Loading AI tools
विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
राप्ती अंचल मध्यपस्चिमान्चल नेपाल में पड़ता है, इस अन्चल में दांग, रोल्पा रूकुम, प्युठान व सल्यान जिले पडते है, भित्री मधेस कहेजाने वाला दांग उपत्यका इसी अंचलमे पड़ता है, इस अंचलकी पुर्वमे लुंबिनी अंचल, उत्तर, पुर्वमे धवलागिरी अंचल व उत्तरमे कर्णाली अंचल पश्चिम में भेरी अंचल व दक्षिण में भारतीय राज्य उत्तरप्रदेश पडताहै।
राप्ती अंचल की संस्कृति नेपाल के तराई क्षेत्रों से बिलकुल अलग है। यहाँ की वेषभूषा, भाषा तथा पकवान इत्यादि एक जैसे ही हैं। सामान्य खाना चने की दाल, भात, तरकारी, अचार है। इस प्रकार का खाना सुबह एवं रात में दिन में दोनो जून खाया जाता है। खाने में चिवड़ा और चाय का भी चलन है। मांस-मछली तथा अंडा भी खाया जाता है। मुख्य रूप से यहाँ गेहूँ, मकई, कोदो, आलू आदि खाने का का प्रचलन है। कोदो के मादक पदार्थ तोंगबा, छ्याङ, रक्सी आदि का सेवन नेपाल के इस भाग में भाग में बहुत होता है। नेवार समुदाय अपने विशेष किस्म के नेवारी परिकारों का सेवन करते हैं।
यहाँ के सामाजिक जीवन की मान्यता, विश्वास और संस्कृति हिंदू भावना में आधारित धार्मिक सहिष्णुता और जातिगत सहिष्णुता का आपस का अन्योन्याश्रित संबंध यहाँ की अपनी मौलिक संस्कृति है। यहाँ के पर्वों में वैष्णव, शैव, बौद्ध, शाक्त सभ धर्मों का प्रभाव एक दूसरे धर्मावलंबियों पर समान रूप से पड़ा है। यहाँ छुआछुत का भेद न कट्टर रूप में है और न जन्मसंस्कार के आधार पर ही है। शक्तिपीठों में चांडाल और भंगी, चमार, देवपाल और पुजारी के रूप में प्रसिद्ध शक्ति पीठ गुह्येश्वरी देवी, शोभा भागवती के चांडाल तथा भंगी, चमार पुजारियों को प्रस्तुत किया जा सकता है। उपासना की पद्धति और उपासना के प्रतीकों में भी समन्वय स्थापित किया गया है। मूर्तिपूजा और कर्म कांड के विरोध में उत्पन्न बौद्ध धर्म ने नेपाल में स्वयं मूर्तिपूजा और कर्मकांड अपनाया है। बौद्ध पशुपतिनाथ की पूजा आर्यावलोकितेश्वर के रूप में करते हैं और हिंदू मंजुश्री की पूजा सरस्वती के रूप में करते हैं। इस अंचल की यह समन्वयात्मक संस्कृति लिच्छवि काल से अद्यावधि चली आ रही है।
नेपाली साहित्य में राप्ती अंचल के थारू लोक साहित्य का अपना विशिष्ट स्थान है। खुलेपन की हवा और युग की मांग ने इस थारू लोक साहित्य को भी अपनी लपेट में ले लिया है। यह एक सुखद बात है कि आज राप्ती अंचल में भी समग्र क्रान्ति के मशालवाहक अनेक साहित्यकार हैं, जिनसे भावी अपराजेय और अविन प्रगतिशील नेपाल को बहुत आशाएँ हैं। युगों-युगों की निरक्षरता, अभाव और गरीबी ने थारू लोक जीवन के सत- उसके आनंद और रस को बूंद-बूंद निचोड़ लिया है। राप्ती अंचल के युवा कवि अपनी इस नियति को बदलना चाहते हैं। वे काँटों के बीच ही फिर से फूल की तरह खिलना, मुसकुराना और महक बिखेरना चाहते हैं। एक उदाहरण देखें - "हिला-किंचा में जन्म लेले /कांटा-मूला से लदले-भिले/ जिंदगी भर सुख-दुख को तौर नै हो परवाह /....मूस-मूस मुसकी मूर्ति / हृदय में विकास को कामना/ करती आगे बढ़ाना/ ओहे मधुर-मुस्कान को साथ /....अमिट बनले समाज में / बस-सुवास भालें देवतन में।[1]
यहाँ के प्रमुख समकालीन साहित्यकार हैं गणेश कुमार चौधरी, टेक बहादुर चौधरी, फूलमान चौधरी, रूप मन चौधरी, लक्ष्मण गोचाली और जनार्दन चौधरी आदि।[2]
१, त्रिभुवननगर २, तुल्सीपुर ३, लमही ४, लिवागं ५, विजुवार ६, प्युठान (खलंगा) ७, मुसीकोट (खलंगा) ८, चैरजाहारी ९, सल्यान (खलंगा)
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.