Loading AI tools
विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
श्रीसीतारामकेलिकौमुदी (२००८), शब्दार्थ: सीता और राम की (बाल) लीलाओं की चन्द्रिका, हिन्दी साहित्य की रीतिकाव्य परम्परा में ब्रजभाषा (कुछ पद मैथिली में भी) में रचित एक मुक्तक काव्य है। इसकी रचना जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००७ एवं २००८ में की गई थी।[1]काव्यकृति वाल्मीकि रामायण एवं तुलसीदास की श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड की पृष्ठभूमि पर आधारित है और सीता तथा राम के बाल्यकाल की मधुर केलिओं (लीलाओं) एवं मुख्य प्रसंगों का वर्णन करने वाले मुक्तक पदों से युक्त है। श्रीसीतारामकेलिकौमुदी में ३२४ पद हैं, जो १०८ पदों वाले तीन भागों में विभक्त हैं। पदों की रचना अमात्रिका, कवित्त, गीत, घनाक्षरी, चौपैया, द्रुमिल एवं मत्तगयन्द नामक सात प्राकृत छन्दों में हुई है।
लेखक | जगद्गुरु रामभद्राचार्य |
---|---|
मूल शीर्षक | श्रीसीतारामकेलिकौमुदी |
भाषा | हिन्दी |
शैली | रीतिकाव्य |
प्रकाशक | जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय |
प्रकाशन तिथि | जनवरी १६, २००८ |
प्रकाशन स्थान | भारत |
मीडिया प्रकार | मुद्रित (पेपरबैक) |
पृष्ठ | २२४ पृष्ठ (प्रथम संस्करण) |
ग्रन्थ की एक प्रति हिन्दी टीका के साथ जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन ३० अक्टूबर २००८ को किया गया था।
कवि जगद्गुरु रामभद्राचार्य रचना की प्रस्तावना में कहते हैं कि वे २५ नवम्बर २००७ को चित्रकूट से मध्य प्रदेश जा रहे थे और अपने शिष्यों से रसखान ग्रन्थावली के पद सुन रहे थे। कुछ पद सुनाने के पश्चात् उनके दो शिष्यों ने उनसे पूछा कि जैसे रसखान ने कृष्ण का वर्णन करते हुए पद रचे थे, क्या वह भी भगवान श्री सीताराम जी की बाल लीलाओं के सम्बन्ध में इसी प्रकार के मधुर पदों की रचना नहीं कर सकते? कवि ने उनके “बालसुलभ किन्तु भगवदीय आह्वान” को स्वीकार कर लिया और लगभग एक माह पश्चात २३ दिसम्बर २००७ को कान्दीवली पूर्व, मुम्बई में प्रथम मंगलाचरण की रचना की।[1] अत्यन्त व्यस्तताओं से घिरे होने एवं कविता के अनुकूल वातावरणीय असुविधाओं के कारण कवि अप्रैल २००८ तक प्रथम भाग के मात्र ६७ पदों की रचना कर सके। इसी बीच उन्हें अप्रैल-मई में अठारह दिवसीय दो श्रीरामकथाओं के निमित्त बिहार जाना पड़ा। कवि ने शेष २६० पदों की रचना बिहार के मिथिला क्षेत्र में कमला नदी के तट पर १९ अप्रैल से १ मई २००८ की अत्यन्त अल्प समयावधि में कर दी।[1]
प्रस्तुत काव्य तीन भागों में विभक्त है, जिन्हें कवि ने तीन किरणों के नाम से सम्बोधित किया है। प्रथम किरण अयोध्या पर केन्द्रित है और इसके वर्ण्यविषय राम जन्म और उनके बाल्यकाल की लीलाएं एवं प्रसंग हैं। द्वितीय किरण मिथिला में केन्द्रित है और सीता के अवतरण और उनकी बालोचित केलिओं एवं प्रसंगों को अत्यन्त सजीवता से प्रस्तुत करती है। तृतीय किरण के पूर्वार्ध में नारद मुनि द्वारा सीता एवं राम के मध्य परस्पर संदेशों के आदान-प्रदान का वर्णन है तथा उत्तरार्ध राम की अयोध्या से मिथिला की यात्रा का वर्णन करता है और अयोध्या के राजकुमारों का विवाह मिथिला की राजकुमारियों के संग होने के प्रसंग के साथ समाप्त होता है। अधिकांश मुक्तक विविध अलंकारों से सुसज्जित होकर सीता और राम की किसी मनोरम झांकी अथवा उनकी किसी चित्ताकर्षक लीला का वर्णन करते हैं। जबकि रामायण की प्रमुख घटनाएँ अत्यन्त संक्षेप में सार रूप में प्रस्तुत की गई हैं।.
