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भारतीय राजनेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री (1939–2022) विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
मुलायम सिंह यादव (जन्म : 22 नवम्बर 1939-10 अक्टूबर 2022) भारत के एक राजनेता एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री थे। यादव भारत के रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं। इससे पहले एक शिक्षक थे किन्तु शिक्षण कार्य छोड़कर इन्होंने राजनीति में कदम रखा। वर्ष 1992 में एक राजनीतिक पार्टी समाजवादी पार्टी की स्थापना की। नेताजी को 26 जनवरी 2023 की पूर्व संध्या पर मरणोपरांत पद्म विभूषण से भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु द्वारा सम्मानित किया गया[2]
कार्यकाल 5 दिसम्बर 1988 – 24 जून 1991 | |
पूर्व अधिकारी | नारायण दत्त तिवारी |
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उत्तराधिकारी | कल्याण सिंह |
कार्यकाल 5 दिसम्बर 1993 – 3 जून 1995 | |
पूर्व अधिकारी | राष्ट्रपति शासन |
उत्तराधिकारी | मायावती |
कार्यकाल 29 अगस्त 2003 – 13 मई 2007 | |
पूर्व अधिकारी | मायावती |
उत्तराधिकारी | मायावती |
कार्यकाल 1 जून 1996 – 19 मार्च 1998 | |
पूर्व अधिकारी | प्रमोद महाजन |
उत्तराधिकारी | जॉर्ज फ़र्नान्डिस |
जन्म | 22 नवम्बर 1939 सैफई, इटावा, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 10 अक्टूबर 2022 82 वर्ष)[1] | (उम्र
राजनैतिक पार्टी | सोशलिस्ट पार्टी, लोकदल, जनता दल, समाजवादी पार्टी 1992 से 2022 तक |
संतान | अखिलेश यादव |
मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवम्बर 1939 को इटावा जिले के सैफई गाँव में मूर्ति देवी व सुघर सिंह यादव के किसान परिवार में हुआ। मुलायम सिंह यादव अपने पाँच भाई-बहनों में रतनसिंह यादव से छोटे व अभयराम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव, राजपाल सिंह और कमला देवी से बड़े हैं। प्रोफेसर रामगोपाल यादव इनके चचेरे भाई हैं।पिता सुघर सिंह उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे किन्तु पहलवानी में अपने राजनीतिक गुरु चौधरी नत्थूसिंह को मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती-प्रतियोगिता में प्रभावित करने के पश्चात उन्होंने नत्थूसिंह के परम्परागत विधान सभा क्षेत्र जसवन्त नगर से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया।[3]
राजनीति में आने से पूर्व मुलायम सिंह यादव आगरा विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर (एम०ए०) और बी० टी० करने के उपरान्त इन्टर कालेज में प्रवक्ता नियुक्त हुए और सक्रिय राजनीति में रहते हुए नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। मुलायम सिंह जी का काफ़ी लंबी बीमारी के कारण 10 अक्टूबर 2022 को मेदांता अस्पताल गुरुग्राम में निधन हो गया[4]।
मुलायम सिंह उत्तर भारत के बड़े समाजवादी और किसान नेता रहे हैं। एक साधारण किसान परिवार में जन्म लेने वाले मुलायम सिंह ने अपना राजनीतिक जीवन उत्तर प्रदेश में विधायक के रूप में शुरू किया। बहुत कम समय में ही मुलायम सिंह का प्रभाव पूरे उत्तर प्रदेश में नज़र आने लगा। मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग समाज का सामाजिक स्तर को ऊपर करने में महत्वपूर्ण कार्य किया। सामाजिक चेतना के कारण उत्तर प्रदेश की राजनीति में अन्य पिछड़ा वर्ग का महत्वपूर्ण स्थान हैं। समाजवादी नेता रामसेवक यादव के प्रमुख अनुयायी (शिष्य) थे तथा इन्हीं के आशीर्वाद से मुलायम सिंह 1967 में पहली बार विधान सभा के सदस्य चुने गये और मन्त्री बने। 1992में उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाई। वे तीन बार क्रमशः 5 दिसम्बर 1989 से 24 जनवरी 1991 तक, 5 दिसम्बर 1993 से 3 जून 1996 तक और 29 अगस्त 2003 से 11 मई 2007 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मन्त्री रहे। इसके अतिरिक्त वे केन्द्र सरकार में रक्षा मन्त्री भी रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश में यादव समाज के सबसे बड़े नेता के रूप में मुलायम सिंह की पहचान है। उत्तर प्रदेश में सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने में मुलायम सिंह ने साहसिक योगदान किया। मुलायम सिंह की पहचान एक धर्मनिरपेक्ष नेता की है। उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी समाजवादी पार्टी को सबसे बड़ी पार्टी माना जाता है। उत्तर प्रदेश की सियासी दुनिया में मुलायम सिंह यादव को प्यार से नेता जी कहा जाता है।
2012 में समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में पूर्ण बहुमत मिला। यह पहली बार हुआ था कि उत्तर प्रदेश में सपा अपने बूते सरकार बनाने की स्थिति में थी। नेता जी के पुत्र और सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बसपा की सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुद्दा जोर शोर से उठाया और प्रदेश के सामने विकास का एजेंडा रखा। अखिलेश यादव के विकास के वादों से प्रभावित होकर पूरे प्रदेश में उनको व्यापक जनसमर्थन मिला। चुनाव के बाद नेतृत्व का सवाल उठा तो नेताजी ने वरिष्ठ साथियों के विमर्श के बाद अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया। अखिलेश यादव मुलायम सिंह के पुत्र है। अखिलेश यादव ने नेता जी के बताए गये रास्ते पर चलते हुए उत्तर प्रदेश को विकास के पथ पर आगे बढ़ाया.
