सम्प्रति
मोरी राजपूतों के पूर्वज / From Wikipedia, the free encyclopedia
सम्प्रति मौर्य राजवंश के राजा थे। वो अपने चचेरे भाई दशरथ के बाद राजा बने। उन्होंने २१६ से २०७ ई॰पू॰ तक राज्य किया।[1]मौर्य साम्राज्य के पांचवे राजा और जैन धर्म के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले सम्राट संपत्ति मौर्य की शासन अवधि 224 ईसा पूर्व से 215 ईसा पूर्व तक हैं ।
सम्प्रति मौर्य | |
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शासनावधि | ल. 224 |
उत्तरवर्ती | सम्प्रति |
निधन | 215 BCE |
राजवंश | मोरिय क्षत्रिय राजवंश |
पिता | कुणाल मौर्य (यह मौर्य सम्राट अशोक का पुत्र था ) |
माता | पद्मावती |
धर्म | जैन धर्म |
प्राचीन अनुश्रुतियों के अनुसार अपने पितामह अशोक के उपरान्त कुणाल के अंधे होने के कारण वही सिंहासनासीन हुआ था।
कुनालस्य सम्पदि नाम पुत्रों युवराज्ये प्रवर्तते | -दिव्यावदान[2]
तथा तत्पौत्रः (अशोकपौत्रः ) सम्पदिनाम । -छेमेद्र कृत , बोधिसत्वावदानकल्पलता : पल्लव 74[3]
बौद्धधर्म के प्रचार मे जो स्थान अशोक को प्राप्त है, जैनधर्म के प्रचार और प्रसार मे वही स्थान सम्प्रति का है।[4] सम्प्रति, अशोक के पोता था जिसे इतिहासकारों ने जैन अशोक कहा है, जो कि सुहस्तिन द्वारा परिवर्तित हो गया था।[5]विन्सेंट स्मिथ और रायचौधरी के अनुसार सम्प्रति के साम्राज्य में अवंति और पश्चिमी भारत का संपूर्ण साम्राज्य शामिल थे और अधिकांश प्राचीन जैन मंदिरों या स्मारकों को बनवाने का श्रेय सम्प्रति दिया जाता है।[6]जैन ग्रंथ उन्हे तीन महाद्वीपों वाले भारत के महाराज के रुप में वर्णित करती हैं, वो एक महान अर्हंत थे जिन्होंने गैर-आर्य क्षेत्रों में भी स्रमणों के लिए विहार स्थापित किए।[7] सम्प्रति का उल्लेख जैन परंपरा में उनके प्रथम गुरु सुहस्तिन के साथ है। फाइनेगन के अनुसार सम्प्रति ने जंबूद्वीप के सारे प्राचीन जैन मंदिर बनवाए।[8][9]सम्प्रति ने चेतना मित्रों के रूप में जैन मुनियों को पड़ोसी राज्यों और देशों में धर्म प्रचार के लिए भेजा । हालांकि एस आर शर्मा के अनुसार दक्षिण में पहले स्वेताम्बर मिशन को भेजा होगा ।[10]