पंचशील (बौद्ध आचार)
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पंचशील बौद्ध धर्म की मूल आचार संहिता है जिसको थेरवाद बौद्ध उपासक एवं उपासिकाओं के लिये पालन करना आवश्यक माना गया है।
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भगवान बुद्ध द्वारा अपने अनुयायिओं को दिया गया यह पंचशील सिद्धान्त बमन लोगो के सामाजिक तथा नैतिक पतन से नागवंशियों के लिए पूर्वशर्त के तौर पर दी गयी है।
हिन्दी में इसका भाव निम्नवत है-
- हिंसा न करना,
- चोरी न करना,
- व्यभिचार न करना,
- झूठ न बोलना,
- नशा न करना।
पालि में यह निम्नवत है-
- पाणातिपाता वेरमणी-सिक्खापदं समादयामि।।
- अदिन्नादाना वेरमणी- सिक्खापदं समादयामि।।
- कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी- सिक्खापदं समादयामि।।
- मुसावादा वेरमणी- सिक्खापदं समादयामि।।
- सुरा-मेरय-मज्ज-पमादठ्ठाना वेरमणी- सिक्खापदं समादयामि।।
बौद्ध धर्म में आम आदमी भी बुद्ध बन सकता है उसे बस दस पारमिताएं पूरी करनी पड़ती हैं
एक आदर्श मानव समाज कैसा हो?
दुनियां का हर मनुष्य किसी न किसी दुःख से दुखी है। तथागत बुद्ध ने बताया कि इस दुःख की कोई न कोई वजह होती है और अगर मनुष्य दुःख निरोध के मार्ग पर चले तो इस दुःख से मुक्ति पाई जा सकती है। यही चार आर्य सत्य हैं:
- अर्थात दुःख है।
- अर्थात दुःख का कारण है।
- अर्थात दुःख का निरोध है।
- अर्थात दुःख निरोध पाने का मार्ग है।
बौद्ध धर्म के चौथे आर्य सत्य, दुःख से मुक्ति पाने का रास्ता, अष्टांगिक मार्ग कहलाता है. जिसका विवरण एतरेय उपनिषद मिलता है।
जन्म से मरण तक हम जो भी करते है, उसका अंतिम मकसद केवल ख़ुशी होता है। स्थायी ख़ुशी सुनिश्चित करने के लिए हमें जीवन में इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
- सम्यक दृष्टि : चार आर्य सत्य में विश्वास करना
- सम्यक संकल्प : मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना
- सम्यक वाक : हानिकारक बातें और झूठ न बोलना
- सम्यक कर्म : हानिकारक कर्म न करना
- सम्यक जीविका : कोई भी स्पष्टतः या अस्पष्टतः हानिकारक व्यापार न करना
- सम्यक प्रयास : अपने आप सुधरने की कोशिश करना
- सम्यक स्मृति : स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना
- सम्यक समाधि : निर्वाण पाना और अहंकार का खोना