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अनंत चतुर्दसी, अनन्त चतुर्दशी, अनंत चौदस या खाली अनत, हिंदू आ जैन लोग के एक ठो तिहवार हवे जे हर बरिस भादो महीना के अँजोरिया में चतुरदसी के मनावल जाला। अनत के दिने भगवान् विष्णु के "अनंत रूप" के पूजा होले। महाराष्ट्र में गणेश पूजा के समापन भी एही दिन होला आ गणेश जी के मूर्ती के बिसर्जन होला।
अनंत चतुर्दसी अनन्त चतुर्दशी | |
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मनावे वाला | हिंदू आ जैन लोग खातिर धार्मिक; अन्य लोग सांस्कृतिक रूप से मनावे ला। |
प्रकार | धर्मिल, भारत आ नेपाल, अन्य जगह जहाँ भारतीय लोग बा। |
Observances | गणपति बिसर्जन, अनंत (धागा के बनल गंडा) पहिरल, प्रार्थना, धार्मिक कार्य (देखीं पूजा, परसाद) |
समय | भादो शुक्लपक्ष चतुर्दशी |
केतना बेर | सालाना |
जैन लोग खातिर ई एक ठो महत्व के तिहवार हवे। जैन लोग भादो महीना के आखिरी 10 दिन के पर्युषण परब के रूप में मनावे ला। ई परब अलग-अलग शाखा में कुछ मामूली अंतर के साथ सुरू होला आ कहीं भादो के अँजोरिया (शुक्लपक्ष) के चउथ से शुरू होला आ कुछ शाखा में पंचिमी से। चौथ के सुरू होखे पर ई अनत चौदस के खतम होला।
हिंदू लोग, खास तौर पर भोजपुरी क्षेत्र में, एह तिहवार के विष्णु के अनंत रूप के पूजा करि के मनावे ला। दिन भर भुक्खल जाला आ दिन में पूजा कइल जाला आ कथा सुनल जाला। साँझ के बेरा बिना नून के खाना, आमतौर पर पूड़ी-खीर या पूड़ी-सेवई खाइल जाला। अनंत के पूजा में 14 गो पत्ता पर पूड़ी-खीर चढ़ावल जाला आ धागा के अनंत बनावल जाला जेह में खास बिधि से 14 गो गाँठ लगावल होल आ ई बिष्णु जी के चीन्हा के रूप में मानल जाला। सुशीला-कौण्डिन्य के कथा सुनल जाला।
पूजा में एक ठो भरुका में पंचामृत रखल जाला जे क्षीरसागर के चिन्हा मानल जाला। एह में कुश के शेषनाग बना के रखल जालें आ ओह पर भगवान बिष्णु के प्रतीक के रूप में चौदह गाँठ वाला अनंत रखल जाला।[1][2][3]
अनंत चतुर्दशी महाराष्ट्र के गणेशपूजा के आखिरी दिन भी होला। एह दिन लोग गाजा-बाजा के साथ गणपति बिसर्जन खातिर निकले ला।[4] गणेश जी के जवन मूर्ती चउथ के अस्थापित कइल गइल रहेले ओह के ले के लोग लग्गे के समुंद्र, नद्दी भा तालाब पोखरा में डुबा आवे ला। एही के बाद गणेश उत्सव के समापन हो जाला।
एक ठो सुमंत नाँव के बाभन रहलें। उनुके मेहरारू दीक्षा से उनुके एक ठो लइकी सुशीला रहली। सुमंत के गुजर जाए के बाद दीक्षा दूसर बियाह करि लिहली आ लइकिया सुशीला के तरह-तरह के कष्ट देवे सुरू कइली।