प्रत्येक भाग के अन्त में, १०८ पदों के पश्चात कवि ने १०९ वीं पुष्पिका में फलश्रुति का वर्णन किया है और काव्यकृति के लिए एक सुन्दर रूपक प्रस्तुत करते हुए अभिलाषा व्यक्त की है कि वैष्णव रूपी चकोर श्रीसीतारामकेलिकौमुदी की चन्द्रकलाओं का निरन्तर पान करते रहें। भारतीय साहित्य में, चकोर पक्षी द्वारा मात्र चन्द्रमा की किरणों का पान कर जीवन धारण करने का उल्लेख किया जाता है।[2] यह अन्तिम पद सभी तीन भागों में समान है।
प्रथम किरण ज्ञान की देवी सरस्वती के आह्वान से प्रस्फुटित होती है। कवि १–३ पदों में मात्र राम के बाल रूप के प्रति अपने अगाध विश्वास को प्रकट करते हैं। पद ४–५ वर्णन करते हैं कि परब्रह्म भगवान जो कि निर्गुण ब्रह्म हैं, सगुण ब्रह्म राम के रूप में प्रकट होते हैं। राम द्वारा एक शिशु के रूप में रामनवमी के दिन कौशल्या के गर्भ से प्रकट होने की घटना ६–१८ पदों में वर्णित है। प्रकृति जगत की आठ विभिन्न सुन्दर उपमाओं द्वारा कवि ने उनके जन्म लेने का मनोरम वर्णन पद ८ से १५ में किया है। पद १९ से २२ में बाल राम के प्रति कौशल्या के वात्सल्य प्रेम की कवि मनोहर झाँकी खींचते हैं। पद २३ एवं २४ में रघु वंश के गुरु वशिष्ठ द्वारा शिशु राम को अपनी गोद में लेने एवं ह्रदय से लगाने की अतिसुन्दर छवि प्रस्तुत है।
बाल राम के अनुपम सौन्दर्य एवं उनके श्यामल शरीर पर शोभायमान वस्त्राभूषण पद २५ से २७ के वर्ण्यविषय बने हैं। जबकि पद २८ से ३० में कवि ने राम जन्म के अवसर पर आनन्दमग्न अयोध्या के विभिन्न कोणों से अतिसुन्दर चित्र खींचकर सहृदय रसिकों के समक्ष सँजो दिए हैं। कौशल्या माँ की गोद में विराजमान बाल राम की दर्शकों को मन्त्रमुग्ध बना देने वाली रूपछवि पद ३१ में दर्शनीय है। चारों भाईयों के नामकरण संस्कार पद ३२ में सम्पन्न होते हैं। इन चारों भाईयों की विशेषताएँ एवं अवतार रहस्य पद ३३ का प्रतिपाद्य हैं। कौशल्या एवं अरुन्धती के मातृवात्सल्यरस की सुन्दर अभिव्यंजना उनके द्वारा शिशु राम के संग विविध क्रीडाओं में पद ३४ से ३८ में साकार हो उठी है।
अगले उनतीस पदों (३९ से ६७) में कवि ने शिशु राम के रूपलावण्य एवं बाललीलाओं के मनमोहक चित्र अपनी कोमलकान्त पदावालियों में अत्यन्त सजीवता से उकेरे हैं। इनमें राम द्वारा धूल में खेलना, स्नान करना, मीठी तोतली बोली बोलना और किलकना, उनकी घुँघराली लटें, सुन्दर वस्त्र एवं आभूषण, घुटनों के बल दौड़ना इत्यादि मनोरम झाँकियाँ पाठकों के चित्त को वात्सल्य एवं भक्ति रस में सराबोर करने में सक्षम हैं। पद ६८ से ७० में, बालक राम सहसा अस्वस्थ हो जाते हैं और कैकयी तथा कौशल्या इसे किसी तान्त्रिक के जादू-टोने का प्रभाव समझकर उपचार हेतु गुरु वशिष्ठ को बुलाती हैं। पद ७१ में, वशिष्ठ नरसिंह मन्त्र पढ़कर राम को स्वस्थ कर देते हैं।
