मुंडकोपनिषद
हिंदू धर्मातील प्राचीन संस्कृत ग्रंथांपैकी एक / From Wikipedia, the free encyclopedia
मुंडक उपनिषद हे एक उपनिषद आहे. संन्यासाश्रमाचा पुरस्कार करणारे तत्त्वज्ञानपर उपनिषद असून भगवद्गीतेत याचा उपयोग केलेला दिसतो. या उपनिषदाचे तीन अध्याय असून त्यात पासष्ट श्लोक आहेत. हे प्रश्नोत्तर स्वरूपात आहे. गुरू शिष्य संवाद असे याचे स्वरूप आहे. यात ज्ञान आणि सत्य याचे विवेचन केलेले आहे. तसेच यात उपनिषदात यज्ञातील कर्मकांडांची टीका केलेली आढळते. म्हणजे हे उपनिषद कर्मकांडाला महत्त्व देत नाही.आपल्या राज्यघटनेत ज्या राजमुद्राचा उल्लेख केला आहे ती याच मुंडक उपनिषदातुन घेतली आहे.
हा लेख/विभाग स्वत:च्या शब्दात विस्तार करण्यास मदत करा. |
जलद तथ्य वेद, वेद-विभाग ...
हिंदू धर्मग्रंथावरील लेखमालेचा भाग | |
वेद | |
---|---|
ऋग्वेद · यजुर्वेद | |
सामवेद · अथर्ववेद | |
वेद-विभाग | |
संहिता · ब्राह्मणे | |
आरण्यके · उपनिषदे | |
उपनिषदे | |
ऐतरेय · बृहदारण्यक | |
ईश · तैत्तरिय · छांदोग्य | |
केन · मुंडक | |
मांडुक्य ·प्रश्न | |
श्वेतश्वतर ·नारायण | |
कठ | |
वेदांग | |
शिक्षा · छंद | |
व्याकरण · निरुक्त | |
ज्योतिष · कल्प | |
महाकाव्य | |
रामायण · महाभारत | |
इतर ग्रंथ | |
स्मृती · पुराणे | |
भगवद्गीता · ज्ञानेश्वरी · गीताई | |
पंचतंत्र · तंत्र | |
स्तोत्रे ·सूक्ते | |
मनाचे श्लोक · रामचरितमानस | |
शिक्षापत्री · वचनामृत |
बंद करा