यह धनुष, भगवान शिव के धनुष पिनाक के साथ, विश्वव्यापी वास्तुकलाकार और अस्त्र-शस्त्रों के निर्माता विश्वकर्मा द्वारा तैयार किया गया था। एक बार, भगवान ब्रह्मा जानना चाहते थे कि उन दोनों में से बेहतर तीरंदाज कौन है, विष्णु या शिव। तब ब्रह्मा ने दोनों के बीच झगड़ा पैदा किया, जिसके कारण एक भयानक द्वंद्वयुद्ध हुआ। उनके इस युद्ध के कारण पूरे ब्रह्मांड का संतुलन बिगड़ गया। लेकिन जल्द ही विष्णु ने अपने बाणों से शिव को पराजित किया। ब्रह्मा के साथ अन्य सभी देवताओं ने उन दोनों से युद्ध को रोकने के लिए आग्रह किया और विष्णु को विजेता घोषित किया क्योंकि वह शिव को पराजित करने में सक्षम थे। क्रोधित भगवान शिव ने अपने धनुष पिनाक को देवरथ नामक एक राजा को दे दिया, जो सीता के पिता राजा जनक के पूर्वज थे। भगवान विष्णु ने भी ऐसा करने का निर्णय किया, और ऋषि ऋचिक को अपना धनुष शारंग दे दिया।
समय के साथ, शारंग, भगवान विष्णु के अवतार और ऋषि ऋचिक के पौत्र परशुराम को प्राप्त हुआ। परशुराम ने अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा करने के पश्चात, विष्णु के अवतार भगवान राम को शारंग दे दिया। राम ने इसका प्रयोग किया और इसे जलमण्डल के देवता वरुण को दिया। महाभारत में, वरुण ने शारंग को खांडव-दहन के दौरान भगवान कृष्ण (विष्णु के अवतार) को दे दिया। बैकुंठ धाम में वापिस जाने के पहले , श्रीकृष्ण ने इस धनुष को महासागर में फेंककर वरुण को वापस लौटा दिया।
विष्णु के बाईसवें अवतार श्रीकृष्ण और रहस्यमय शक्तियों के राक्षस शल्व के बीच एक द्वंद्वयुद्ध के दौरान शारंग प्रकट होता है। शल्व ने श्रीकृष्ण के बाएं हाथ पर हमला किया जिससे श्रीकृष्ण के हाथों से शारंग छूट गया। बाद में, श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शल्व के सिर को धड़ से अलग कर दिया।
एक अन्य कथा के अनुसार, जब जनक ने घोषणा की कि जो भी देवी सीता से विवाह करना चाहता है उसे पिनाक नामक दिव्य धनुष उठाना होगा और इसकी प्रत्यंचा चढ़ानी होगी। अयोध्या के राजकुमार श्रीराम ने ही यह धनुष प्रत्यंचित किया और देवी सीता से विवाह किया। विवाह के बाद जब उनके पिता दशरथ श्रीराम के साथ अयोध्या लौट रहे थे, श्रीपरशुराम ने उनके मार्ग को रोका और अपने गुरु शिव के धनुष पिनाक को तोड़ने के लिए राम को चुनौती दी। श्रीराम ने धनुष को भंग कर दिया । इस पर दशरथ ने ऋषि श्रीपरशुराम से उसे क्षमा करने के लिए प्रार्थना की लेकिन श्रीपरशुराम और भी क्रोधित हुए और उन्होने श्रीविष्णु के धनुष शारंग को लिया और श्रीराम से धनुष को बांधने और उसके साथ एक द्वंद्वयुद्ध लड़ने के लिए कहा। श्रीराम ने श्रीविष्णु के धनुष शारंग को लिया, इसे बाँधा, इसमें एक बाण लगाया और उस बाण को श्रीपरशुराम की ओर इंगित किया। तब श्रीराम ने श्रीपरशुराम से पूछा कि वह तीर का लक्ष्य क्या देंगे। इस पर, श्रीपरशुराम स्वयं को अपनी रहस्यमय ऊर्जा से रहित मानते हैं। वह महसूस करते हैं कि श्रीराम श्रीविष्णु का ही अवतार हैं।
महाभारत, सटीक, प्रथम खण्ड, 3.3.48 एवं 6.65.50; गीताप्रेस, गोरखपुर।
श्रीमद्भागवत महापुराण, सटीक, प्रथम खण्ड, 4.12.24; गीताप्रेस, गोरखपुर, पृष्ठ-378.