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प्राचीन यूनानी दार्शनिक (470-399 ईसा पूर्व ) विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
सुक़रात (युनानी-Σωκράτης ; 470-399 ईसा पूर्व ) एथेंस के एक प्राचीन यूनानी दार्शनिक थे , जिन्हें पाश्चात्य दर्शन के संस्थापक और पहले नैतिक दार्शनिकों में से एक के रूप में श्रेय दिया जाता है।[1] [2]सुकरात ने स्वयं कोई ग्रंथ नहीं लिखा, इसलिये उन्हें, मुख्य रूप से शास्त्रीय लेखकों , विशेष रूप से उनके छात्र अफ़लातून और क्सेनोफोन के मरणोपरांत वृतान्तों के माध्यम से जाना जाता है।[3] प्लेटो द्वारा रचित ये वृत्तांत, संवाद के रूप में लिखे गए हैं , जिसमें सुकरात और उनके वार्ताकार, प्रश्न और उत्तर की शैली में किसी विषय की समिक्षा करते हैं; उन्होंने सुक़रातीय संवाद, साहित्यिक शैली को जन्म दिया। एथेनियन समाज में सुकरात एक विवादित व्यक्ति थे, इतना अधिक कि, हास्य नाटककारों के नाटकों में उनका अक्सर मजाक उड़ाया जाता था (अरिस्टोफेन्स् द्वारा रचित नेफेलाइ ("बादलें") उसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है।[4]) 399 ईसा पूर्व में, उन पर युवाओं को भ्रष्ट करने और धर्मपरायणहीनता करने का आरोप लगाया गया था । एक दिन तक चले अभियोग के बाद , उन्हें मृत्यु की सजा सुनाई गई थी ।
व्यक्तिगत जानकारी | |
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जन्म | ल. 470 ई॰पू॰ देमे, अलोपिके, एथेंस |
मृत्यु | 399 ई॰पू॰ (लगभग 71 वर्ष) एथेंस मृत्युदंड, जहर पिलाकर |
जीवनसाथी(याँ) | क्सान्थिप्पे,मिर्तो |
बच्चों के नाम | लैम्प्रोकल्स, मेनेक्सेनस, सोफ्रोनिस्कस |
परिवार | सोफ्रोनिस्कस (पिता), फेनारेटे (माता), पैट्रोकल्स (सौतेला भाई) |
वृत्तिक जानकारी | |
युग | प्राचीन यूनानी दर्शन |
क्षेत्र | पाश्चात्य दर्शन |
विचार सम्प्रदाय (स्कूल) | श्रेण्य यूनानी दर्शन |
उल्लेखनीय छात्र |
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मुख्य विचार | ज्ञानमीमांसा, नीतिशास्त्र, उद्देश्यवाद |
प्रमुख विचार |
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प्रभाव
प्रोदिकुस, अनक्सागोरस, आर्केलौस, दियोतिमा, डैमन, पारमेनीडेस
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प्रभावित
वस्तुतः बाद के सभी पाश्चात्य दर्शन, विशेष रूप से उनके अनुयायी, उदाहरण के लिए, प्लेटो, जे़नोफोन्, अन्तिस्ठेनेस, अरिस्तिप्पुस, मेगरा के यूक्लिड, फीदो
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प्राचीन काल से बचे प्लेटो के संवाद सुक़रात के सबसे व्यापक उल्लेखों में से हैं। ये संवाद तर्कवाद और नैतिकता सहित दर्शन के क्षेत्रों के लिए सुक़रातीय दृष्टिकोण का प्रदर्शन करते हैं । प्लेटोनीय सुक़रात ने सुक़रातीय पद्धति या एलेन्चस को प्रतिपादित किया जो, युक्तिपुर्ण संवाद (Argumentative dialogue), या द्वंद्वात्मकता के माध्यम से दार्शनिक विमर्श करता है। पूछताछ की सुक़रातीय पद्धति , छोटे प्रश्नों और उत्तरों का उपयोग करते हुए संवाद में आकार लेती है, जो उन प्लेटोनिक ग्रंथों के प्रतीक हैं, जिनमें सुकरात और उनके वार्ताकार किसी मुद्दे या अमूर्त अर्थ के विभिन्न पहलुओं की विश्लेषण करते हैं,( जो आमतौर, पर किसी सद्गुणों में से, एक से संबंधित होते हैं), और स्वयं को गतिरोध में पाते हैं। जो उन्होंने क्या सोचा था कि वे समझ गए हैं,वे उसको परिभाषित करने में पूरी तरह से असमर्थ रहते हैं । सुकरात अपनी पूर्ण अज्ञानता की घोषणा के लिए जाने जाते हैं ; वह कहते थे कि केवल एक चीज जिसे वह जानते थे, वह यह थी उनकी अज्ञानता का बोध दर्शनशास्त्र का पहला कदम है।
