हस्तमैथुन
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हस्तमैथुन (अंग्रेजी: masturbation) शारीरिक मनोविज्ञान से सम्बन्धित एक सामान्य प्रक्रिया का नाम है जिसे यौन सन्तुष्टि हेतु पुरुष हो या स्त्री, कभी न कभी सभी करते है।[1] इसे केवल युवा ही नहीं बल्कि बुड्ढे-बुड्ढे लोग भी लिंगोत्थान हेतु करते हैं इससे उन्हें यह अहसास होता है कि वे अभी भी यौन-क्रिया करने में सक्षम हैं।
हस्तमैथुन से , अथवा अनैसर्गिक सम्बन्ध से , होने वाली बीमारियों की सूची पूरी - पूरी तय्यार ही नहीं की जा सकती । कामुकता के भाव की प्रचण्डता से मनुष्य की स्नायु - शक्ति का ह्रास होता है , यह स्नायु शक्ति वीर्य में रहती है , और वीर्य का एक औंस शरीर के किसी हिस्से के भी ४० औंस रुधिर के बराबर है । स्नायु - शक्ति के ह्रास से मनुष्य का शरीर हरेक प्रकार की बीमारी को निमन्त्रण देने के लिये हर समय तय्यार रहता है । इस प्रकार जो बीमारियाँ शरीर में प्रवेश करती हैं उन का भी कारण मनुष्य का अस्वाभाविक जीवन ही है । कामुकता से वीर्य तथा स्नायु - शक्ति दोनों का ह्रास होता है आत्मव्यभिचार से वीर्य तथा स्नायु- सम्बन्धी अनेक उपद्रवों का उठ खड़े होना स्वाभाविक है ।[2] आखिर , शरीर के रुधिर ही से तो वीर्य बनता है । जो वीर्यनाश करता है वह इस रुधिर ही के कोश को खाली करता है और ज्यों - ज्यों यह आदत जड़ पकड़ती जाती है त्यों - त्यों रुधिर में कमी आ जाती है । इसीलिये हस्तमैथुन के शिकार को उन सब बीमारियों का शिकार भी बनना पड़ता है जो रुधिर की कमी से होती हैं । सिर के बाल उड़ जाते हैं , सफेद हो जाते हैं , आँखों में ज्योति नहीं रहती , वे अन्दर धँस जाती हैं और उन के इर्द - गिर्द काला - काला घेरा बन जाता है । दाँत ख़राब होने लगते हैं , चेहरे पर रौनक नहीं रहती । छाती सिकुड़ जाती है , कन्धे झुक जाते हैं , हाज़मा बिगड़ जाता है । जब कुछ पचता नहीं तब या तो कब्ज हो जाती है या दस्त लग जाते हैं । शरीर भूखा - सा रहता है । क्षीण रुधिर पुष्टि चाहता है ; यह पुष्टि दवा - दारु से नहीं मिल सकती , वाजीकरण औषधियों से नहीं मिल सकती , यह मिलती है खुले द्वार को बन्द कर देने से , वीर्य की रक्षा करने से। हृदय में भी पर्याप्त रुधिर नहीं पहुँच पाता , वह धड़कने लगता है और खून के न मिल सकने से फेफड़े भी क्षीण होने लगते हैं । अंतड़ियों में भी खून की कमी हो जाती है।[3] अपने यौनांगों को स्वयं उत्तेजित करना युवा लड़कों तथा लड़कियों के लिये उस समय आवश्यक हो जाता है जब उनकी किसी कारण वश शादी नहीं हो पाती या वे असामान्य रूप से सेक्सुअली स्ट्रांग होते हैं। अब तो विज्ञान द्वारा भी यह सिद्ध किया जा चुका है कि इससे कोई हानि नहीं होती। पुरुषों की तरह महिलाएँ भी अपने यौनांगों को स्वयं उत्तेजित करने के तरीके खोज लेती हैं जो उन्हें बेहद संवेदनशील अनुभव और प्रबल उत्तेजना प्रदान करते हैं। फिर चाहें वे अकेली हों या अपनी महिला पार्टनर के साथ। महिलाएँ यदि अपने यौनांगों को स्वयं उत्तेजित न करें तो इस बात की भी सम्भावना बनी रहती है कि विवाह के बाद सेक्स क्रिया के दौरान उन्हें पर्याप्त उत्तेजना से वंचित रहना पड़े। औसत तौर पर पुरुष 12-13 वर्ष की उम्र में ही हस्तमैथुन शुरू कर देते हैं जबकि महिलाएँ तरुणाई (13 से 19 वर्ष) के अन्तिम दौर में हस्तमैथुन का आनन्द लेना शुरू करती हैं, लेकिन उनमें यह मामला इतना ढँका और छिपा हुआ रहता है कि कभी किसी चर्चा में भी सामने नहीं आ पाता। पूर्ण तरुण होने पर हस्तमैथुन का मामला खुले रहस्य की ओर झुकाव तो लेने लगता है पर ज्यादातर लोग इस मामले पर पर्दा ही पड़े रहना देना बेहतर समझते हैं। लेकिन अब जमाना बिल्कुल बदल गया है। अब कुछ ऐसे युवा तैयार हो रहे हैं जो इन वर्जनाओं को तोड़ कर हस्तमैथुन के तरीकों पर चर्चा में खुलकर हिस्सा ले रहे हैं।