धार्मिक दर्शन (Religious Philosophy) वह दर्शन है जो किसी पन्थविशेष या सम्प्रदाय विशेष से प्रभावित हो और उसी सम्प्रदाय की शिक्षाओं की ओर उसका रुझान हो। धर्म-दर्शन वस्तुपरक भी हो सकता है किन्तु किसी सम्प्रदाय के लिये अनुनय उपकरण के रुप में प्रयुक्त किया जा सकता है। धर्म-दर्शन अधिकांशतः ईश्वर, देवता और अलौकिक बातों से सम्बन्धित संकल्पनाओं का समुच्चय होता है।

धार्मिक दर्शन या धर्मविशेष दर्शन(Religious Philosophy), धर्म के दर्शनशास्त्र(Philosophy of Religion) तथा धर्ममीमांसा (Theology) से संबंधित,परन्तु एक भिन्न विद्या है। किसी पंथ-विशेष का धर्म दर्शन उसी धर्म से प्रभावित विचारधाराओं को बोलते हैं, जबकि धर्म-दर्शनशास्त्र का अभिप्राय, उस विधा से है, जो धर्म के केन्द्रिय अवधारणाओं का दार्शनिक रुप से व्यवस्थित समिक्षा करे, जैसे कि ईश्वर का अस्तित्व,आस्था बनाम तर्कणा, धार्मिक नीति आदि। धर्ममिमांसा में धर्म का अध्ययन, ईश्वर के अस्तित्व को स्वयंसिद्ध मानकर किया जाता है। इसमें दर्शन के विपरित, आस्था (ईश्वर में विश्वास) पूर्वकल्पित होती है।[1]

ऐतिहासिक विकासक्रम में इन धर्मदर्शनों की कुछ बाते दूसरे धर्मदर्शनों के समान हैं या मिलती-जुलतीं हैं, किन्तु कुछ बाते अनन्य भी हैं। धर्मदर्शन के कुछ उदाहरण हैं- हिन्दुओं का अद्वैत वेदान्त, बौद्ध दर्शन, जैन दर्शन, ईसाई दर्शन, इस्लामी दर्शन, सिख दर्शन आदि।

सन्दर्भ

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