अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, हिन्दी भाषा एवं साहित्य तथा देवनागरी का प्रचार-प्रसार को समर्पित एक प्रमुख सार्वजनिक संस्था है। इसका मुख्यालय प्रयाग (इलाहाबाद) में है जिसमें छापाखाना, पुस्तकालय, संग्रहालय एवं प्रशासनिक भवन हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन ने ही सर्वप्रथम हिंदी लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी रचनाओं पर पुरस्कारों आदि की योजना चलाई। सन 1910 में आरम्भ किए गए उसके मंगलाप्रसाद पारितोषिक की हिंदी जगत् में पर्याप्त प्रतिष्ठा है। सम्मेलन द्वारा महिला लेखकों के प्रोत्साहन का भी कार्य हुआ। इसके लिए उसने सेकसरिया महिला पारितोषिक चलाया। १९३८ में हिन्दी भाषा और साहित्य की सेवा करने वालों को सम्मेलन की सर्वोच्च मानद उपाधि 'साहित्यवाचस्पति' देना आरम्भ हुआ।
सम्मेलन के द्वारा हिंदी की अनेक उच्च कोटि की पाठ्य एवं साहित्यिक पुस्तकों, पारिभाषिक शब्दकोशों एवं संदर्भग्रंथों का भी प्रकाशन हुआ है जिनकी संख्या डेढ़-दो सौ के करीब है। सम्मेलन के हिंदी संग्रहालय में हिंदी की हस्तलिखित पांडुलिपियों का भी संग्रह है। इतिहास के विद्वान् मेजर वामनदास वसु की बहुमूल्य पुस्तकों का संग्रह भी सम्मेलन के संग्रहालय में है, जिसमें पाँच हजार के करीब दुर्लभ पुस्तकें संगृहीत हैं।
स्थापना
हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना 1 मई 1910 ई. में नागरी प्रचारिणी सभा के तत्वावधान में हुआ।
1 मई सन् 1910 को काशी नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी की एक बैठक में हिन्दी साहित्य सम्मेलन का एक आयोजन करने का निश्चय किया गया। इसी के निश्चयानुसार 10 अक्टूबर 1910 को वाराणसी में ही पण्डित मदनमोहन मालवीय के सभापतित्व में पहला सम्मेलन हुआ। दूसरा सम्मेलन प्रयाग में करने का प्रस्ताव स्वीकार हुआ और सन् 1911 में दूसरा सम्मेलन इलाहाबाद में पण्डित गोविन्दनारायण मिश्र के सभापतित्व में सम्पन्न हुआ। दूसरे सम्मेलन के लिए प्रयाग में 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' नाम की जो समिति बनायी गयी, वही एक संस्था के रूप में, प्रयाग में विराजमान है। हिन्दी साहित्य सम्मेलन, स्वतन्त्रता-आन्दोलन के समान ही भाषा-आन्दोलन का साक्षी और राष्ट्रीय गर्व-गौरव का प्रतीक है। श्री पुरुषोत्तम दास टंडन सम्मेलन के जन्म से ही मन्त्री रहे और इसके उत्थान के लिए जिये; इसीलिए उन्हें 'सम्मेलन के प्राण' के नाम से अभिहित किया जाता है। इस संस्था ने हिन्दी में उच्च कोटि की पुस्तकों (विशेषतः, मानविकी से सम्बन्धित) का सृजन किया। गांधीजी जैसे लोग भी इससे जुड़े। उन्होने सन 1917 में इन्दौर में सम्मेलन की अध्यक्षता की।
हिंदी साहित्य संमेलन अधिनियम, 1962 के द्वारा इसे 'राष्ट्रीय महत्त्व की संस्था' घोषित किया गया।[1]
इतिहास
अखिल भारतीय स्तर पर हिंदी की तात्कालिक समस्याओं पर विचार करने के लिए देश भर के हिंदी के साहित्यकारों और प्रेमियों के प्रथम सम्मेलन की अध्यक्षता महामना पण्डित मदनमोहन मालवीय ने की थी। इस अधिवेशन में यह निश्चय हुआ कि इस प्रकार का हिंदी के साहित्यकारों का सम्मेलन प्रतिवर्ष किया जाए, जिससे हिंदी की उन्नति के प्रयत्नों के साथ साथ उसकी कठिनाइयों को दूर करने का भी उपाय किया जाए। सम्मेलन ने इस दिशा में अनेक उपयोगी कार्य किए। उसने अपने वार्षिक अधिवेशनों में जनता और शासन से हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाने के संबंध में विविध प्रस्ताव पारित किए और हिंदी के मार्ग में आनेवाली बाधाओं को दूर करने के भी उपाय किए। उसने हिंदी की अनेक परीक्षाएँ चलाई, जिसने देश के भिन्न भिन्न अंचलों में हिंदी का प्रचार और प्रसार हुआ।