दार्शनिक सुकरात वैसे ही बने हुए हैं, जैसे वे अपने जीवनकाल में थे, एक पहेली, एक अचूक व्यक्ति, जो कुछ भी नहीं लिखे जाने के बावजूद, उन्हें, उन मुट्ठी भर दार्शनिकों में से एक माना जाता है जिन्होंने हमेशा के लिए दर्शनशास्त्र की परिकल्पना बदल दी। उनके बारे में, हमारी सारी जानकारी पुरानी है और इसमें से अधिकांश अत्यंत विवादास्पद है, लेकिन तब भी, एथेनियन लोकतंत्र के हाथों से उसका परीक्षण और तदोपरान्त मृत्यु, दर्शनशास्त्र के अधिविद्य विधा का संस्थापक मिथक है,एवं उसका प्रभाव दर्शन से कहीं दूर,हर युग में, महसूस किया गया है।
सुक़रात ने बाद की पुरातनता में दार्शनिकों पर एक मजबूत प्रभाव डाला और आधुनिक युग में भी ऐसा करना जारी रखा है । सुकरात का अध्ययन मध्ययुगीन और इस्लामी विद्वानों द्वारा किया गया था और विशेष रूप से मानवतावादी आंदोलन के भीतर इतालवी पुनर्जागरण के विचार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । सुकरात में रुचि बेरोकटोक जारी रही, जैसा कि सोरेन कीर्केगार्ड और फ्रेडरिक नीस्चे के कार्यों में परिलक्षित होता है । कला, साहित्य और लोकप्रिय संस्कृति में सुकरात के चित्रण ने उन्हें पश्चिमी दार्शनिक परंपरा में एक व्यापक रूप से ज्ञात व्यक्ति बना दिया है।
सुकरात का जन्म 470 या 469 ईसा पूर्व में सोफ्रोनिस्कस और फाएनारिती के घर हुआ था , जो एलोपेसी के एथेनियन क्षेत्र में क्रमशः एक प्रस्तरकर्मी और एक प्रसाविका थे; इसलिए, वह एक एथेनियन नागरिक थे, जिसका जन्म अपेक्षाकृत समृद्ध एथेनियाई लोगों के घर हुआ था।[5] वह अपने पिता के रिश्तेदारों के करीब रहते थे और परंपरागत रूप से, उन्हें अपने पिता की संपत्ति का एक हिस्सा विरासत में मिला था, जिससे उन्हें वित्तीय चिंताओं से मुक्त जीवन मिला।[6] उनकी शिक्षा एथेंस के कानूनों और रीति-रिवाजों के अनुसार हुई। उन्होंने पढ़ने और लिखने के बुनियादी कौशल सीखे और अधिकांश अमीर एथेनियाई लोगों की तरह, जिमनास्टिक, कविता और संगीत जैसे कई अन्य क्षेत्रों में अतिरिक्त शिक्षा प्राप्त की।[7] उनकी दो बार शादी हुई थी (कौन पहली बार हुई यह स्पष्ट नहीं है): ज़ैंथिप्पे से उनकी शादी तब हुई जब सुकरात अपने पचास के दशक में थे, और दूसरी शादी एथेनियन राजनेता एरिस्तिदीज़ की बेटी के साथ हुई थी।[8] ज़ानथिप्पे से उनके तीन बेटे थे।[9] प्लेटो के अनुसार, सुकरात ने पेलोपोनेसियन युद्ध के दौरान अपनी सैन्य सेवा पूरी की और तीन अभियानों में स्वयं को प्रतिष्ठित किया।[10]
एक और घटना जो कानून के प्रति सुकरात के सम्मान को दर्शाती है वह है लियोन द सलामिनियन का प्रग्रहण।जैसा कि प्लेटो ने अपनी अपॉलॉजि में वर्णन किया है , सुकरात और चार अन्य को थोलोस में बुलाया गया था और तीस निरंकुशों (जो 404 ईसा पूर्व में शासन करना शुरू कर दिया था) के प्रतिनिधियों द्वारा लियोन को फांसी के लिए प्रग्रहण करने के लिए कहा गया था। फिर से सुकरात ही एकमात्र परहेजगार था, जिसने जिसे वह अपराध मानता था, उसमें भाग लेने के बजाय अत्याचारियों के क्रोध और प्रतिशोध का जोखिम उठाना चुना।[11]
