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राजस्थान का ज़िला विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
जालौर जिला भारत के राजस्थान राज्य का एक जिला है। इसका मुख्यालय जालौर है।[1][2][3][4]
यह जिला समुद्रतल से 268 मीटर की ऊँचाई पर है।
प्राचीन काल में जालोर को जबलीपुरा के नाम से जाना जाता था - जिसका नाम हिंदू संत जबाली के नाम पर रखा गया।[5] शहर को सुवर्णगिरी या सोंगिर, गोल्डन माउंट के नाम से भी जाना जाता था, जिस पर किला खड़ा है। यह 8 वीं शताब्दी में एक समृद्ध शहर था, और, कुछ ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, 8 वीं -9 वीं शताब्दी में, प्रतिहार की एक शाखा साम्राज्य ने जबलीपुर (जालौर) पर शासन किया।[6] राजा मान प्रतिहार जालोर में भीनमाल शासन कर रहे थे जब परमार सम्राट वाक्पति मुंजा (९-२- ९९ ० ९ ०) ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया - इस विजय के बाद इन विजित प्रदेशों को अपने परमार राजकुमारों में विभाजित किया - उनके पुत्र अरण्यराज परमार को अबू क्षेत्र, उनके पुत्र और उनके भतीजे चंदन परमार को, धारनिवराह परमार को जालोर क्षेत्र दिया गया। इससे भीनमाल पर प्रतिहार शासन लगभग 250 वर्ष का हो गया। [7] राजा मान प्रतिहार का पुत्र देवलसिंह प्रतिहार अबू के राजा महिपाल परमार (1000-1014 ईस्वी) का समकालीन था। राजा देवलसिम्हा ने अपने देश को मुक्त करने के लिए या भीनमाल पर प्रतिहार पकड़ को फिर से स्थापित करने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन व्यर्थ में। वह चार पहाड़ियों - डोडासा, नदवाना, काला-पहाड और सुंधा से युक्त, भीनमाल के दक्षिण पश्चिम में प्रदेशों के लिए बस गए। उन्होंने लोहियाना (वर्तमान जसवंतपुरा) को अपनी राजधानी बनाया। इसलिए यह उपकुल देवल प्रतिहार बन गया। [8] धीरे-धीरे उनके जागीर में आधुनिक जालोर जिले और उसके आसपास के 52 गाँव शामिल थे। देवल ने जालोर के चौहान कान्हाददेव के अलाउद्दीन खिलजी के प्रतिरोध में भाग लिया। लोहियाणा के ठाकुर धवलसिंह देवल ने महाराणा प्रताप को जनशक्ति की आपूर्ति की और उनकी बेटी की शादी महाराणा से की, बदले में महाराणा ने उन्हें "राणा" की उपाधि दी, जो इस दिन तक उनके साथ रहे। [9]
10 वीं शताब्दी में, जालोर पर परमारस का शासन था। 1181 में, कीर्तिपाला, अल्हाना के सबसे छोटे बेटे, [[नादुला के चहमानस] [शासक]] नाडोल के शासक, परमारा वंश से जालौर पर कब्जा कर लिया। और जालौर की चौहानों की चौहानों की जालोर लाइन की स्थापना की। उनके बेटे समरसिम्हा ने उन्हें 1182 में सफलता दिलाई। समरसिम्हा को उदयसिम्हा ने सफल बनाया, जिन्होंने तुर्क से नाडोल और मंडोर पर कब्जा करके राज्य का विस्तार किया। उदयसिंह के शासनकाल के दौरान, जालोर दिल्ली सल्तनत की एक सहायक नदी थी। [10] उदयसिंह चचिगदेव और सामंतसिम्हा द्वारा सफल हुआ था। सामन्तसिंह को उनके पुत्र कान्हड़देव ने उत्तराधिकारी बनाया।
