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विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
किसी क्षेत्र की सतह या उप-सतह के पानी को प्राकृतिक या कृत्रिम ढंग से हटाना जल निकास कहलाता है। कृषि भूमि के उत्पादन को सुधारने या पानी की आपूर्ति के प्रबंधन के लिए जल निकासी की आवश्यकता पड़ती है।
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प्राचीन सिन्धु सभ्यता की नालियों और जल निकासी की प्रणालियां, जो सम्पूर्ण सभ्यता के दौरान विकसित हुईं और शहरों में प्रयुक्त होती रहीं थी, वे मध्य पूर्व में पाई जाने वाली किसी भी समकालीन शहरी स्थानों से कहीं अधिक उन्नत तथा आज के आधुनिक पाकिस्तान तथा भारत के कुछ क्षेत्रों से कहीं अधिक प्रभावी थी। हड़प्पा और मोहनजो-दड़ो के प्रमुख शहरों के सभी घरों में पानी और नालियों की सुविधाएं थी। अपशिष्ट जल को ढकी हुई नालियों के माध्यम से निकाला जाता था, जो प्रमुख गलियों के साथ साथ बनी हुई थीं।[1]
1881 के हाउसहोल्ड साइक्लोपीडिया से
यह प्रक्रिया वसंत ऋतु या गर्मियों में सबसे अच्छे ढंग से हो पाती है, जब जमीन सूखी होती है। क्षेत्र के प्रत्येक हिस्से में मुख्य नाली बनाई जानी चाहिए जहां पूर्व में क्रॉस कट या खुली हुई नाली की आवश्यकता थी; इनकी औसत गहराई चार फीट (1.2 मीटर) होनी चाहिए। इससे ये घोड़ों या मवेशियों द्वारा रोंदे जाने से होने वाली क्षति से पूरी तरह से सुरक्षित हो जाती हैं और छोटी नालियों से इतनी दूरी पर होने से उनके लिए बारीकी से पानी साफ़ करती हैं। हर स्थिति में, अगर संभव हो सके तो, मुख्य नालियों के लिए पाइप टर्फ अधिक बेहतर हैं। अगर अच्छी कठोर मिट्टी हो तो पाइप टर्फ की एक पंक्ति, यदि रेतीली हो तो पाइप टर्फ की दोहरी पंक्ति देना चाहिए। यदि पाइप टर्फ आसानी से न मिले, तो अवभूमि मजबूत, कठोर मिट्टी होने पर एक अच्छी वेज ड्रेन अधिक बेहतर विकल्प है; लेकिन अवभूमि केवल मामूली रूप से ऐसी हैं, तो थोर्न ड्रेन, जिसके नीचे जोड़ हों, फिर भी बेहतर साबित होगी; और यदि अवभूमि बहुत रेतीली है तो पाइपों के अलावा किसी और विधि द्वारा खेत में सतह के नीचे नालियां बनाने का प्रयास करना व्यर्थ है। यहां इस बात का का उल्लेख करना आवश्यक है कि लंबाई और बहाव की ढाल तथा इसमें प्रवाहित होने वाले पानी की मात्रा के अनुसार मुख्य नाली का आकार निर्धारित किया जाना चाहिए। यद्यपि मुख्य नालियों का बड़ा होना तथा अधिक संख्या में होना सदैव सुरक्षित है, किन्तु लागत के कारण ऐसा शायद ही कभी हो पाता है।
मुख्य नालियां बनाने के पश्चात, यदि पूर्व में टीले 15 फीट (5 मीटर) से कम चौड़े न हों तो खेत की प्रत्येक क्यारी में छोटी नालियां बनाएं. लेकिन यदि ऐसा है तो, पहले टीलों को समतल करें और सबसे अच्छी दिशा में और आवश्यकतानुसार दूरी पर नालियां बनाएं. यदि पानी नालियों के तल में अच्छी तरह से चढ़ता है, वे तीन फीट (1 मीटर) गहरी खोदी जानी चाहिए और ऐसा करने से खेत आसानी से सूखेगा, हालांकि वे अलग अलग पच्चीस से तीस फीट (8 से 10 मीटर) खोदी जानी थीं; किन्तु यदि पानी नालियों के तल में अच्छी तरह से नहीं चढ़ता, तो पाइप ड्रेन के लिए दो फीट (0.6 मीटर) और वेज ड्रेन के लिए ढाई फीट (1 मीटर) की गहराई पर्याप्त है। अगर खेत को पहले से समतल किया गया हो तो किसी भी हालत में वे और खोखली नहीं होनी चाहिए। हालांकि, इस उदाहरण में, क्योंकि नाली के शीर्ष के