पितृविषयक वात्सल्य रस की समुद्भावना पद ७२ में दशरथ की गोद में विराजमान राम की झाँकी द्वारा की गई है। पद ७३ से ८० कैकयी एवं बाल राम के मध्य हुए एक मधुर एवं ललित संवाद से युक्त है, जिसमें राम कैकयी से आकाश के खिलौने चन्द्रमा की बारम्बार मांग करते हैं। कैकयी उनको रिझाने के लिए अनेक बहाने बनाती हैं, किन्तु राम के पास उनके प्रत्येक बहाने का उत्तर है। कवि पुनः एक बार और पाठकों के चित्त को राम के रूपसौन्दर्य एवं मधुर लीलाओं के रंग में रंगने के लिए पद ८१ से ९४ में अपने हृदय का अनुपम पिटारा खोल देते हैं। पद ९५ से ९८ में, राम कुछ बड़े हो चले हैं। उन्होंने सींकों के छोटे से धनुष-बाण द्वारा धनुर्विद्या का अभ्यास प्रारम्भ कर दिया है, परन्तु बाद में उन्हें पिता दशरथ स्वर्ण का वास्तविक धनुष-बाण दिला देते हैं। बालक की धनुर्विद्या में निपुणता देखकर वशिष्ठ भविष्यवाणी करते हैं कि वह आगे चलकर राक्षसों तथा राक्षसराज रावण का संहार करेगा। पद १०१ में राम की अपने मित्रों के संग सरयू नदी के तट पर खेलने की सुन्दर झाँकी दर्शनीय है।
चारों भाईयों का यज्ञोपवीत संस्कार पद १०२ एवं १०३ में सम्पन्न होता है। अगले चार पदों (१०३ से १०७) में चारों भाई वेदों का अध्ययन करने के लिए वशिष्ठ के आश्रम जाते हैं और विद्या समाप्ति के पश्चात् समावर्तन संस्कार होने पर घर वापिस लौटते हैं। पद १०८ में ज्ञान एवं गुणवान चरित्र से सुसम्पन्न दशरथ के चारों राजकुमार अयोध्या में भ्रमण करते हैं।
द्वितीय किरण के प्रारम्भिक पदों (१ से ४१) का वर्ण्यविषय राजा जनक के राज्य मिथिला का क्षेत्र तथा पुण्यारण्य (पुनौरा, सीतामढ़ी) का पावन स्थल है। पद १५ से २३ में, राजा जनक द्वारा पुण्यारण्य की भूमि को जोतने पर सीता का सीतानवमी के शुभ दिन प्रकट होने का अति मनोहारी वर्णन प्रस्तुत है। मिथिला में आनन्दोत्सव पद २४ से २८ में तथा मिथिला की नारियों द्वारा शिशु सीता की अनुपम रूपमाधुरी के दर्शन कर चकित होने का प्रसंग पद २९ से ३१ में वर्णित है।
राजा जनक एवं रानी सुनयना की सीता के प्रति वात्सल्य रसानुभूति तथा सीता की बालसुलभ मनोहारी चेष्टाएँ पद ३२ से ३५ में सुन्दरतापूर्वक संजोयी गई हैं। पद ३६ से ४५ बाल सीता के निरुपम सौन्दर्य एवं उनकी चित्ताकर्षक लीलाओं के माधुर्य से ओतप्रोत हैं। पद ४६ उनके अन्नप्राशन संस्कार से सम्बद्ध है। बालिका सीता की सुन्दर रूप छवि का दर्शन कवि पुनः ४७ और ४८ पद में कराते हैं तथा उनका कर्णवेध संस्कार पद ४९ में द्रष्टव्य है। अगले पाँच पदों (५०–५४) में सीता की बाल केलिओं, शोभा एवं कवि की उनके प्रति प्रेमाभक्ति की सुन्दर छटा बिखरी हुई है।
पद ५५ में सीता का उनकी तीन बहिनों (माण्डवी, उर्मिला एवं श्रुतिकीर्ति) तथा आठ सखियों के साथ वर्णन है। उनकी नदी के तटों पर, जनक के आँगन में तथा गुड़िया के संग मधुर क्रीडा पद ५६ से ६० में प्रस्तुत हैं। पद ६१ से ६७ में सुनयना राम को सीता के भावी वर के रूप में मन ही मन देखते हुए सीता का साड़ी एवं आभूषणों से अतिसुन्दर श्रृंगार करती हैं। पद ६८ से ७२ पुनः सीता के अतुल्य सौन्दर्य, बाल केलि और ऐश्वर्य का रमणीय चित्रांकन करते हैं।
