द्वैतवाद
भारतीय दर्शन जिसके अनुसार आत्मा और परमात्मा दोनों दो अलग अलग तत्त्व हैं। / From Wikipedia, the free encyclopedia
संस्कृत शब्द 'द्वैत', 'दो भागों में' अथवा 'दो भिन्न रूपों वाली स्थिति' को निरूपित करने वाला एक शब्द है। इस शब्द के अर्थ में विषयवार भिन्नता आ सकती है। दर्शन अथवा धर्म में इसका अर्थ पूजा अर्चना से लिया जाता है जिसके अनुसार प्रार्थना करने वाला और सुनने वाला दो अलग रूप हैं। इन दोनों की मिश्रित रचना को द्वैतवाद कहा जाता है।[1] इस सिद्धान्त के प्रथम प्रवर्तक मध्वाचार्य (1199-1303) थे।
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