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भारतीय अभिनेत्री और तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
जयललिता जयराम (तमिल: ஜெ. ஜெயலலிதா; 24 फ़रवरी 1948 – 5 दिसम्बर 2016[3]) भारतीय राजनीतिज्ञ तथा तमिल नाडु की मुख्यमंत्री थीं।[4] वो दक्षिण भारतीय राजनैतिक दल ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्ना द्रमुक) की महासचिव थीं। इससे पूर्व वो 1991 से 1996 , 2001 में, 2002 से 2006 तक और 2011 से 2014,2015 से 2016 तक छह बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं। राजनीति में आने से पहले वो अभिनेत्री थीं और उन्होंने तमिल के अलावा तेलुगू, कन्नड और एक हिंदी तथा एक अँग्रेजी फिल्म में भी काम किया है।[5]
जे.जेयललिता | |
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2015 में जे.जेयललिता | |
पद बहाल 23 मई 2015 – 5 दिसम्बर 2016[1] | |
राज्यपाल | सी० विद्यासागर राव |
पूर्वा धिकारी | ओ॰ पन्नीरसेल्वम |
चुनाव-क्षेत्र | डॉ॰ राधाकृष्णन नगर |
पद बहाल 16 मई 2011 – 27 सितम्बर 2014 | |
पूर्वा धिकारी | करुणानिधि |
उत्तरा धिकारी | ओ॰ पन्नीरसेल्वम[2] |
चुनाव-क्षेत्र | श्रीरंगम |
पद बहाल 2 मार्च 2002 – 12 मई 2006 | |
पूर्वा धिकारी | पन्नीरसेलवम् |
उत्तरा धिकारी | करुणानिधि |
चुनाव-क्षेत्र | अंडीपट्टी |
पद बहाल 14 मई 2001 – 21 सितम्बर 2001 | |
पूर्वा धिकारी | करुणानिधि |
उत्तरा धिकारी | पन्नीरसेलवम् |
चुनाव-क्षेत्र | नहीं लड़ा |
पद बहाल 24 जून 1991 – 12 मई 1996 | |
पूर्वा धिकारी | राष्ट्रपति शासन |
उत्तरा धिकारी | करुणानिधि |
चुनाव-क्षेत्र | बर्गुर |
विपक्ष के नेता, तमिलनाडु विधान सभा | |
पद बहाल 29 मई 2006 – 14 मई 2011 | |
पूर्वा धिकारी | ओ॰ पन्नीरसेल्वम |
उत्तरा धिकारी | विजयकांत |
पद बहाल 9 फरवरी 1989 – 1 दिसंबर 1989 | |
पूर्वा धिकारी | ओ. सुब्रमण्यन |
उत्तरा धिकारी | एस. आर. राधा |
पद बहाल 3 अप्रैल 1984 – 28 जनवरी 1989 | |
पूर्वा धिकारी | सथियावनी मुथु |
उत्तरा धिकारी | ठा. किरुत्तिनन |
चुनाव-क्षेत्र | तमिल नाडु |
पद बहाल 1 जनवरी 1988 – 5 दिसंबर 2016 | |
पूर्वा धिकारी | एम जी रामचन्द्रन |
उत्तरा धिकारी | वीके शशिकला (कार्यवाहक) |
प्रचार सचिव, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम | |
पद बहाल 5 सितम्बर 1985 – 31 दिसम्बर 1987 | |
पार्टी अध्यक्ष | एम. जी. रामचन्द्रन |
महासचिव |
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पद बहाल 28 जनवरी 1983 – 20 अगस्त 1984 | |
पार्टी अध्यक्ष | एम. जी. रामचन्द्रन |
महासचिव | पी. यू. शनमुगम |
जन्म | 24 फ़रवरी 1948 मांडया, मैसूर राज्य, भारत |
मृत्यु | 5 दिसम्बर 2016 68 वर्ष) चेन्नई, तमिल नाडू, भारत | (उम्र
राजनीतिक दल | ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम |
निवास | वेद निलयम, 81/36, पोएस गार्डन, चेन्नई-600 086 |
धर्म | हिंदू |
उपनाम | पुरात्ची थलाइवी, अम्मा, कलाई सेल्वी |
जब वे स्कूल में पढ़ रही थीं तभी उन्होंने 'एपिसल' नाम की अंग्रेजी फिल्म में काम किया। वे 15 वर्ष की आयु में कन्नड फिल्मों में मुख्य अभिनेत्री की भूमिकाएं करने लगी थीं। इसके बाद वे तमिल फिल्मों में काम करने लगीं। 1965 से 1972 के दौर में उन्होंने अधिकतर फिल्में एमजी रामचंद्रन के साथ की।[6]
फिल्मी करियर के बाद उन्होने एम॰जी॰ रामचंद्रन के साथ 1982 में राजनीतिक करियर की शुरुआत की। उन्होंने 1984 से 1989 के दौरान तमिलनाडु से राज्यसभा के लिए राज्य का प्रतिनिधित्व भी किया। वर्ष 1987 में रामचंद्रन का निधन के बाद उन्होने खुद को रामचंद्रन की विरासत का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। वे 24 जून 1991 से 12 मई 1996 तक राज्य की पहली निर्वाचित मुख्यमंत्री और राज्य की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री रहीं। राजनीति में उनके समर्थक उन्हें अम्मा (मां) और कभी कभी पुरातची तलाईवी ('क्रांतिकारी नेता') कहकर बुलाते हैं।[7] 5 दिसम्बर 2016 को रात 11:30 बजे (आईएसटी) इनका निधन हो गया।
