निष्क्रयता (जीवविज्ञान)
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निष्क्रयता (Dormancy) किसी जीव के जीवनचक्र में ऐसा कोई चरण होता है जिसमें उस जीव का विकास और बहुत-सी अन्य क्रियाएँ कुछ काल के लिए रोक दी जाती हैं। प्राणियों में इस अवस्था में प्राणी सोया हुआ प्रतीत हो सकता है। निष्क्रयता से कठिन परिस्थितियों के समय में जीव अपनी चयापचय प्रक्रियाओं को धीमा कर लेता है जिस से उसमें ऊर्जा-व्यय बहुत कम हो जाता है। जब परिस्थितियाँ सुधर जाती हैं (मसलन सर्दियों के बाद तापमान का बढ़ना तथा आहार की अधिक उपलब्धि हो जाना), तो निष्क्रयता जीव फिर से सक्रीय हो सकता है।[2][3] भालू जैसे प्राणियों में शीतनिष्क्रियता (हाइबर्नेशन) देखी जाती है, जिसमें प्राणी शीतऋतु से पहले बहुत आहार ग्रहण कर के अपना वज़न बढ़ाता है और फिर सर्दी के आगमन पर सुप्तावस्था में रहकर ऊर्जा बचाता है। इस काल में कुछ प्राणी अपने हृदय की दर 95% घटा लेते हैं और शरीर का तापमान भी कम कर लेते हैं।[4]