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राजा मान चित्तौड़ के आखिरी मौर्य शासक थे। इनके पिता का नाम भीम था जिन्होंने इन्द्रगढ़ राठौड़ राजा नन्न को हराकर मालवा जीतकर अपने अवंती प्रांत के साम्राज्य का विस्तार किया था ।मान-मोरी ने चित्तौड़ के शंकरघंटा में शिव मन्दिर बनवाया था। जहां से राजा मान मोरी का वि.सं.770 का शिलालेख मिला था।[1] इनकी हत्या इनके ही सेनापति बप्पा रावल ने भीलों की मदत से कर दी थी।[2][3]चालुक्यों के नवसारी शिलालेख के अनुसार अरबों ने मौर्यों पर हमला किया था। चित्तौड़ में मिले शिलालेख संवत 770 अर्थात् राजा मान सन् 713 ई० में राज्य करता था।[4]
मुहणोंत नैणसी ने भी अपनी ख्यात में “मौरी दल मारेव राज रायांकुर लीधौ,” लिखकर इसी सत्यता को पुष्ट किया है।
मानमोरी का संस्कृत मे लिखा अभिलेख चित्तौड़ के पास मानसरोवर झील के तट से कर्नल टॉड को मिला था।[5] [6]जिसका हिन्दी अनुवाद निम्न प्रकार है (शुरू की २ देवस्तुति की पंक्ति छोड़कर) -
इस पृथ्वी पर जब महाराज महेश्वर थे, वह एक महान राजा थे , जिनके शासन के दौरान उनके दुश्मन का नाम कभी नहीं सुना गया; जिनकी ख्याति आठ दिशाओं मे थी ; जिनका बाजू युद्ध जीत के लिए था। वह भूमि का प्रकाश थे।उनके वंश की प्रशंसा ब्रह्मा के खुद के मुँह से निर्धारित हुई थी।
महाराज भीम ऐसे थे की उनका स्वरूप गौरव से भरपूर था, जो अपने पाले बतखों को अपने हाथों से खिलाते थे , जिनके मुख पर हमेशा तेज रहता था ,वे महाराज भीम थे, युद्ध के समुंदर में कुशल तैराक, जहाँ गंगा अपनी बहाव डालती है, वहाँ तक वे जाते थे युद्ध के लिए। जिनका निवास अवंति है। चाँद के समान चमकदार चेहरों वाले, जिनके होंठों पर उनके दांतों के निशान थे, उन्होने अपने दुश्मनों की पत्नियों को अपनी पटरानियाँ बनाई , वे सब भीम महाराज के दिल में बसी रहती थी । उन्होंने अपने दुश्मनों के भय को दूर किया; इसके लिए उन्होने उन्हें पूर्णरूप से मिटा दिया जिसे वे अपनी भूलों के रूप में मानते थे। वे ऐसे लगते थे जैसे आग से बनाए गए हों। वे समुंदर के स्वामी को भी शिक्षा देने में सक्षम थे।
उनसे राजा भोज का जन्म हुआ। वह कैसे वर्णन किया जा सकता है, वही जिसने युद्ध के मैदान में अपनी तलवार से हाथी के सिर को विभाजित किया, उस हाथी के दिमाग से एक मोती निकला, जिसका अब उनके हृदय पर आभूषण बन गया है : जो राहू के समान अपने दुश्मनों को खा जाते है,जो अंतरिक्ष के सूर्य और चंद्रमा के रूप के जैसे तेजवान है ।
उसके बेटे का नाम मान था, जो गुणों से भरपूर और भाग्यवान है । एक दिन वह एक बूढ़े आदमी से मिले उसका रूप देखने पर उन्हे यह विचार करने पर मजबूर किया कि इसकी शरीर छाया की तरह अल्पकालिक है, जिसका आत्मा सुगंधित कदम के बीज की तरह है; जो राज्य की धन की भंडार स्वाभाविक हैं, जैसे एक घास की कटार, और व्यक्ति दिन के प्रकाश में प्रकट किए जाने वाले दीपक की तरह होता है। ऐसे विचार करते हुए उन्होने अपने पूर्वजों के लिए और अच्छे कर्म करने के लिए सोचा तब उन्होंने इस झील को बनाया, जिसके पानी विशाल भूमि पर हैं और गहराई अपरिमित है। जब मैं इस समुंदर-सा झील को देखता हूँ, तो मैं खुद से पूछता हूँ, क्या यही वह है जो आख़िरकार प्रलय का कारण बनेगा।
राजा मान के योद्धा और मुखिया कौशलयुक्त और वीर हैं - उनके जीवन में शुद्धता है और वफादारी है। राजा मान गुणों का ढेर है - जो उसके पक्ष के मुख्य उपहारों को प्राप्त कर सकता है। जब सिर को उनके कमल चरण पर झुकाया जाता है, तब जो रेत की दानिया वहाँ चिपकता है वह आभूषण की तरह है , यह झील चारों ओर पेड़ों से छाया गया ,वो सब पेड़ पक्षियों से मढ़ित रहते है , जिसे भाग्यवान श्रीमान राजा मान ने बड़ी मेहनत से बनवाया है । इसके स्वामी के नाम "मान" से ही इस सरोवर की दुनिया में पहचान है।
-मानमोरी अभिलेख (हिन्दी अनुवाद )
बाप्पा ने सन् 734 में भीलों के साथ चित्तौड़ पर चढ़ाई की जहां और मान मान सिंह मोरी की हत्या कर दी ।[7]
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