जयललिता का जन्म 24 फ़रवरी 1948 को एक 'अय्यर ब्राम्हण' परिवार में, मैसूर राज्य (जो कि अब कर्नाटक का हिस्सा है) के मांडया जिले के पांडवपुरा तालुक के मेलुरकोट गांव में हुआ था। उनके दादा तत्कालीन मैसूर राज्य में एक सर्जन थे। महज 2 साल की उम्र में ही उनके पिता जयराम, उन्हें माँ संध्या के साथ अकेला छोड़ कर चल बसे थे। पिता की मृत्यु के पश्चात उनकी मां उन्हें लेकर बंगलौर चली आयीं, जहां उनके माता-पिता रहते थे। बाद में उनकी मां ने तमिल सिनेमा में काम करना शुरू कर दिया और अपना फिल्मी नाम 'संध्या' रख लिया।[8]
उनकी प्रारंभिक शिक्षा पहले बंगलौर और बाद में चेन्नई में हुई। चेन्नई के स्टेला मारिस कॉलेज में पढ़ने की बजाय उन्होंने सरकारी वजीफे से आगे पढ़ाई की।[9]
अवार्ड | जीते | |
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5[10] | |
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8[11] | |
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5[12] | |
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1[11] | |
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1 [11] | |
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7[13] |
जब वे स्कूल में ही पढ़ रही थीं तभी उनकी मां ने उन्हें फिल्मों में काम करने के लिए राजी कर लिया। विद्यालई शिक्षा के दौरान ही उन्होंने 1961 में 'एपिसल' नाम की एक अंग्रेजी फिल्म में काम किया। मात्र 15 वर्ष की आयु में वे कन्नड़ फिल्मों में मुख्य अभिनेत्री की भूमिकाएं करने लगी। कन्नड भाषा में उनकी पहली फिल्म 'चिन्नाडा गोम्बे' है जो 1964 में प्रदर्शित हुई।[14] उसके बाद उन्होने तमिल फिल्मों की ओर रुख किया। वे पहली ऐसी अभिनेत्री थीं जिन्होंने स्कर्ट पहनकर भूमिका निभाई थी।[15]
तमिल सिनेमा में उन्होंने जाने माने निर्देशक श्रीधर की फिल्म 'वेन्नीरादई' से अपना करियर शुरू किया और लगभग 300 फिल्मों में काम किया। उन्होंने तमिल के अलावा तेलुगु, कन्नड़, अँग्रेजी और हिन्दी फिल्मों में भी काम किया है। उन्होंने धर्मेंद्र सहित कई अभिनेताओं के साथ काम किया,[16] किन्तु उनकी ज्यादातर फिल्में शिवाजी गणेशन और एमजी रामचंद्रन के साथ ही आईं।[15]
अम्मा ने 1982 में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्ना द्रमुक) की सदस्यता ग्रहण करते हुए एम॰जी॰ रामचंद्रन के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। 1983 में उन्हें पार्टी का प्रोपेगेंडा सचिव नियुक्त किया गया। बाद में अंग्रेजी में उनकी वाक क्षमता को देखते हुए पार्टी प्रमुख रामचंद्रन ने उन्हें राज्यसभा में भिजवाया और राज्य विधानसभा के उपचुनाव में जितवाकर उन्हें विधानसभा सदस्य बनवाया।[17][18] 1984 से 1989 तक वे तमिलनाडु से राज्यसभा की सदस्य रहीं। बाद में, पार्टी के कुछ नेताओं ने उनके और रामचंद्रन के बीच दरार पैदा कर दी। उस समय वे एक तमिल पत्रिका में अपने निजी जीवन के बारे में कॉलम लिखती थीं पर रामचंद्रन ने दूसरे नेताओं के कहने पर उन्हें ऐसा करने से रोका। 1984 में जब मस्तिष्क के स्ट्रोक के चलते रामचंद्रन अक्षम हो गए तब जया ने मुख्यमंत्री की गद्दी संभालनी चाही, लेकिन तब रामचंद्रन ने उन्हें पार्टी के उप नेता पद से भी हटा दिया।[19]
वर्ष 1987 में रामचंद्रन का निधन हो गया और इसके बाद अन्ना द्रमुक दो धड़ों में बंट गई। एक धड़े की नेता एमजीआर की विधवा जानकी रामचंद्रन थीं और दूसरे की जयललिता, लेकिन जयललिता ने खुद को रामचंद्रन की विरासत का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।[7]
वर्ष 1989 में उनकी पार्टी ने राज्य विधानसभा में 27 सीटें जीतीं और वे तामिलनाडु की पहली निर्वाचित नेता प्रतिपक्ष बनीं।[7]