हिंदी साहित्य सम्मेलन के इन वार्षिक अधिवेशनों की अध्यक्षता भारतवर्ष के सुप्रसिद्ध साहित्यिकों, प्रमुख राजनीतिज्ञों एवं विचारकों ने की। महात्मा गांधी इसके दो बार सभापति हुए। महात्मा गांधी के प्रयत्नों से अहिंदीभाषी प्रदेशों में इस संस्था के द्वारा हिंदी का व्यापक प्रचार हुआ। श्री पुरुषोत्तमदास टंडन सम्मेलन के प्रथम प्रधान मंत्री थे। उन्हीं के प्रयत्नों से इस संस्था की इतनी उन्नति हुई।
हिंदी साहित्य सम्मेलन की शाखाएँ देश के निम्नलिखित राज्यों में हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, पंजाब, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र तथा बंगाल। अहिंदीभाषी प्रदेशों में कार्य करने के लिए इसकी एक शाखा वर्धा में भी है, जिसका नाम "राष्ट्रभाषा प्रचार समिति" है। इसके कार्यालय महाराष्ट्र, बंबई, गुजरात, हैदराबाद, उत्कल, बंगाल तथा असम में हैं। इन दोनों संस्थाओं द्वारा हिंदी की जो विविध परीक्षाएँ ली जाती हैं, उनमें देश और विदेश के दो लाख से अधिक परीक्षार्थी प्रतिवर्ष लगभग 700 परीक्षाकेंद्रों में भाग लेते हैं। ये प्रवेशिका, प्रथमा, मध्यमा तथा उत्तमा कहलाती हैं। हिंदी साहित्य विषय के अतिरिक्त आयुर्वेद, अर्थशास्त्र, राजनीति, कृषि, एवं शिक्षाशास्त्र में उपाधिपरीक्षाएँ सम्मेलन द्वारा ली जाती हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन और उसकी प्रादेशिक शाखाओं द्वारा हिंदी का जो सार्वदेशिक प्रचार हुआ, उसके परिणामस्वरूप देश की स्वतंत्रता के आंदोलन के साथ साथ हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किए जाने का आंदोलन तीव्रतर हुआ और फिर स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद भारतीय संविधान में हिंदी को राष्ट्रभाषा का पद दिया गया।
सम्मेलन का उद्देश्य
हिन्दी साहित्य सम्मेलन का उद्देश्य है-[2]
- देशव्यापी व्यवहारों और कार्यों में सहजता लाने के लिए राष्ट्रलिपि देवनागरी और राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार करना;
- हिन्दीभाषी प्रदेशों में सरकारी तन्त्र, सरकारी, अर्द्धसरकारी, गैर सरकारी निगम, प्रतिष्ठान, कारखानों, पाठशालाओं, विश्वविद्यालयों, नगर-निगमों, व्यापार और न्यायालयों तथा अन्य संस्थाओं, समाजो, समूहों में देवनागरी लिपि और हिन्दी का प्रयोग कराने का प्रयत्न करना;
- हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि के लिए मानविकी, समाजशास्त्र, वाणिज्य, विधि तथा विज्ञान और तकनीकी विषयों की पुस्तकें लिखवाना और प्रकाशित करना;
- हिन्दी की हस्तलिखित और प्राचीन सामग्री तथा हिन्दी भाषा और साहित्य के निर्माताओं के स्मृति-चिह्नों की खोज करना और उनका तथा प्रकाशित पुस्तकों का संग्रह करना;
- अहिन्दीभाषी प्रदेशों में वहाँ की प्रदेश सरकारों, बुद्धिजीवियों, लेखकों, साहित्यकारों आदि से सम्पर्क करके उन्हें देवनागरी लिपि में हिन्दी के प्रयोग के लिए तथा सम्पर्क भाषा के रूप में भी हिन्दी के प्रयोग के लिए प्रेरित करना;