'समाजवादी पार्टी' के नेता मुलायम सिंह यादव पिछले तीन दशक से राजनीति में सक्रिय हैं। अपने राजनीतिक गुरु नत्थूसिंह को मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती प्रतियोगिता में प्रभावित करने के पश्चात मुलायम सिंह ने नत्थूसिंह के परम्परागत विधान सभा क्षेत्र जसवन्त नगर से ही अपना राजनीतिक सफर आरम्भ किया था। मुलायम सिंह यादव जसवंत नगर और फिर इटावा की सहकारी बैंक के निदेशक चुने गए थे। विधायक का चुनाव भी 'सोशलिस्ट पार्टी' और फिर 'प्रजा सोशलिस्ट पार्टी' से लड़ा था। इसमें उन्होंने विजय भी प्राप्त की। उन्होंने स्कूल के अध्यापन कार्य से इस्तीफा दे दिया था। पहली बार मंत्री बनने के लिए मुलायम सिंह यादव को 1977 तक इंतज़ार करना पड़ा, जब कांग्रेस विरोधी लहर में उत्तर प्रदेश में भी जनता सरकार बनी थी। 1980 में भी कांग्रेस की सरकार में वे राज्य मंत्री रहे और फिर चौधरी चरण सिंह के लोकदल के अध्यक्ष बने और विधान सभा चुनाव हार गए। चौधरी साहब ने विधान परिषद में मनोनीत करवाया, जहाँ वे प्रतिपक्ष के नेता भी रहे।
1996 में मुलायम सिंह यादव ग्यारहवीं लोकसभा के लिए मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से चुने गए थे और उस समय जो संयुक्त मोर्चा सरकार बनी थी, उसमें मुलायम सिंह भी शामिल थे और देश के रक्षामंत्री बने थे[5]। यह सरकार बहुत लंबे समय तक चली नहीं। मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने की भी बात चली थी। प्रधानमंत्री पद की दौड़ में वे सबसे आगे खड़े थे, किंतु उनके सजातियों ने उनका साथ नहीं दिया। लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने उनके इस इरादे पर पानी फेर दिया। इसके बाद चुनाव हुए तो मुलायम सिंह संभल से लोकसभा में वापस लौटे। असल में वे कन्नौज भी जीते थे, किंतु वहाँ से उन्होंने अपने बेटे अखिलेश यादव को सांसद बनाया।
केंद्रीय राजनीति में मुलायम सिंह का प्रवेश 1996 में हुआ, जब काँग्रेस पार्टी को हरा कर संयुक्त मोर्चा ने सरकार बनाई। एच. डी. देवेगौडा के नेतृत्व वाली इस सरकार में वह रक्षामंत्री बनाए गए थे(*सैनिकों के शव को युद्ध क्षेत्र से वापस लाने की प्रथा मुलायम सिंह यादव ने ही शुरू की थी।), किंतु यह सरकार भी ज़्यादा दिन चल नहीं पाई और तीन साल में भारत को दो प्रधानमंत्री देने के बाद सत्ता से बाहर हो गई। 'भारतीय जनता पार्टी' के साथ उनकी विमुखता से लगता था, वह काँग्रेस के नज़दीक होंगे, लेकिन 1999 में उनके समर्थन का आश्वासन ना मिलने पर काँग्रेस सरकार बनाने में असफल रही और दोनों पार्टियों के संबंधों में कड़वाहट पैदा हो गई। 2002 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 391 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए, जबकि 1996 के चुनाव में उसने केवल 281 सीटों पर ही चुनाव लड़ा था।
मुलायम सिंह यादव की राष्ट्रवाद, लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्तों में अटूट आस्था रही है। भारतीय भाषाओं, भारतीय संस्कृति और शोषित पीड़ित वर्गों के हितों के लिए उनका अनवरत संघर्ष जारी रहा है। उन्होंने ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, जर्मनी, स्विटजरलैण्ड, पोलैंड और नेपाल आदि देशों की भी यात्राएँ की हैं। लोकसभा सदस्य कहा जाता है कि मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश की किसी भी जनसभा में कम से कम पचास लोगों को नाम लेकर मंच पर बुला सकते हैं। समाजवाद के फ़्राँसीसी पुरोधा 'कॉम डी सिमॉन' की अभिजात्यवर्गीय पृष्ठभूमि के विपरीत उनका भारतीय संस्करण केंद्रीय भारत के कभी निपट गाँव रहे सैंफई के अखाड़े में तैयार हुआ है। वहाँ उन्होंने पहलवानी के साथ ही राजनीति के पैंतरे भी सीखे। लोकसभा से मुलायम सिंह यादव ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं और पंद्रहवीं लोकसभा के सदस्य चुने गये थे।