सुशिल्ला के बियाह कौण्डिन्य से भइल आ ऊ लोग जब घर छोड़ के जात रहल, एगो नदी के किनारे रुकल जहाँ कुछ औरत एगो पूजा करत रहलीं। एहीजे, सुशीला के एह नया पूजा के बारे में पता चलल। सुशीला के पुछले पर ऊ औरत सभ बतवली की ई अनत भगवान् के मनौती हवे।
ऊ लोग बतावल की अनत के बरत उठावे के बाद एक चउदह बरिस खातिर एक ठो धागा के बनल अनंत पहिरल जाला। ई एक ठो गंडा नियर होला जेकरा के औरत अपने बायाँ बाजू में आ मरद लोग दाहिना बाजू में बान्ह लेला। हर बरिस अनंत भगवान् के पूजा कइल जाला।
ई जानकारी मिलले पर सुशीलो ई बरत उठावे के फैसला कइली आ अनत भगवान के पूजा सुरू कइ दिहली। ऊ लोग के सुख समृद्धि में बढ़ती होखे लागल। एक दिन जब कौण्डिन्य उनुके बाँही में बन्हल अनंत देखलें आ पूरा बात जनलें तब ऊ एह बात पर बिगड़ के ओह धागा के छोर लिहलें आ आगि में फेंकि दिहलें। एकरे बाद बहुत दुर्दिन आ गइल आ अंत में कौण्डिन्य के बुझाइल की ई अनंत भगवान् के परकोप हवे। ऊ लोग फिन से पूजा सुरू कइल।
कौण्डिन्य ई प्रण कइलेन की ऊ बहुत कठिन तपस्या आ पूजा करिहें जेवना से उनके अनंत भगवान के साक्षात दर्शन हो सके। ऊ जंगल में चल गइलेन आ उहाँ एक ठो आम के फर ले लदाइल फेड़ा देखलें जेह पर ढेर खानी कीड़ा लागल रहलें। एकरा बाद उनुके एगो गाई अपना बाछा के साथे लउकल आ एगो बैल जे घास के मैदान में बिना चरले खड़ा रहल। एकरा बाद ऊ दू गो झील देखलें जेवन एक दुसरा से जुड़ल रहलीं आ पानी के मेरवन होत रहे। एकरा बाद एक ठो हाथी आ गदहा देखाइल। ओह सभसे कौण्डिन्य अनंत के बारे में पुछ्लें। केहू के जबाब ना मिलले पर दुखी आ ब्यग्र हो के ऊ रसरी के फँसरी बना के आपन जान देवे खातिर तइयार भ गइलेन।
तब कहीं से एक ठो बूढ़ ब्राह्मण अचानक आ गइलेन आ उनुके फँसरी निकाल के उनुकर हाथ पकड़ि के एक ठो गुफा में ले गइलें। सुरुआत में गुफा में बहुत अन्हार रहल बाकी धीरे-धीरे अंदर जाए पर बड़हन जगह में बहुत सारा लोग बइटल देखाई पड़ल। ऊहे ब्राह्मण, जे कौण्डिन्य के ले गइल रहलें, ओहिजे रखल सिंहासन पर बइठ गइलें आ उनुकी जगह कौण्डिन्य के साक्षात बिष्णू भगवान् के दर्शन भइल।
कौण्डिन्य अपना पाप खातिर बिष्णु से माफ़ी माँगलें। बिष्णु जी उनके 14 बरिस के बरत लेवे के कहलें जेकरा से उनुके सभ पाप कटी आ सुख समृद्धि आई। एकरा बाद बिष्णू जी रास्ता में लउकल सगरी चीज के मतलब बतवलें। आम के पेड़ पिछला जनम में ब्राहमण रहल जे बहुत ग्यानी रहलें लेकिन केहू के आपन ज्ञान न दिहल। गाई पृथिवी रहली। बैल साक्षात धर्म। दुन्नों झील दू गो बहिन रहली जिनके सगरी संपत्ति एक दुसरे पर खरच होखे। गदहा क्रूरता आ क्रोध के चीन्हा रहल आ हाथी कौण्डिन्य के खुद के घमंड रहल। बिष्णू जी एह सभ चीन्हा सभ के मतलब बतवलें।[5][6]
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