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लंका दहन धुंदिर गोविंद फाल्के द्वारा निर्देशित १९१७ भारतीय मूक फिल्म है | विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
लंका दहन १९१७ कि भारतीय मूक फ़िल्म है जिसे दादासाहब फालके ने निर्देशित किया था। ऋषि वाल्मीकि द्वारा लिखित हिंदू महाकाव्य रामायण के एक प्रकरण पर आधारित इस फ़िल्म का लेखन भी फालके ने किया था। १९१३ कि फ़िल्म राजा हरिश्चन्द्र, जो पहली पूर्ण रूप से भारतीय फीचर फ़िल्म थी, के बाद फालके की यह दूसरी फीचर फ़िल्म थी। फालके ने बीच में विभिन्न लघु फिल्मों का निर्देशन किया था।[1]
लंका दहन | |
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गुस्से में हनुमान, शिंदे द्वारा निभाई भूमिका | |
निर्देशक | दादासाहब फालके |
लेखक | दादासाहब फालके |
निर्माता | दादासाहब फालके |
अभिनेता |
अण्णा सालुंके गणपत शिंदे |
छायाकार | त्रिंबक तेलंग |
प्रदर्शन तिथि |
१९१७ |
देश | भारत |
भाषायें |
मूक फ़िल्म मराठी उपशीर्षक |
अण्णा सालुंके ने इस फिल्म में दो भूमिका निभाई थी। उन्होंने पहले फालके के राजा हरिश्चन्द्र में रानी तारामती की भूमिका निभाई थी। चूंकि उस जमानेमे प्रदर्शनकारी कलाओं में भाग लेने से महिलाओं को निषिद्ध किया जाता था, पुरुष ही महिला पात्रों को निभाते थे। सालुंके ने इस फ़िल्म में राम के पुरुष चरित्र और साथ ही उनकी पत्नी सीता का महिला चरित्र भी निभाया है।[2] इस प्रकार उन्हें भारतीय सिनेमा में पहली बार दोहरी भूमिका निभाने का श्रेय दिया जाता है।[3][4]
अयोध्या के राजकुमार राम को चौदह वर्ष की अवधि के लिए वनवास जाना पड़ा क्योंकि उन्हें निर्वासित किया गया है। उनके साथ पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण भी जुड़ गए हैं। राक्षस राजा रावण जो कि सीता से विवाह करना चाहते थे, बदला लेने का फैसला करते है। वह सीता का वन से अपहरण करते हैं। अपनी पत्नी की खोज के दौरान राम हनुमान से मिलते हैं। हनुमान, जो राम के एक महान भक्त हैं, सीता को खोजने का वादा करता हैं।
हनुमान लंका के द्वीप के लिए उड़कर प्रस्थान करते हैं और वहाँ सीता को खोजते है। वे सीता को सूचित करते हैं कि वह राम के एक महान भक्त हैं और राम जल्द ही उन्हें वापस लेने के लिए आ रहे हैं। अपनी पहचान साबित करने के लिए वे उन्हें राम की अंगूठी देते हैं। हनुमान की वापसी यात्रा पर उन्हें रावण के सैनिकों द्वारा गिरफ्तार किया जाता हैं। जब उन्हें अदालत में पेश किया जाता हैं तो रावण हनुमान की पूँछ को आग लगा देना का आदेश देते हैं। फिर हनुमान अपनी शक्ति दिखाकर सभी रुकावटों को तोड़ते हैं और उड़ जाते हैं। अपनी पूँछ पर लगी आग के साथ वे पूरे लंका शहर को आग लगा देते हैं। पूरे शहर में आग लगाने के बाद, हनुमान हिंद महासागर में पूँछ की आग बुझा देते हैं।
फ़िल्म के मुख्य कलाकार इस प्रकार हैं:[5]
चूंकि फ़िल्म हिंदू पौराणिक कथा पर आधारित थी, उसने दर्शकों के बीच अच्छा प्रदर्शन किया। जब मुंबई में फिल्म प्रदर्शित हुई, भगवान राम के दिखते ही दर्शक अपने जूते उतार देते।[6] फिल्म में इस्तेमाल किए गए विशेष प्रभाव दर्शकों को प्रसन्न करते रहे थे।[7][8]
फ़िल्म को जनता द्वारा अच्छी प्रशंसा प्राप्त हुई। फ़िल्म इतिहासकार अमृत गंगर के अनुसार, टिकट खिड़की पर जमे सिक्कों को बोरी में एकत्रित किया जाता और बैल-गाड़ियों पर लादकर फ़िल्म निर्माता के कार्यालय में ले जाया जाता। फ़िल्म ने करीब दस दिन में ३५ हज़ार रुपय कमाए थे।[4] मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा में लंबी कतारें लगती थीं, जहाँ टिकट खिड़की पर लोग सिक्के उछालते और टिकट के लिए लड़ते थे क्योंकि फिल्म ज्यादातर हाउसफ़ुल होती थी।[9]
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