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2002 की विक्रम भट्ट की फ़िल्म विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
राज़ वर्ष 2002 में बनी हिन्दी भाषा की हाॅर्रर फिल्म है, जिसका निर्देशन विक्रम भट्ट, तथा निर्माण मुकेश भट्ट, कुमार एस. तौरानी और रमेश एस. तौरानी ने किया है। फ़िल्म में कलाकार डीनो मोरिया तथा बिपाशा बसु एक युवा दंपत्ति की भूमिका निभाते हैं जो अपने टूटते वैवाहिक जीवन को संभालने के लिए ऊटी आते हैं। मगर जल्द ही नायिका को यह एहसास होता है कि उनके इस नए घर में एक प्रेतात्मा का भी वास है। उसकी पत्नी संजना समझ जाती है कि वह आत्मा उसके पति को ले जाना चाहती है। फ़िल्म को अनाधिकारिक रूप से हालीवुड फ़िल्म "व्हाट लाईज बिनीथ" का हिन्दी संस्करण माना जाता है ।[1]
राज़ | |
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राज़ का पोस्टर | |
निर्देशक | विक्रम भट्ट |
लेखक |
महेश भट्ट गिरीश धामिजा |
निर्माता |
मुकेश भट्ट, कुमार एस. तौरानी, रमेश एस. तौरानी |
अभिनेता |
डीनो मोरिया, बिपाशा बसु, आशुतोष राना |
छायाकार | प्रवीण भट्ट |
संपादक | अमित सक्सेना |
संगीतकार | नदीम-श्रवण |
निर्माण कंपनी |
विशेष फिल्म्स |
वितरक | टिप्स म्यूजिक फिल्म्स |
प्रदर्शन तिथियाँ |
12 मार्च, 2002 |
लम्बाई |
152 मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
कुल कारोबार | ₹37 करोड़ (US$5.4 मिलियन) |
यह देवदास के बाद वर्ष 2002 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी, और राज़ श्रृंखला में पहली फिल्म थी। बिपाशा बसु को फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार के लिए नामित किया गया था और कई प्रमुख पुरस्कार उन्होंने जीते। नदीम-श्रवण के संगीत से उन्हें कई नामांकन और पुरस्कार अर्जित हुए। फिल्म के लिए अगली कड़ी राज़ : दि मिस्ट्री कन्टिन्युज के शीर्षक के तहत 2009 में जारी की गई थी। फिर राज़ 3 नाम से श्रृंखला की तीसरी किस्त 7 सितंबर 2012 को रिलीज़ हुई थी। चौथी फिल्म, राज़: रीबूट, हाल ही में 16 सितंबर, 2016 को रिलीज हुई है।
ये कहानी मुंबई में एक बिजनेस पार्टी में शामिल संजना धनराज (बिपाशा बसु) और आदित्य धनराज (डीनो मोरिया) पर घुमती है, जहाँ आदित्य कारोबारी बातों में इतना व्यस्त रहता है कि वह अपनी पत्नी तक की नहीं सुनता। वह आदित्य की जेब से कार की चाभी छीनती है और पार्टी छोड़कर घर को लौटती है। इस तेज रफ्तार में घर जाते वक्त, उसे अपने कानों पर एक रहस्यमयी आवाज सुनाई पड़ती है और वो कार से नियंत्रण खो देती है। हालांकि, आर्श्यचकित रूप से, इतनी भयानक दुर्घटना में भी वह बच जाती है। उसके ठीक होने बाद, संजना अपने पति से तलाक की अर्जी करती है। आदित्य, को अपनी गलती का एहसास होता है और अपनी व्यस्तता से दूर रहने के लिए अवकाश की योजना बनाता है। वह संजना से दुनिया में कहीं भी कुछ वक्त के लिए चलने को कहता है और संजना वापिस ऊटी (जहाँ उनकी रिश्तों की शुरुआत हुई थी) चलने को कहती है ताकि वो अपने वैवाहिक समस्या सुधार सके।