विरम और फिरोजा के संबंध में कहा जाता है कि बादशाह राजा विरम को "पन्नू पहलवान" के साथ "वेनिटी" के खेल के लिए आमंत्रित किया। पराजित करने के बाद पहलवान राजकुमारी फिरोजा को विरम से प्यार हो गया और उसने इसका प्रस्ताव भेजा विवाह, जिसे वीरम ने अस्वीकार कर दिया। इस बादशाह राजा से नाराज होकर अपने सैनिकों के साथ पूरे जालौर को घेर लिया। जालोर का यह पुत्र विरम देव, हेरोस का सबसे बड़ा और पीछे छोड़ दिया गया है मीठी यादें। कान्हड़देव और उनके पुत्र वीरमदेव की जालोर में रक्षा के लिए मृत्यु हो गई. सैकड़ों राजपूत बहादुरों ने अपने देश के लिए जान दे दी है, धर्म और गौरव बहादुर महिलाओं ने बचाने के लिए खुद को आग में डाल लिया है उनका सम्मान के लीये|[11]
जालोर, महाराणा प्रताप (1572-1597) की माँ जयवंता बाई का गृहनगर था। वह अखे राज सोंगरा की बेटी थी। राठौर रतलाम के शासकों ने अपने खजाने को सुरक्षित रखने के लिए जालौर किले का इस्तेमाल किया।
मध्य समय में लगभग 1690 [[जालोर] का शाही परिवार यदु चंद्रवंशी भाटी राजपूत जैसलमेर जालोर आए और अपना राज्य बनाया। उन्हें उमेडाबाद के स्थानीय लोगों द्वारा नाथजी के रूप में भी जाना जाता है। जालोर उनमें से एक दूसरी राजधानी है पहली राजधानी थी जोधपुर अभी भी छतरी जालोर के पूर्वजों के शाही परिवार से भाटी सरदार मौजूद हैं। उन्होंने अपने समय में मुगलों के बाद पूरे जालौर, जोधपुर पर शासन किया, उनके पास केवल उम्मेदबाद था।
[[गुजरात राज्य] गुजरात के तुर्क शासकों ने १६ वीं शताब्दी में जालोर पर कुछ समय के लिए शासन किया और यह मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गया। 1704 में इसे मारवाड़ में बहाल कर दिया गया और 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के तुरंत बाद तक राज्य का हिस्सा बना रहा।
दहिया शासक वराह जिसने यहाँ पर शासन किया। जालोर पर पहले परमार वन्श का शासक था, जिसकी एक पुत्रि थी जिसने दहिया राजपुत से विवाह किया और तब यहाँ दहिया शासक बना। उन्होने १६४ खेडे (गावो) पर शासन किया। उनकी सातवी पीढी के वंशज, मोताजी दहिया, ने गढ बावतरा में ६४ गाव (खेडे) पर शासन किया, जो आज दहियावट्टी के नाम से जानी जाति है।
इसके पश्चात यहां सोनगरा चौहान वंश का शासन स्थापित हुआ। महाराजा कान्हङदेव और वीरमदेव जालोर की धरती के इतिहास में मुख्य स्तंभ माने जाते हैं।*जिला जालौर का विवरण एक नजर में*
जालौर जिले का कुल क्षेत्रफल – 10,640 वर्ग किलोमीटर
नगरीय क्षेत्रफल – 48.43 वर्ग किलोमीटर तथा ग्रामीण क्षेत्रफल – 10,591.57 वर्ग किलोमीटर है।
जालौर जिले की मानचित्र स्थिति – 24°48’5 से 25°48’37” उत्तरी अक्षांश तथा 71°7′ से 75°5’53” पूर्वी देशान्तर है।
जालौर जिले में कुल वनक्षेत्र – 545.68 वर्ग किलोमीटर
जालौर जिले में विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 5 है, जो निम्न है 1.जालौर 2.आहोर 3.भीनमाल 4.सांचौर 5.रानीवाड़ा
उपखण्डों की संख्या – 5
तहसीलों की संख्या – 7
ग्राम पंचायतों की संख्या – 264
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जालौर जिले की जनसंख्या के आंकड़ें निम्नानुसार है —
कुल जनसंख्या—18,28,730
पुरुष—9,36,634, स्त्री—8,92,096
दशकीय वृद्धि दर—26.2%, लिंगानुपात—952
जनसंख्या घनत्व—172, साक्षरता दर—54.9%
पुरुष साक्षरता—70.7%, महिला साक्षरता—38.5% (न्यूनतम)
जालौर जिले में कुल पशुधन – 16,31,175 (LIVESTOCK CENSUS 2012)
जालौर जिले में कुल पशु घनत्व – 153 (LIVESTOCK DENSITY (PER SQ. KM.))
