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विद्या भारती की असम प्रांत इकाई शिशु शिक्षा समिति द्वारा संचालित विद्यालयों को शंकरदेव शिशु निकेतन व शंकरदेव विद्या निकेतन कहते हैं। इन विद्यालयों का नाम महापुरुष शंकरदेव के नाम पर रखा गया। ब्रह्मपुत्र घाटी में चल रहे विद्यालयों को निकेतन कहा जाता है।अभिनव शिक्षण पद्धति इन निकेतनों की विशेषता है। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए शंकरदेव शिशु निकेतन समूह के स्कूलों को असम के जनमानस ने स्वीकार किया है। इन निकेतनों में असमिया माध्यम में शिक्षण प्रदान किया जाता है। इन निकेतन समूह के अंतर्गत 551 स्कूल असम के ब्रह्मपुत्र भाग में संचालित हैं।[1]
इन निकेतन (विद्यालयों) में अंकुर व मुकुल श्रेणी (पूर्व प्राथमिक) की कक्षाओं का संचालन होता है।
इन निकेतन (विद्यालयों) में प्राथमिक श्रेणी की कक्षाओं का संचालन होता है।
इन निकेतन (विद्यालयों) में माध्यमिक व उच्च श्रेणी की कक्षाओं का संचालन होता है।
1952 में संघ प्रेरणा से शिक्षा क्षेत्र को जीवन-साधना समझकर कुछ निष्ठावान लोग इस पुनीत कार्य में जुट गए। उन्होने नवोदित पीढ़ी को सुयोग्य शिक्षा और शिक्षा के साथ संस्कार देने के लिए “सरस्वती शिशु मंदिर” की आधारशिला उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में की। उत्तर प्रदेश में शिशु मंदिरों के संख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी। इनके मार्गदर्शन एवं समुचित विकास के लिए 1958 में शिशु शिक्षा प्रबंध समिति नाम से प्रदेश समिति का गठन किया गया। सरस्वती शिशु मंदिरों को सुशिक्षा एवं सद्संस्कारों के केन्द्रों के रूप में समाज में प्रतिष्ठा एवं लोकप्रियता प्राप्त होने लगी। अन्य प्रदेशों में भी जब विद्यालयों की संख्या बढ़ने लगी तो उन प्रदेशों में भी प्रदेश समितियों का गठन हुआ। जाब एवं चंडीगढ़ में सर्वहितकारी शिक्षा समिति, हरियाणा में हिन्दू शिक्षा समिति बनी। इसी प्रयत्न ने 1977 में अखिल भारतीय स्वरुप लिया और विद्या भारती संस्था का प्रादुर्भाव दिल्ली में हुआ। सभी प्रदेश समितियां विद्या भारती से सम्बद्ध हो गईं।[2][3]
असम में शिशु शिक्षा समिति असम का गठन 21 अप्रैल 1979 को किया गया था। शिशु शिक्षा समिति असम द्वारा विद्या भारती की योजना से चल रहे विद्यालयों का नाम महापुरुष शंकरदेव के नाम पर रखा गया। 4 सितंबर 1979 को गुवाहाटी के अंबिकागिरी नगर में शिशु शिक्षा समिति असम द्वारा शंकरदेव शिशु निकेतन, अंबिकागिरी नगर नामक एक स्कूल की स्थापना की गई थी। यह असम का पहला विद्या भारती स्कूल था। वर्तमान में इस निकेतन को शंकरदेव शिशु कुंज, अंबिकागिरी नगर के नाम से जाना जाता है।[4][1]
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