- हिन्दीतर भाषा में उपलब्ध साहित्य का हिन्दी में अनुवाद करवाने और प्रकाशन करने के लिए हर सम्भव प्रयत्न करना और ग्रन्थकारों, लेखकों, कवियों, पत्र-सम्पादकों, प्रचारकों को पारितोषिक, प्रशंसापत्र, पदक, उपाधि से सम्मानित करना।
सम्मेलन से सम्बद्ध संस्था
सम्मेलन रूपी इस विशाल वटवृक्ष की अनेक शाखाएँ, प्रशाखाएँ पूरे देश में हिन्दी प्रचार में लगी हुई हैं। इनमें से कुछ संस्थाएँ सम्मेलन से सीधे सम्बद्ध हैं और कुछ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के माध्यम से जुड़ी हैं। उत्तरप्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन; मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल; हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, गुड़गाँव; बम्बई प्रान्तीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, बम्बई; दिल्ली प्रान्तीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, दिल्ली; विन्ध्य प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, रीवा; ग्रामोत्थान विद्यापीठ, सँगरिया, राजस्थान; मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद्, बैंगलूर; मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति, इंदौर; भारतेन्दु समिति कोटा, राजस्थान तथा साहित्य सदन, अबोहर भी सम्मेलन से सीधे सम्बद्ध हैं।
अधिवेशनों की परम्परा
अपने स्थापना वर्ष (सन् 1910) से ही प्रत्येक वर्ष हिन्दी साहित्य सम्मेलन हिन्दी के उत्कर्ष से संबंधित प्रस्तावों के क्रियान्वयन हेतु सम्मेलन आयोजित करने लगा, जिसे बाद में 'अधिवेशन' नाम दिया गया। सम्मेलन के इस अधिवेशन की गौरवमयी परंपरा 1910 से वर्तमान तक निरंतर चलती आ रही है, जिसमें काशी, प्रयाग, कलकत्ता, भागलपुर, लखनऊ, जबलपुर, इंदौर, बंबई, लाहौर, कानपुर, दिल्ली, देहरादून, वृंदावन, भरतपुर, मुजफ्फरपुर, गोरखपुर, झाँसी, ग्वालियर, नागपुर, मद्रास, शिमला, पूना, अबोहर, हरिद्वार, जयपुर, उदयपुर, करांची, मेरठ, हैदराबाद और कोटा आदि में अधिवेशन हुए।
७३वाँ अधिवेशन
12 से 13 मार्च, 2022 तक उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हिन्दी साहित्य सम्मेलन का दो दिवसीय 73वाँ वार्षिक अधिवेशन आयोजित किया गया। उल्लेखनीय है कि सम्मेलन के 111 साल के इतिहास में अब तक 7 बार प्रयागराज में अधिवेशन किया गया है। यहाँ अंतिम बार अधिवेशन 1994 में किया गया था। इस अधिवेशन में साहित्य और राष्ट्रभाषा परिषद पर दो सत्रों में परिसंवाद किया गया। साहित्य परिषद के तहत प्रथम सत्र ‘स्वतंत्रता आंदोलन में साहित्य की भूमिका’ पर विभिन्न साहित्यकारों ने अपने-अपने विचार रखे। द्वितीय सत्र में राष्ट्रभाषा परिषद के तहत ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति और राष्ट्रभाषा’ विषय पर विमर्श किया गया। देशभर से आए विद्वानों ने हिन्दी भाषा को रोज़गार से जोड़ने पर जोर देते हुए कहा कि हिन्दी के पढ़े व्यक्ति को रोज़गार मिलेगा तो उसकी स्वीकार्यता भी बढ़ेगी।[3]
हिन्दी साहित्य सम्मलेन के सभापति
- १. महामना पंडित मदनमोहन मालवीय (सन् 1910)
- २. पंडित गोविन्दनारायण मिश्र (सन् 1911)
- ३. उपाध्याय पंडित बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' (सन् 1912)
- ४. महात्मा मुंशीराम (स्वामी श्रद्धानंद) (सन् 1913)
- ५. श्रीधर पाठक (सन् 1914)