पानी में डूबने के कारण मुख्यतः सतह का पानी चढ़ता है, नालियों को एक दूसरे के और पास - जैसे कि पन्द्रह से बीस फीट (5 से 6 मीटर) तक बनाने की आवश्यकता होगी। यदि टीले पन्द्रह फीट (5 मीटर) से अधिक चौड़े हैं, चाहे वे कितने भी चौड़े या अनियमित हों, नाली की सर्वोत्तम दिशा के रूप में हमेशा पुरानी क्यारियों की लकीरों का अनुसरण करें; और जहां अधिक संख्या में टीले इकट्ठे हों, पाइप ड्रेन के लिए बीस से चौबीस इंच तथा वेज ड्रेन के लिए चौबीस से तीस इंच की गहराई पर्याप्त होगी। छोटी तथा मुख्य नालियों को आपस में जोड़ने के दौरान विशेष सावधानी बरती जानी चाहिए, जिससे पानी को मुख्य नालियों से एक बाधामुक्त तथा अच्छी ढाल मिल सके।
जब नालियों का काम ख़त्म हो जाता है तो टीलों को हल द्वारा तोड़ दिया जाता है और जहां पूर्व में वे अत्यधिक ऊंचे थे, एक दूसरा प्रयास किया जा सकता है, किन्तु यह बेहतर होगा कि टीलों को बहुत अधिक समतल ना किया जाए, ताकि वे थोडा बहुत अपनी पुरानी अवस्था में रह सकें, जहां नालियां हैं वहां मैदान के निम्नतम स्तर पर होने के कारण सतह का पानी नालियों में ऊपर तक इकठ्ठा होता है और उनमे डूब कर स्वतंत्र रूप से बहता है। खेत में ऐसा करने के बाद, छोटी नालियों के आर पार नए टीले बनाएं, उन्हें दस फीट (3 मीटर) चौड़ा रखें और उसके बाद खेत में उसी तरह से हल चलाएं जैसे शुष्क भूमि पर चलाया जाता है।
जल निकासी की उपरोक्त विधि से यह स्पष्ट है कि खेत में मुख्य नालियों की संख्या, छोटी नालियों के बीच आपस की दूरी और मैदान पर तय की जाने वाली दूरी के अनुसार खर्च में विविधता होगी।
सतह से नीचे नाली बनाने के बहुत अधिक लाभ हैं, इससे ना केवल सालाना अत्यधिक मात्रा में पानी की सुरंग बनाने की लागत, क्रॉस कटिंग इत्यादि की बचत होती है, बल्कि भूमि को भी सुविधानुसार गर्मियों और सर्दियों में जोता और बोया जा सकता है, जो कि इसके बिना काफी अव्यवहार्य है; छेदों द्वारा बोई जाने वाली फसलों की प्रत्येक किस्म जैसी कि बीन्स, आलू, शलगम इत्यादि की सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है और हरी तथा सफ़ेद फसलों की प्रत्येक किस्म के गीले और अप्रिय मौसमों में खराब होने की कम संभावना है।
जहां कहीं भी पानी का एक जल स्रोत किसी विशेष स्थान से प्रकट हो तो इस मुसीबत से छुटकारा पाने का सबसे सुरक्षित व कारगर तरीका सतह से नीचे ऐसे गड्ढों की खुदाई करना है जिसमे कि गिरने वाला पानी इकठ्ठा किया जा सके और जिसमे बौछार या जल स्रोत से निकलने वाली पानी की मात्रा समा सके। निकलने वाले पानी की मात्रा निर्धारित करने, आवश्यक स्तरों को नोट करने और मुहाने या पानी ढोने वाले मार्ग को साफ़ करने के बाद उस प्रमुख मुहाने के बिलकुल पास निकासी शुरू करें और तब तक काम करें जब तक कि बौछार के मुहाने तक न पहुंच जाए, जिससे शायद अपेक्षित वस्तु प्राप्त होगी। लेकिन अगर यह पूरी तरह से ख़त्म न हो तो मुख्य नाली में उतनी संख्या में शाखाएं डालें जितनी पानी को बीच में रोकने के लिए आवश्यक हों और इस प्रकार शायद ही निराशा का अनुभव होगा। परिस्थितियों के अनुसार अधिक उपयोगी बनाने के लिए नालियां शायद ही कभी तीन फीट (1 मीटर) से कम गहरी, बीस या चौबीस इंच तक पत्थर या लकड़ी से भरी होनी चाहिएं. पूर्व में बताई गई सामग्री सर्वोत्तम है, लेकिन कई स्थानों पर ये चीजें पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलती; इसलिए बाद वाली सामग्री का सहारा लेना चाहिए, हालांकि यह अधिक क्रियाशील या टिकाऊ नहीं है।