विधान परिषद 1982-1985
विधान सभा 1967, 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996 (आठ बार)
विपक्ष के नेता, उत्तर प्रदेश विधान परिषद 1982-1985
विपक्ष के नेता, उत्तर प्रदेश विधान सभा 1985-1987
केंद्रीय कैबिनेट मंत्री
सहकारिता और पशुपालन मंत्री 1977
रक्षा मंत्री 1996-1998
पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को 28 मई, 2012 को लंदन में 'अंतर्राष्ट्रीय जूरी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ़ जूरिस्ट की जारी विज्ञप्ति में हाईकोर्ट ऑफ़ लंदन के सेवानिवृत न्यायाधीश सर गाविन लाइटमैन ने बताया कि श्री यादव का इस पुरस्कार के लिये चयन बार और पीठ की प्रगति में बेझिझक योगदान देना है। उन्होंने कहा कि श्री यादव का विधि एवं न्याय क्षेत्र से जुड़े लोगों में भाईचारा पैदा करने में सहयोग दुनियाभर में लाजवाब है।
ज्ञातव्य है कि मुलायम सिंह यादव ने विधि क्षेत्र में ख़ासा योगदान दिया है। समाज में भाईचारे की भावना पैदाकर मुलायम सिंह यादव का लोगों को न्याय दिलाने में विशेष योगदान है। उन्होंने कई विधि विश्वविद्यालयों में भी महत्त्वपूर्ण योगदान किया है।
मुलायम सिंह पर कई पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। इनमे पहला नाम "मुलायम सिंह यादव- चिन्तन और विचार" का है जिसे अशोक कुमार शर्मा ने सम्पादित किया था। [6] इसके अतिरिक्त राम सिंह तथा अंशुमान यादव द्वारा लिखी गयी "मुलायम सिंह: ए पोलिटिकल बायोग्राफी" अब उनकी प्रमाणिक जीवनी है। [7] लखनऊ की पत्रकार डॉ नूतन ठाकुर ने भी मुलायम सिंह के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक महत्व को रेखांकित करते हुए एक पुस्तक लिखने का कार्य किया है। [8]
अपने एक भाषण के दौरान मुलायम सिंह ने बलात्कार की घटना पर कहा कि लड़के गलतियां करते हैं। "[9] लोक सभा २००९ के चुनाव अभियान में मुलायम सिंह ने कहा कि अंग्रेजी और कम्प्यूटर की शिक्षा समाप्त करने को कहा इससे बेरोजगारी फैलती है। [10] दिनांक १८ अगस्त २०१५ को एक सभा में बलात्कार पर विवादित ब्यान दिया।[11] मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ में ई-रिक्शा के वितरण समारोह में (१८ अगस्त २०१५ ) बलात्कार पर विचार व्यक्त करने पर महोबा जिले की स्थानीय कोर्ट ने अदालत में उपस्थिति के लिए समन जारी किया था।[12] [13]
1990 के दशक के शुरुआत में राम जन्मभूमि मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद अपने चरम पर था। विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए कारसेवा शुरू कर दिया था। कारसेवा और राममंदिर निर्माण हेतु भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सितम्बर 1990 में सोमनाथ मंदिर से अयोध्या तक रथ यात्रा शुरू कर दी उस समय यूपी के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे। मुलायम सिंह यादव ने अक्टूबर 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा का विरोध करते हुए कहा था, उन्हें कोशिश करने दें और अयोध्या में प्रवेश करने दें। हम उन्हें कानून का अर्थ सिखाएंगे। कोई मस्जिद नहीं तोड़ी जाएगी। हालांकि आडवाणी उस समय आयोध्या नहीं पहुंच सकें क्योंकि बिहार की तत्कालीन जनता दल सरकार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उन्हें समस्तीपुर से गिरफ्तार करवा दिया लेकिन अक्टूबर 1990 के अंतिम सप्ताह में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन फैजाबाद जिले में कारसेवकों की विशाल भीड़ एकत्र होने लगी। