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अशा प्रकारच्या काही इतर थोड्या alphasyllabary (मराठी शब्द सुचवा) भाषां-लिपींप्रमाणे, देवनागरी लिपीची अक्षरे व्यंजनांमध्ये स्वरचिन्हे वा/आणि अक्षरचिन्हे मिळवून (बेरीज करून) बनवली जातात. खाली दिलेल्या सारणीत मराठी भाषेच्या सर्व स्वरांचा, त्यांच्या सधर्मीय रोमन मुळाक्षर व आंतरराष्ट्रीय उच्चारानुरूप अक्षर पद्धती (IPA) रूपांतरणाचा समावेश केला आहे.
Orthography | अ | आ | इ | ई | उ | ऊ | ऋ | ऌ | ए | अॅ | ऐ | ओ | ऑ | औ | अं | अः | ॠ | ॡ |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
Roman | a | aa | i | ee | u | oo | Ru | lru | e | ă | ai | o | ŏ | ou | aṃ | aḥ | Roo | lroo |
IPA | /ə/ | /ɑ:/ | /i/ | /i:/ | /u/ | /u:/ | /ru/ | /lru/ | /e/ | /æ/ | /əi/ | /o/ | /ɒ/ | /əu/ | /əⁿ/ | /əʰ/ | /ru:/ | /lru:/ |
य, व, र, ल (य=इ+अ; व=उ+अ; र=ऋ+अ; ल=ऌ+अ)
पितॄण, भ्रातॄण वगैरे शब्दांत व्यंजनाला जोडलेला दीर्घ ॠ येतो. पण हा स्वतंत्रपणे फक्त कवितेत येऊ शकतो.
१. रामदासस्वामींनी लिहिलेल्या मनाच्या श्लोकात ‘अंबॠषी’ या शब्दात दीर्घ ॠ आला आहे. (बहू शापिता कष्टला अंबॠषी। तयाचे स्वये श्रीहरी जन्म सोशी॥ दिला क्षीरसिंधू तया ऊपमानी। नुपेक्षी कदा देव भक्ताभिमानी ॥मनाचे श्लोक-११६॥)
२. ॠषी वचनें ऐकोनी संतोषला सूतमूनी । .. मुक्तेश्वर आख्यान, अध्याय १ला श्लोक १५वा.
असे असले तरी, तंत्रवाङ्मयात ॡ (दीर्घ ऌ) हे अक्षर येते. उदा० 'मंत्र महाबोधि'मधील हा श्लोक -
संधी : आपण बोलताना अनेक शब्द एकापुढे एक असे उच्चारतो. त्यावेळी एकमेकांशेजारी येणारे दोन वर्ण एकमेकांत मिसळतात. त्यांचा जोडशब्द तयार होतो. वर्णाच्या अशा एकत्र होणाच्या प्रकारास संधी असे म्हणतात. हे संधी फक्त संस्कृत शब्दांमध्ये होतात. स्वरसंधी : हे एकमेकांशेजारी येणारे दोनही वर्ण जर 'स्वर' असतील तर अशी संधीला स्वरसंधी म्हणतात.
स्वरसंधीचे काही नियम पुढीलप्रमाणे:
१.दोन समान स्वर एकमेकापुढे आले तर त्या दोघांबद्दल त्याच जातीचा दीर्घ स्वर येतो.
सूर्य+अस्त अ+अ=आ सूर्यास्त
देव+आलय अ+आ=आ देवालय
विद्या+अर्थी आ+अ=आ विद्यार्थी
महिला+आश्रम आ+आ=आ महिलाश्रम
अति+इंद्रिय इ+इ=ई अतींद्रिय
मही+ईश ई+ई=ई महीश
मुनि+ इच्छा इ+इ=ई मुनीच्छा
गिरि+ईश इ+ई=ई गिरीश
गुरू+ उपदेश उ+उ=ऊ गुरूपदेश
भू+ उद्धार उ+ऊ=ऊ भूद्धार
भ्रातृ+ऋण ऋ+ऋ=ॠ भ्रातॄण
२. अ किंवा आ पुढे इ किंवा ई हे स्वर आल्यास त्या दोहोंऐवजी 'ए' येतो, तसेच उ किंवा ऊ आल्यास 'ओ' येतो, व 'ऋ' आल्यास 'अर्' येतो.