गड्ढों को खुदाई के साथ-साथ तीव्रता से भरना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि, अगर लंबे समय तक यह खुला रह जाए तो न केवल आस पास की मिट्टी इसके अन्दर गिरेगी बल्कि इसके किनारे भी क्षतिग्रस्त या अनियमित हो सकते हैं जो बाद में पूरी तरह से ठीक नहीं किए जा सकते. सतह की मिट्टी के घुलने मिलने से बचने के लिए सामग्री के ऊपर पुआल या घास युक्त मिट्टी डाल देनी चाहिए और जहां भराव के लिए लकड़ी का प्रयोग किया गया हो, वहां और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है अन्यथा प्रस्तावित सुधार आसानी से निराशाजनक हो सकते हैं।
यदि ध्यान से निष्पादित की जाए तो जल निकासी की पिट विधि बहुत प्रभावी है। जब पानी के स्रोत की उपलब्धता के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है, जो कि एक बरमे की सहायता से बोरिंग करके आसानी से पता की जा सकती है, उस स्थान पर एक ऐसे आकार का गड्ढा बनाएं जहां एक व्यक्ति अपनी सीमा के भीतर काम कर सके। इस गड्ढे को निकलने वाले पानी के स्रोत जितनी गहराई तक खोदें; और जब यह गहराई प्राप्त हो जाए, जिसके बारे में पानी निकलने से पता लग जाता है, तब गड्ढे को बड़े-बड़े पत्थरों से भरें और पानी को एक मज़बूत नाली द्वारा समीपवर्ती गड्ढे या मुहाने तक ले जाएं जहां से इसे निकटतम नदी तक ले जाया जा सकता है।
आधुनिक जल निकासी व्यवस्था में जियोटेक्सटाइल फ़िल्टर होते हैं जो मिट्टी के बारीक कणों को खुद में से गुजरने से रोकते तथा नालियों को बंद होने से बचाते हैं। जियोटेक्सटाइल सिंथेटिक कपड़े हैं जिन्हें नागरिक और पर्यावर्णीय इंजीनियरिंग अनुप्रयोगों के लिए विशेष रूप से निर्मित किया गया है। जियोटेक्सटाइल इस तरह से डिजाइन किये गए हैं कि ये मिट्टी के बारीक कणों को रोक लेते हैं किन्तु पानी को गुजरने देते हैं। एक विशिष्ट जल निकासी व्यवस्था में वे एक संकरे गड्ढे में बिछाए जाएंगे जिसे बाद में मोटी दानेदार सामग्री: बजरी, समुद्री खोल, पत्थर या चट्टानों से भरा जाएगा. इसके बाद जियोटेक्सटाइल को पत्थर के शीर्ष पर मोड़ा जाता है और इसके बाद गड्ढे को मिट्टी से पाट दिया जाता है। भूजल जियोटेक्सटाइल से रिसता है और पत्थर के अन्दर से मुहाने की ओर प्रवाहित होता है। उच्च भू-जल परिस्थितियों में, नाली में पहुंचाए जाने वाले पानी की मात्रा को बढ़ाने के लिए, एक छिद्रित प्लास्टिक (पीवीसी/PVC या पीई/PE) पाइप को नाली के आधार के साथ रखा जाता है।
हरित नाली (ग्रीन ड्रेन)
नाली की सफाई करने के रासायनिक साधनों की अपेक्षा एंजाइम आधारित साधन अधिक सुरक्षित विकल्प हो सकते हैं और इनसे पर्यावरण को कोई नुक्सान नहीं होता। ये साधन बैक्टीरिया या एंजाइमों का प्रयोग करते हैं, जो प्राकृतिक रूप से जैविक अपशिष्ट, जैसे नालियों में अक्सर फंसने वाले बालों या अपशिष्ट खाद्य पदार्थों, पर पलते हैं। इसके बाद ये छोटे जीव कचरे को हज़म करके पूरी सेप्टिक प्रणाली में फिर से फायदेमंद बैक्टीरिया और एंजाइम पैदा करते हैं। वास्तव में, नाली साफ़ करने वाले एंजाइमों का प्रयोग मूल रूप से सेप्टिक टैंकों और मल को साफ़ करने में किया जाता था। एंजाइम आधारित ड्रेन क्लीनर पर्यावरण के लिए बेहतर हैं, क्योंकि वे खतरनाक रसायनों को मिट्टी में रिसने और पानी में फैलने से रोकते हैं। [2].