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने बाबरी मस्जिद की सुरक्षा का भरोसा देते हुए बयान दिया की बाबरी मस्जिद पर कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता, 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों के साथ पूरे देश से आये साधु-संतों की भीड़ हनुमानगढ़ी[15] की ओर बढ़ने का प्रयास करने लगी,कारसेवकों का इरादा विवादित बाबरी मस्जिद तोड़ कर राम जन्म भूमि मंदिर का निर्माण करने का था। पूरे शहर में सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के मद्देनजर कर्फ्यू लगा दिया गया इसके बावजूद अयोध्या में भीड़ बेकाबू हो रही थी। उत्तर प्रदेश पुलिस ने बाबरी मस्जिद के आसपास 1.5 किलोमीटर के इलाके में बैरिकेडिंग कर रखी थी प्रशासन और सुरक्षा बलों के अलावा किसी का भी प्रतिबंधित इलाके में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। सुबह का समय था कारसेवकों की भीड़ लगातार मस्जिद के ओर बढ़ रही थी, सुरक्षा बलों और प्रशासन के अधिकारी गण लगातार कारसेवकों से पीछे हटने का आग्रह कर रही थी इसी वक़्त कारसेवकों की भीड़ ने बैरिकेडिंग का एक हिस्सा तोड़ा दिया और मस्जिद की ओर बढ़ने लगे तो पुलिस और सुरक्षा बलों ने फायरिंग कर दी जिसमें भगदड़ हुए और कई कारसेवक पुलिस की गोली से घायल हुए।[16] 2 नवंबर 1990 को कारसेवकों का जत्था फिर रणनीति अपनाते हुए बाबरी मस्जिद की ओर प्रस्थान किया। प्रदर्शनकारियों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए तैनात सुरक्षाकर्मियों के पैर छूकर कारसेवक आगे बढ़े, जिनमें महिलाएं और बुजुर्ग भी शामिल थे। पैर छूने वाले इरादे से स्तब्ध फायरिंग की घटना के दो दिन बाद सुरक्षाकर्मी पीछे हट जाते और कारसेवक आगे बढ़ते।
सुरक्षाकर्मियों ने रणनीति को देखा और उन्हें चेतावनी दी। हालांकि, कारसेवक नहीं रुके और सुरक्षा बलों ने तीन दिन में दूसरी बार फायरिंग कर दी। झड़पों में कई की मौत हो गई। आधिकारिक रिकॉर्ड में 17 मौतें दिखाई गईं लेकिन भाजपा ने मरने वालों की संख्या अधिक बताई। मरने वालों में कोलकाता के कोठारी भाई- राम और शरद भी शामिल थे। उन्हें 30 अक्टूबर को बाबरी मस्जिद के ऊपर भगवा झंडा पकड़े देखा गया था।[17] बाद में मुलायम सिंह ने कहा की भाजपा वालों ने 11लाख की भीड़ कारसेवा के नाम खड़ी कर दी थी,देश की एकता के लिए उन्हें अयोध्या में गोली चलवानी पड़ी थी। अगर गोली नहीं चलती तो मुसलमानों का देश से विश्वास उठ जाता। उन्होंने कहा गोली चलने का अफसोस है मगर देश की एकता के लिए 16 की जगह 30 जानें भी जातीं तो भी पीछे नहीं हटते, बाद में फिर एक कार्यक्रम में मुलायम सिंह[18] कहा था कि गोली चलवाने से उनकी बहुत आलोचना हुई। संसद में उनका विरोध भी हुआ। मगर यह कदम देश हित में था। ऐसा न होता तो हिन्दुस्तान का मुसलमान कहता कि अगर हमारा धर्मस्थल नहीं बच सकता तो हिन्दुस्तान में रहने का क्या औचित्य। समाजवाद का मतलब सबको साथ लेकर चलना है। भेदभाव नहीं होना चाहिए। अयोध्या गोली कांड और मंदिर मस्जिद विवाद की खबरें अंतराष्ट्रीय खबरों में बहुत सुर्खियों में रहीं थी|
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