सुकरात ने एथेनियन जनता और विशेष रूप से एथेनियन युवाओं की विशेष रुचि आकर्षित की।[12] वह बेहद बदसूरत थे, उसकी नाक चपटी, उभरी हुई आंखें और बड़ा पेट था; उनके दोस्त, उनकी शक्ल का मज़ाक उड़ाया करते थे।[13] सुकरात अपने रूप और व्यक्तिगत आराम के साथ भौतिक सुखों के प्रति उदासीन थे। उन्होंने व्यक्तिगत स्वच्छता की उपेक्षा की, बहुत कम स्नान किया, नंगे पैर चलते थे , और केवल एक फटा हुआ कोट रखते थे।[14] उन्होंने अपने खाने-पीने और योनक्रिया में संयम बरता, हालाँकि उन्होंने पूर्ण परहेज़ नहीं किया।[14] सुकरात युवाओं के प्रति आकर्षित थे, जैसा कि प्राचीन ग्रीस में आम था और स्वीकृत भी था, हाँलाकि उन्होंने युवा पुरुषों के प्रति अपने वासना का विरोध किया क्योंकि, जैसा कि प्लेटो का वर्णन है, वह उनकी आत्माओं को शिक्षित करने में अधिक रुचि रखते थे।[15] सुकरात अपने शिष्यों से यौन संबंध नहीं चाहते थे, जैसा कि अक्सर एथेंस में वृद्ध और युवा पुरुषों के बीच होता था।[16] राजनीतिक रूप से, उन्होंने एथेंस में लोकतंत्र और अल्पतंत्र वर्गों के बीच प्रतिद्वंद्विता में किसी का पक्ष नहीं लिया; उन्होंने दोनों की आलोचना की।[17] सुकरात का चरित्र जैसा कि एपोलॉजी, क्रिटो, फेडो और सिम्पोजियम में प्रदर्शित है, एक हद तक अन्य स्रोतों से सहमत है जो इन कार्यों में प्लेटो के सुकरात के वास्तविक सुकरात के प्रतिनिधि के रूप में चित्रण पर विश्वास दिलाता है।[18]
अपवित्रता और युवाओं के धर्म-भ्रष्टाचार का अभियोग, जो केवल एक दिन तक चला, उसके बाद 399 ईसा पूर्व में एथेंस में सुकरात की मृत्यु हो गई।[19] उन्होंने अपना आखिरी दिन जेल में दोस्तों और अनुयायियों के बीच बिताया, जिन्होंने उन्हें भागने का रास्ता दिया, पर जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया।अगली सुबह, उसकी सजा के अनुसार, हेमलॉक विश पीने के बाद उसकी मृत्यु हो गई।[20] उन्होंने कभी भी एथेंस नहीं छोड़ा था, सिवाय उन सैन्य अभियानों के, जिनमें उन्होंने भाग लिया था। [21]
सुकरात/सोक्रातेस् (Σωκράτης) को मौलिक शिक्षा और आचार द्वारा उदाहरण देना ही पसंद था। साधारण शिक्षा तथा मानव सदाचार पर वह जोर देता था और उन्हीं की तरह पुरानी रूढ़ियों पर प्रहार करता था। वह कहता था, सच्चा ज्ञान संभव है बशर्ते उसके लिए ठीक तौर पर प्रयत्न किया जाए; जो बातें हमारी समझ में आती हैं या हमारे सामने आई हैं, उन्हें तत्संबंधी घटनाओं पर हम परखें, इस तरह अनेक परखों के बाद हम एक सचाई पर पहुँच सकते हैं। ज्ञान के समान पवित्रतम कोई वस्तु नहीं हैं।'
बुद्ध की भाँति सुकरात ने भी कोई ग्रन्थ नही लिखा। बुद्ध के शिष्यों ने उनके जीवनकाल में ही उपदेशों को कंठस्थ करना शुरु किया था जिससे हम उनके उपदेशों को बहुत कुछ सीधे तौर पर जान सकते हैं; किंतु सुकरात के उपदेशों के बारे में यह भी सुविधा नहीं। सुकरात का क्या जीवनदर्शन था यह उसके आचरण से ही मालूम होता है, लेकिन उसकी व्याख्या भिन्न-भिन्न लेखक भिन्न-भिन्न ढंग से करते हैं। कुछ लेखक सुक्रात की प्रसन्नमुखता और मर्यादित जीवनयोपभोग को दिखलाकर कहते हैं कि वह भोगी था। दूसरे लेखक शारीरिक कष्टों की ओर से उसकी बेपर्वाही तथा आवश्यकता पड़ने पर जीवनसुख को भी छोड़ने के लिए तैयार रहने को दिखलाकर उसे सादा जीवन का पक्षपाती बतलाते हैं। सुकरात को हवाई बहस पसंद न थी। वह अथेन्स के बहुत ही गरीब घर में पैदा हुआ था। गंभीर विद्वान् और ख्यातिप्राप्त हो जाने पर भी उसने वैवाहिक जीवन की लालसा नहीं रखी। ज्ञान का संग्रह और प्रसार, ये ही उसके जीवन के मुख्य लक्ष्य थे। उसके अधूरे कार्य को उसके शिष्य अफलातून और अरस्तू ने पूरा किया। इसके दर्शन को दो भागों में बाँटा जा सकता है, पहला सुक्रात का गुरु-शिष्य-यथार्थवाद और दूसरा अरस्तू का प्रयोगवाद।
