार्य सैन्य-सेवा प्रस्तुत की। सन 1940 के चुनावों के बाद मेन्ज़ीस की अल्पमत सरकार केवल दो निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन पर टिकी थी
जनवरी 1941 में, मेन्ज़ीस ने सिंगापुर में सेना की कमज़ोरी पर चर्चा करने के लिए ब्रिटेन की यात्रा की। द ब्लिट्ज़ (The Blitz) के दौरान लंदन पहुँचने पर, अपनी यात्रा के दौरान मेन्ज़ीस को विन्सटन चर्चिल की ब्रिटिश वॉर केबिनेट में आमंत्रित किया गया। निकट आते जापान के खतरे और ग्रीक तथा क्रीट के अभियानों में परेशान ऑस्ट्रेलियाई सेना की समस्याओं के साथ ऑस्ट्रेलिया लौटे मेन्ज़ीस एक युद्ध केबिनेट की स्थापना के लिए पुनः लेबर पार्टी के पास पहुँचे। उनका समर्थन हासिल कर पाने में असफल होने और एक अकार्यक्षम संसदीय बहुमत के कारण मेन्ज़ीस ने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। उनका गठबंधन अगले एक माह तक सत्ता में बना रहा, जिसके बाद निर्दलीय सदस्यों ने अपनी राजनिष्ठा बदल ली और जॉन कर्टिन ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। [203] आठ हफ्तों बाद, जापान ने पर्ल हार्बर पर आक्रमण कर दिया।
सन 1940-41 में, ऑस्ट्रेलियाई सेनाओं ने भूमध्यसागरीय मंच, जिसमें ऑपरेशन कम्पास, तोब्रुक की घेराबंदी, ग्रीक अभियान, क्रीट की लड़ाई, सीरिया-लेबनान अभियान और एल-एलामिन की दूसरी लड़ाई शामिल हैं, में लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं. नवंबर 1941 में जब एचएमएएस (HMAS) सिडनी जर्मन छापामार कॉर्मोरान के साथ लड़ाई में पूरी तरह हार गया, तो युद्ध घरेलू भूमि के पास पहुँच गया।
ऑस्ट्रेलिया की अधिकांश सर्वश्रेष्ठ सेनाओं को मध्य-पूर्व में हिटलर के खिलाफ लड़ने पर प्रतिबद्ध पाकर जापान ने 8 दिसम्बर 1941 (पूर्वी ऑस्ट्रेलियाई मानक समय के अनुसार) को हवाई में अमरीकी नौसनिक अड्डे, पर्ल हार्बर, पर आक्रमण कर दिया। इसके कुछ ही समय बाद ब्रिटिश युद्धपोत एचएमएस प्रिंस ऑफ वेल्स (HMS Prince of Wales) तथा बैटलक्रूज़र एचएमएस रीपल्स (HMS Repulse), जिन्हें सिंगापुर को बचाने के लिए भेजा गया था, डूब गए। ऑस्ट्रेलिया किसी हमले के लिए तैयार नहीं था और उसके पास शस्रास्रों, आधुनिक लड़ाकू विमानों, भारी बमवर्षकों और विमान-वाहक पोतों सभी की कमी थी। चर्चिल से सैन्य सहायता की मांग करते हुए, 27 जनवरी 1941 को कर्टिन ने ऐतिहासिक घोषणा की:[212]
“ "The Australian Government...regards the Pacific struggle as primarily one in which the United States and Australia must have the fullest say in the direction of the democracies' fighting plan. Without inhibitions of any kind, I make it clear that Australia looks to America, free of any pangs as to our traditional links or kinship with the United Kingdom."[213] ”
शीघ्र ही ब्रिटिश मलाया भी ढह गया, जिससे ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्र स्तब्ध रह गया। सिंगापुर में लड़ रही ब्रिटिश, भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई टुकड़ियों के बीच तालमेल का अभाव था और 15 फ़रवरी 1942 को उन्होंने आत्म-समर्पण कर दिया। 15,000 ऑस्ट्रेलियाई सैनिक युद्धबंदी बना लिए गए। कर्टिन ने पूर्वानुमान लगाया कि अब ‘ऑस्ट्रेलिया के लिए युद्ध’ किया जाएगा. 19 फ़रवरी को, डार्विन पर विनाशक हवाई हमला हुआ, यह पहला अवसर था, जब शत्रु सेनाओं द्वारा ऑस्ट्रेलियाई मुख्यभूमि पर आक्रमण किया गया था। अगले 19 माग में, लगभग 100 बार ऑस्ट्रेलिया पर हवाई हमले किये गए।
युद्ध के लिए तैयार दो ऑस्ट्रेलियाई टुकड़ियाँ पहले ही मध्य-पूर्व से सिंगापुर के लिए रवाना हो चुकीं थीं। चर्चिल उन्हें बर्मा की मोड़ना चाहते थे, लेकिन कर्टिन ने ऐसा करने से इंकार कर दिया और बेचैनी से उनके ऑस्ट्रेलिया लौटने की प्रतीक्षा करने लगे। मार्च 1942 में अमरीकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट ने फिलीपीन्स में अपने कमांडर, जनरल डगलस मैकआर्थर को ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर एक प्रशांत रक्षा योजना बनाने का आदेश दिया। कर्टिन ऑस्ट्रेलियाई सेनाओं को जनरल मैकआर्थर, जो कि “दक्षिण पश्चिमी प्रशांत के सुप्रीम कमाण्डर (Supreme Commander of the South West Pacific)” बन गए, के नेतृत्व में रखने को राज़ी हो गए। इस प्रकार कर्टिन ने ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति में एक बुनियादी परिवर्तन की अध्यक्षता की थी। मार्च 1942 में मैकआर्थर ने अपना मुख्यालय मेलबर्न स्थानांतरित कर दिया और अमरीकी टुकड़ियों के ऑस्ट्रेलिया में एकत्रित होने की शुरुआत हुई। मई 1942 के अंत में, सिडनी हार्बर पर किये गए एक साहसी हमले में जापानी मिजेट पनडुब्बी ने एक आपूर्ति जलयान को डुबो दिया। 8 जून 1942 को, दो जापानी पनडुब्बियों ने कुछ समय तक सिडनी के पूर्वी उपनगरों और न्यूकैसल शहर पर बमबारी की। [214]
ऑस्ट्रेलिया को अलग-थलग करने के एक प्रयास में, जापानियों ने न्यू गिनी के ऑस्ट्रेलियाई क्षेत्र में स्थित पोर्ट मॉरेसबी पर एक समुद्री हमले की योजना बनाई। मई 1942 में, अमरीकी नौसेना ने जापान को कोरल समुद्र की लड़ाई (Battle of the Coral Sea) में उलझा दिया, जिससे यह हमला रूक गया। जून में हुई मिडवे की लड़ाई (Battle of Midway) में जापानी नौसेना को प्रभावी रूप से पराजित हुई और जापानी थल-सेना ने उत्तर की ओर से मॉरिसबी पर ज़मीनी धावा बोल दिया। [212] जुलाई व नवम्बर 1942 के बीच, ऑस्ट्रेलियाई सेनाओं ने न्यू गिनी के पर्वतीय क्षेत्रों में कोकोडा ट्रैक के रास्ते पर पड़ने वाले शहर पर जापानी हमले के प्रयासों को परास्त कर दिया। अगस्त 1942 में हुई मिल्ने बे की लड़ाई (Battle of Milne Bay) मित्र सेनाओं द्वारा जापानी थल सेनाओं की पहली संगठित पराजय थी।
ऑस्ट्रेलिया की नवीं टुकड़ी, जो कि अभी भी मध्य-पूर्व में लड़ रही थी, एल-एलामीन की पहली व दूसरी लड़ाई की कुछ भीषणतम लड़ाइयों में शामिल थी, जो मित्र सेनाओं के लिए उत्तरी अफ्रीका अभियान (North Africa Campaign) साबित हुई।
नवंबर 1942 से जनवरी 1943 के बीच बुना-गोना की लड़ाई ने न्यू गिनी अभियान के खट्टे अंतिम चरणों का सुर तैयार कर दिया, जो 1945 तक बना रहा। मैकआर्थर ने ऑस्ट्रेलियाई सेनाओं को उत्तर की ओर फिलीपीन्स और जापान पर हुए मुख्य हमलों से अलग रखा। ब्रोनियो में जापानी अड्डों पर जल और थल दोनों ओर से किये जाने वाले आक्रमणों का नेतृत्व ऑस्ट्रेलिया को सौंपा गया। कार्य के तनाव के कारण कर्टिन का स्वास्थ्य बिगड़ गया और युद्ध की समाप्ति के दो सप्ताह पहले ही उनकी मृत्यु हो गई, जिसके बाद बेन चीफली ने उनका स्थान लिया।
युद्ध के दौरान ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या 7 मिलियन थी, जिसेमें से लगभग 1 मिलियन पुरुषों व महिलाओं ने युद्ध-काल के छः वर्षों के दौरान सेना की किसी न किसी शाखा में अपनी सेवाएं दी। युद्ध के अंत तक, ऑस्ट्रेलियाई सेना में भर्ती हुए पुरुष व महिलाओं की कुल संख्या का योग 727,200 हो चुका था (जिनमें से 557,800 से विदेशों में अपनी सेवाएं दीं), 216,900 आरएएएफ (RAAF) में रहे और 48,900 आरएएन (RAN) में. 39,700 से अधिक लोग मारे गए या युद्ध बंदियों के रूप में उनकी मृत्यु हो गई, जिनमें से लगभग 8,000 की मृत्यु जापानियों के बंदियों के रूप में हुई। [215]
