तरावीह
रमज़ान के पवित्र माह में सुन्नी मुस्लिम समुदाय में प्रचलित रात की नमाज़ के पश्चात पढ़ी जाने वाली / From Wikipedia, the free encyclopedia
तरावीह (अरबी: تراويح) सुन्नी मुस्लमानों द्वारा रमज़ान के माह में रात्रि में की जाने वाली अतिरिक्त नमाज़ (प्रार्थना) है।[1]
तरावीह अरबी के शब्द तरविह (ترویحہ) का बहुवचन है। शाब्दिक अर्थ है आराम और ठहरना।
रमज़ान के पवित्र माह में सुन्नी मुस्लिम समुदाय में प्रचलित रात की नमाज़ के पश्चात पढ़ी जाने वाली सामूहिक नमाज़ को हर 4 रकात (Rakat) के पश्चात ठहर और आराम करके पढ़ा जाता है इस लिए इस नमाज़ को तरावीह की नमाज़ कहते हैं। महिलाएं अकेले घर पर पढ़ती हैं।
पैग़म्बर मुहम्मद उनके बाद ख़लीफ़ा अबू बक़र के समय तक भी तरावीह की नमाज़ समूह में नहीं पढ़ी जाती थी।
दूसरे खलीफा उमर बिन अल ख़त्ताब जिन्हें पैग़म्बर ने खलीफ़ उर्र-राशिदून (सही दिशा में चलते हुए) मैं से एक कहा है ने तरावीह की नमाज़ को मस्जिदों में सामुहिक पढ़ाना शुरू कराया।
शिया मुसलमानों के धर्मगुरु पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ ने कहा है कि जमाअत (समूह) के साथ तरावीह पढ़ना जायज़ नहीं है।
शिया मुसलमान तरावीह की नमाज़ को तहज्जुद की नमाज़ मानते हैं, अकेले पढ़ते हैं।
सुन्नी मुसलमानों में अहले हदीस तरावीह की नमाज़ मैं 8 रकात पढ़ते हैं और दूसरी विचार धारा वाले अधिकतर
मक्का मदीना सहित सभी 20 रकात पढ़ते हैं।
तरावीह की नमाज़ हाफ़िज़ अल-क़ुरआन अर्थात जिसने पूरा क़ुरआन कंठस्थ किया हुआ हो पढ़ाता है। एक
हाफ़िज़ नमाज़ पढ़ने वालों में भी होता है जो पढ़ाने वाले की भूल को बताता है।
आस्थावान मुसलमान पूरे रमज़ान महीने में तरावीह की नमाज़ पढ़ते हैं, एक बार पूरा क़ुरआन सुन्ना ज़रूरी समझते हैं, जिनके पास कम समय है वो 3 दिन का शबीना (रातों) में, 6 रातों या 10 रातों के शाबिने में भी सुन लेते हैं।
आलोचक तरावीह की नमाज़ को बिदअत कहते हैं। इस्लाम में पैग़म्बर मुहम्मद के बाद के ज़माने में इस्लाम में रिवाज बन जाने वाली बात को बिदअत कहते हैं।
अधिकतर शिया और कुछ सुन्नी मुसलमान तरावीह की नमाज़ को तहज्जुद की नमाज़ मानते हैं।
तहज्जुद, वित्र और तरावीह की नमाज़ सभी क़ियामुल-लैल (रात की नमाज़) या तरावीह की संज्ञा के अंतर्गत आते हैं, सुन्नी मुसलमान तरावीह को विशेष रूप से रमज़ान में क़ियामुल-लैल भी मानते हैं।