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तेजपाल सिंह धामा (जन्म: 2 जनवरी 1971) पत्रकार[2], हिन्दी के लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं। 'हमारी विरासत' (शोध-ग्रंथ) उनकी प्रसिद्ध रचना है। इन्हें अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। इन्होंने हैदराबाद से प्रकाशित स्वतंत्र वार्ता एवं दिल्ली से प्रकाशित दैनिक विराट वैभव एवं दैनिक वीर अर्जुन [3] के संपादकीय विभागों में दशकों तक कार्य किया। वे मुख्यतः इतिहास पर लिखने वाले साहित्यकार[4] हैं जिनकी इतिहास से सम्बन्धित अनेकों पुस्तकें छप चुकी हैं। शहीदों पर लिखने[5] के कारण इन्हें 2017 में संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार ने संस्कृति मनीषी पुरस्कार से सम्मानित किया है।
तेजपाल सिंह धामा | |
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जन्म | 2 जनवरी 1971 नगर खेकड़ा जिला बागपत, उत्तर प्रदेश, (भारत)ਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
मौत | ਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
कब्र | ਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
दूसरे नाम | 'धामा' |
पेशा | अवकाशप्राप्त पत्रकारिता संपादक, स्वतन्त्र लेखन |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
विधा | कविता, लेख, फिल्म पटकथा लेखन, निबन्ध, शोध एवं ऐतिहासिक उपन्यास |
विषय | हिन्दी साहित्य, इतिहास व राजनीति |
उल्लेखनीय काम | हमारी विरासत, अग्नि की लपटें, गौ का गौरव (ऐतिहासिक शोध) एवं स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास |
खिताब | संस्कृति मनीषी सम्मान एवं ब्रेवरी गोल्ड अवार्ड |
बच्चे | प्रज्ञा आर्य (दत्तक पुत्री)[1] |
तेजपाल सिंह धामा का जन्म उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के खेकड़ा नगर में हुआ था। कई समचार पत्रों में उप संपादक के अलावा तेजपाल सिंह धामा हिन्द पॉकेट बुक्स के वरिष्ठ संपादक[6] भी रहे। पेंगुइन रैंडम हाउस में कमिशनिंग एडिटर के रूप में भी अपनी सेवाएं दी। इन्होंने नीरा आर्य समेत कई स्वतंत्रता सेनानियों के साक्षात्कार लिए एवं उनकी वृद्धावस्था में सेवा की।[7] आजाद हिन्द फौज की अमर सेनानी नीरा आर्य के जन्मस्थल खेकड़ा, बागपत में तेजपाल सिंह धामा ने व्यक्तिगत रूप से 70 लाख रुपए[8][9] खर्च करके नीरा आर्य स्मारक की स्थापना की है, जिसमें एक भव्य पुस्तकालय भी है। खेकड़ा में वीरांगना नीरा आर्य की प्रतिमा के साथ-साथ 300 से अधिक स्वतंत्रता सेनानियों की जनकारी भी तेजपाल सिंह धामा द्वारा संग्रहित की गई है।[10][11]नीरा आर्य स्मारक के परिसर में निरक्षर होते हुए शिक्षा को बढ़ावा देने वाली सीताकौर देवी की प्रतिमा भी तेजपाल सिंह द्वारा स्थापित की गई है।
