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श्रीमन्त रघुनाथराव बल्लाल पेशवा (उपाख्य, राघो बल्लाल या राघो भरारी[1]) (18 अगस्त1734 – 11 दिसम्बर 1783), सन १७७३ से १७७४ तक मराठा साम्राज्य के पेशवा थे।
मराठों का उदय में योगदान रघुनाथ राव का भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। रघुनाथ राव ने सुभेदार मल्हारराव होलकर दत्ताजी शिंदे(बाद मे वंश सिंधिया नाम हुआ) और अन्य सरदारो के साथ मिलकर उत्तर भारत में मराठों के प्रभाव को बढ़ाने में काफी बड़ी भूमिका निभाई। मथुरा, गया आदि धार्मिक स्थानों पर भी हिंदू राज्य वापस लाने का श्रेय है रघुनाथ राव को ही जाता है। अटक, पाकिस्तान तक मराठों के राज्य को फैलाने का श्रेय भी रघुनाथ राव के हाथ में काफी कुछ जाता है। रघुनाथ राव ने उत्तर भारत में अपनी स्थिति को काफी मजबूत बनाकर रखा हालांकि 1761 में पानीपत के तीसरे युद्ध की हार के बाद रघुनाथ राव का प्रभाव उत्तर भारत से खत्म हो गया। 1761 में भाई बालाजी बाजीराव की मृत्यु के बाद उन्होंने पेशवा बनने का सपना देखा कि उनके सपने पर पानी फिर गया। माधवराव पेशवा बनाया गया इस कारण से रघुनाथ राव और माधवराव की लड़ाई छिड़ गई । रघुनाथ राव को जेल में कैद कर लिया। हालांकि माधवराव पेशवा की मृत्यु के बाद उनके छोटे भाई नारायण राव ने रघुनाथ राव को जेल से बाहर कर लिया जिस कारण से रघुनाथ राव ने गर्दी सैनिकों द्वारा जो कि अंगरक्षक थे उन्होंने रघुनाथ राव के भतीजे नारायणराव को गणेश चतुर्थी के दिन 1773 में रघुनाथ राव ने अपने सैनिकों द्वारा मरवा दिया। नारायण राव की उम्र 18 वर्ष थी। नारायणराव लगातार अपने चाचा रघुनाथ राव से मदद मांगता रहा परंतु रघुनाथ राव ने उसकी कोई भी मदद नहीं की वह भागता भागता रघुनाथराव के कमरे में पहुंचा परंतु रघुनाथ राव ने उसकी मदद करने से इंकार कर दिया जिसके बाद नारायणराव का वध कर दिया गया और उसके शरीर के टुकड़े करके नदी में फेंक दिया गया। नारायण राव की किसी ने मदद नहीं की यह रघुनाथ राव के सिर पर सबसे बड़ा कलंक है। परंतु उसके बाद रघुनाथराव पेशवा फिर नहीं बनने दिया गया इस बार नारायण राव के 1 वर्षीय पुत्र माधवराव पेशवा जिन्हें माधवराव द्वितीय के नाम से भी जाना जाता है उनको मात्र 1 वर्ष भी कमाल की उम्र में पेशवा चुन लिया गया। कई सारे मंत्रियों ने जिन्हें 12 भाई समिति का निर्माण किया और उन्होंने माधवराव पेशवा बनाया और उसके बाद रघुनाथराव शनिवारवाड़ा छोड़कर भाग गए और अंग्रेजों से जा मिले जिसके कारण प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध छिड़ गया जिसमें मराठों की जीत हुई और अंग्रेज और रघुनाथ राव हार गए। 1783 में पेशवा पद से पूर्ण रुप से रघुनाथ राव छिन गया और राव की मृत्यु हो गई। हालांकि उन्हें योद्धा और पाकिस्तान में 700 साल बाद लाने का श्रेय दिया जाता है।
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