सीता की राम के प्रति भक्ति एवं प्रेम का मधुर दिग्दर्शन कवि ने पद ७३ से ७६ में कराया है। उनका मिथिलांचल की साधारण बालिकाओं के साथ बिना किसी भेदभाव के स्नेहपूर्ण व्यवहार पद ७७ से ७९ में प्रस्तुत है। सीता द्वारा गौ सेवा एवं राम के चित्रांकन के सुन्दर मुक्तकों को कवि ने पद ८० और ८१ में गूँथा है। सीता की दिनचर्या, मिथिला की अन्य कन्याओं द्वारा उनके प्रति सखी भाव में व्यवहार, बालकों द्वारा उन्हें बुआ एवं बहिन की भाव दृष्टि से सम्मान तथा स्त्रियों द्वारा पुत्री भाव रखते हुए स्नेह प्रदान के मनोरम चित्र कवि ने पद ८२ से ८९ में अंकित किए हैं।
शिशु सीता द्वारा माता से बातें करते हुए भोजन करना, बहिनों एवं सखियों को बुला लेना और इस भोजनकालीन झाँकी का जनक द्वारा झरोखे से दर्शन पद ९० की विषयवस्तु बना है। उनका प्रकृति- वर्षा ऋतु, वृक्ष एवं लताओं के प्रति प्रेम तथा भौतिकवाद एवं धनलिप्सा से वितृष्णा पद ९१ से १०० में अभिव्यक्त हुए हैं। सीता द्वारा शिव धनुष पिनाक को घसीटने का प्रसंग पद १०१ से १०८ में वर्णित है। सीता मिथिला में इस अत्यन्त भारी शिव धनुष की पूजा होते देखकर पिता जनक से इस सम्बन्ध में पूछती हैं। इसका इतिहास ज्ञात होने पर, सीता जनक को आश्चर्यचकित करती हुईं, धनुष को घसीटने लगती हैं और उसके संग क्रीड़ा के घोड़े की भाँति खेलने लगती हैं।
यौवनसम्पन्न सीता की अनुपम रूपराशि की पद १ से ५ में विविध प्राकृतिक सौन्दर्य उपादानों से तुलना द्वारा तृतीय किरण का प्रारम्भ होता है। पद ६ से ९ में नारद मुनि मिथिला में सीता के यहाँ पधारते हैं और उनका प्रणय-सन्देश राम को देने के लिए अयोध्या की ओर चल पड़ते हैं। अयोध्या की विशेषताएँ तथा महत्ता पद १० से १४ का वर्ण्यविषय हैं। नारद द्वारा अवलोकित किशोर राम की अपने भाईयों तथा मित्रों के संग खेलने की सुन्दर झाँकी १५ से २० वें पदों में गुम्फित है। नारद एवं राम के मध्य संवाद २१ तथा २२ पद में घटित होता है। सीता द्वारा सम्प्रेषित तथा नारद द्वारा प्रदत्त राम के लिए प्रेम सन्देश पद २३ से ३१ में अनुस्यूत है।
३२ एवं ३३ पदों में, राम नारद द्वारा सीता के लिए प्रत्युत्तर में सन्देश पत्रिका भेजते हैं, जिसे नारद जी सीता को सौंप देते हैं। राम के हृदय में छिपे सीता के प्रति प्रेम को अभिव्यक्त करता हुआ यह सुन्दर सन्देश ३४ से ४२ पदों में प्रस्तुत है। ४३ वें पद में नारद ब्रह्मलोक लौट जाते हैं। राम के विरह में सीता के हृदय की पीड़ा और राम के दर्शन के लिए उनकी विकलता कवि ने पद ४४ से ५१ में अत्यन्त भावपूर्ण शैली में प्रस्तुत की हैं।