ऊटी में जाने के बाद संजना को किसी औरत के चिल्लाने की आवाज सुनाई देती है, जब वो ये बात आदित्य से कहती है तो वो कहता है कि उसे भ्रम हो रहा है। इसके अलावा कई बार बिना किसी कारण चीजें गिरने भी लगती है। उसे बाद में पता चलता है कि कामवाली का पति भी इस तरह के चिल्लाने की आवाज सुन चुका है और इसी कारण वो इस घर से डर कर अपनी जान बचा के भाग गया था।
संजना इस बारे में अपनी दोस्त, प्रिया (श्रुति उलफत) से बात करती है। वो उसे प्रोफेसर स्वरूप के पास जाने को कहती है। जब प्रो॰ स्वरूप वहाँ आता है और घर का मुआइना कर कहता है कि इस घर में आत्मा का वास है। वो कहता है कि इस घर में एक लड़की की हत्या हुई थी, और उसकी की आत्मा ये सब कर रही है। वो आत्मा प्रो॰ स्वरूप को जंगल में एक जगह ले जाती है, उसके साथ वो दोनों भी जंगल जाते हैं। उस जगह से उन्हें एक रिवॉल्वर बरामद होती है। वो तीनों उस रिवॉल्वर के मालिक की तलाश करने हथियार के दुकान जाते हैं। वहाँ उन्हें उसके मालिक का पता चलता है कि उस गन का लाइसेंस किसी सेवानिवृत कर्नल अर्जुन मलिक के नाम से दर्ज है। उन्हें अर्जुन पर शक होता है कि उसी ने कत्ल किया है। जब वे लोग उसके घर जाते हैं तो उन्हें पता चलता है कि जिसका कत्ल हुआ, वो और कोई नहीं, बल्कि उसकी बेटी, मालिनी (मालिनी शर्मा) है। वो एक मानसिक रोगी थी और कई बार पागल खाने से भाग भी चुकी थी।
प्रो॰ स्वरूप आत्मा को बुला कर उससे सारी बात जानने का रास्ता बताता है। संजना उस आत्मा को बुलाने के लिए मान जाती है। जब वो आत्मा को बुलाती है तो वो संजना के शरीर में प्रवेश कर लेती है। कुछ समय बाद जब आदित्य आता है तो वो संजना को अजीब तरह से व्यवहार करते हुए देखता है, और जब अचानक वो जान जाता है कि वो मालिनी है, वो ज़ोर से मालिनी का नाम लेता है और तभी वो आत्मा चले जाती है और संजना उससे सवाल करती है कि मालिनी कौन है। आदित्य उसे बताता है कि बहुत पहले जब वो ऊटी आया था तो एक दिन अचानक मालिनी उसके घर आई थी और उसने उसे एक दिन रुकने की इजाजद दे दी थी और समय के साथ उन दोनों के बीच चक्कर चलने लगा, वो फिर अपनी पत्नी को छोड़ कर उसके साथ रहने के लिए बोलने लगी और जब वो नहीं माना तो उसने उसी घर में आत्महत्या कर ली, जिसके बाद कोई उस पर शक न करें, इस कारण उसने नौकर के साथ मिल कर उसकी लाश को जंगल में गाढ़ दिया।
संजना गुस्से में आदित्य को अकेला छोड़ कर चले जाती है। जब वो प्रो॰ स्वरूप के पास आती है तो वो उसे बताता है कि मालिनी की आत्मा भी यही चाहती थी कि तुम और आदित्य अलग अलग हो जाओ, और वो आसानी से आदित्य को हासिल कर सके। वो कहता है कि उस आत्मा का अगला कदम आदित्य को मारना है। वो कहता है कि हमें मालिनी के आदित्य को मारने से पहले ही उसके पास जाना होगा।
संजना अचानक आदित्य के पास आती है और कहती है कि वो बस उसकी जान बचाने के लिए ये सब कर रही है और उसे तुरंत कार में बैठ कर मुंबई चलने के लिए कहती है। उन दोनों के जाते साथ ही संजना, प्रिया और प्रो॰ स्वरूप वहाँ आ जाते हैं और उनकी नौकरानी कहती है कि अभी अभी तो संजना के साथ आदित्य कार में बैठ कर निकला है। वे लोग समझ जाते हैं कि वो मालिनी थी, जो संजना बन कर आदित्य को अपने साथ ले गई।