अब तक उनके 35 ऐतिहासिक उपन्यास, 5 काव्य संग्रह, 1 महाकाव्य और विविध विषयों की कुछ अन्य पुस्तकें छप चुकी चुकी हैं। उनकी प्रथम काव्य रचना आँधी और तूफान है। तत्पश्चात् उन्होंने एक उपन्यास शान्ति मठ लिखा, जो एक सम्पादक ने अपने साप्ताहिक पत्र में उसे श्रृंखलाबद्ध प्रकाशित किया।[12]गायत्री कमलेश्वर के अनुरोध पर प्रख्यात लेखक कमलेश्वर की अंतिम एवं अधूरी पुस्तक इन्होंने ही पूरी की,[13]जो हिन्द पाकेट बुक्स[14][15]से 'अंतिम सफर' के नाम से प्रकाशित हुई और बेस्ट सैलर रही। इन्होंने राजस्थान की दस प्रमुख रानियों पर खोजपरक उपन्यासों की एक श्रृंखला भी लिखी है, जिसमें रानी पद्मिनी पर[16]अग्नि की लपटें,[17]रानी कर्मदेवी पर अजेय अग्नि, रानी चंपा पर ठंडी अग्नि इत्यादि हैं। इनकी ये पुस्तकें देशभर खासकर राजस्थान में काफी चर्चित रही हैं। इतिहास पर आधारित कई उपन्यास[18]भी अनेक प्रकाशनों से प्रकाशित हुए हैं। 'हमारी विरासत' के अतिरिक्त पृथ्वीराज चौहान एक पराजित विजेता इनका सर्वाधिक बिकने वाला उपन्यास है। डोमिनीक लापिएर एवं लैरी कॉलिन्स समेत इन्होंने कई चर्चित विदेशी लेखकों की इतिहास से संबद्ध पुस्तकों का हिन्दी अनुवाद भी किया।[19] यह राष्ट्रवादी विचारधारा के व्यक्ति हैं। इसलिए जब प्रख्यात कलाकार एमएफ हुसैन ने भारत माता की विवादित पेंटिंग बनाई तो ये एमएफ हुसैन से उलझ पड़े थे।[20][21] किशोर अवस्था में ये अनेक स्वतंत्रता सेनानियों नीरा आर्य[22][23][24], मन्मथनाथ गुप्त, गुरुदत्त, बलराज मधोक, रामगोपाल सालवाले, सरस्वती राजामणि, लक्ष्मी सहगल इत्यादि से मिले और उनके संस्मरणों के आधार पर गुमनाम क्रांतिकारी नामक वृहद ग्रंथ का प्रामाणिक लेखन किया।
तेजपाल सिंह धामा फिल्म लेखन एवं नाट्य मंचन के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। जायसी के पदमावत के अलावा[25]इनके उपन्यास अग्नि की लपटो [26][27]के आधार[28]पर[29]ही भंसाली ने अपनी विवादित फिल्म पदमावत् का निर्माण किया है। [30]इन्होंने आरोप लगाया था कि संजय लीला भंसाली ने पद्मावत फिल्म के लिए उनके उपन्यास के लिए कापीराइट लिए हैं, लेकिन अब वे कहानी को काल्पनिक बता रहे हैं,[31] जबकि पद्मिनी इतिहास का हिस्सा हैं। लेकिन फिल्म जब रिलीज हुई थी, तो तब उसमें इनका नाम पर्दे पर दिया[32]गया है।[33]इन्होंने पाकिस्तानी अभिनेत्री वीना मलिक के लिए भी फिल्म का लेखन किया है और जब वे गायब हो गई तो इन्होंने ही खुलासा किया था कि वे गायब नहीं हुई हैं, यह गलत खबर है।[34] दयानंद सरस्वती पर आधारित टीवी सीरियल की वन लाइन स्टोरी, एवं कुछ एपिसोड इन्होंने लिखे थे।[35][36]इन्होंने कई नाटकों का लेखन भी किया, जो देशभर में विभिन्न जगह मंचन किए गए। परमार्थ निकेतने में गंगा किनारे साधु—संतों के लिए इनके एक नाटक का विशेष मंचन [37]सुनील चौहान के निर्देशन में किया गया।[38]इससे पहले श्रीराम सेंटर, दिल्ली में भी इस नाटक का मंचन इन्होंने किया, जिसे इंसानियत का संदेशवाहक बताया गया।