भूपेन खखर
भारतीय कलाकार विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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भूपेन खखर (जन्म स्थान- मुंबई, जन्म दिन - १० मार्च १९३४, देहांत - वडोदरा, ८ अगस्त २००३) समकालीन भारतीय कला जगत के एक बड़े कलाकार थे। वडोदरा ही उनकी कार्यभूमि थी और उनके कार्य को अंतराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली थी।
श्री खखर एक स्व-प्रशिक्षित कलाकार थे और एक् चित्रकार के रूप में उन्होने अपना कारिएर काफ़ी देर से शुरू किया था। उनका कार्य रूपकात्मक चरित्र वाला था और इसका संबंध मानवीय शरीर और इसकी पहचान से था। एक स्व-घोषित समलैंगिक व्यक्ति [1] के रूप में लिंग की परिभाषा और इसके पहचान से जुड़ी समस्याएँ उनकी कला की प्रधान विषय वस्तु थीं। उनके चित्रों में आमतौर पर भारतीय मिथकों और मिथकीय प्रकरण वाले चित्र शामिल हुआ करते थे।
भूपेन खखर का जन्म मुंबई में हुआ था जहाँ उन्होने खेत्वादी क्षेत्र में अपने अभिभावकों और तीन भाई-बहनो के साथ अपना बचपन गुज़ारा। वह चार बच्चों में सबसे छोटे थे और उनके पिता परमानन्द, जो पेशे से एक अभियंता थे, मुंबई के माटुंगा इलाक़े में स्थित वि.जे.टी. आई. नाम के संस्थान में बाह्य परीक्षक के रूप में कार्यरत थे. परमानन्द को बहुत ज़्यादा शराब पीने की लत थी और जब भूपेन चार साल के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया. उनकी माता महालक्ष्मी एक आम गृहिणी थी और उन्होने पूरी आशा के साथ अपनी सारी पूँजी अपनी छोटी संतान के भविष्य को सवारने में लगा दी.
खखर परिवार परंपरागत रूप से कलाकारों का परिवार था जो मूल रूप से तत्कालीन पुर्तगाली उपनिवेश दिउ के रहने वाले थे. घर पर वे प्रायः गुजराती, मराठी और हिन्दी में बात करते थे पर उन्हे अँग्रेज़ी का खास ज्ञान नहीं था।
भूपेन अपने परिवार के पहले व्यक्ति थे जिन्होने बंबई विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान जैसे विशेष विषयों के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की. अपने परिवार के दवाब के कारण उन्होने बाद में वाणिज्य स्नातक की शिक्षा भी ग्रहण की और सनदी लेखाकार (चार्टर्ड अकाउंटेंट) की योग्यता भी प्राप्त की.
श्री खखर ने कई वर्षों तक भारत पारिख एंडअसोसीयेट्स के साथ वडोदरा में साझेदारी में लेखाकर का काम किया और साथ ही खाली समय में अपनी कलात्मक अभिरुचियो को भी जारी रखा. वे कुछ ही समय में भारतीय मिथकों और साहित्य के जानकार बन गये और उन्हे दृश्य कला का भी अच्छा ख़ासा ज्ञान हो गया था।
१९५८ में उनकी भेंट युवा गुजराती कवि और चित्रकार गुलाम मोहम्मद शेख से हुई और उन्होने श्री खखर की कला के क्षेत्र में सुप्त अभिरुचि को प्रोत्साहित किया तथा उन्हें वडोदरा में स्थापित हुए नये फॅकल्टी ऑफ फाइन आर्ट्स में आने का निमंत्रण भी दिया. [2]
श्री खखर के तैलीय चित्र अक्सर काफ़ी विवरणात्मक होते थे और उनमे आत्मवर्णन का पुट होता था। उनके सर्वप्रथम प्रदर्शित चित्रों में लोकप्रिय पुस्तकों से काटे गये देवताओं के चित्र शामिल थे जिन्हे दर्पण पर चिपका कर, भिट्टिचितरों और संकेतिक चिन्हों के रूप में प्रदर्शित किया गया था। [3]
उन्होने १९६५ से ही अपने चित्रो का एकल प्रदर्शन आरंभ कर दिया था। हालाँकि वे एक स्वप्रशिक्षित कलाकार थे फिर भी जल्द हीं उनकी कलकीर्तियाँ आकर्षण का केंद बन गयीं और उन्हे आलोचकों की सराहना भी मिलने लगी. १९८० के दसक तक श्री खखर के चित्रों के एकल प्रदर्शन लंडन, बर्लिन, आम्सटरडॅम और टोक्यो जैसे जगहों पर होने लगे थे. [4]
साल २००० में को श्री खखर द रॉयल पॅलेस ऑफ आम्सटरडॅम में प्रिन्स क्लॉस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। उनके अन्य सम्मानों में द एशियन काउन्सिल'स स्टार फाउंडेशन द्वारा १९८६ में दी गयी फेलोशिप और भारत सरकार द्वारा १९८४ में दिया गया पद्मा श्री सम्मान शामिल हैं.
उनके चित्र ब्रिटिश म्यूज़ीयम, द टेट गॅलरी, लंडन, द म्यूज़ीयम ऑफ मॉडर्न आर्ट, न्यू यॉर्क आदि में प्रदर्शित किए गये हैं.
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