तरुणों को बिगाड़ने, देवनिंदा और नास्तिक होने का झूठा दोष उसपर लगाया गया था और उसके लिए उसे जहर देकर मारने का दंड मिला था।
सुकरात ने जहर का प्याला खुशी-खुशी पिया और जान दे दी। उसे कारागार से भाग जाने का आग्रह उसे शिष्यों तथा स्नेहियों ने किया किंतु उसने कहा-
भाइयो, तुम्हारे इस प्रस्ताव का मैं आदर करता हूँ कि मैं यहाँ से भाग जाऊँ। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन और प्राण के प्रति मोह होता है। भला प्राण देना कौन चाहता है? किंतु यह उन साधारण लोगों के लिए हैं जो लोग इस नश्वर शरीर को ही सब कुछ मानते हैं। आत्मा अमर है फिर इस शरीर से क्या डरना? हमारे शरीर में जो निवास करता है क्या उसका कोई कुछ बिगाड़ सकता है? आत्मा ऐसे शरीर को बार बार धारण करती है अत: इस क्षणिक शरीर की रक्षा के लिए भागना उचित नहीं है। क्या मैंने कोई अपराध किया है? जिन लोगों ने इसे अपराध बताया है उनकी बुद्धि पर अज्ञान का प्रकोप है। मैंने उस समय कहा था-विश्व कभी भी एक ही सिद्धांत की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। मानव मस्तिष्क की अपनी सीमाएँ हैं। विश्व को जानने और समझने के लिए अपने अंतस् के तम को हटा देना चाहिए। मनुष्य यह नश्वर कायामात्र नहीं, वह सजग और चेतन आत्मा में निवास करता है। इसलिए हमें आत्मानुसंधान की ओर ही मुख्य रूप से प्रवृत्त होना चाहिए। यह आवश्यक है कि हम अपने जीवन में सत्य, न्याय और ईमानदारी का अवलंबन करें। हमें यह बात मानकर ही आगे बढ़ना है कि शरीर नश्वर है। अच्छा है, नश्वर शरीर अपनी सीमा समाप्त कर चुका। टहलते-टहलते थक चुका हूँ। अब संसार रूपी रात्रि में लेटकर आराम कर रहा हूँ। सोने के बाद मेरे ऊपर चादर ओढा देना।
सुकरात ने अपनी शिक्षाओं का दस्तावेजीकरण नहीं किया। हम उसके बारे में केवल दूसरों के वृत्तांतों से जानते हैं: मुख्यतः दार्शनिक प्लेटो और इतिहासकार ज़ेनोफ़न, जो उनके दोनों शिष्य थे; एथेनियन हास्य नाटककार अरिस्टोफेन्स (सुकरात के समकालीन);और प्लेटो के शिष्य अरस्तू, जो सुकरात की मृत्यु के बाद पैदा हुए थे। इन प्राचीन वृत्तांतों की अक्सर विरोधाभासी कहानियाँ केवल सुकरात के सच्चे विचारों को मज़बूती से फिर से संगठित करने की विद्वानों की क्षमता को जटिल बनाती हैं, एक ऐसी स्थिति जिसे सुकराती समस्या के रूप में जाना जाता है। प्लेटो, ज़ेनोफ़ोन और अन्य लेखकों की रचनाएँ जो सुकरात के चरित्र को एक खोजी उपकरण के रूप में उपयोग करते हैं, सुकरात और उनके वार्ताकारों के बीच एक संवाद के रूप में लिखे गए हैं और सुकरात के जीवन और विचार पर जानकारी का मुख्य स्रोत प्रदान करते हैं। सुकराती संवाद (लोगो सोक्राटिकोस) इस नवगठित साहित्यिक शैली का वर्णन करने के लिए अरस्तू द्वारा गढ़ा गया एक शब्द था। जबकि उनकी रचना की सटीक तिथियां अज्ञात हैं, कुछ शायद सुकरात की मृत्यु के बाद लिखी गई थीं। जैसा कि अरस्तू ने पहले उल्लेख किया था, जिस हद तक संवाद सुकरात को प्रामाणिक रूप से चित्रित करते हैं, वह कुछ बहस का विषय है।
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