द्वितीय विश्व युद्ध के कारण ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था गंभीर रूप से प्रभावित हुई। [216] सन 1943-4 तक युद्ध पर हो रहा खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) (GDP) के 37% तक पहुँच गया, जबकि सन 1939-40 में यह खर्च 4% था।[217] सन 1939 से 1945 के बीच युद्ध पर कुल £2,949 मिलियन का खर्च आया।[218]
हालांकि सेना में भर्ती जून-जुलाई 1940 में अपने चरम पर थी, जब 70,000 से ज्यादा लोग भर्ती हुए थे, लेकिन अक्टूबर 1941 में बनी कर्टिन की लेबर सरकार ही “संपूर्ण ऑस्ट्रेलियाई आर्थिक, घरेलू और औद्योगिक जीवन के एक पूर्ण पुनरीक्षण” के लिए उत्तरदायी थी।[219] इंधन, कपड़ों तथा कुछ खाद्य-पदार्थों के नियंत्रित वितरण की शुरुआत की गई (हालांकि इसकी तीव्रता ब्रिटेन की तुलना में कम थी), क्रिसमस की छुट्टियों में कटौती की गई, "ब्राउन आउट्स (brown outs)" प्रस्तुत किये गए और सार्वजनिक परिवहन में कुछ कमी की गई। दिसंबर 1941 से, सरकार ने डार्विन और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया से सभी महिलाओं और बच्चों को हटवा दिया और जब जापान की सेनाएं आगे बढ़ने लगीं, तो दक्षिण पूर्वी एशिया से 10,000 से अधिक शरणार्थियों का आगमन हुआ।[220] जनवरी 1942 में, “समस्त रक्षा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ संभव पद्धति में ऑस्ट्रेलियन नागरिकों के संगठन को सुनिश्चित करने के लिए” मैनपॉवर डायरेक्टरेट (Manpower Directorate) की स्थापना की गई।[219] उद्योगों के युद्ध-संगठन मंत्री (Minister for War Organisation of Industry), जॉन डेडमैन ने मितव्ययिता और सरकारी का नियंत्रण की एक अभूतपूर्व सीमा प्रस्तुत की, जिसका विस्तार इतना अधिक था कि उन्हें “फादर क्रिसमस की हत्या करने वाला व्यक्ति (the man who killed Father Christmas)” कहा जाने लगा।
मई 1942 में, ऑस्ट्रेलिया में समान कर कानून प्रस्तुत किये गए और सरकारों ने आय के करारोपण पर अपना नियंत्रण त्याग दिया, "इस निर्णय का महत्व पूरे युद्ध के दौरान लिए गए किसी भी अन्य…की तुलना में अधिक था क्योंकि इसने संघीय सरकार को अधिक गहन शक्तियाँ प्रदान कीं और राज्यों की वित्तीय स्वायत्ता में कटौती की."[221]
युद्ध के कारण उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई। "सन 1939 में मशीन उपकरण बनाने वाली केवल तीन ऑस्ट्रेलियाई फर्म थीं, लेकिन सन 1943 तक सौ से अधिक फर्म यह कार्य कर रहीं थीं।"[222] सन 1939 में केवल कुछ विमानों वाली आरएएएफ (RAAF) सन 1945 तक मित्र सेनाओं की चौथी सबसे बड़ी वायुसेना बन चुकी थी। युद्ध की समाप्ति तक ऑस्ट्रेलिया में लाइसेंस के अंतर्गत बड़ी संख्या में विमानों का निर्माण किया गया, जिनमें ब्यूफोर्ट (Beaufort) और ब्यूफाइटर (Beaufighter) उल्लेखनीय हैं, हालांकि अधिकांश विमान ब्रिटेन और बाद में यूएसए (USA) से थे।[223] बूमरैंग फाइटर, जिसकी रचना और निर्माण सन 1942 के चार महीनों में किया गया, उस हताश स्थिति का प्रतीक है, जिसमें जापनियों को आगे बढ़ता हुआ देखकर ऑस्ट्रेलिया ने स्वयं को पाया।
ऑस्ट्रेलिया ने, वस्तुतः शून्य से, प्रत्यक्ष युद्ध उत्पादन में शामिल एक उल्लेखनीय महिला कार्य-बल का निर्माण भी कर लिया। सन 1939 से 1944 के बीच कारखानों में कार्यरत महिलाओं की संख्या 171,000 से बढ़कर 286,000 हो गई।[224] डेम एनिड लायन्स (Dame Enid Lyons), प्रधानमंत्री जोसेफ लायन्स की विधवा, सन 1943 में हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव्स के लिए चुनी जाने वाली पहली महिला बनीं, जो रॉबर्ट मेन्ज़ीस की नई केन्द्रीय-दक्षिणपंथी लिबरल पार्टी ऑफ ऑस्ट्रेलिया में शामिल हो गईं, जिसकी स्थापना सन 1945 में हुई थी। उसी चुनाव में, डोरोथी टैंग्नी (Dorothy Tangney) सीनेट के लिए चुनी जाने वाली पहली महिला बनीं।
राजनैतिक रूप से युद्धोत्तर काल के तुरंत बाद अधिकांशतः रॉबर्ट मेन्ज़ीस और लिबरल पार्टी ऑफ ऑस्ट्रेलिया प्रभावी रही और उन्होंने सन 1949 में बेन चीफली की लेबर सरकार को हराया, जिसका आंशिक कारण बैंको का राष्ट्रीयकरण करने का एक लेबर प्रस्ताव[225] तथा कोयला खदानों की एक पंगु कर देने वाली हड़ताल का समर्थन करना था, जो कि ऑस्ट्रेलियन कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में चल रही थी। मेन्ज़ीस देश के सबसे ज्यादा कार्यकाल वाले प्रधानमंत्री बन गए और ग्रामीण-आधारित कण्ट्री पार्टी के साथ गठबंधन में लिबरल पार्टी ने सन 1972 तक का प्रत्येक संघीय चुनाव जीता।
जैसा कि सन 1050 के दशक के संयुक्त राज्य अमरीका में हुआ था, समाज में कम्युनिस्ट प्रभाव के आरोपों के कारण राजनीति में तनाव उत्पन्न हुए. सोवियत प्रभुत्व वाले पूर्वी यूरोप से शरणार्थी ऑस्ट्रेलिया आए, जबकि ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी भाग में, माओ ने सन 1950 में चीनी नागरिक युद्ध जीत लिया और जून 1950 में कम्युनिस्ट उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर अधिकार कर लिया। मेन्ज़ीस सरकार से संयुक्त राज्य अमरीका के नेतृत्व वाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा दक्षिण कोरिया के लिए मांगी गई सैन्य सहायता पर प्रतिक्रिया देते हुए अपने नियंत्रण वाले जापानी क्षेत्रों से सेनाओं को मोड़ दिया, जिससे कोरियाई युद्ध में ऑस्ट्रेलिया की सहभागिता की शुरुआत हुई। एक कटु गतिरोध तक लड़ने के बाद, यूएन (UN) और उत्तर कोरिया ने जुलाई 1953 में एक युद्ध-विराम समझौते पर हस्ताक्षर किये। ऑस्ट्रेलियाई सेनाओं ने केपियोंग (Kapyong) तथा मारयान्ग सान (Maryang San) जैसी प्रमुख लड़ाइयों में भाग लिया था। 17,000 ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों ने अपनी सेवाएं दीं थीं और घायलों की संख्या 1,500 से अधिक थी, जिनमें से 339 की मृत्यु हो गई।[226]
कोरियाई युद्ध के दौरान, लिबरल सरकार ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ ऑस्ट्रेलिया पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया, पहले सन 1950 में एक विधेयक के द्वारा तथा इसके बाद सन 1951 में जनमत-संग्रह के द्वारा.[227] हालांकि ये दोनों ही प्रयास विफल रहे, लेकिन इसके बाद हुई कुछ अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं, जैसे सोवियत दूतावास के छोटे अधिकारी व्लादिमीर पेट्रोव की कार्यपरायणता में कमी, ने आसन्न संकट की भावना को बढ़ाया, जो राजनैतिक रूप से मेन्ज़ीस की लिबरल-सीपी (CP) सरकार के लिए लाभदायक सिद्ध हुआ क्योंकि ट्रेड यूनियन आंदोलन पर कम्युनिस्ट पार्टी के प्रभाव से जुड़ी चिन्ताओं से उपजे मतभेदों के कारण लेबर पार्टी का विभाजन हो गया। इन तनावों के कारण एक और कटु विघटन हुआ और पृथकतावादी डेमोक्रेटिक लेबर पार्टी (डीएलपी) (DLP) उभरकर सामने आई. सन 1974 तक डीएलपी (DLP) एक प्रभावी राजनैतिक शक्ति बनी रही और अक्सर सीनेट में सत्ता का संतुलन बनाये रखने में इसक हाथ रहा। इसके नेता लिबरल और कण्ट्री पार्टी के समर्थक थे।[228] सन 1951 में चीफली की मृत्यु के बाद एच.वी. एवैट ने लेबर पार्टी का नेतृत्व किया। एवैट सन 1948-49 के दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ की सामान्य सभा के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर चुके थे और उन्होंने मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र संघ के वैश्विक घोषणापत्र (संयुक्त राष्ट्र Universal Declaration of Human Rights) (1948) का मसौदा तैयार करने में सहायता की थी। एवैट ने सन 1960 में निवृत्त हो गए और आर्थर कॉलवेल ने नेता के रूप में उनका स्थान लिया, जबकि युवा गॉफ व्हिटलैम उनके सहायक बने।
