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बेताल पचीसी (वेताल पचीसी या बेताल पच्चीसी ; संस्कृत : वेतालपञ्चविंशतिः) पच्चीस कथाओं से युक्त एक कथा ग्रन्थ है। इसके रचयिता बेताल भट्टराव थे जो न्याय के लिये प्रसिद्ध राजा विक्रम के नौ रत्नों में से एक थे। ये कथाएं राजा विक्रम की न्याय-शक्ति का बोध कराती हैं। बेताल प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है और अन्त में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। उसने शर्त लगा रखी है कि अगर राजा बोलेगा तो वह उससे रूठकर फिर से पेड़ पर जा लटकेगा। लेकिन यह जानते हुए भी सवाल सामने आने पर राजा से चुप नहीं रहा जाता।
बैताल पचीसी[1] की कहानियाँ भारत की सबसे लोकप्रिय कथाओं में से हैं। इनका स्रोत राजा सातवाहन के मन्त्री “गुणाढ्य” द्वारा रचित “बड कहा” (संस्कृत : बृहत्कथा) नामक ग्रन्थ को दिया जाता है जिसकी रचना ई. पूर्व ४९५ में हुई थी। कहा जाता है कि यह किसी पुरानी प्राकृत में लिखा गया था और इसमे ७ लाख छन्द थे। आज इसका कोई भी अंश कहीं भी प्राप्त नहीं है। कश्मीर के महाकवि सोमदेव भट्टराव ने इसको फिर से संस्कृत में लिखा और कथासरित्सागर नाम दिया। बड़कहा की अधिकतम कहानियों को कथा सरित्सागर में संकलित कर दिए जाने के कारण ये आज भी हमारे पास हैं। “वेताल पञ्चविंशति” यानी बेताल पच्चीसी “कथासरित्सागर” का ही भाग है। समय के साथ इन कथाओं की प्रसिद्धि अनेक देशों में पहुँची और इन कथाओं का बहुत सी भाषाओं में अनुवाद हुआ। बेताल के द्वारा सुनाई गई यो रोचक कहानियाँ केवल दिल बहलाने के लिये नहीं हैं, इनमें अनेक गूढ अर्थ छिपे हैं। क्या सही है और क्या गलत, इसको यदि हम ठीक से समझ लें तो सभी प्रशासक राजा विक्रम कि तरह न्यायप्रिय बन सकेंगे और छल व द्वेष छोडकर, कर्म और धर्म की राह पर चल सकेंगे। इस प्रकार ये कहानियाँ न्याय, राजनीति और विषण परिस्थितियों में सही निर्णय लेने की क्षमता का विकास करती हैं।
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