झालावाड़
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झालावाड़ (Jhalawar) भारत राष्ट्र के राजस्थान राज्य के झालावाड़ ज़िले में स्थित एक एतिहासिक नगरी है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।[1][2]
झालावाड़
[झाला राजपूतों की रियासत] Jhalawar | |
---|---|
शांतिनाथ मन्दिर | |
निर्देशांक: 24.59°N 76.16°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | राजस्थान |
ज़िला | झालावाड़ ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 66,919 |
भाषा | |
• प्रचलित | मालवी भाषा|हाड़ौती,मालवी, हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
झालावाड़ राजस्थान राज्य के दक्षिण-पूर्व में हाडौती क्षेत्र का हिस्सा है। झालावाड के अलावा कोटा, बारां एवं बूंदी हाडौती क्षेत्र में आते हैं। राजस्थान के झालावाड़ ने पर्यटन की दृष्टि से अपनी एक अलग पहचान बनाई है। राजस्थान की कला और संस्कृति को संजोए यह शहर अपने खूबसूरत सरोवरों, किला और मंदिरों के लिए जाना जाता है। झालावाड़ की नदियां और सरोवर इस क्षेत्र की दृश्यावली को भव्यता प्रदान करते हैं। यहां अनेक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल भी हैं, जो पर्यटकों को अपनी ओर खींचने में कामयाब होते हैं। झालावाड़ मालवा के पठार के एक छोर पर बसा जनपद है। इस जनपद के अंदर झालावाड़ और झालरापाटन नामक दो पर्यटन स्थल है। इन दोनों शहरों की स्थापना 18वीं शताब्दी के अन्त में झाला राजपूतों द्वारा की गई थी। इसलिए इन्हें 'जुड़वा शहर' भी कहा जाता है। इन दोनों शहरों के बीच 7 किमी की दूरी है। यह दोनों शहर झाला वंश के राजाओं की समृद्ध रियासत का हिस्सा था। इस जिले के दक्षिण पश्चिम भवानी मंडी स्थित है भवानी मंडी पंचायत समिति के अंदर गुड़ा ग्राम पंचायत एक शानदार जगह है
रजवाड़ा: झालावाड़ | |
क्षेत्र | हाड़ौती , मालवा |
ध्वज, १९वीं शती | |
स्वतंत्रता: | कोटा |
राज्य उद्गम: | 1838-1949 |
राजवंश | झाला |
राजधानी | झालावाड़ |
झालावाड़ जिले में 4 विधानसभा क्षेत्र हैं
झालावाड लोकसभा सीट से दुष्यंत सिंह जिले का प्रतिनिधित्व संसद में करते हैं। झालरापाटन सीट से राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सिंधिया क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं।
गढमहल झाला वंश के राजाओं का भव्य महल था। शहर के मध्य स्थित इस महल के तीन कलात्मक द्वार हैं। महल का अग्रभाग चार मंजिला है, जिसमें मेहराबों, झरोखों और गुम्बदों का आनुपातिक विन्यास देखने लायक है।
परिसर के नक्कारखाने के निकट स्थित पुरातात्विक संग्रहालय भी देखने योग्य है। महल का निर्माण 1838 ई. में राजा राणा मदन सिंह ने शुरू करवाया था जिसे बाद में राजा पृथ्वीसिंह ने पूरा करवाया। 1921 में राजा भवानी सिंह ने महल के पिछले भाग में एक नाट्यशाला का निर्माण कराया। इसके निर्माण में यूरोपियन ओपेरा शैली का खास ध्यान रखा गया है।
शहर से करीब 6 किलोमीटर दूर कृष्ण सागर नामक विशाल सरोवर है। यह सरोवर एकांतप्रिय लोगों को बहुत पसंद आता है। सरोवर के किनारे पर लकड़ियों से निर्मित एक इमारत है। इस इमारत को रैन बसेरा कहा जाता है। यह इमारत महाराजा राजेन्द्र सिंह ने ग्रीष्मकालीन आवास के लिए बनवाई थी। पक्षियों में रूचि रखने वालों को यह स्थान बहुत भाता है। वर्तमान में यह जल गया है
काली सिंध नदी और आहु नदी के संगम पर स्थित गागरोन फोर्ट झालावाड़ की एक ऐतिहासिक धरोहर है। यह शहर से उत्तर में 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गढ़ गागरोण महान संत पीपा की समाधि भी है। 13वीं शताब्दी से गागरोण पर खींची (चौहानों) का शासन था। इस कुल में तुगलक सेना को मार भगाने वाले नरेश राव प्रताप सिंह हुए जिन्होंने तुगलक सेना के सेनापति लल्लन पठान को एक झटके में काट डाला फिर राव प्रताप सिंह जी क्षत्रियों में मांस मदिरा के प्रयोग से हो रहे अनर्थक को देखकर विचलित हो उठे रात को सपने में मां भवानी के कहने पर काशी के रामानंद जी को गुरु बनाने काशी चले गए इनके वंशज अचल दास ने यहां शासन किया