वैकल्पिक रूप से, एचडीपीई/HDPE से तैयार प्लास्टिक की जल निकासी प्रणाली, जो स्मार्टडिच कहलाती है, व जिसमे अक्सर जियोटेक्सटाइल, नारियल के रेशे और चिथड़ों से बने फ़िल्टर मौजूद होते हैं, पर विचार किया जा सकता है। प्रयोग में आसानी के कारण इन सामग्रियों का उपयोग अब और अधिक सामान्य हो गया है जिससे अब पत्थर की नालियों के ढोने और बिछाने की आवश्यकता ख़त्म हो गई है जो कि निश्चित रूप से कृत्रिम नालियों और कंक्रीट से बने लाइनर की अपेक्षा अधिक महंगी हैं।
पिछले 30 वर्षों में जियोटेक्सटाइल और पीवीसी (PVC) फ़िल्टर सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले मिट्टी को छानने वाले साधन बन गए हैं। कारखाने के नियंत्रित गुणों के साथ इनका उत्पादन करना सस्ता है और इन्हें बिछाना आसान है जो लंबे समय तक यहां तक कि कीचड़ की स्थितियों में भी छानने में सक्षम हैं।
सिएटल की पब्लिक यूटीलिटीज़ ने एक पायलट कार्यक्रम बनाया है जो स्ट्रीट एज अल्टरनेटिव्स (सीईए/SEA स्ट्रीट्ज़) प्रोजेक्ट के नाम से जाना जाता है। परियोजना में एक ऐसी प्रणाली को डिजाइन करने पर ध्यान दिया गया है "जो पारंपरिक पाइप प्रणालियों की बजाए विकास से पहले के प्राकृतिक परिदृश्य की अधिक नक़ल कर सके। [3] सड़कों की विशेषता इसके किनारे बनी नालियां और क्षेत्र के चारों और किया गया पौधारोपण हैं। बिना किसी रुकावट वाले फुटपाथों पर अधिक जोर दिया गया है ताकि पानी सड़कों के किनारे की प्रवेश योग्य सतह पर आसानी से प्रवाहित हो सके। पौधारोपण के कारण शहरी क्षेत्रों का सारा फ़ालतू पानी सीधे जमीन में बिल्कुल नहीं जाता, बल्कि आसपास के वातावरण में भी अवशोषित किया जा सकता है। सिएटल पब्लिक यूटीलिटीज़ द्वारा की गई निगरानी के अनुसार, उन्होंने बताया कि जल निकासी परियोजना से निकलने वाले तूफानी पानी में 99 प्रतिशत कमी आई.[3]
निर्माण परियोजनाओं में जल निकासी के लिए सिविल इंजीनियर या साइट इंजीनियर जिम्मेदार है। वे निर्माण प्रक्रियाओं में शामिल सभी सड़कों, गलियों के गटर, जल निकासी, पुलिया और सीवरों की योजना बनाते हैं। साइट पर निर्माण प्रक्रिया के काम के दौरान वह पूर्व में बताए गए सभी कारकों के लिए आवश्यक स्तर निर्धारित करेगा/करेगी.