पद ५२ एवं ५३ में, सीता शिव को ऋषि विश्वामित्र के समक्ष श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का उपदेश प्रदान करने की आज्ञा देती हैं। पद ५४ में विश्वामित्र शिव द्वारा स्वप्न में निर्दिष्ट स्तोत्र को जागने पर लिख लेते हैं और अयोध्या की ओर चल पड़ते हैं। विश्वामित्र द्वारा राम की सौन्दर्यछटा के अवलोकन का वर्णन पद ५५ से ५८ में किया गया है। पद ५९ से ६३ में, विश्वामित्र राजा दशरथ से राम एवं लक्ष्मण की मांग करते हैं, जिसे सुनकर दशरथ पहले तो अत्यन्त व्याकुल हो जाते हैं, किन्तु फिर वशिष्ठ द्वारा आश्वस्त किए जाने पर स्वीकार कर लेते हैं। दोनों भाईयों के विश्वामित्र के साथ अयोध्या से प्रस्थान करने से लेकर मिथिला पहुँचने तक– रामायण में वर्णित नौ कथाओं को कवि ने समासोक्ति अलंकार द्वारा अत्यन्त संक्षेप में एक ही पद ६४ में प्रस्तुत कर अपने काव्य कौशल का परिचय दिया है।
६५ वें पद में, राम और लक्ष्मण मिथिला की राजधानी देखने के लिए निकलते हैं। ६६ से ७१ पदों में मिथिला की नवयौवनाएँ एवं सीता की सखियाँ दोनों राजकुमारों के दर्शन करती हैं और उनके सौन्दर्य का गान करती हैं। दूसरे दिन प्रातःकाल, राम गुरु विश्वामित्र से उनकी सेवा हेतु लक्ष्मण के साथ पुष्प चयन करने के लिए जाने की आज्ञा मांगते हैं (पद ७२–७७)। जनक की फुलवारी में राम और लक्ष्मण के पहुँचने का प्रसंग तीन पदों (७८ से ८०) में प्रस्तुत है। राम और माली की कन्या के मध्य हुआ मधुर संवाद पद ८१ से ८७ में दर्शनीय है।
माता सुनयना द्वारा गौरी पूजन के लिए भेजी गईं, सीता अपनी सखियों के संग फुलवारी में प्रवेश करती हैं। सीता और राम द्वारा परस्पर प्रथम दर्शन, दोनों का एक दूसरे को टकटकी लगाकर निहारना और रूपसुधा का पान करना ८८ से १०० वें पदों में वर्णित अतिमनोहर प्रसंग हैं। इस अवसर पर दोनों के मध्य उत्पन्न अद्वैत स्थिति का सुन्दर चित्रांकन कवि ने ९६ एवं ९७ पदों में प्रस्तुत किया है। १०१ और १०२ वें पदों में सीता और राम द्वारा फुलवारी से क्रमश: मन्दिर तथा विश्वामित्र के स्थान पर जाने का वर्णन है।
१०३ वें पद में पार्वती द्वारा सीता को आशीर्वाद, राम द्वारा शिव धनुष भंग, परशुराम एवं राम की भेंट संक्षेप में प्रस्तुत किए गए हैं। १०४ से १०८ पदों में चारों रघुवंश के राजकुमारों –राम, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न–का विवाह क्रमशः चारों राजकुमारियों –सीता, उर्मिला, माण्डवी एवं श्रुतिकीर्ति के संग सम्पन्न होता है और नवविवाहित दम्पति अयोध्या अपने घर लौट आते हैं।
श्रीसीतारामकेलिकौमुदी की द्वितीय किरण में घनाक्षरी छन्द में रचित तीन पदों (२.३, २.४ तथा २.१८) में केवल लघु अक्षरों का प्रयोग किया गया है।[3] एक उदाहरण (२.३) यहाँ द्रष्टव्य है –
तहँ बस बसुमति बसु बसुमुखमुख
निगदित निगम सुकरम धरमधुर।
दुरित दमन दुख शमन सुख गमन
परम कमन पद नमन सकल सुर ॥
बिमल बिरति रति भगति भरन भल
भरम हरन हरि हरष हरम पुर।
गिरिधर रघुबर घरनि जनम महि
तरनि तनय भय जनक जनकपुर ॥
अपने संस्कृत महाकाव्य श्रीभार्गवराघवीयम् में, कवि ने इस प्रकार के लघु वर्णों से युक्त सात पद्यों की रचना अचलधृति (गीतार्या) छन्द में की है।
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.