मेन्ज़ीस सन 1950 के दशक में अनवरत जारी आर्थिक उछाल और व्यापक सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत – रॉक एण्ड रोल संगीत तथा टेलीविजन के आगमन के साथ – के दौरान नेतृत्व करते रहे। सन 1958 में, ऑस्ट्रेलियाई ग्रामीण संगीत गायक स्लिम डस्टी, जो ग्रामीण ऑस्ट्रेलिया के संगीतमय प्रतीक बने, का बुश बैले पब विथ नो बीयर (Pub With No Beer) ऑस्ट्रेलिया का पहला अंतर्राष्ट्रीय संगीत चार्ट हिट बना,[229] जबकि रॉक एन्ड रोलर जॉनी ओ’कीफी का वाइल्ड वन (Wild One) राष्ट्रीय चार्ट पर पहुँचने वाली पहली स्थानीय रिकॉर्डिंग था,[230] जो कि बींसवे स्थान तक पहुँचा।[231][232] 1960 के दशक की सुस्ती से पूर्व ऑस्ट्रेलियाई सिनेमा ने सन 1950 के दशक में अपनी स्वयं की बहुत थोड़ी-सी ही सामग्री निर्मित की थी, लेकिन ब्रिटिश और हॉलीवुड स्टूडियोज़ ने ऑस्ट्रेलियाई साहित्य से सफलता की गाथाएं गढ़ीं, जिनमें स्थानीय स्तर पर उभरे सितारे चिप्स रैफर्टी और पीटर फिंच शामिल थे।
मेन्ज़ीस राजतंत्र और ब्रिटिश कॉमनवेल्थ से जुड़ाव के कट्टर समर्थक बने रहे और उन्होंने संयुक्त राज्य अमरीका के साथ एक गठबंधन बनाया, लेकिन साथ ही जापान के साथ भी युद्धोपरांत व्यापार की शुरुआत की, जिससे ऑस्ट्रेलियाई कोयले, लौह-खनिज और खनिज संसाधनों के निर्यात में वृद्धि लगातार जारी रही, जिसके परिणामस्वरूप जापान ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया।[233]
सन 1965 में जब मेन्ज़ीस निवृत्त हुए, तो लिबरल नेता और प्रधानमंत्री के रूप में हैरोल्ड होल्ट ने उनका स्थान लिया। दिसंबर 1967 में एक सर्फ-बीच (surf beach) पर तैराकी के दौरान डूब जाने से होल्ट की मृत्यु हो गई और उनके स्थान पर जॉन गॉर्टन (1968–1971) और उनके बाद विलियम मैक्महोन (1971–1972) आए।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, चीफली की लेबर सरकार ने एक यूरोपीय आप्रवासन के एक व्यापक कार्यक्रम की शुरुआत की। सन 1945 में, आप्रवासी मामलों के मंत्री (Minister for Immigration), आर्थर कॉलवेल ने लिखा “यदि प्रशांत युद्ध के अनुभव ने हमें कोई एक बात सिखाई है, तो निश्चित ही वह बात ये है कि साठ लाख ऑस्ट्रेलियाई तीस लाख वर्ग मील की इस भूमि की अनंत काल तक रक्षा नहीं कर सकते.”[234] सभी राजनैतिक दलों का यह साझा निष्कर्ष था कि देश “या तो जनसंख्या वृद्धि करे या लुप्त होने को तैयार रहे (populate or perish).” कॉलवेल ने अन्य देशों से आने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर दस ब्रिटिश आप्रवासियों को प्राथमिकता देने की बात कही, हालांकि सरकार की सहायता के बावजूद ब्रिटिश आप्रवासियों की संख्या अपेक्षा से कम पड़ा गई।[235] प्रस्तुतिकर्ता बैरी (Barry), मॉरिस (Maurice), रॉबिन (Robin) और एन्डी गिब (Andy Gibb), जिनका परिवार सन 1958 में ब्रिस्बेन आकर बस गया, “10 पाउंड पॉम्स (10 pound poms)” का एक विशिष्ट परिवार थे, जिन्होंने बाद में बी जीज़ (Bee Gees) पॉप ग्रुप के रूप में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। [236]
आप्रवासन के परिणामस्वरूप पहली बार दक्षिणी और मध्य यूरोपीय लोग बड़ी संख्या में ऑस्ट्रेलिया आए। सन 1958 के एक सरकारी पत्रक ने पाठकों को आश्वासित किया कि अकुशल गैर-ब्रिटिश आप्रवासियों की आवश्यकता “निम्न स्तर की परियोजनाओं के लिए थी …अर्थात जिन कार्यों को करना ऑस्ट्रेलियाई या ब्रिटिश मजदूर सामान्यतः स्वीकार नहीं करते.”[237] ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था युद्ध से जर्जर हो चुके यूरोप से पूरी तरह विपरीत बनी रही और और नवागत आप्रवासियों को उभरते उत्पादन उद्योग और सरकार द्वारा समर्थित कार्यक्रमों, जैसे स्नोवी माउंटेन्स स्कीम (Snowy Mountains Scheme) में रोज़गार प्राप्त हुआ। दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया स्थित यह जलविद्युत व सिंचाई परिसर सन 1949 से 1974 के बीच बने सोलह प्रमुख बांधों तथा सात बिजली घरों से मिलकर बना था। आज भी यह ऑस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग परियोजना बनी हुई है। 30 से अधिक देशों के 100,000 लोगों के रोज़गार को रोज़गार प्रदान करने वाली इस परियोजना को कई लोग बहु-सांस्कृतिक ऑस्ट्रेलिया के जन्म का प्रतीक मानते हैं।[238]
सन 1945 से 1985 के बीच लगभग 4.2 मिलियन आप्रवासियों का आगमन हुआ, जिनमें से लगभग 40% ब्रिटेन और आयरलैंड से आए थे।[239] सन 1957 का उपन्यास दे’आर अ वीयर्ड मॉब (They're a Weird Mob) ऑस्ट्रेलिया आए एक इतालवी आप्रवासी का लोकप्रिय वर्णन है, हालांकि इसे ऑस्ट्रेलिया में जन्मे लेखक जॉन ओ’ग्रेडी ने लिखा है। सन 1959 में ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या 10 मिलियन हो गई।
मई 1958 में, मेन्ज़ीस सरकार ने आप्रवासन अधिनियम (Immigration Act) में निरंकुश रूप से शामिल की गई लिखित परीक्षा के स्थान पर एक एन्ट्री परमिट सिस्टम लागू किया, जो आर्थिक और कुशलता मापदण्डों को प्रतिबिम्बित करता था।[240][241] इसके अलावा सन 1960 के दशक में किये गए परिवर्तनों ने श्वेत ऑस्ट्रेलिया की नीति को प्रभावी रूप से समाप्त कर दिया. वैधानिक रूप से इसकी समाप्ति सन 1973 में हुई.
सन 1950 के दशक और सन 1960 के दशक में ऑस्ट्रेलिया ने समृद्धि में लक्षणीय उन्नति का आनंद प्राप्त किया। विनिर्माण उद्योग, जो पहले प्राथमिक उत्पादन के प्रभुत्व वाली अर्थव्यवस्था में एक छोटी-सी भूमिका निभा रहा था, का व्यापक विस्तार हुआ। नवम्बर 1948 में जनरल मोटर्स-होल्डन’स फिशरमैन (General Motors-Holden’s Fisherman) के बेंड कारखाने (Bend factory) से पहली होल्डन मोटर कार बनकर निकली. कार के स्वामित्व में तीव्रता से वृद्धि हुई – सन 1949 में प्रति 1,000 में 130 मालिकों से बढ़कर सन 1961 तक प्रति 1,000 में 271 मालिकों तक.[242] सन 1960 के दशक के प्रारम्भ तक आते-आते, होल्डन के चार प्रतिस्पर्धी ऑस्ट्रेलिया में अपने कारखाने स्थापित कर चुके थे, जिनमें 80,000 से 100,000 कर्मचारियों को रोज़गार मिला था, “जिनमें से कम से कम 4/5 आप्रवासी थे। ”[243]
सन 1960 के दशके में, लगभग 60% ऑस्ट्रेलियाई उत्पादन दर-सूचियों (tariffs) के द्वारा रक्षित था। व्यापारिक हितों और यूनियन आंदोलन से आते दबाव ने इस बात को सुनिश्चित किया, यह उच्च बना रहे। इतिहासकार जेफरी बोल्टन का सुझाव है कि सन 1960 के दशक की इस उच्च दर-सूची सुरक्षा के कारण कुछ उद्योग “आलस्य के शिकार” हो गए, वे अनुसंधान एवं विकास तथा नये बाज़ारों की खोज की उपेक्षा करने लगे। [244] सीएसआईआरओ (CSIRO) से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह अनुसंधान व विकास की पूर्ति करे.
