Loading AI tools
विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
मठ का अर्थ ऐसे संस्थानो से है जहां इसके गुरू अपने शिष्यों को शिक्षा, उपदेश इत्यादि प्रदान करता है। ये गुरू प्रायः धर्म गुरु होते है इनके द्वारा दी गई शिक्षा मुख्यतः आध्यात्मिक होती है पर ऐसा हमेशा नही होता। एक मठ में इन कार्यो के अतिरिक्त सामाजिक सेवा, साहित्य इत्यादि से सम्बन्धित कार्य भी होते हैं।
हिंदू धर्म का संत समाज शंकराचार्य द्वारा नियुक्त चार मठों के अधीन है। हिंदू धर्म की एकजुटता और व्यवस्था के लिए चार मठों की परंपरा को जानना आवश्यक है।[1]
चार मठों से ही गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वाह होता है। चार मठों के संतों को छोड़कर अन्य किसी को गुरु बनाना हिंदू संत धारा के अंतर्गत नहीं आता।
आदिशंकराचार्यजी ने जो चारपीठ स्थापित किये,उनके काल निर्धारण में उत्थापित की गई भ्रांतियाँ--
1. उत्तर दिशा में बद्रीकाश्रम में ज्योतिपीठ.... स्थापना-युधिष्ठिर संवत्
2. पश्चिम दिशा में द्वारिका में शारदा पीठ....
3. दक्षिण दिशा में रामेश्वरम् में शृंगेरी पीठ
4. पूर्व दिशा जगन्नाथपुरी में गोवर्द्धन पीठ
शंकराचार्य जी ने इन मठों की स्थापना के साथ-साथ उनके मठाधीशों की भी नियुक्ति की, जो बाद में स्वयं शंकराचार्य कहे जाते हैं। जो व्यक्ति किसी भी मठ के अंतर्गत संन्यास लेता हैं वह दसनामी संप्रदाय में से किसी एक सम्प्रदाय पद्धति की साधना करता है। ये चार मठ निम्न हैं:-
शृंगेरी शारदा पीठमश्रृंगेरी मठ भारत के दक्षिण में चिकमंगलुुुर में स्थित है।श्रृंगेरी मठ के अन्तर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती तथा पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है।
इस मठ का महावाक्य 'अहं ब्रह्मास्मि' है तथा मठ के अन्तर्गत 'यजुर्वेद' को रखा गया है। इस मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य सुरेश्वरजी थे, जिनका पूर्व में नाम मण्डन मिश्र था।वर्तमान में स्वामी भारती कृष्णतीर्थ इसके 36वें मठाधीश हैं। हर हर महादेव
गोवर्धन मठ भारत के पूर्वी भाग में ओडिशा राज्य के जगन्नाथ पुरी में स्थित है। गोवर्धन मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद 'वन' व 'आरण्य' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है।
इस मठ का महावाक्य है 'प्रज्ञानं ब्रह्म' तथा इस मठ के अंतर्गत 'ऋग्वेद' को रखा गया है। इस मठ के प्रथम मठाधीश आदि शंकराचार्य के प्रथम शिष्य पद्मपाद चार्य हुए। वर्तमान में निश्चलानन्द सरस्वती इस मठ के 145 वें मठाधीश हैं।
शारदा (कालिका) मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है। शारदा मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है।
इस मठ का महावाक्य है 'तत्त्वमसि' तथा इसके अंतर्गत 'सामवेद' को रखा गया है। शारदा मठ के प्रथम मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे। हस्तामलक शंकराचार्य जी के प्रमुख चार शिष्यों में से एक थे।हस्तामलक आदि शंकराचार्य के प्रमुख चार शिष्यों में से एक थे। वर्तमान में पश्चिमाम्नाय द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी सदानन्द सरस्वती जी इसके 80 वें मठाधीश हैं ।
उत्तरांचल के बद्रीनाथ में स्थित है ज्योतिर्मठ। ज्योतिर्मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'गिरि', 'पर्वत' एवं ‘सागर’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य 'अयमात्मा ब्रह्म' है। इस मठ के अंतर्गत अथर्ववेद को रखा गया है। ज्योतिर्मठ के प्रथम मठाधीश त्रोटकाचार्य बनाए गए थे। वर्तमान में "परमाराध्य" परमधर्माधीश अनन्तश्रीविभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती महाराज '1008' जी इसके 53 वें मठाधीश हैं।
उक्त मठों तथा इनके अधीन उपमठों के अंतर्गत संन्यस्त संतों को गुरु बनाना या उनसे दीक्षा लेना ही हिंदू धर्म के अंतर्गत माना जाता है। यही हिंदुओं की संत धारा मानी गई है। विश्व के प्राचीनतम मठो मे आगममठ का नाम प्रथम है।जो विश्व के चारो दिशाओ मे एवं एक मध्य मे अवस्थित है।ऐसा माना जाता है की आचार्य श्री लोमश ऋषि जी ने गुरू शिष्य परंपरानुसार भगवन शिव जी के निर्देशानुसार हुई।
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.