- ६. राय बहादुर बाबू श्यामसुंदर दास बी०ए० (सन् 1915)
- ७. महामना महामहोपाध्याय पंडित रामावतार शर्मा (सन् 1916)
- ८. कर्मवीर मोहनदास करमचंद गाँधी (सन् 1918)
- ९. महामना पंडित मदन मोहन मालवीय (सन् 1919)
- १०. राय बहादुर पंडित विष्णु दत्त शुक्ल (सन् 1920)
- ११. डॉ० भगवान दास एम० ए० डी० लिट् (सन् 1921)
- १२. पंडित जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी (सन् 1922)
- १३. पुरुषोत्तम दास टंडन (सन् 1923)
- १४. पंडित अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (सन् 1924)
- १५. पंडित माधवराव सप्रे (सन् 1924)
- १६. श्री अमृतलाल चक्रवर्ती (सन् 1925)
- १७. म०म०रा०ब० पंडित गौरीशंकर हीराचन्द ओझा (सन् 1926)
- १८. पंडित पद्मसिंह शर्मा (सन् 1928)
- १९. श्री गणेश शंकर विद्यार्थी (सन् 1930)
- २०. बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर बी०ए० (सन् 1931)
- २१. पंडित किशोरीलाल गोस्वामी (सन् 1932)
- २२. राव राजा डॉ० श्याम बिहारी मिश्र एम०ए० (सन् 1933)
- २३. महाराजा सर सयाजीराव गायकवाड़ (वडोदरा) (सन् 1934)
- २४. महात्मा मोहनदास करमचंद गाँधी (सन् 1935)
- २५. डॉ० राजेंद्र प्रसाद (सन् 1936)
- २६. सेठ जमनालाल बजाज (सन् 1937)
- २७. पंडित बाबूराव विष्णु पराडकर (सन् 1938)
- २८. पंडित अम्बिका प्रसाद वाजपेयी (सन् 1939)
- २९. श्री संपूर्णानंद (सन् 1940)
- ३०. डॉ० अमरनाथ झा (सन् 1941)
- ३१. पंडित माखनलाल चतुर्वेदी (सन् 1943)
- ३२. श्री गोस्वामी गणेश दत्त (सन् 1944)
- ३३. श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी (सन् 1945)
- ३४. श्री वियोगी हरि (सन् 1946)
- ३५. महापंडित राहुल सांकृत्यायन (सन् 1947)
- ३६. सेठ गोविंद दास (सन् 1948)
- ३७. आचार्य चन्द्रबली पाण्डेय (सन् 1949)
- ३८. श्री जयचन्द विद्यालंकार (सन् 1950)
- ३९. श्री श्रीनाथ सिंह (सन् 1977)
- ४०. श्री वियोगी हरि (सन् 1982)
- ४१. डॉ० हरवंशलाल शर्मा (सन् 1988)
- ४२. श्री रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' (सन् 1986)
- ४३. डॉ० विजयेन्द्र स्नातक (सन् 1988)
- ४४. डॉ० राममूर्ति त्रिपाठी (सन् 1989)
- ४५. डॉ० सूर्यप्रसाद दीक्षित (वर्तमान)
प्रकाशित पत्रिका
सम्मेलन के साहित्य विभाग द्वारा एक त्रैमासिक शोधपत्रिका "सम्मेलन पत्रिका" का प्रकाशन होता है।
राष्ट्रभाषा सन्देश (मासिक),
प्रधान संपादक : श्री विभूति मिश्र
पता : हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, १२, सम्मेलन मार्ग, इलाहाबाद-३ (उ.प्र.)
वर्तमान स्थिति
- ऐसे हैं संस्थान के हालात[4]
- क्षेत्रफल : लगभग तीन बीघा
- पहले प्रधानमंत्री: राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन
- पहले सभापति : पं. मदन मोहन मालवीय
- कुल अधिवेशन : 67 (1910-2015 तक)
- प्रयाग में अधिवेशन : 4 बार
- वार्षिक बजट : 70-80 लाख
- कर्मचारी : 45
- पाक्षिक पत्र : राष्ट्रभाषा संदेश
- पत्रिका : शोध-त्रैमासिक
- विदेश में शाखाएं : मॉरिशस और थाईलैंड
- परीक्षाएं : प्रथमा, मध्यमा, विशारद, साहित्य रत्न, आयुर्वेद विशारद।
- ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक सम्मान’ : 2007 से बंद।
- ‘डॉ. प्रभात शास्त्री सम्मान’ : 2006 से बंद।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
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