ऊन व गेहूं के दाम उंचाई पर बने रहे और ऊन ऑस्ट्रेलिया के निर्यात का मुख्य आधार बना रहा। भेड़ों की संख्या सन 1950 के 113 मिलियन के मुकाबले सन 1965 में बढ़कर 171 मिलियन हो गई। इसी अवधि में ऊन के उत्पादन 518,000 से बढ़कर 819,000 टन हो गया।[245] गेहूं, ऊन और खनिजों ने सन 1950 से 1966 के बीच व्यापार में एक स्वस्थ संतुलन को सुनिश्चित किया।[246]
युद्धोत्तर काल में गृहनिर्माण उद्योग में आए अत्यधिक उछाल ने प्रमुख ऑस्ट्रेलियाई शहरों के उपनगरों में बहुत अधिक वृद्धि दर्ज की। सन 1966 की जनगणना तक, केवल 14% लोग ग्रामीण ऑस्ट्रेलिया में रहा करते थे, जबकि सन 1933 में यह संख्या 31% थी और केवल 8% लोग खेतों में रहते थे।[247] वास्तविक पूर्ण रोज़गार का अर्थ था, उच्च जीवन-स्तर और गृह स्वामित्व में नाटकीय वृद्धि. हालांकि, सभी लोग ऐसा नहीं मानते कि तीव्र उपनगरीय वृद्धि वांछित थी। विख्यात वास्तुविद और रचनाकार रॉबिन बॉयड, निर्मित ऑस्ट्रेलियाई परिवेश के एक आलोचक, ने ऑस्ट्रेलिया का वर्णन “’प्रशांत में स्थित स्थिर स्पंज’, जो कि विदेशी चलन की नकल कर रहा था और जिसमें स्व-निर्मित, मौलिक विचारों के आत्मविश्वास का अभाव था। ”[248] सन 1956 में, डैडाइस्ट (dadaist) हास्य-कलाकार बैरी हम्फ्रीज़ ने सन 1950 के दशक के मेलबर्न उपनगरों की एक गृह-गर्वित गृहिणी की पैरोडी के रूप में एडना ईवरेज का किरदार निभाया (हालांकि बाद में यह पात्र स्व-आसक्त सेलिब्रिटी संस्कृति की एक आलोचना में बदल गया). यह विचित्र ऑस्ट्रेलियाई पात्रों को आधार बनाकर रची गई उनकी अनेक व्यंग्यपूर्ण मंचीय और स्क्रीन रचनाओं में से पहली थी: सैंडी स्टोन, उपनगर-निवासी एक चिड़चिड़ी बुढ़िया, बैरी मैक्केन्ज़ी, लंदन में एक निष्कपट ऑस्ट्रेलियाई भगोड़ा (expat) और सर लेस पैटरसन, व्हिटलैम युग के राजनेता की एक अभद्र नकल.[249]
हालांकि कुछ लेखकों ने उपनगरीय जीवन का बचाव किया। पत्रकार क्रेग मैक्ग्रेगोर ने उपनगरीय जीवन को “…आप्रवासियों की आवश्यकताओं के हल…” के रूप में देखा. हफ स्ट्रेटन का तर्क है कि “वस्तुतः उपनगरों में बड़ी मात्रा में उदास जीवन बिताये जाते हैं … लेकिन उनमें से अधिकांश संभवतः अन्य स्थानों पर भी इतने ही बुरे रहे होते.”[250] इतिहासकार पीटर कफली ने मेलबर्न के बाहरी क्षेत्र में उभरते एक नये उपनगर में जीवन को किसी बच्चे के लिए एक प्रकार की आनंदमय उत्तेजना के रूप में याद किया है। “हमारी कल्पनाओं ने हमें जीवन को बहुत अधिक नीरस मानने से बचाया, जैसा कि विभिन्न प्रकार की (पड़ोसी) झाड़ियों में दूर-दूर तक घूम पाने में सक्षम होने की उन्मुक्त स्वतंत्रता ने भी किया …घरों के पीछे, सड़कों और गलियों में, खेल के मैदानों और आरक्षित स्थलों पर उपनगरों के बच्चों के लिए बहुत जगह रहा करती थी…”[251]
सन 1954 में, मेन्ज़ीस सरकार ने नई द्वि-स्तरीय टीवी प्रणाली प्रस्तुत करने की घोषणा की—सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त एक सेवा, जिसका संचालन एबीसी (ABC) द्वारा किया जाना था और सिडनी व मेलबर्न में दो व्यावसायिक सेवाएं, क्योंकि मेलबर्न में आयोजित सन 1956 के ग्रीष्म ओलंपिक ऑस्ट्रेलिया में टेलीविजन के आगमन के पीछे एक मुख्य चालक शक्ति साबित हुए.[252] रंगीन टीवी का प्रसारण सन 1975 में प्रारम्भ हुआ।
सन 1950 के दशक के प्रारम्भ में, मेन्ज़ीस सरकार ने ऑस्ट्रेलिया को संयुक्त राज्य अमरीका और पारंपरिक साथी ब्रिटेन, दोनों के साथ एक “तिहरे गठबंधन” में पाया।[253] पहले पहल “ऑस्ट्रेलियाई नेतृत्व ने कूटनीति में लगातार ब्रिटिश-समर्थक नीति का पलन किया,” जबकि उसी समय वह दक्षिण पूर्वी एशिया में संयुक्त राज्य अमरीका को शामिल करने के अवसरों की खोज भी करता रहा। [254] इस प्रकार सरकार ने कोरियाई युद्ध और मलय आपातकाल के लिए सेनाएं भेजने पर प्रतिबद्धता जाहिर की और सन 1952 के बाद ब्रिटिश परमाणु परीक्षणों की मेज़बानी की। [255] साथ ही, ऑस्ट्रेलिया स्वेज़ संकट के दौरान ब्रिटेन को समर्थन की पेशकश करने वाला एकमात्र कॉमनवेल्थ देश था।[256]
सन 1954 में, मेन्ज़ीस ने महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के लिए एक भावपूर्ण स्वागत की देखरेख की, जो कि शासन कर रही किसी रानी की प्रथम ऑस्ट्रेलिया यात्रा थी। सन 1953 में उनके राज्याभिषेक में सम्मिलित होने के लिए जाते समय, न्यूयॉर्क में एक हल्के-फुल्के भाषण के दौरान उन्होंने निम्नलिखित टिप्पणी की;
“ “We in Australia, of course, are British, if I may say so, to the boot heels…but we stand together–our people stand together –till the crack of doom.”[257] ”
हालांकि, जैसे दक्षिण पूर्वी एशिया में ब्रिटिश प्रभाव में कमी आने के साथ ही ऑस्ट्रेलियाई नेताओं के लिए और ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था के लिए संयुक्त राज्य अमरीका के साथ मित्रता अधिक महत्वपूर्ण बनती गई। ऑस्ट्रेलिया में ब्रिटिश निवेश सन 1970 के दशक के अंत तक लक्षणीय बना रहा, लेकिन सन 1950 के दशक और सन 1960 के दशक के दौरान ब्रिटेन के साथ व्यापार में कमी आई. सन 1950 के दशक के अंतिम भाग में, ऑस्ट्रेलियाई सेना ने अमरीकी सैन्य सामग्री का प्रयोग करके खुद को पुनर्सज्जित करना प्रारम्भ किया। सन 1962 में, संयुक्त राज्य अमरीका ने नॉर्थ वेस्ट केप में एक नौसैनिक संचार स्टेशन स्थापित किया, जो कि अगले दशक में निर्मित अनेक स्टेशनों में से पहला था।[258][259] अधिक महत्वपूर्ण रूप से, सन 1962 में, ऑस्ट्रेलियाई सेना के सलाहकारों को दक्षिणी वियतनामी बलों के प्रशिक्षण में सहायता करने के लिए भेजा गया, जो कि एक ऐसा संघर्ष था, जिसमें ब्रिटेन की कोई सहभागिता नहीं थी।
कूटनीतिज्ञ एलन रेनॉफ के अनुसार सन 1950 के दशक और 60 के दशक में ऑस्ट्रेलिया की लिबरल-कण्ट्री पार्टी सरकारों के अधीन ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति में साम्यवाद-विरोध प्रभावी विषय-वस्तु थी।[260] एक अन्य पूर्व कूटनीतिज्ञ, जेफरी क्लार्क का सुझाव है कि बीस वर्षों तक ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति के निर्णय विशिष्ट रूप से चीन के प्रति भय के द्वारा संचालित होते रहे। [261] एन्ज़ुस (ANZUS) सुरक्षा संधि, जिस पर सन 1951 में हस्ताक्षर किये गए थे, का मूल पुनः शस्र-सज्जित जापान के प्रति ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के भय में निहित था। संयुक्त राज्य अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड पर इसकी शर्तें अस्पष्ट हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई विदेश नीति की सोच पर इसका प्रभाव कई बार बहुत महत्वपूर्ण रहा। [262] सीटो (SEATO) संधि, जिस पर केवल तीन वर्षों बाद ही हस्ताक्षर किये गए, ने उभरते हुए शीत युद्ध में संयुक्त राज्य अमरीका के सहयोगी के रूप में ऑस्ट्रेलिया की स्थिति स्पष्ट रूप से प्रदर्शित कर दी।