साइट इंजीनियर, वास्तुकार और निर्माण प्रबंधकों, पर्यवेक्षकों, योजनाकारों, मात्रा सर्वेक्षकों, सामान्य कार्यबलों तथा उपठेकेदारों (सबकॉन्ट्रेक्टर) के साथ मिलकर काम करते हैं। आमतौर पर, ज्यादातर अधिकार क्षेत्रों में जल निकासी संबंधित नियम होते हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि भूमि मालिक अपने खंड पर किस स्तर तक जल निकासी में बदलाव कर सकता है।
आर्द्रभूमि मिट्टी को कृषि योग्य बनाने के लिए जल निकासी की आवश्यकता हो सकती है। उत्तरी अमेरिका और यूरोप में, हिमाच्छादन के कारण कई छोटी झीलें बन गई हैं जो धीरे-धीरे से ह्यूमस (सड़ी हुई पत्तियों वाली मिट्टी) से भर जाने के बाद दलदल बनाती हैं। इनमे से कुछ को खुली खाइयों और गड्ढों का प्रयोग करके गंदली भूमि (मकलैंड) बनाने के लिए बहा दिया गया था, जिनका प्रयोग मुख्यतः उच्च मूल्य वाली फसलों जैसे कि सब्जियां उगाने के लिए किया जाता है।
दुनिया में इस प्रकार की सबसे बड़ी परियोजना सदियों से नीदरलैंड में चली आ रही है। प्रागैतिहासिक काल में एम्स्टर्डम, हार्लेम और लीडेन के बीच के क्षेत्र दलदली और छोटी झीलों के रूप में थे। टर्फ कटिंग (दलदली/पीट कोयले का खनन), जमीन के धंसने और तटीय रेखा के अपक्षरण के कारण धीरे धीरे एक बड़ी झील बन गई जिसे हार्लेममेर्मीर या हार्लेम की झील के नाम से जाना जाता है। 15वीं सदी में वायुशक्ति से चलने वाले पम्प इंजिनों के अविष्कार ने सिरे की जमीन के कुछ हिस्से पर जल निकासी को संभव बनाया, किन्तु झील की अंतिम जल निकासी के लिए बड़े भाप शक्ति चालित पंपों का डिजाइन बनने और क्षेत्रीय अधिकारियों के बीच समझौतों तक का लंबा समय लगा। झील को हटाने की प्रक्रिया 1849 और 1852 के बीच चली जिससे हजारों वर्ग किलोमीटर नई भूमि का निर्माण हुआ।
तटीय मैदानों और नदी डेल्टाओं में मौसम के अनुसार या स्थाई रूप से उच्च जल सारिणी होनी चाहिए और यदि इनका प्रयोग कृषि के लिए किया जाना है तो इनकी जल निकासी में सुधार अवश्य किया जाना चाहिए। इसका एक उदाहरण फ्लोरिडा का नींबू उगाने वाला क्षेत्र फ़्लैटवुड्स है। लंबी अवधि तक अधिक वर्षा होने के बाद, अधिक गीली मिट्टी में नींबू के पेड़ों को नुकसान से बचाने के लिए जल निकासी पंपों का प्रयोग किया जाता है। चावल के उत्पादन के लिए पानी पर पूरी तरह से नियंत्रण की आवश्यकता है, क्योंकि फसल चक्र के विभिन्न चरणों में खेतों में पानी भरने या निकालने की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार की जल निकासी में भी नीदरलैंड सबसे आगे है, जहां न केवल तट के किनारे की निचली भूमि से जल निकासी की गई, बल्कि मूल राष्ट्र के अत्यंत विशाल बनने तक समुद्र को वास्तव में पीछे धकेला गया।
नम जलवायु में, मिट्टी फसल उगाने के लिए अनुकूल हो सकती है लेकिन अपवादस्वरूप बर्फ के पिघलने या भारी वर्षा के कारण प्रत्येक वर्ष की कुछ अवधि के लिए इसमें जल भराव हो जाता है। वह मिट्टी जो मुख्यतः चिकनी मिट्टी है, पानी को बहुत धीरे धीरे नीचे की ओर जाने देगी, इस बीच पौधों की जडें सांस नहीं ले पाएंगी क्योंकि जड़ों के पास जमा अतिरिक्त पानी मिट्टी में हवा के प्रवाह को रोकता है।
अन्य भूमियों पर हार्डपैन नामक खनिज युक्त मिट्टी की एक अभेद्य परत हो सकती है या खोखली भूमि के नीचे अपेक्षाकृत अभेद्य चट्टानी परतें हो सकती हैं। फलयुक्त वृक्षों के लिए जल निकासी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। भूमि जो वैसे तो उत्कृष्ट हैं, उसमे साल में एक सप्ताह के लिए जल भराव हो सकता है, जो फलयुक्त वृक्षों और प्रतिस्थापन स्थापित होने तक भूमि की उत्पादकता लागत को ख़त्म करने के लिए पर्याप्त समय है। इनमे से प्रत्येक मामले में वार्षिक या बारहमासी फसलों को नुकसान से बचाने के लिए उपयुक्त जल निकासी द्वारा अस्थायी रूप से पानी को बाहर निकला जाता है।
सूखे क्षेत्रों में सिंचाई द्वारा खेती की जाती है और उसमे कोई जल निकासी की आवश्यकता पर विचार नहीं करेगा। हालांकि, सिंचाई के पानी में हमेशा खनिज और लवण मिले होते हैं, जो भाप द्वारा वाष्पित होने से सघन हो कर विषाक्त स्तर तक पहुंच सकते हैं। सिंचित भूमि में मिट्टी की लवणता पर नियंत्रण के लिए समय-समय पर पानी के अत्यधिक बहाव और जल निकासी की आवश्यकता हो सकती है।
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