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जैसलमेर
भारत में एक मानव बस्ती / From Wikipedia, the free encyclopedia
जैसलमेर भारत के राजस्थान प्रांत का एक शहर है। भारत के सुदूर पश्चिम में स्थित थार के मरुस्थल में जैसलमेर की स्थापना भारतीय इतिहास के मध्यकाल के प्रारंभ में ११७८ ई. के लगभग राजपूत भाटी के वंशज रावल-जैसल द्वारा की गई थी। रावल जैसल के वंशजों ने यहाँ भारत के गणतंत्र में परिवर्तन होने तक बिना वंश क्रम को भंग किए हुए ७७० वर्ष सतत शासन किया, जो अपने आप में एक महत्वपूर्ण घटना है। जैसलमेर राज्य ने भारत के इतिहास के कई कालों को देखा व सहा है। सल्तनत काल के लगभग ३०० वर्ष के इतिहास में गुजरता हुआ यह राज्य मुगल साम्राज्य में भी लगभग ३०० वर्षों तक अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम रहा। भारत में अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना से लेकर समाप्ति तक भी इस राज्य ने अपने वंश गौरव व महत्व को यथावत रखा। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात यह भारतीय गणतंत्र में विलीन हो गया। भारतीय गणतंत्र के विलीनकरण के समय इसका भौगोलिक क्षेत्रफल १६,०६२ वर्ग मील के विस्तृत भू-भाग पर फैला हुआ था। रेगिस्तान की विषम परिस्थितियों में स्थित होने के कारण यहाँ की जनसंख्या बींसवीं सदी के प्रारंभ में मात्र ७६,२५५ थी।[1]
— शहर — | |||||||
ज़िला | जैसलमेर | ||||||
जनसंख्या • घनत्व |
1,35,286 (2019 के अनुसार [update]) • 26,527/किमी2 (68,705/मील2) | ||||||
क्षेत्रफल • ऊँचाई (AMSL) |
5.1 km² (2 sq mi) • 225 मीटर (738 फी॰) | ||||||
विभिन्न कोड
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जैसलमेर जिले का भू-भाग प्राचीन काल में ’माडधरा’ अथवा ’वल्लभमण्डल’ के नाम से प्रसिद्ध था। महाभारत के युद्ध के बाद बड़ी संख्या में यादव इस ओर अग्रसर हुए व यहाँ आ कर बस गये। यहाँ अनेक सुंदर हवेलियां और जैन मंदिरों के समूह हैं जो 12वीं से 15वीं शताब्दी के बीच बनाए गए थे।[2]
जैसलमेर का प्रसिद्ध डाकुओ का गांव - राजस्थान के पूर्व महामहिम मुख्यमंत्री श्री जयनारायण व्यास का #सांकङा गांव जैसलमेर से काफी लगाव था #सांकङा वही गांव है जो प्राचीन राजस्थान मे डाकुओ की नगरी के नाम से प्रसिद्ध था यहां के डाकुओ की एक अलग पहचान यह थी कि इन्होने लूट पाट के लिए किसी गरीब निध्रन को नही सताया #आज भी सांकङा मे बना प्राचीन कुंआ डाकुओ की बहादुरी का परिचय दे रहा है किंवदती है कि इस कुए का पानी पीकर हर एक डाकू बन जाता था बाद मे राज्य सरकार ने इस कुंए को बन्द करवा दिया सांकङा मे बसे राठौङ पोकरणा ,सदरानी मेहर, पुरी गोस्वामी, इत्यादि समाजो के पूर्वज ही अधिकतर डाकू हुआ करते थे