झालावाड़ का दूसरा जुड़वा शहर झालरापाटन को घँटियों का शहर भी कहा जाता है। शहर में मध्य स्थित सूर्य मंदिर झालरापाटन का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। वास्तुकला की दृष्टि से भी यह मंदिर अहम है। इसका निर्माण दसवीं शताब्दी में मालवा के परमार वंशीय राजाओं ने करवाया था। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा विराजमान है। इसे पद्मनाभ मंदिर भी कहा जाता है।
यह मंदिर सूर्य मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित है। ग्यारहवीं शताब्दी में निर्मित इस जैन मंदिर के गर्भगृह में भगवान शांतिनाथ की सौम्य प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा 11 फुट ऊंची है और काले पत्थर से बनी है। मुख्य मंदिर के बाहर विशालकाय दो हाथियों की मूर्तियां इस प्रकार स्थित हैं, मानो प्रहरी के रूप में खड़ी हों।
झालरापाटन का यह विशाल सरोवर गोमती सागर के नाम से जाना जाता है। इसके तट पर बना द्वारिकाधीश मंदिर एक प्रमुख दर्शनीय स्थान है। झाला राजपूतों के कुल देवता द्वारिकाधीश को समर्पित यह मंदिर राजा जालिम सिंह द्वारा बनवाया गया था। शहर के पूर्व में चन्द्रभागा नदी है। जहां चन्द्रावती नगरी थी। उस काल के कुछ मंदिर आज भी यहां स्थित हैं, जिनका निर्माण आठवीं शताब्दी में मालवा नरेश ने करवाया था। इनमें शिव मंदिर प्रमुख हैं। यह मंदिर नदी के घाट पर स्थित है।
शहर के एक छोर पर ऊंची पहाड़ी पर नौलखा किला एक अन्य पर्यटन स्थल है। इसका निर्माण राजा पृथ्वीसिंह द्वारा 1860 में शुरू करवाया गया था। इसके निर्माण में खर्च होने वाली राशि के आधार पर इसे नौलखा किला कहा जाता है। यहां से शहर का विहंगम नजारा काफी आकर्षक लगता है।
झालावाड़ और झालरापाटन शहरों के बाहर जैन धर्म और बौद्ध धर्म से जुड़े मंदिर भी पर्यटकों को खूब लुभाते हैं। इसमें चांदखेड़ी का दिगंबर जैन मंदिर और कोलवी स्थित बौद्ध धर्म के दीनयान मत की गुफाएं काफी प्रसिद्ध हैं। झालावाड़ शहर से 23 किमी की दूरी पर भीमसागर बांध स्थित है तथा 65 किमी की दूरी पर भीमगढ किला है। यह स्थल भी पर्यटन के लिहाज से घूमा जा सकता है।
यह दुर्ग अतिप्राचीन है । यह दुर्ग कालीखाड़ नदी एवं परवन नदी के संगम पर स्थित है । इस प्रकार यह दुर्ग जल दुर्ग श्रेणी का है। इस दुर्ग के अंदर अब यहां की जनता ने अधिकार कर लिया है और यहां पर ही अपने निवास बना लिये है।
मनोहर थाना तहसील के ग्राम कामखेड़ा में प्रसिद्ध हनुमानजी का मंदिर स्थित है। यहां हनुमानजी की पूजा बालाजी के रूप में की जाती है। कहा जाता है कि बालाजी के दरबार में भूत प्रेतो की अदालत लगती हैं। यहां बालाजी के दर्शन करने के लिए सीमावर्ती राज्यों के श्रद्धालु आते हैं । जिनके लिए प्रतिवर्ष श्रावण मास में खुरी चौराहा पर, नेवज नदी के पास ग्राम पिपलिया जागीर तथा ग्राम (बम्बूलिया)सुलिया जागीर व बंधा जागीर के बीच निःशुल्क भंडारा समीप ग्राम के ग्रामवासियों के द्वारा किया जाता है। कामखेड़ा की दूरी अकलेरा 16 किमी है कामखेड़ा में ही श्रीराम भगवान का भव्य मंदिर निर्माणाधीन हैं ।
झालावाड राष्ट्रीय राजमार्ग १२ (जयपुर-जबलपुर) पर स्थित है। निकटतम बड़ा शहर कोटा है जो ८५ किलोमीटर दूर है। झालावाड़ का निकटतम एयरपोर्ट कोटा विमानक्षेत्र है। यह शहर से 87 किलोमीटर दूर स्थित है। नजदीकी रेलवे स्टेशन झालावाड़ सिटी एवं झालरापाटन रेलवे स्टेशन है। कोटा से झालावाड़ जाने के लिए बस ट्रेन या टैक्सी की सेवा ली जा सकती है। इसके अलावा जयपुर, बूंदी, अजमेर, कोटा, दिल्ली, इंदौर आदि शहरों से बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
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