ईश्वर+इच्छा अ+इ=ए ईश्वरेच्छा
चंद्र+उदय अ+उ=ओ चंद्रोदय
महा+ऋषी आ+ऋ=अर् महर्षी
३. अ किंवा आ यांच्यापुढे 'ए' किंवा 'ऐ' हे स्वर आल्यास त्या दोहोंबद्दल 'ऐ' येतो आणि 'ओ' किंवा 'औ' हे स्वर आल्यास त्याबद्दल 'औ' येतो.
मत+ऐक्य अ+ऐ=ऐ मतैक्य
सदा+एव आ+ए=ऐ सदैव
जल+ओघ अ+ओ=औ जलौघ
गंगा+ओघ आ+ओ=औ गंगौघ
वृक्ष+औदार्य अ+औ=औ वृक्षौदार्य
४. इ, उ, ऋ (ऱ्हस्व किंवा दीर्घ) यांच्यापुढे विजातीय स्वर आल्यास इ-ई बद्दल य्, उ-ऊ बद्दल व् आणि ऋ बद्दल र् हे वर्ण येतात आणि त्यात पुढील स्वर मिळून संधी होतो.
प्रीति+अर्थ इ+अ=य्+अ=य प्रीत्यर्थ
इति+आदि इ+आ=य्+आ=या इत्यादि
अति+उत्तम इ+उ=य्+उ=यु अत्युत्तम
मनु+अंतर उ+अ=व्+अ=व मन्वंतर
पितृ+आज्ञा ऋ+आ=र्+आ=आ पित्राज्ञा
अत्रि+ऋषि इ+ऋ=य+ऋ अत्र्यृषि
द्युतादि+ऌदित: इ+ऌ=य+ऌ द्युताद्यॢदित:
५. ए, ऐ, ओ, औ या स्वरांपुढे कोणताही स्वर आला तर त्याजागी अनुक्रमे अय्, आय्, अव्, आव् असे आदेश होऊन पुढील स्वरात मिसळतात.
पोटशब्द: एकत्र येणारे स्वर व संधी = जोडशब्द
ने+अन: ए+अ= अय्+ अ= अय = नयन
गै+अन: ऐ+अ= आय्+अ= आय = गायन
गो+ईश्वर: ओ+ई= अव्+ई= अवी = गवीश्वर
नौ+इक: औ+इ= आव्+इ= आवि = नाविक
ा ि ी ु ू े ै ो ौ ृ ॄ ॢ ॣ ़ ऀ ॅं ् ॅ ॉ ॐ ऽ ॰
ॅं ं
ः
अं आणि अ:
खालील कोष्टकात (मराठीत लागणारी च़, छ़, ज़, झ़, ञ़, फ़ सोडून उरलेली) सर्व व्यंजने दिली आहेत. जेव्हा व्यंजनाला कोणताही कानामात्रा नसतो तेव्हा त्याचा उच्चार देवनागरीच्या नियमांप्रमाणे अकारान्त (schwa) करायचा असतो.
क | ख | ग | घ | ङ |
---|---|---|---|---|
k /k/ | kh /kʰ/ | g /g/ | gh /gʰ/ | ng /ŋ/ |
च | छ | ज | झ | ञ |
ch /cɕ/ | chh /cɕʰ/ | j /ɟʝ/ | jh or z /ɟʝʰ/ or /z/ | ñ /ɲ/ |
ट | ठ | ड | ढ | ण |
ṭ /ʈ/ | ṭh /ʈʰ/ | ḍ /ɖ/ | ḍh /ɖʰ/ | ṇ /ɳ/ |
त | थ | द | ध | न |
t /t̪/ | th /t̪ʰ/ | d /d̪/ | dh /d̪ʰ/ | n /n̪/ |
प | फ | ब | भ | म |
p /p/ | ph /pʰ/ | b /b/ | bh /bʰ/ | m /m/ |
य | र | ल | व | |
y /j/ | r /r/ | l /l/ | v /v/ | |
श | ष | स | ||
sh /ʃ/ | ṣh /ʃ/ | s /s/ | ||
ह | ळ | |||
h /h/ | ḷ /ɭ/ | |||
क्ष | ज्ञ | |||
kṣh /kʃ/ | dny /d̪n/ | |||
'क' ची सोळाखडी.
