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नई भूमि अभियान (रूसी: Освоение целины, ओस्वोएनिए त्सेलिन्य; अंग्रेज़ी: Virgin Lands Campaign) सोवियत संघ में १९५० और १९६० के दशकों में अन्न की सख़्त कमी से निबटने के लिए मध्य एशिया, उत्तरी कॉकस और पश्चिमी साइबेरिया के विशाल स्तेपी मैदानी क्षेत्रों में नए सिरे से कृषि शुरू करने की योजना का नाम था। इसका उद्घाटन १९५३ में उस समय के सोवियत नेता निकिता ख़्रुशचेव ने किया था। इसके अंतर्गत दसियों हज़ार वर्ग किमी क्षेत्रफल की ज़मीन पर सिंचाई और अनाज उगाने का काम आरम्भ किया गया।
नई भूमि अभियान का सोवियत संघ पर गहरा असर पड़ा। कई लाख रूसी, यूक्रेनी और अन्य स्लावी लोग मध्य एशिया और साइबेरिया में आकर बस गए जिस से उन इलाक़ों का जातीय मिश्रण बदल गया और उन स्थानों की संस्कृति में गहरा रूसिकरण हुआ। स्तेपी क्षेत्र में बहुत से नए नगर-क़स्बे बने। बहुत सी नदियों का पानी सिंचाई की नहरों में खींचने से एक ओर तो शुष्क ज़मीनें लहलहा उठी लेकिन दूसरी ओर प्राकृतिक वातावरण पर बुरा असर पड़ा, मसलन अरल सागर का अधिकाँश हिस्सा सूखकर रेगिस्तानी बन गया। अभियान के शुरूआती दौर में कृषि उत्पादन में भारी बढ़ौतरी हुई। सन् १९५६ में सोवियत संघ में पैदा किया गया आधे से ज़्यादा अनाज इस नई भूमि पर उगाया गया था। लेकिन फिर फ़सलों में वृद्धि का दर धीरे होकर रुक गया। वर्षा की कमी, स्तेपी की ज़ोरदार हवाएँ, मिटटी का क्षरण, भयंकर सर्दियों के कारण फ़सल उगाने के लिए वर्ष में केवल चंद महीनो का समय - इसके बहुत से कारण थे।[1]
आगे चलकर इन नए खेतों में पैदावार गिरने लगी और सोवियत संघ अन्य देशों से अनाज ख़रीदने पर मजबूर हो गया। अधिकतर इतिहासकार नई भूमि अभियान को अपने ध्येयों में असफल मानते हैं। फिर भी १९९१ में सोवियत संघ के खंडित होने तक भी कज़ाख़स्तान सोवियत संघ का एक-तिहाई गेंहू पैदा कर रहा था।[2]
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