सन 1965 तक आते-आते, ऑस्ट्रेलिया ने ऑस्ट्रेलियन आर्मी ट्रेनिंग टीम वियतनाम (Australian Army Training Team Vietnam) (एएटीटीवी) (AATTV) का आकार बढ़ा दिया था और अप्रैल में, सरकार ने अचानक यह घोषणा की कि “संयुक्त राज्य अमरीका के साथ गहन परामर्श के बाद”, टुकड़ियों की एक बटालियन दक्षिणी वियतनाम भेजी जानी थी।[263] संसद में, मेन्ज़ीस ने इस तर्क पर बल दिया कि “हमारा गठबंधन हमसे इस बात की मांग की है। ” संभवतः इसमें शामिल गठबंधन सीटो (SEATO) था, ऑस्ट्रेलिया सैन्य सहायता इसलिए दे रहा था क्योंकि दक्षिणी वियतनाम, जो कि सीटो (SEATO) का एक हस्ताक्षरकर्ता था, ने संभवतः इसका निवेदन किया था।[264] सन 1971 में जारी किये गए दस्तावेजों ने यह सूचित किया कि सेना भेजने का निर्णय ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमरीका द्वारा लिया गया था और ऐसा दक्षिणी वियतनाम के किसी निवेदन के आधार पर नहीं किया गया था।[265] सन 1968 तक आते-आते, पहले ऑस्ट्रेलियाई कार्य-बल (1st Australian Task Force) (1एटीएफ) (1ATF) के नुइ डात (Nui Dat) स्थित अड्डे पर किसी भी समय ऑस्ट्रेलियाई सेना की तीन बटालियनें रहा करतीं थीं, जबकि पूरे वियतनाम में नियुक्त एएटीटीवी (AATTV) सलाहकारों की संख्या इसके अतिरिक्त थी और, सैनिकों की कुल संख्या लगभग 8,000 तक बढ़कर अपने चरम पर पहुँच गई, जो कि सेना की प्रतिरोधक क्षमता के लगभग एक तिहाई थी। सन 1962 और 1972 के बीच, लगभग 60,000 सैनिकों ने वियतनाम में अपनी सेवाएं दीं, जिनमें मैदानी टुकड़ियां, नौसैनिक बल और वायु-सामग्री शामिल हैं।[266] विरोधी लेबर पार्टी ने वियतनाम के प्रति सैन्य प्रतिबद्धता तथा प्रतिबद्धता के इस स्तर का समर्थन करने के लिए आवश्यक राष्ट्रीय सेवा का विरोध किया।
जुलाई 1966 में, नये प्रधानमंत्री हेरोल्ड होल्ट ने संयुक्त राज्य अमरीका और विशिष्ट रूप से वियतनाम में इसकी भूमिका के प्रति अपनी सरकार का समर्थन व्यक्त किया। “मैं नहीं जानता कि इस देश की सुरक्षा के लिए लोग यदि संयुक्त राज्य अमरीका की मित्रता और शक्ति पाने का नहीं, तो फिर आखिर किस बात का प्रयास करेंगे.”[267] अधिक प्रसिद्ध रूप से, उसी वर्ष संयुक्त राज्य अमरीका की यात्रा के दौरान होल्ट ने राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉन्सन को आश्वासन दिया
“ “…I hope there is corner of your mind and heart which takes cheer from the fact that you have an admiring friend, a staunch friend, [Australia] that will be all the way with LBJ.”[268] ”
दिसंबर 1966 में हुए चुनावों, जो कि वियतनाम सहित राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर लड़े गए थे, में लिबरल-सीपी (CP) सरकार भारी बहुमत के साथ वापस लौटी. इसके कुछ ही महीनों बाद आर्थर कॉलवेल, जो कि सन 1960 से लेबर पार्टी के नेता रहे थे, ने अपने सहयोगी जॉफ व्हिटलैम के लिए पद छोड़ दिया।
होल्ट की भावनाओं और सन 1966 में उनकी चुनावी सफलता के बावजूद, संयुक्त राज्य अमरीका की ही तरह ऑस्ट्रेलिया में भी यह युद्ध अलोकप्रिय बन गया। सन 1968 के प्रारम्भ में हुए टेट अपमान (Tet Offensive) के बाद ऑस्ट्रेलिया की सहभागिता समाप्त करने के आंदोलन ने शक्ति प्राप्त की और अनिवार्य राष्ट्रीय सेवा (जिसका चुनाव मतपत्रों के द्वारा किया गया था) अत्यधिक अलोकप्रिय बनती गई। सन 1969 के चुनावों में, लोकप्रियता में भारी गिरावट के बावजूद सरकार बच गई। सन 1970 के मध्य में पूरे ऑस्ट्रेलिया में आयोजित ॠण-स्थगन रैलियों ने बड़ी संख्या में भीड़ा को आकर्षित किया – लेबर सांसद जिम कैर्न्स के नेतृत्व में मेलबर्न में आयोजित रिली में 100,000 लोग शामिल थे। निक्सन प्रशासन द्वारा युद्ध का वियतनामीकरण करने और टुकड़ियों को वापस बुलाने की शुरुआत किये जाने पर ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने भी ऐसा ही किया। नवंबर 1970 में 1एटीएफ (1ATF) को दो बटालियनों तक घटा दिया गया और नवंबर 1971 में, 1एटीएफ (1ATF) को वियतनाम से वापस बुला लिया गया। मध्य दिसंबर 1972 में व्हिटलैम लेबर सरकार ने एएटीटीवी (AATTV) के अंतिम सैन्य सलाहकार को वापस बुला लिया।[266]
वियतनाम में ऑस्ट्रेलिया की मौजूदगी 10 वर्षों तक रही और विशुद्ध मानवीय लागत में, 500 से ज्यादा लोग मारे गए और 2,000 से अधिक घायल हुए. सन 1962 और 1972 के बीच ऑस्ट्रेलिया को इस युद्ध पर $218 की लागत आई.[266]
सन 1960 के दशक के मध्य से, ऑस्ट्रेलिया में एक नया और अधिक तीक्ष्ण राष्ट्रवाद उभरने लगा। सन 1960 के दशक के प्रारम्भ में, नैशनल ट्रस्ट ऑफ ऑस्ट्रेलिया ने ऑस्ट्रेलिया की प्राकृतिक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण की शुरुआत की। सदैव अमरीकी और ब्रिटिश आयातों पर निर्भर रहे ऑस्ट्रेलियाई टीवी पर स्थानीय स्तर पर निर्मित नाटकों और हास्य-धारावाहिकों का प्रसारण प्रारम्भ हुआ और होमिसाइड (Homicide) जैसे कार्यक्रमों ने स्थानीय स्तर पर मज़बूत वफादार दर्शक-वर्ग हासिल किया, जबकि स्किपी द बुश कंगारू (Skippy the Bush Kangaroo) एक वैश्विक वस्तु बन गया। लिबरल प्रधानमंत्री जॉन गॉर्टन, युद्ध से भयभीत एक पूर्व फाइटर पायलट, जिन्होंने स्वयं का वर्णन “जूते की नोक तक ऑस्ट्रेलियाई” के रूप में किया था, ने ऑस्ट्रेलियन काउंसिल फॉर आर्ट्स, ऑस्ट्रेलियन फिल्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन और नैशनल फिल्म एन्ड टेलीविजन ट्रेनिंग स्कूल की स्थापना की। [269]
अनेक विलंबों के बाद अंततः सन 1973 में प्रतिष्ठित सिडनी ओपेरा हाउस की शुरुआत हुई। उसी वर्ष, पैट्रिक व्हाइट साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले ऑस्ट्रेलियाई बने। [270] सन 1970 के दशक तक आते-आते स्कूली पाठ्यक्रमों में ऑस्ट्रेलियाई इतिहास शामिल होना शुरु हो गया था[271] और 1970 के दशक के प्रारम्भ से ही ऑस्ट्रेलियाई सिनेमा ने ऐसी फीचर फिल्मों के नये ऑस्ट्रेलियाई युग का निर्माण प्रारम्भ कर दिया था, जो कि पूरी तरह ऑस्ट्रेलियाई विषय-वस्तुओं पर आधारित थीं। फिल्मों को आर्थिक सहायता देने का कार्य गॉर्टन सरकार के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ, लेकिन फिल्म-निर्माण को सहायता प्रदान करने में साउथ ऑस्ट्रेलियन फिल्म कॉर्पोरेशन सबसे आगे रहा और उनकी महान सफलताओं में सर्वोत्कृष्ट ऑस्ट्रेलियाई फिल्में संडे टू फार अवे (Sunday Too Far Away) (1974), पिकनिक ऐट हैंगिंग रॉक (Picnic at Hanging Rock) (1975), ब्रेकर मोरांट (Breaker Morant) (1980) तथा गैलिपोली (Gallipoli) (1981) शामिल हैं। सन 1975 में राष्ट्रीय निधिकरण संस्था, ऑस्ट्रेलियन फिल्म कमीशन, की स्थापना की गई।
सन 1969 में सीमा व उत्पाद शुल्क (Customs and Excise) के लिए नये लिबरल मंत्री, डॉन चिप, की नियुक्ति के बाद ऑस्ट्रेलियाई सेंसरशिप में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए. सन 1968 में, बैरी हम्फ्रीज़ और निकोलस गार्लैण्ड की कार्टून पुस्तिका को प्रतिबंधित कर दिया गया, जिसमें दंगेबाज़ पात्र बैरी मैक्केन्ज़ी को प्रस्तुत किया गया था। फिर भी इसके कुछ वर्षों बाद, इस पुस्तक को, आंशिक रूप से सरकार से प्राप्त आर्थिक सहायता के साथ, एक फिल्म के रूप में निर्मित किया गया था।[272] ऐने पेंडर का मत है कि बैरी मैक्केन्ज़ी का चरित्र ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रवाद को प्रतिष्ठित भी करता है और इस पर व्यंग्य भी करता है। इतिहासकार रिचर्ड व्हाइट का भी तर्क है कि “हालांकि सन 1970 के दशक में निर्मित अधिकांश नाटक, उपन्यास और फिल्में ऑस्ट्रेलियाई जीवन के पहलुओं के प्रति अत्यधिक आलोचनात्मक थे, लेकिन ‘नव राष्ट्रवाद’ ने उन्हें अवशोषित कर लिया और ऑस्ट्रेलियाई होने के लिए उनकी प्रशंसा की। ”[273]