मालिनी की आत्मा उस कार को पहाड़ी से गिरा देती है, आदित्य अस्पताल में कोमा में चले जाता है। आदित्य को उस आत्मा से बचाने के लिए, संजना, प्रिया और प्रो॰ स्वरूप उसी जंगल में जाते हैं और उस लड़की के शरीर को जलाने के लिए ढूंढते हैं। वो नींबू को लटका कर उस लकड़ी के शरीर के जगह को ढूंढ निकालता है। उसका शरीर मिल जाने के बाद वो गाड़ी से पेट्रोल लेने चले जाता है। तभी बिजली की तार गिर जाती है और उसकी मौत हो जाती है। इसके बाद मालिनी की आत्मा उसके शरीर में प्रवेश कर लेती है और वो पेट्रोल ले कर आता है। उन दोनों का ध्यान कहीं और रहते समय वो उन पर हमला करता है। लेकिन वो दोनों बच जाते हैं। उनकी लड़ाई होती है और अंत में संजना उस शरीर को जलाने में सफल हो जाती है। उसके शरीर के जलते साथ आदित्य खतरे से बाहर हो जाता है। संजना और आदित्य फिर से एक हो जाते हैं।
फ़िल्म "राज़" के संगीत देने का कार्य संगीतकार नदीम-श्रवण ने किया है और इन्होंने ही इस फ़िल्म के बेहतरीन धुनें तथा लाजवाब रिदम को सजाया है। गीतों को समीर ने कलमबद्ध किया है। इस एल्बम के सभी गाने वर्ष 2002 के चार्टबस्टर थे जो युवाओं में काफी लोकप्रिय रहे थे। अलका याज्ञनिक को उस वक्त फिल्मफेयर अवार्ड की ओर से उनके गाए "आपके प्यार में" के लिए सर्वश्रेष्ठ गायिका के लिए नामांकित किया गया था। वहीं अन्य गीत "आपके प्यार में", "जो भी कसमें खाई थी", "यहाँ पे सब शान्ति-शान्ति है" और "मैं अगर सामने" भी प्रदर्शन दौरान काफी चर्चित रहें और उस समय के शादी-ब्याह जैसे कार्यक्रम में यह खूब बजाए जाते रहें थे।
क्र॰ | शीर्षक | गायक | अवधि |
---|---|---|---|
1. | "आपके प्यार में हम सवरने लगे" | अलका याज्ञनिक | 5:30 |
2. | "जो भी कसमें खाई थी हमने" |
| 5:39 |
3. | "मैं अगर सामने आ भी जाया" |
| 5:46 |
4. | "इतना मैं चाहूं तुझे" |
| 5:21 |
5. | "मुझे तेरे जैसी लड़की मिल जाए" |
| 5:25 |
6. | "कितना प्यारा है ये चेहरा" |
| 4:21 |
7. | "प्यार से प्यार हम अब" | अभिजीत | 5:30 |
8. | "यहाँ पे सब शान्ति-शान्ति है" |
| 4:53 |
कुल अवधि: | 42:25 |
वर्ष | नामित कार्य | पुरस्कार | परिणाम |
---|---|---|---|
2003 | मुकेश भट्ट | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार | नामित |
विक्रम भट्ट | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार | नामित | |
बिपाशा बसु | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | नामित | |
नदीम श्रवण | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार | नामित | |
अलका याज्ञनिक ("आपके प्यार में हम सवरने लगे") | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका पुरस्कार | नामित | |
समीर ("आपके प्यार में हम सवरने लगे") | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार | नामित |
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