Script | Pronunciation (IPA) |
---|---|
क | /kə/ |
का | /kaː/ |
कि | /ki/ |
की | /kiː/ |
कु | /ku/ |
कू | /kuː/ |
कृ | /kru/ |
कॢ | /klru/ |
के | /keː/ |
कॅ | /kæ/ |
कै | /kəi/ |
को | /koː/ |
कॉ | /kɒ/ |
कौ | /kəu/ |
कं | /kəm/ |
कः | /kəʰ/ |
पहिल्या पाच वर्गांपैकी अनुनासिकाशिवाय कोणत्याही व्यंजनापुढे कठोर व्यंजन आले असता त्या पहिल्या व्यंजनाच्या जागी त्याच्याच वर्गातले पहिले कठोर व्यंजन येऊन संधी होतो.
पोटशब्द एकत्र येणारी व्यंजने व संधी जोडशब्द
विपद्+काल द्+क्=त्+क्=त्क् विपत्काल
वाग्+ पति ग्+प्=क्+प्=क्प् वाक्पति
वाग्+ ताडन ग्+त्=क+त्= क्त् वाक्ताडन
षड्+ शास्त्र ड्+श्=ट्+ श्=ट्श् षट्शास्त्र
क्षुध्+ पिपासा ध्+प्=त्+प्=त्प् क्षुत्पिपासा
पहिल्या पाच वर्गातील कठोर व्यंजनापुढे अनुनासिकाखेरीज स्वर किंवा मृदु व्यंजन आल्यास त्याच्या जागी त्याच वर्गातील तिसरे व्यंजन येऊन संधी होतो.
पोटशब्द एकत्र येणारी व्यंजने व संधी जोडशब्द
वाक्+विहार क्+व्=ग्+व्+ग्व् वाग्विहार
षट्+ रिपू ट्+र्=ड्+र्=ड्र षड्रिपू
अप्+ज प्+ज्=ब्+ज्= ब्ज अब्ज
पहिल्या पाच वर्गातील कोणत्याही व्यंजनापुढे अनुनासिक आल्यास पहिल्या व्यंजनाबद्दल त्याच्यात वर्गातील अनुनासिक व्यंजन येऊन संधी होतो.
पोटशब्द एकत्र येणारी व्यंजने व संधी जोडशब्द
वाक्+निश्चय क्+न्=ड्.+न् वाङ्निश्चय
षट्+मास ट्+म्=ण्+म् षण्मास
जगत्+नाथ त्+न्=न्+न् जगन्नाथ
त् या व्यंजनापुढे च्, छ् आल्यास त् बद्दल च् होतो. ज्, झ् आल्यास त् बद्दल ज् होतो. ट्, ठ् आल्यास त् बद्दल ट् होतो. ल् आल्यास त् बद्दल ल् होतो. श् आल्यास त् बद्दल च् होतो व पुढील श् बद्दल छ् होतो.
पोटशब्द एकत्र येणारी व्यंजने व संधी जोडशब्द
सत्+चरित्र त्+च्=च्+च् सच्चरित्र
सत्+ जन त्+ज्= ज्+ज् सज्जन
उत्+लंघन त्+ल्=ल्+ल् उल्लंघन
उत्+ छेद त्+छ्=च्+छ् उच्छेद
म् पुढे स्वर आल्यास तो स्वर मागील 'म्' मध्ये मिसळून जातो. व्यंजन आल्यास 'म्' बद्दल मागील अक्षरावर अनुस्वार येतो.
पोटशब्द संधी जोडशब्द
सम्+ आचार म्+आ समाचार
सम्+गती म्+ग् संगती
छ् पूर्वी ऱ्हस्व स्वर आला तर त्या दोहोंमध्ये च् हा वर्ण येतो.
पोटशब्द संधी जोडशब्द
रत्न+ छाया न्+ छ् रत्नच्छाया
शब्द+ छल द्+छ् शब्दच्छल
बोलताना तोंडातून निघालेल्या मूळ ध्वनींना वर्ण असे म्हणतात.
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