सन 1973 में, व्यापारी केन मायर ने टिप्पणी की; “हम यह सोचना पसंद करते हैं कि हमारी स्वयं की एक अलग शैली है। हम अपनी अनेक कमियों को पीछे छोड़ चुके हैं। ..एक समय था, जब कला में रुचि रखने वाले पुरुषों की मर्दानगी को शक की नज़रों से देखा जाता था। ”[274] सन 1973 में, इतिहास जेफरी सर्ल, अपनी 1973 की फ्रॉम डेज़र्ट्स द प्रोफेट्स कम (From Deserts the Prophets Come) में तर्क देते हैं कि विश्वविद्यालयों और स्कूलों में शैक्षणिक अध्ययन के बजाय, उस काल तक “जब ऑस्ट्रेलिया का अधिकांश महत्वपूर्ण अध्ययन सृजनात्मक व्यवहारों में प्राप्त किया जाता रहा था”,[275] अंततः ऑस्ट्रेलिया “परिपक्व राष्ट्रवादिता (mature nationhood)” पर पहुँच चुका था।[276]
सन 1960 का दशक ऑस्ट्रेलियाई मूलनिवासियों के अधिकारों के लिए चलाये गए लंबे अभियानों में एक प्रमुख दशक था। सन 1959 में, ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी नागरिक पेंशन और मातृत्व भत्तों के योग्य माने गए।[उद्धरण चाहिए] सन 1962 में, रॉबर्ट मेन्ज़ीस के कॉमनवेल्थ इलेक्टोरल ऐक्ट (Commonwealth Electoral Act) में यह प्रावधान था कि सभी मूलनिवासी नागरिकों को संघीय चुनावों में नाम दर्ज करवाने और मतदान करने का अधिकार होना चाहिये (इससे पूर्व, क्वीन्सलैंड, वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया और नॉर्दर्न टेरिटरी में “राज्य के भागों” में रहने वाले मूलनिवासियों को, केवल भूतपूर्व सैनिकों के अलावा, मतदान से बाहर रखा गया था). सन 1965 में, क्वीन्सलैंड ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी नागरिकों को राज्य के चुनावों में मतदान का अधिकार देने वाले अंतिम राज्य बना। [277][278]
सन 1967 में होल्ट सरकार द्वारा करवाये गए एक जनमत संग्रह में, ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों ने 90% बहुमत के साथ ऑस्ट्रेलिया के संविधान में संशोधन करके ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों को राष्ट्रीय जनगणना में शामिल किये जाने तथा संघीय संसद को उनकी ओर से कानून बनाने की अनुमति प्रदान करने के समर्थन में मतदान किया।[279] एक काउंसिल फॉर ऐबोरिजनल अफेयर्स (Council for Aboriginal Affairs) की स्थापना की गई, हालांकि सन 1972 में व्हिटलैम लेबर सरकार के चुनाव से पूर्व तक संघीय सरकार ने अपनी नई शक्तियों के द्वारा अपेक्षाकृत बहुत कम कार्य किया।[280]
सन 1970 के दशक के दौरान ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों ने ऑस्ट्रेलियाई संसदों में प्रतिनिधित्व प्राप्त करना शुरु किया। सन 1971 में, क्वीन्सलैंड पार्लियामेंट ने निवृत्त हो रहे एक सांसद का स्थान लेने के लिए लिबरल पार्टी के नेविली बॉनर को नियुक्ता किया, जो कि संघीय संसद में आने वाले पहले ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी बने। सन 1972 के चुनाव में बॉनर पुनः लौटे और वे सन 1983 तक बने रहे। [278] सन 1974 में, नॉर्दर्न टेरिटरी में कण्ट्री लिबरल पार्टी के ह्यासिंथ टंग्युटैलम (Hyacinth Tungutalum) और नैशनल पार्टी ऑफ क्वीन्सलैंड के एरिक डीरल (Eric Deeral) क्षेत्रीय व राज्य विधायिकाओं के लिए चुने जाने वाले पहले मूलनिवासी बने। सन 1976 में, सर डगलस निकोलस को साउथ ऑस्ट्रेलिया का गवर्नर नियुक्त किया गया और इस प्रकार वे ऑस्ट्रेलिया में किसी उप-राजकीय पद पर पहुँचने वाले पहले ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी बने। अगस्त 2010 में ऑस्ट्रेलियाई लिबरल केन व्याट (Ken Wyatt) से पूर्व तक कोई मूलनिवासी व्यक्ति हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव्ज़ के लिए नहीं चुना गया था।[278]
सन 1960 के दशक से ही विभिन्न समूह तथा व्यक्ति समानता और सामाजिक न्याय के प्रयासों में सक्रिय थे। सन 1960 के दशक के मध्य में, सिडनी विश्वविद्यालय से निकले सर्वप्रथम ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी स्नातकों में से एक, चार्ल्स पर्किन्स ने भेदभाव और असमानता को उजागर करने के लिए ऑस्ट्रेलिया के कुछ भागों में स्वतंत्रता वाहन-रैलियाँ आयोजित करने में सहायता प्रदान की। सन 1966 में, वेव हिल स्टेशन (जिसका स्वामित्व वेस्टी ग्रुप के पास था) के गुरिंदजी (Gurindji) लोगों ने समान वेतन और भूमि अधिकारों को मान्यता दिये जाने की मांग को लेकर हड़ताल की शुरुआत की। [281]
व्हिटलैम सरकार के प्रारम्भिक कानूनों में से एक जस्टिस वुडवर्ड के नेतृत्व में नॉर्दर्द टेरिटरी में भूमि अधिकारों के लिए एक रॉयल कमीशन की स्थापना करना था।[282] इसके निष्कर्षों पर आधारित विधेयक को सन 1976 में फ्रेसर लिबरल-नैशनल कण्ट्री पार्टी सरकार ने ऐबोरिजनल लैंड राइट्स ऐक्ट 1976 (Aboriginal Land Rights Act 1976) के रूप में कानून में परिवर्तित किया।
सन 1992 में, हाईकोर्ट ऑफ ऑस्ट्रेलिया ने मैबो के मामले में अपने निर्णय को खारिज कर दिया और घोषणा की कि टेरा नलिस (terra nullius) की पुरानी कानूनी अवधारणा अवैधानिक थी। उसी वर्ष, प्रधानमंत्री पॉल कीटिंग ने अपने रेडफर्न पार्क भाषण में कहा कि ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी समुदायों को लगातार झेलनी पड़ रही समस्याओं के लिए यूरोपीय आप्रवासी ज़िम्मेदार थे: ‘हमने हत्याएँ कीं. हमने बच्चों को उनकी माताओं से छीन लिया। हमने भेदभाव और बहिष्कार किया। यह हमारी अज्ञानता और हमारा पूर्वाग्रह था’. सन 1999 में संसद ने सामंजस्य का एक प्रस्ताव (Motion of Reconciliation) पारित किया, जिसका मसौदा प्रधानमंत्री जॉन हॉवर्ड तथा ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी सीनेटर एडेन रिजवे द्वारा तैयार किया गया था, जिसके अनुसार ऑस्ट्रेलियाई मूलनिवासियों के साथ किये गए दुर्व्यवहार को “हमारे राष्ट्रीय इतिहास का सबसे कलुषित अध्याय” कहा गया था।[283] सन 2008 में, प्रधानमंत्री केविन रुड ने चुरा ली गई पीढ़ियों (Stolen Generations) के सदस्यों के प्रति ऑस्ट्रेलियाई सरकार की ओर से सार्वजनिक क्षमायाचना जारी की।
मई 1974 में, कॉमनवेल्थ कोर्ट ऑफ कन्सिलिएशन एन्ड आर्बिट्रेशन (Commonwealth Court of Conciliation and Arbitration) ने महिलाओं को पूर्ण वयस्क वेतन पाने का अधिकार प्रदान किया। हालांकि विशिष्ट उद्योगों में महिलाओं की नियुक्ति का नियुक्ति का विरोध सन 1970 के दशक तक बना रहा। यूनियन आंदोलन के तत्वों की ओर से आते अवरोधों के कारण मेलबर्न में चलने वाली ट्राम के चालकों के रूप में महिलाओं की नियुक्ति सन 1975 के पूर्व तक नहीं की जा सकी और सन 1979 तक सर रेजिनाल्ड एन्सेट महिलाओं को पायलट के रूप में प्रशिक्षण दिये जाने की अनुमति प्रदान करने से इंकार करते रहे। [284]