[39]इन्होंने उर्दू लेखिका फरहाना ताज[40]की आत्मकथा पर आधारित भी एक बहुचर्चित नाटक[41] लिखा, जिसका देश के विभिन्न शहरों हैदराबाद, तेलंगाना, गुड़गांव, हरियाणा,[42][43][44][45]ऋषिकेश, उत्तराखंड,[46][47]श्रीराम सेंटर मंडी हाउस, दिल्ली आदि जगहों पर मंचन हो चुका है। जयपुर अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल (जिफ) 2020 में तेजपाल सिंह धामा को सिने जगत की मुख्य हस्तियों संग वक्ता के रूप में[48] आमंत्रित किया[49] गया।[50] जिफ की शुरूआत[51] राजस्थान की धरोहर को बयां करती फिल्म चीड़ी बल्ला से हुई। यहां धामा ने कहा कि हॉलीवुड[52] बॉलीवुड फिल्मों से भारतीय संस्कृति की ओर आकर्षित[53] हो रहा है। फिल्म से जुड़ी हस्तियों के संग अग्नि की लपटें के लेखक [54] तेजपाल सिंह धामा ने अपने लेखन की सफलता का श्रेय अपनी पत्नी की प्रेरणा को दिया। तेजपाल सिंह धामा ने बॉलीवुड फिल्म निर्माता के तौर पर अपनी पहली फिल्म एक पीड़िता प्रज्ञा आर्य [55] के जीवन पर आधारित घर चलो ना पापा[56] का निर्माण किया। जो 25 दिसंबर 2020 को रिलीज[57][58]की गई। धामा ने दूसरी फिल्म पंडित रामप्रसाद बिस्मिल : सन आफ आर्यवर्त' का निर्माण किया। इस फिल्म में रामप्रसाद बिस्मिल का किरदार आयुष्य शर्मा ने निभाया है, जबकि बिस्मिल के मित्र अशफाक उल्ला का किरदार कपिल दांगी[59] ने अदा किया है। चंद्रशेखर आजाद का किरदार छत्तीसगढ़ के सुपरस्टार अखिलेश पांडे ने अदा किया है।[60] इस फिल्म में काफी भावुक दृश्य दर्शाए गए हैं।[61] इस फिल्म की शूटिंग मुजफ्फरनगर[62],बागपत[63], खेकड़ा[64], हापुड, दिल्ली, आगरा आदि स्थलों पर हुई। यह फिल्म रामप्रसाद बिस्मिल की 125वीं जयंती पर रिलीज की गई। [65] इसके बाद इसका विभिन्न टीवी चैनलों पर प्रसारण हो चुका है।[66] तेजपाल सिंह धामा ने फिल्मों के प्रसारण एवं मार्केटिंग के लिए आर्यखंड टेलीविजन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी भी स्थापित की है।[67] तेजपाल सिंह धामा ने फिल्म निर्माता के तौर पर आजादी के बाद सबसे बड़े धर्मपरिवर्तन मीनाक्षीपुरम काण्ड पर वैदेही फिल्म[68][69][70] एवं सामाजिक परिवर्तन पर आधारित अधकटा अधकटा रूख[71][72] फिल्म का निर्माण भी किया।
दुर्व्यसन, अस्पृश्यता, पशु पक्षी हत्या, परावलम्बन और प्रकृति के साथ छेड़छाड़ - ये कुछ ऐसी बुराइयाँ[73]हैं जिनके कारण सम्पूर्ण समाज को आर्थिक, सामाजिक व प्राकृतिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। समाज में व्याप्त इन व्याधियों को जड़ से मिटाने के लिये तेजपाल सिंह ने अच्छी-खासी नौकरी छोड़ कर समाज सेवा को ही अपना मुख्य ध्येय बनाया।[74] कृषि विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने वाले धामा जाति प्रथा के नाम पर फैलाई जा रही कुरीतियों के घोर विरोधी हैं।[75]उन्होंने स्वयं भी अन्तर्जातीय विवाह किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने बच्चों के लिये वैदिक बाल संस्था और युवाओं के लिये युवा विकास परिषद जैसी स्वयंसेवी संस्थाओं की स्थापना की। युवा विकास परिषद् के माध्यम से उन्होंने दुर्व्यसन, पशु पक्षी संरक्षण व अस्पृश्यता मुक्ति जैसे आन्दोलन भी चलाये हैं।[76]
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