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रामबहादुर राय हिंदी के प्रसिद्ध पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष[1] हैं। वर्तमान में वे देश की सबसे पुरानी (1948 में स्थापित) बहुभाषी न्यूज एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार और उसके प्रकाशनों के समूह सम्पादक हैं। कम समय में ही समाज से जुड़े सवालों पर प्रभावी लेखन के जरिए पहचान बना चुकी पाक्षिक पत्रिका 'यथावत' राम बहादुर राय के सम्पादन में प्रकाशित होती है। वे हिन्दुस्थान समाचार के ही साप्ताहिक 'युगवार्ता' और मासिक 'नवोत्थान' के भी समूह सम्पादक हैं। राय देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कॉलम लिखते रहे हैं,जो बहुत चर्चित हुए।
राम बहादुर राय | |
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अपने कार्यालय में राम बहादुर राय | |
जन्म |
1 जुलाई 1946 सोनाड़ी, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश, भारत |
शिक्षा | काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी |
पेशा | पत्रकार, संपादक |
कार्यकाल | 1974–अब तक |
रामबहादुर राय का जन्म उत्तर प्रदेश के सोनाड़ी गांव में 1 जुलाई 1946 को हुआ था। उनकी कक्षा पांच तक की शिक्षा पश्चिम बंगाल के मालदह में हुई थी। इसके बाद कक्षा छह से आठ तक की शिक्षा निकटवर्ती गांव अवथही के पूर्व माध्यमिक विद्यालय से प्राप्त करने के बाद रामबहादुर ने दसवीं तक की शिक्षा एसएमएन इंटर कालेज मच्छटी से ग्रहण की। 12 वीं की पढ़ाई के लिए वो गाजीपुर चले आए जहां एमएच इंटर कालेज से उन्होंने इंटमीडिएट पास किया। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने बनारस के डीएवी कॉलेज में दाखिला लिया जहां से उन्होंने स्नातक करने के पश्चात अर्थशास्त्र में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। राम बहादुर राय छात्र जीवन से ही राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ गए थे। [2][3]
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में बीए, एमए और ला करने के दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन को मजबूत करने में लगे रहे। 1965 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदू शब्द हटाने के विरोध में राम बहादुर राय ने जोरदार आंदोलन चलाया। 1971 में वीसी कालूलाल श्रीमाली के खिलाफ आंदोलन छेड़ने पर 46 छात्र नेता निष्कासित कर दिए गए। निष्कासन वापसी की शर्त माफी माँगनी रखी गई। 44 नेताओं ने माफी माँग ली किंतु दो ने नहीं माँगी। उन दो में एक राम बहादुर राय थे, दूसरे मार्कंडेय सिंह। तब राम बहादुर राय अर्थशास्त्र में बीएचयू में पीएच.डी. कर रहे थे। राय साहब वर्धा जाकर विनोबा भावे से मिले किंतु कोई लाभ न हुआ और उनके शोध का काम अधर में लटक गया।[4]
1971 में बनारस में जेपी के एक भाषण से प्रेरित होकर रामबहादुर राय पूर्वी बंगाल गए और वहाँ से लौटकर मुक्ति संग्राम का आँखों देखा हाल 'आज' अखबार के 5 मई 1971 के अंक में लिखा। उन दिनों बनारस में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सभा रखी गई। छात्र संघों पर रोक के खिलाफ विद्यार्थी परिषद ने उन्हें काला झंडा दिखाने का फैसला किया। इंदिरा जी की सभा में मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह भी आए थे। रामबहादुर राय ने काला झंडा दिखाया। गिरफ्तार किए गए। रामबहादुर राय को विद्यार्थी परिषद का राष्ट्रीय सचिव बना दिया गया। बिहार में संगठन को मजबूत बनाने का दायित्व उन्हें दिया गया। राय साहब ने पूरे बिहार में घूम-घूम कर विद्यार्थी परिषद का संगठन खड़ा किया। एक वर्ष की कड़ी मेहनत रंग लाई। पटना छात्र संघ का चुनाव हुआ। लालू प्रसाद अध्यक्ष, सुशील मोदी महासचिव और रवि शंकर प्रसाद सचिव चुने गए। 