उन्नीसवीं सदी के अंत में महिलाओं को मतदान का अधिकार प्रदान करने में ऑस्ट्रेलिया ने विश्व का नेतृत्व किया था और सन 1921 में एडिथ कोवान वेस्ट ऑस्ट्रेलियन लेजिस्लेटिव असेम्बली के लिए चुनी गईं। सन 1949 में डेम एनिड लायन्स रॉबर्ट मेन्ज़ीस के मंत्री-मण्डल में केबिनेट के किसी पद पर रहने वाली पहली महिला बनीं और अंततः सन 1989 में ऑस्ट्रेलियाई राजधानी क्षेत्र (Australian Capital Territory) की मुख्यमंत्री के रूप में चुनीं गईं रोज़मेरी फॉलेट किसी राज्य या क्षेत्र का नेतृत्व करने वाली पहली महिला बनीं। सन 2010 तक आते-आते, ऑस्ट्रेलिया के सबसे पुराने शहर, सिडनी, के लोगों के सामने उनके ऊपर स्थित प्रत्येक प्रमुख राजनैतिक पद पर महिलाएँ थीं, जहाँ लॉर्ड मेयर के रूप में क्लोवर मूर, न्यू साउथ वेल्स की प्रीमियर के रूप में क्रिस्टीना केनीली, न्यू साउथ वेल्स की गवर्नर के रूप में मैरी बशीर, प्रधानमंत्री के रूप में जूलिया गिलार्ड, ऑस्ट्रेलिया की गवर्नर जनरल के रूप में क्वेंटिन ब्रिस तथा ऑस्ट्रेलिया की साम्राज्ञी के रूप में एलिज़ाबेथ द्वितीय विराजमान थीं।[285]
23 वर्षों तक विपक्ष में रहने के बाद दिसंबर 1972 में, लेबर पार्टी ने गॉफ व्हिटलैम के नेतृत्व में चुनावों में जीत हासिल की और सामाजिक परिवर्तन व सुधार का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम प्रस्तुत किया। चुनावों से पूर्व व्हिटलैम ने कहा था: “हमारे कार्य के तीन मुख्य लक्ष्य हैं। ये हैं – समानता को प्रोत्साहित करना; ऑस्ट्रेलियाई जनता को … निर्णय प्रक्रिया में … शामिल करना; तथा प्रतिभा को मुक्त करना और ऑस्ट्रेलियाई जनता के क्षितिजों को ऊपर उठाना.”[286]
व्हिटलैम की कार्यवाहियाँ अविलम्ब और नाटकीय थीं। कुछ ही हफ्तों के भीतर वियतनाम से अंतिम सैन्य सलाहकार को वापस बुला लिया गया और राष्ट्रीय सेवा समाप्त कर दी गई। चीन के जनवादी गणतंत्र (People’s Republic of China) को मान्यता प्रदान की गई (व्हिटलैम ने सन 1971 में विपक्ष के नेता के रूप में चीन की यात्रा की थी) और ताइवान स्थित दूतावास को बंद कर दिया गया।[287][288] अगले कुछ वर्षों में, विश्वविद्यालयीन शुल्क को हटा दिया गया और राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा योजना की स्थापना की गई। विद्यालयों को दिये जाने वाले अनुदान में महत्वपूर्ण परिवर्तन किये गए, जिन्हें व्हिटलैम ने अपनी सरकार की “सर्वाधिक चिरस्थायी एकल उपलब्धि” करार दिया। [289]
व्हिटलैम सरकार के कार्यक्रम को कुछ ऑस्ट्रेलियाई जनता ने पसंद किया, लेकिन सभी ने नहीं। कुछ राज्य सरकारें खुलकर इसका विरोध कर रहीं थीं और चूंकि सीनेट पर इसका नियंत्रण नहीं था, अतः इसके अधिकांश विधेयक या तो खारिज कर दिये गए या उनमें संशोधन किया गया। क्वीन्सलैंड कंट्री पार्टी की जो जेल्के-पीटरसन (Joh Bjelke-Petersen) सरकार के रिश्ते संघीय सरकार के साथ विशिष्ट रूप से कटु थे। मई 1974 के चुनावों में दोबारा चुने जाने के बाद भी सीनेट इसके राजनैतिक कार्यक्रम के लिए एक अवरोध बनी रही। अगस्त 1974 में, संसद के एकमात्र संयुक्त सत्र में विधेयक के छः मुख्य अंश पारित किये गए।
सन 1974 में, व्हिटलैम ने लेबर पार्टी के पूर्व सदस्य और न्यू साउथ वेल्स के मुख्य न्यायाधीश जॉन कैर (John Kerr) को गवर्नर जनरल के रूप में चुना। सन 1974 के चुनाव में व्हिटलैम सरकार एक घटे हुए बहुमत के साथ निचले सदन के लिए दोबारा चुनी गई। विदेशी ॠण में वृद्धि करने के इसके अकुशल प्रयासों के बाद सरकार को अक्षम करार देते हुए, विपक्षी लिबरल-कण्ट्री पार्टी गठबंधन ने सीनेट में सरकार के आर्थिक प्रस्तावों को तब तक लटकाये रखा, जब तक कि सरकार ने नये चुनावों का वचन न दे दे। व्हिटलैम ने इससे इंकार कर दिया, नेता प्रतिपक्ष मैल्कम फ्रेसर इस पर अड़े रहे। यह गतिरोध तब समाप्त हुआ, जब 11 नवम्बर 1975 को व्हिटलैम सरकार गवर्नर जनरल जॉन कैर द्वारा बरखास्त कर दी गई और चुनावों को टालकर फ्रेसर को कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया गया। ऑस्ट्रेलियाई संविधान द्वारा गवर्नर जनरल को दिये गए “आरक्षित अधिकार” रानी के किसी प्रतिनिधि द्वारा कोई चेतावनी दिये बिना एक चुनी हुई सरकार को बरखास्त करने की अनुमति देते थे।[290]
सन 1975 के अंत में आयोजित चुनावों में मैल्कम फ्रेसर और उनके गठबंधन ने भारी जीत हासिल की।
फ्रेसर सरकार ने लगातार दो अगले चुनाव जीते। फ्रेसर ने व्हिटलैम युग के सामाजिक सुधारों में से कुछ को जारी रखते हुए राजकोषीय नियंत्रण बढ़ाने का प्रयास किया। उनकी सरकार में प्रथम ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी संघीय प्रतिनिधि, नेविली बॉनर को शामिल किया गया था और सन 1976 में संसद ने ऐबोरिजनल लैंड राइट्स ऐक्ट 1976 (Aboriginal Land Rights Act 1976) पारित किया, जिसने, हालांकि यह नॉर्दन टेरिटरी में सीमित था, ने कुछ पारंपरिक भूमियों को “अहस्तांतरणीय” मुक्त दर्जा प्रदान करने को स्वीकृत दी। फ्रेसर ने बहु-सांस्कृतिक प्रसारणकर्ता एसबीएस (SBS) की स्थापना की, नाव से आए वियतनामी शरणार्थियों का स्वागत किया, रंगभेद का पालन करने वाले दक्षिण अफ्रीका और रोडेशिया में अल्पमत वाले श्वेत शासन का विरोध किया तथा सोवियत विस्तारवाद का विरोध किया। हालांकि आर्थिक सुधारों के लिए किसी भी महत्वपूर्ण कार्यक्रम की शुरुआत नहीं की गई और सन 1983 तक आते-आते ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में थी, जिस पर एक भीषण सूखे का भी प्रभाव पड़ा. फ्रेसर ने “राज्य के अधिकारों” को प्रोत्साहित किया था और उनकी सरकार ने सन 1982 में तस्मानिया में फ्रैंकलिन बांध के निर्माण को रोकने के लिए कॉमनवेल्थ अधिकारों का प्रयोग करने से इंकार कर दिया। [291] सन 1977 में, एक लिबरल मंत्री, डॉन चिप ने अपनी पार्टी से अलग होकर एक नई सामाजिक उदारवादी पार्टी, ऑस्ट्रेलियन डेमोक्रेट्स, का गठन कर लिया और फ्रैंकलिन बांध के प्रस्ताव ने ऑस्ट्रेलिया में एक प्रभावी पर्यावरण आंदोलन के शुरु होने में योगदान दिया, जिसकी शाखाओं में ऑस्ट्रेलियन ग्रीन्स, एक राजनैतिक दल, जो बाद में पर्यावरणवाद और साथ ही वाम-पंथी सामाजिक व आर्थिक नीतियों के पालन के लिए तस्मानिया से बाहर भी बढ़ा, शामिल थीं।[292]
बॉब हॉक, व्हिटलैम की तुलना में एक कम ध्रुवीकर (polarising) लेबर नेता, ने सन 1983 के चुनावों में फ्रेसर को पराजित किया। इस नई सरकार ने हाइकोर्ट ऑफ ऑस्ट्रेलिया के माध्यम से फ्रैंकलिन बांध परियोजना पर रोक लगा दी। कोषाध्यक्ष पॉल कीटिंग के साथ मिलकर हॉक ने सूक्ष्म-आर्थिक और औद्योगिक संबंधों के सुधार का कार्य अपने हाथों में लिया, जिसकी रचना दक्षता और प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए की गई थी। व्हिटलैम मॉडल की प्रारम्भिक विफलता और फ्रेसर के नेतृत्व में आंशिक विखण्डन के बाद हॉक ने स्वास्थ्य बीमा की एक नई सकल प्रणाली की पुनर्स्थापना की, जिसे मेडिकेयर (Medicare) नाम दिया गया। उद्योग व नौकरियों की रक्षा करने के लिए हॉक और कीटिंग ने दर-सूचियों (Tariffs) के लिए पारंपरिक लेबर समर्थन समाप्त कर दिया। इसके बाद उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के वित्तीय तंत्र को नियंत्रण मुक्त कर दिया और ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का ‘मुद्रा संतुलन’ बनाया। [293]
सन 1988 में कैनबरा में नये संसद भवन के उदघाटन के साथ ही ऑस्ट्रेलिया की दो सौवीं वर्षगांठ मनाई गई। अगले वर्ष ऑस्ट्रेलियाई राजधानी क्षेत्र (Australian Capital Territory) ने स्वशासन का अधिकार प्राप्त किया और जर्विस बे (Jervis Bay) क्षेत्रों के मंत्री (Minister for Territories) के अधीन एक पृथक क्षेत्र बना।
