मालाबार केरल राज्य में अवस्थित पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिम तट के समानांतर एक संकीर्ण तटवर्ती क्षेत्र है। जब स्‍वतंत्र भारत में छोटी रियासतों का विलय हुआ तब त्रावनकोर तथा कोचीन रियासतों को मिलाकर १ जुलाई, १९४९ को त्रावनकोर-कोचीन राज्य बना दिया गया, किंतु मालाबार मद्रास प्रांत के अधीन रहा। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ के तहत त्रावनकोर-कोचीन राज्य तथा मालाबार को मिलाकर १ नवंबर, १९५६ को केरल राज्य बनाया गया।[1] केरल के अधिकांश द्वीप जो त्रावणकोर-मालाबार राज्य में आते थे, अब एर्नाकुलम जिले में आते हैं।[2] मालाबार क्षेत्र के अंतर्गत पर्वतों का अत्यधिक आर्द्र क्षेत्र आता है। वनीय वनस्पति में प्रचुर होने के साथ-साथ इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण वाणिज्यिक फसलों, जैसे नारियल, सुपारी, काली मिर्च, कॉफी और चाय, रबड़ तथा काजू का उत्‍पादन किया जाता है। मालाबार क्षेत्र केरल का बड़ा व्यावसायिक क्षेत्र माना जाता है। यहाँ उच्चकोटि के कागज का भी निर्माण होता है। यहां पर एशिया की सबसे मशहूर प्लाईवुड फैक्टरी भी स्थित है। इसके अलावा यहां के निकटवर्ती स्थानों पर फूलों के उत्पादन तथा उनके निर्यात के प्रमुख केंद्र भी स्थित हैं। हस्तकला की वस्तुओं तथा बीड़ी आदि का उत्पादन भी मालाबार में काफी होता है।

सामान्य तथ्य
मालाबार
उत्तर केरलम മലബാര്
  geographical area  
Thumb
उत्तरी मालाबार में सूर्योदय
उत्तरी मालाबार में सूर्योदय
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश  भारत
राज्य केरल
विधायक निर्वाचन क्षेत्र ६७ + २ माहे
नागरिक पालिका उत्तरी रेंज केरल एवं माहे उप-मंडल
जनसंख्या
घनत्व
1, 25,00,000 (approx.) (2001 के अनुसार )
• 814/किमी2 (2,108/मील2)
लिंगानुपात 1256 /
साक्षरता 91.74%%
आधिकारिक जालस्थल: www.spiderkerala.com
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मालाबार तट पर बसे हुए कण्णूर नगर में पयंबलम, मुझापूलंगड तथा मियामी जैसे सुंदर बीच हैं जो अभी पर्यटकों में अधिक प्रसिद्ध नहीं हैं, अतएव शांत वातावरण बनाए हुए हैं। यहां पायथल मलै नामक आकर्षक पर्वतीय स्थल भी है।[3]

निकट ही यहां का सर्प उद्यान है जहां पर अनेक प्रकार के सांपों का प्रदर्शन किया गया है। इस स्थान पर सर्पदंश चिकित्सा केंद्र भी बना है।[3] मालाबार में मलावलतम नदी के किनारे पर परासनी कडायू का प्रसिद्ध मंदिर है, जो केवल हिंदू ही नहीं बल्कि अन्य सभी जातियों के लिए भी समान रूप से खुला है। यह मुथप्पन भगवान का मंदिर माना जाता है जो शिकारियों के देवता हैं। इसीलिए इस मंदिर में कांसे के बने हुए कुत्तों की मूर्तियां हैं।[3] यहां ताड़ी तथा मांस का प्रसाद मिलता है तथा यहां के पुजारी दलित वर्ग के होते हैं। केरल की अधिकांश मुस्लिम आबादी, जिन्हें मप्पिला कहते हैं इसी क्षेत्र में निवास करती हैं।[4] मालाबार के हिन्दुओं में गुड़ी पड़वा उत्सव का विशेष महत्त्व है।[5] मालाबार क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य, संस्कृति तथा प्रदूषण रहित वातावरण को देख कर मन खुश हो जाता है। वास्को डा गामा की यात्रा के ५०० वर्ष पूरे होने के कारण यह स्थान विश्व प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है। मालाबार में कालीकट से १६ कि॰मी॰ दूर कापड़ बीच है, जहां २१ मई, १४९८ को वास्को दा गामा ने पहला कदम भारत की भूमि पर रखा था।[3]

उत्पादन

दुनिया में सबसे अच्छी काली मिर्च मालाबार क्षेत्र से आती है। मालाबार में काली मिर्च की भरपूर खेती होती है। ये वही काली मिर्च है जिसे पुर्तगाल से आए वास्को डा गामा अपने साथ वापस ले गए थे। इसके बाद कई उपनिवेशवादियों ने भारत का रुख़ किया और मालाबार तट और यहाँ के मसालों पर कब्ज़े की होड़-सी लग गई थी। ईसा पूर्व शताब्दी में बेबीलोन के शासक राजा ने बुचरनाजर ने अपने प्रसिद्ध महलों और मंदिरों के निर्माण के लिए दक्षिण भारत में स्थित मालाबार से देवदार की लकड़ी मंगाई थी। लगभग इसी समय युफ्रेटस-तिगरिस घाटी में स्थित चलदीस के उर में चंद्रमा के विशाल मंदिर के निर्माण में मालाबार की सागौन की लकड़ी का उपयोग किया गया था। बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंड में लिखा है कि येरुशलम का राजा सोलोमन ९७३-९३३ ई. पू. मालाबार तट से आयातित सोना, चाँदी, हाथी दांत, चंदन की सलकड़ी, हबंदरों और मोरों पर गर्व करता था। जब शीबा की रानी सोलोमन से मिलने आई तो अपने साथ ऊंटों के एक बड़े कारवां पर बड़ी मात्रा में भारत से आयातित मसाले, सोना और वेशकीमती पत्थर लेकर आई थी। पेरिप्लस’ के अनुसार मालाबार तट के मुजरिम अरब और ग्रीस से माल लेकर आने वाले जहाजों से भरे रहते थे। ये जहाज सोना, चांदी, पुखराज, तांबा, टीन सीसा और कुछ बढ़िया किस्म की शराब ले आते थे और यहां से काली मिर्च, चंदन की लकड़ी, हाथीदांत, मोती, तथा जवाहरत ले जाते थे। यवन अपने जहाज मुजरिस में ले आते थे। भारत में सबसे पहले ५२ ई. में ईसाई धर्म प्रचारक का प्रवेश मालाबार में हुआ था। उनका नाम था सेंट थामस। उन्होंने मालाबार के तटीय इलाकों में धर्म प्रचार का काम शुरू किया तथा सात चर्च बनाए। आजकल भारत और अमरीका का सांझा सैन्य अभ्यास भी मालाबार के तटीय क्षेत्रों में हो रहा है।[6]

सन्दर्भ

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