1974 में छात्र संघर्ष समिति बनी। विधानसभा घेराव का कार्यक्रम बना। राय साहब गिरफ्तार किए गए। मीसा में वह पहली गिरफ्तारी थी। दस महीने जेल में रहे। इमरजेंसी में भी राय साहब गिरफ्तार कर लिए गए और 16 महीने जेल में रहे। जेल से छूटे तो सक्रिय राजनीति के बजाय पत्रकारिता का चयन किया।[5]
रामबहादुर राय ने 1979 में हिंदुस्तान समाचार एजेंसी से पत्रकारिता प्रारंभ की। 1983 में दिल्ली से 'जनसत्ता' शुरू हुआ तो उसके स्थापना काल से ही राम बहादुर राय जुड़ गए। सालभर बाद ही उन्हें चीफ रिपोर्टर बना दिया गया। उन्हीं दिनों राजेन्द्र माथुर 'नवभारत टाइम्स' के संपादक बनकर दिल्ली आ गए थे। वे राय साहब को अपने यहाँ बुलाते रहे। 1986 में राय साहब 'नवभारत टाइम्स' में विशेष संवाददाता बनकर चले गए। राय साहब को प्रभाष जोशी बहुत मानते थे। इसलिए उनसे कहते रहते - 'जनसत्ता' में लौट आओ। तुम्हारा अखबार 'जनसत्ता' है। 1991 में राय साहब 'जनसत्ता' में लौट आए। 1994-95 तक 'जनसत्ता' के ब्यूरो चीफ रहे। 1995 से 2004 तक वे 'जनसत्ता' के संपादक (समाचार सेवा) रहे। राय साहब को भाजपा ने लोकसभा चुनाव लड़ाने के लिए दो-दो बार प्रस्ताव दिया किंतु उन्होंने स्वीकार नहीं किया। उन्हें राज्यसभा में भी भेजने की पेशकश की गई लेकिन उसे भी उन्होंने ठुकरा दिया।
जेपी आंदोलन के संस्थापक संगठनकर्ताओं में एक राम बहादुर राय भी थे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सहयोगी रह चुके राय ने 1974 के छात्र आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी थी। वे जेपी आंदोलन की ग्यारह सदस्यीय छात्र संघर्ष संचालन समिति के सदस्य थे। राम बहादुर राय के नेतृत्व में ही लालू प्रसाद यादव, सुशील कुमार मोदी, रविशंकर प्रसाद इत्यादि छात्र नेता जयप्रकाश नारायण से मिले और उन्हें आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए न सिर्फ आमंत्रित किया बल्कि उनकी सहमति भी हासिल की। 1977 के आम चुनाव में राम बहादुर राय को लोकसभा चुनाव लड़ने का टिकट ऑफर किया गया लेकिन रामबहादुर राय ने सक्रिय राजनीति में आने की बजाय पत्रकारिता को अपना करियर चुना।
राय वो पहले व्यक्ति थे, जिन्हें अप्रैल 1974 में इंदिरा गांधी सरकार के दौरान आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम ( मीसा) के तहत गिरफ्तार किया गया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उनकी रिहाई हुई। बाद में आपातकाल के दौरान उन्हें दूसरी बार गिरफ्तार किया गया और वे 16 महीनों तक जेल में रहे। इसके पहले वे 1974 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय सचिव थे।
प्रमुख मौलिक कृतियाँ
सम्पादन
रामबहादुर राय को पत्रकारिता के जरिए उनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए 'पद्म श्री' सम्मान दिया गया। हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें माधवराव सप्रे पत्रकारिता पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। 17 जून, 2010 को भोपाल में आयोजित समारोह में मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैलाश जोशी ने श्रीराय को ये सम्मान प्रदान किया। ।
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