संयुक्त राज्य अमरीका के साथ गठबंधन के एक समर्थक, हॉक ने सन 1990 में इराक द्वारा कुवैत पर किये गए कब्जे के बाद, खाड़ी युद्ध में ऑस्ट्रेलिया नौसैनिक बल भेजने पर प्रतिबद्धता जाहिर की। चार सफल चुनावों के बाद, लेकिन एक लड़खड़ाती ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था और बढ़ती बेरोजगारी के बीच, हॉक और कीटिंग के बीच तीव्र प्रतिस्पर्धा के परिणामस्वरूप लेबर पार्टी को अपने नेता के रूप में हॉक को हटाना पड़ा और सन 1991 में पॉल कीटिंग प्रधानमंत्री बने। [293]
सन 1992 में बेरोजगारी 11.4% पर पहुँच गई – जो कि महान मंदी के सर्वाधिक ऊंचाई पर थी। लिबरल-नैशनल विपक्ष ने सन 1993 के चुनावों में जाने के लिए आर्थिक सुधार की एक आशावादी योजना प्रस्तावित की थी, जिसमें वस्तुओं व सेवा पर एक नया कर प्रस्तुत किया जाना शामिल था। कीटिंग ने कोषपालों को बदल दिया और कर के सख्त खिलाफ प्रचार करके सन 1993 के चुनावों में जीत हासिल कर ली। अपने कार्यकाल के दौरान, कीटिंग ने, इंडोनेशियाई राष्ट्रपति सुहार्तो के साथ निकटता से सहयोग करते हुए, एशिया प्रशांत क्षेत्र में अपने संबंधों पर बल दिया और आर्थिक सहयोग के लिए एक प्रमुख मंच के रूप में एपेक (APEC) की भूमिका को बढ़ाने के लिए अभियान चलाया। कीटिंग मूलनिवासियों के मामलों को लेकर भी सक्रिय थे और सन 1992 में हाइकोर्ट ऑफ ऑस्ट्रेलिया के ऐतिहासिक मैबो (Mabo) निर्णय के लिए, मूलनिवासियों को भूमि का अधिकार प्रदान किये जाने के लिए विधायिका की प्रतिक्रिया की आवश्यकता थी, जिसकी समाप्ति नेटिव टाइटल ऐक्ट 1993 (Native Title Act 1993) एवं लैंड फंड ऐक्ट 1994 (Land Fund Act 1994) के रूप में हुई। सन 1993 में, ऑस्ट्रेलिया के एक गणतंत्र बनने के विकल्पों का परीक्षण करने के लिए कीटिंग ने एक रिपब्लिक ऐडवाइज़री कमिटी (Republic Advisory Committee) की स्थापना की। विदेशी कर्ज, ब्याज और बेरोजगारी की उच्च दरों के साथ तथा मंत्रियों के त्यागपत्रों की एक श्रृंखला के बाद सन 1996 के चुनावों में कीटिंग लिबरल नेता जॉन हॉवर्ड से हार गए।[294]
जॉन हॉवर्ड ने सन 1996 से लेकर सन 2007 तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया, जो कि रॉबर्ट मेन्ज़ीस के बाद किसी भी प्रधानमंत्री का दूसरा सबसे लंबा कार्यकाल था। पोर्ट आर्थर पर हुई एक सामूहिक गोलीबारी के बाद शुरु की गई राष्ट्रीय बंदूक नियंत्रण योजना हॉवर्ड सरकार द्वारा प्रारम्भ किये गए शुरुआती कार्यक्रमों में से एक थी। इस सरकार ने औद्योगिक संबंधों में सुधार भी प्रस्तुत किये, विशेषतः जलीय सीमा पर दक्षता के संदर्भ में. सन 1998 के चुनावों के बाद, हॉवर्ड और कोषाध्यक्ष पीटर कॉस्टेलो ने वस्तुओं और सेवाओं पर कर (Goods and Services Tax) (जीएसटी) (GST) का प्रस्ताव रखा, जिसे वे सन 2000 में मतदाताओं तक सफलतापूर्वक ले गए। सन 1999 में, ऑस्ट्रेलिया ने पूर्वी तिमोर में राजनैतिक हिंसा के बाद उस देश में लोकतंत्र और स्वतंत्रता की स्थापना में सहायता करने के लिए पूर्वी तिमोर में संयुक्त राष्ट्र संघ की एक सेना का नेतृत्व किया।[295]
ऑस्ट्रेलिया की साम्राज्ञी के रूप में महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के साथ ऑस्ट्रेलिया आज भी एक संवैधानिक राजतंत्र बना हुआ है; एक गणतंत्र की स्थापना के लिए सन 1999 में आयोजित एक जनमत संग्रह को आंशिक रूप से अस्वीकार कर दिया। अपने ब्रिटिश अतीत के साथ ऑस्ट्रेलिया के संबंध लगातार कमज़ोर होते जा रहे हैं, हालांकि नागरिकों के व्यक्तिगत स्तर पर तथा सांस्कृतिक स्तर पर ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बीच संबंध आज भी उल्लेखनीय बने हुए हैं।
ऑस्ट्रेलिया ने सिडनी में सन 2000 में आयोजित ग्रीष्मकालीन ऑलम्पिक खेलों की मेजबानी के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अत्यधिक प्रशंसा प्राप्त की। इसके उदघाटन समारोह में ऑस्ट्रेलियाई प्रहचान और इतिहास को प्रस्तुत किया गया तथा मशाल कार्यक्रम में महिला खिलाड़ियों को सम्मानित किया गया, जिसके अंतर्गत तैराक डॉन फ्रेसर ने ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी धावक कैथी फ्रीमैन के साथ मिलकर ओलम्पिक मशाल प्रज्वलित की। सन 2001 में, ऑस्ट्रेलिया ने एक संघ के रूप में अपनी शताब्दी मनाई और अनेक घटनाओं, जिनमें ऑस्ट्रेलियाई समाज या सरकार के प्रति अपना योगदान देने वाले लोगों को सम्मानित करने के लिए शताब्दी पदक (Centenary Medal) का निर्माण भी शामिल है, के साथ एक कार्यक्रम आयोजित किया गया।
हॉवर्ड सरकार ने सकल रूप से आप्रवासन का विस्तार किया, लेकिन नावों पर सवार होकर अनधिकृत रूप से आने वाले लोगों को हतोत्साहित करने के लिए अक्सर विवादास्पद कड़े आप्रवासन कानून भी लागू किये। हालांकि हॉवर्ड कॉमनवेल्थ के साथ पारंपरिक संबंधों तथा संयुक्त राज्य अमरीका के साथ गठबंधन के प्रबल समर्थक थे, लेकिन एशिया, विशेषतः चीन, के साथ व्यापार में नाटकीय वृद्धि हुई और ऑस्ट्रेलिया ने समृद्धि के एक विस्तारित काल का आनंद उठाया. संयोग से सन 2001 की 11 सितंबर को हुए आतंकी हमलों के दौरान हॉवर्ड ही प्रधानमंत्री थे। इस घटना के बाद, सरकार ने अफगानिस्तान युद्ध (दोनों दलों के समर्थन के साथ) एवं इराक युद्ध (अन्य राजनैतिक दलों की असहमति के साथ) के लिए सैन्य टुकड़ियाँ भेजने पर प्रतिबद्धता जाहिर की। [295]
सन 2007 के चुनावों में लेबर पार्टी के केविन रूड ने हॉवर्ड को पराजित किया और वे जून 2010 तक प्रधानमंत्री पद पर बने रहे, जिसके बाद पार्टी के नेता के रूप में जूलिया गिलार्ड ने उनका स्थान लिया। रूड ने प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल का प्रयोग क्योटो प्रोटोकॉल को सांकेतिक रूप से स्वीकार करने और खो चुकी पीढ़ियों (Stolen Generation) (वे ऑस्ट्रेलियाई मूलनिवासी, जिन्हें राज्य द्वारा बीसवीं सदी के प्रारम्भिक काल से लेकर सन 1960 के दशक के दौरान उनके अभिभावकों से छीन लिया गया था) के प्रति ऐतिहासिक संसदीय क्षमायाचना[296] का नेतृत्व करने के लिए किया। मैंडरिन चीनी भाषी इस पूर्व कूटनीतिज्ञ ने जोशपूर्ण विदेश नीति भी अपनाई और ग्लोबल वॉर्मिंग का मुकाबला करने के लिए ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था में कार्बन पर मूल्य (price on carbon) की सबसे पहले शुरुआत की। उनके प्रधानमंत्रित्व-काल में ही सन 2007-2010 के आर्थिक संकट के शुरुआती चरण भी आए, जिनके प्रति प्रतिक्रिया देते हुए उनकी सरकार ने आर्थिक सहायता के बड़े पैकेज प्रस्तुत किये – जिनका प्रबंधन बाद में विवादास्पद साबित हुआ।[297]
एशिया के साथ बढ़ते व्यापार के बीच आर्थिक सुधार के ढाई दशक बाद, अधिकांश अन्य पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत, ऑस्ट्रेलिया आर्थिक बाज़ारों में आई गिरावट के बावजूद मंदी से बचने से सफल रहा। [298]
रूड की उत्तराधिकारी, जूलिया गिलार्ड, सन 2010 में टोनी एबॉट के लिबरल-नैशनल गठबंधन के खिलाफ बहुत कम अंतर से हुई जीत, जिसके परिणामस्वरूप सन 1940 के चुनावों के बाद पहली बार ऑस्ट्रेलिया में एक त्रिशंकु संसद बनी, का नेतृत्व करते हुए ऑस्ट्रेलिया की प्रधानमंत्री चुनी जाने वाली पहली महिला बनीं। [299]
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