सूफ़ीवाद
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सूफ़ीवाद या तसव्वुफ़[1] (अरबी : الْتَّصَوُّف}; صُوفِيّ} सूफ़ी / सुफ़फ़ी, مُتَصَوِّف मुतसवविफ़), इस्लाम का एक रहस्यवादी पंथ है।[2] इसके पंथियों को सूफ़ी (सूफ़ी संत) कहते हैं। इनका लक्ष्य अपने पंथ की प्रगति एवं सूफीवाद की सेवा रहा है। सूफ़ी राजाओं से दान-उपहार स्वीकार नही करते थे और सादगी भरा जीवन बिताना पसन्द करते थे। इनके कई तरीक़े या घराने हैं जिनमें सोहरावर्दी (सुहरवर्दी), नक्शवंदिया, क़ादरिया, चिश्तिया, कलंदरिया और शुत्तारिया के नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
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परिभाषा:- सूफ़ी शब्द साधारणतः किसी मुस्लिम संत या दरवेश के लिए प्रयोग किया जाता है।
इस शब्द की उत्पत्ति सफ़ा (पवित्र) शब्द से हुई अर्थात् ईश्वर का ऐसा भक्त जो सभी सांसारिक बुराइयों से मुक्त हो।
कुछ लेखकों ने सूफ़ी शब्द को सफ़ा (दर्जा) से जोड़ा है अर्थात् ऐसा व्यक्ति जो आध्यात्मिक रूप में भगवान् के साथ पहले दर्जे का संबंध रखता हो।
अबूनास-उल-सराज के अनुसार सूफ़ी शब्द सफ (ऊन) शब्द से निकला है। क्योंकि सूफ़ी संत ऊनी कंबल या लोई ओढ़ते थे, इसलिए उन्हें सूफ़ी कहा जाने लगा। कुछ लेखकों का विचार है कि सूफ़ी शब्द सोफिया से बना है जिसका अर्थ है- बुद्धि।
माना जाता है कि सूफ़ीवाद ईराक़ के बसरा नगर में क़रीब एक हज़ार साल पहले जन्मा। राबिया, अल अदहम, मंसूर हल्लाज जैसे शख़्सियतों को इनका प्रणेता कहा जाता है - ये अपने समकालीनों के आदर्श थे लेकिन इनको अपने जीवनकाल में आम जनता की अवहेलना और तिरस्कार झेलनी पड़ी। सूफ़ियों को पहचान अल ग़ज़ाली के समय (सन् ११००) से ही मिली। बाद में अत्तार, रूमी और हाफ़िज़ जैसे कवि इस श्रेणी में गिने जाते हैं, इन सबों ने शायरी को तसव्वुफ़ का माध्यम बनाया। भारत में इसके पहुंचने की सही-सही समयावधि के बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती बाक़ायदा सूफ़ीवाद के प्रचार-प्रसार में जुट गए थे।[3]
सूफी लोग सुन्नी को कहा जाता हैं और सुन्नी इस्लाम में हर फिरके से अलग और असल क़ुरान हदीस पर चलने वाले मोमिन होते हैं इस्लाम को अगर समझना हैं तो क़ुरान हदीस से समझा जा सकता हैं और क़ुरान हदीस को जो समझे वो असल मोमीन होता हैं जो हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा के तौर तरीके को अपनाता हैं और दुनिया को भूल कर अल्लाह की राह में ज़िन्दगी बसर यानि गुजारता हैं वही सूफी होता हैं अपनी सारी ज़िन्दगी अल्लाह और उसके रसूल के नाम पर करने के बाद वो अल्लाह वाला हो जाता हैं जिससे हर मोमीन मुस्लमान उन से फैज़ पाता हैं और अपने दुनिया के सारे गम और परेशानिया लेके उस सूफी बाबा के कदम बोसी के लिए हाज़िर होता हैं सूफी वो होता हैं जो ज़िंदा रहते ही लोगो के बड़े काम आता हैं पर इस दुनिया से पर्दा करने यानि इन्तेकाल के बाद भी वो अपने क़बर से अल्लाह के हुकुम से लोगो के काम आता हैं।