नोट — राजस्थान में न्यूनतम महिला साक्षरता जालौर की है। परन्तु जनगणना 2011 में जालौर जिले की महिला साक्षरता में पुरुषों की अपेक्षा अधिक वृद्धि हुई है। महिला साक्षरता दर वर्ष 2001 में 27.8 प्रतिशत थी जो वर्ष 2011 में बढ़कर 38.5 प्रतिशत हो गई।
जालौर का प्राचीन नाम-जाबालिपुर था। जाबालिपुर नाम महर्षि ”जाबालि” की तपोभूमि होने के कारण कहा जाता है। कहा जाता है कि जालौर का नामकरण यहां पर ”जाल” वृक्षों की अधिकता के कारण किया गया।
अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर का नाम जलालाबाद रखा था।
जालौर में बहने वाली प्रमुख नदियाँ – लूणी, जवाई, सूकड़ी है।
बांकली बाँध सूकड़ी नदी पर सन् 1956 ई. में बनाया गया।
बीठण जलाशय जालौर में है।
नर्मदा नहर परियोजना से राजस्थान में पानी 27 मार्च, 2008 को सीलू गाँव (जालौर) में आया। यह नहर सीलू गाँव से ही राजस्थान में प्रवेश करती है।
राज्य में पहली बार नर्मदा नहर परियोजना पर फव्वारा सिंचाई पद्धति को अनिवार्य रूप से लागू किया गया।
उपनाम-सोनगिरी/सुवर्णगिरी/कांचनगिरी/सोनलगढ़/जालधर दुर्ग/जलालाबाद दुर्ग आदि।
यह दुर्ग सूकड़ी नदी के समीप कनकाचल पहाड़ी पर बना हुआ है। यह दुर्ग पश्चिमी राजस्थान का सबसे प्राचीन व सबसे सुदृढ़ दुर्ग है।
इसके बारे में हसन निजामी ने कहा है, कि यह एक ऐसा किला है, जिसका दरवाजा कोई भी आक्रमणकारी खोल नहीं सका।
इसका निर्माण औझा के अनुसार परमारों ने जबकि दशरथ शर्मा के अनुसार गुर्जर प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम द्वारा करवाया गया।
10वीं शताब्दी में धारावर्ष परमार द्वारा इसका पुन: निर्माण करवाया गया।
इस दुर्ग में चामुण्डा माता व जौगमाया माता का मन्दिर स्थित है।
मल्लिक शाह व अलाउद्दीन खिलजी की मस्जिद इसी दुर्ग में है।
इस दुर्ग में परमार कालीन कीर्ति स्तम्भ स्थित है।
साका—1311 ई. अलाउद्दीन खिलजी की सेना व कान्हड़देव के मध्य दहिया बीका के विश्वासघात के कारण कान्हड़देव ने केसरिया किया एवं उसकी रानी जैतल दे ने जौहर किया।
जालौर दुर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी के हमले का कारण—कान्हड़देव के पुत्र वीरमदेव से अलाउद्दीन की पुत्री फिरोजा प्यार करती थी, लेकिन वीरमदेव उसे नहीं चाहता था। इसे अलाउद्दीन ने अपना अपमान समझा। वीरमदेव ने आशापुरा माता के मन्दिर के सामने आत्महत्या कर ली, खिलजी का सेनापति कमालुद्दीन गुर्ग वीरमदेव की गर्दन काटकर फिरोजा के पास ले गया फिरोजा उस गर्दन के साथ यमुना में कूद गई।
जालौर दुर्ग के बारे में ही कहा जाता है कि — *”राई के भाव रातों में बीत गये”*।
तोप मस्जिद—अलाउद्दीन द्वारा जालौर विजय के उपलक्ष्य में राजा भोज द्वारा बनवाई गई, कण्ठा भरण पाठशाला के स्थान पर।
ढ़ोल नृत्य—पुरुषों द्वारा जालौर में किया जाता है। यह नृत्य थिरकना शैली में मांगलिक अवसरों पर होता है, इस नृत्य को प्रकाश में लाने का श्रेय जयनारायण व्यास को जाता है। इस नृत्य के वाद्य यन्त्र ढोल व थाली होते हैं।
लुंबर नृत्य—जालौर में होली के अवसर पर।
अन्य मेलों में शिवरात्रि मेला, आशापुरी माता जी का मेला, शीतला माता का मेला, सुन्धा माता का मेला तथा पीरजी का उर्स आदि जालौर के प्रमुख मेलें है।
संस्कृत साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान ‘शिशुपालवध’ के रचयिता महाकवि माघ भीनमाल (जालौर) निवासी थे।
9 फरवरी, 2009 को डाक विभाग की ओर से महाकवि माघ पर भीनमाल (जालौर) में डाक टिकट का विमोचन कर जारी किया गया।
‘स्फूट ब्रह्मा सिद्धान्त’ के रचयिता, प्रसिद्ध ज्योतिष ‘ब्रह्मगुप्त’ भी भीनमाल के थे।
राज्य का प्रथम गौ मूत्र बैंक-सांचोर (जालौर)।
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7 वीं सदी में भीनमाल की यात्रा की थी। ह्वेन सांग ने अपने यात्रा वृतांत में भीनमाल का गुर्ज्जरत्रा देश की राजधानी के रूप में उल्लेख किया है।
खेसला उद्योग हेतु प्रसिद्ध —लेटा (जालौर)।
पीले ग्रेनाइट के भण्डार-नसौली (जालौर) में 14 जनवरी 2004 को मिले है।
जालौर प्राचीन व मध्यकालीन काष्ठ कला की कृतियों एवं ग्रेनाइट घड़ी निर्माण के लिए प्रसिद्ध है।
सांचौर की गायें अपनी विशिष्ट नस्ल और दुग्ध उत्पादकता के लिए प्रसिद्ध हैं।
जालौर में बेदाना अनार की खेती भी की जाती है।
सांचौर को अपनी विशेषताऔ के राजस्थान का पंजाब भी कहा जाता है। सांचौर अस्पतालों की बहुतायता ओर क्वालिटी के लिए भी प्रसिद्ध है।
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