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तंजावुर मराठा राज्य 17वीं और 19वीं शताब्दी के बीच तमिलनाडु में भोंसले वंश का एक रियासत था। उनकी मूल भाषा मराठी थी। व्यंकोजी राजवंश के संस्थापक थे।
तंजावुर का मराठा साम्राज्य तंजावुर की रियासत | |||||
साम्राज्य 1674 से 1799 तक। ब्रिटिश राज की अधीन रियासत (1799-1855) | |||||
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तंजौर का नक्शा | |||||
1798 में अंग्रेजों के प्रवेश के समय तंजावुर मराठा साम्राज्य की अनुमानित सीमा | |||||
राजधानी | तंजावुर | ||||
भाषाएँ | मराठी, तमिल, तेलुगु | ||||
धार्मिक समूह | हिन्दू | ||||
शासन | रियासत | ||||
शासक | |||||
- | (पहले) 1674 - 1684 | व्यंकोजी | |||
- | (अन्तिम) 1832 - 1855 | तंजावुर के शिवाजी द्वितीय | |||
इतिहास | |||||
- | व्यंकोजी द्वारा मदुरै नायक साम्राज्य पर विजय | 1674 | |||
- | शुरुआती रिकॉर्ड | 1674 | |||
- | अंत | 1855 | |||
Area | 9,600 किमी ² (3,707 वर्ग मील) | ||||
आज इन देशों का हिस्सा है: | भारत | ||||
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15वीं शताब्दी (विशेष रूप से 1436 के आसपास) में चोल शासन के पतन के बाद, तंजावुर क्षेत्र पांड्यों के शासन में आया और फिर, मलिक काफूर के आक्रमण के बाद, यह क्षेत्र अव्यवस्था का शिकार हो गया।
पांड्यो ने जल्दी ही अपनी शक्ति एकत्रित कर स्वतंत्रत होने का प्रयाश करने लगे और दिल्ली सुल्तान को तंजावुर से भागने के लिए मजबूर कर दिया। हालांकि, इसके तुरंत बाद, विजयनगर साम्राज्य द्वारा उन पर अधिकार कर लिया गया था। सम्राट ने अपने विश्वसनीय परिजनों को तंजावुर में नियुक्त किया, जो तेलुगु बालिजा जाति के मदुरै और तंजावुर के गवर्नर (नायक) थे।[1] मदुरै नायक राजवंश के चोक्कनाथ नायक और उनके चाचा तंजावुर के विजयराघव नायक के बीच एक आंतरिक परिवार के बीच तकरार एक युद्ध में बदल गई, और अंत में तंजावुर की हार हुई। तंजावुर नायक का शासन 1673 तक ही चला जब तक की मदुरै के शासक चोक्कनाथ नायक ने तंजावुर पर आक्रमण किया और इसके शासक विजयराघव की हत्या कर दी।[2]
चोक्कनाथ ने अपने भाई अलागिरि को तंजावुर के सिंहासन पर बैठा दिया, लेकिन एक साल के भीतर ही अलागिरि ने चोक्कनाथ के प्रति अपनी निष्ठा खत्म कर दी, और चोक्कनाथ को तंजावुर को स्वतंत्रत करने के लिए मजबूर होना पड़ा। विजयाराघव के एक बेटे ने बीजापुर सुल्तान को तंजावुर सिंहासन वापस पाने के लिये मदद मांगी। 1675 में, बीजापुर के सुल्तान ने मराठा सेनापति व्यंकोजी (उर्फ एकोजी) के कमान पर एक सैन्यदल को आक्रमणकारी से तंजावुर वापस लेने के लिये भेजा।[3] व्यंकोजी ने अलागिरी को हराया, और तंजावुर पर कब्जा कर लिया। हालाँकि, उन्होंने बीजापुर सुल्तान के निर्देश के अनुसार, विजयाराघव के बेटे को सिंहासन पर नहीं बिठाया, लेकिन राज्य को जब्त कर लिया और खुद राजा बन बैठा। इस प्रकार तंजावुर पर मराठों का शासन प्रारम्भ हुआ।[3]
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