25 मार्च 1989 को, जैसा कि पार्टी और विधानसभा में मौजूद सदस्यों के एक वर्ग ने बताया, सत्तारूढ़ द्रमुक पार्टी के सदस्यों और विपक्ष के बीच सदन के भीतर भारी हिंसा के बीच, जयललिता पर सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों द्वारा क्रूरतापूर्वक हमला किया गया था तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणानिधि के कहने पर ।[20][21][22][23][24][25] जयललिता फटी हुई साड़ी में मीडिया के सामने आईं और खुद साथ हुई वारदात की तुलना महाभारत काल की द्रौपदी के चीरहरण से की।[26] स्थिति के चरम पर, जयललिता विधानसभा छोड़ने वाली थीं, उन्होंने "एक मुख्यमंत्री के रूप में" तक विधानसभा में प्रवेश नहीं करने की कसम खाई थी। मीडिया के कुछ वर्गों के बावजूद इसे एक नाटकीयता के रूप में कहा जाता है, इसे जनता से बहुत अधिक मीडिया कवरेज और सहानुभूति प्राप्त हुई।[27][28][29] 1989 के आम चुनावों के दौरान, अन्नाद्रमुक ने कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन किया और उसे एक महत्वपूर्ण जीत सौंपी गई। उनके नेतृत्व में अन्नाद्रमुक ने भी मारुंगपुरी, मदुरै पूर्व और पेरनामल्लूर विधानसभा क्षेत्रों में उप-चुनाव जीते।
वर्ष 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद राज्य में हुए चुनावों में उनकी पार्टी ने कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा और सरकार बनाई। वे 24 जून 1991 से 12 मई 1996 तक राज्य की पहली निर्वाचित मुख्यमंत्री और राज्य की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री रहीं।[6]
वर्ष 1992 में उनकी सरकार ने बालिकाओं की रक्षा के लिए 'क्रैडल बेबी स्कीम' शुरू की ताकि अनाथ और बेसहारा बच्चियों को खुशहाल जीवन मिल सके। इसी वर्ष राज्य में ऐसे पुलिस थाने खोले गए जहां केवल महिलाएं ही तैनात होती थीं।[6]
1996 में उनकी पार्टी चुनावों में हार गई और वे खुद भी चुनाव हार गईं। इस हार के बाद सरकार विरोधी जनभावना और उनके मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर हुये। पहली बार मुख्यमंत्री रहते हुए उनपर कई गंभीर आरोप लगे। उन्होंने कभी शादी नहीं की लेकिन अपने दत्तक पुत्र 'वीएन सुधाकरण' की शादी पर पानी की तरह पैसे बहाए। यह विषय भी इन मामलों का एक हिस्सा रहा।[6][7]
भ्रष्टाचार के मामलों और कोर्ट से सजा होने के बावजूद वे अपनी पार्टी को चुनावों में जिताने में सफल रहीं। हालांकि गंभीर आरोपों के कारण उन्हें इस दौरान काफी कठिन दौर से गुजरना पड़ा, पर 2001 में वे फिर एक बार तमिलनडू की मुख्यमंत्री बनने में सफल हुईं। उन्होंने गैर चुने हुए मुख्यमंत्री के तौर पर कुर्सी संभाल ली। दोबारा सत्ता में आने के बाद उन्होंने लॉटरी टिकट पर पाबंदी लगा दी। हड़ताल पर जाने की वजह से दो लाख कर्मचारियों को एक साथ नौकरी से निकाल दिया, किसानों की मुफ्त बिजली पर रोक लगा दी, राशन की दुकानों में चावल की कीमत बढ़ा दी, 5000 रुपये से ज्यादा कमाने वालों के राशन कार्ड खारिज कर दिए, बस किराया बढ़ा दिया और मंदिरों में जानवरों की बलि पर रोक लगा दी। इसी बीच भ्रष्टाचार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया और उन्हें अपनी कुर्सी अपने विश्वस्त मंत्री ओ॰ पन्नीरसेल्वम को सौंपनी पड़ी। जब उन्हें मद्रास हाईकोर्ट से कुछ आरोपों से राहत मिल गई तो वे मार्च 2002 में फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी सँभाल ली। हालांकि 2004 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद उन्होंने पशुबलि की अनुमति दे दी और किसानों की मुफ्त बिजली भी बहाल हो गई।[7] मई 2006 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में अन्नाद्रमुक का प्रदर्शन खराब रहा, उनकी पार्टी ने 2006 में राज्य के चुनावों में कुल 234 सीटों में से सिर्फ 61 सीटें जीतीं। वह अंदीपट्टी में जीतीं। वह तमिलनाडु विधानसभा की विपक्ष की नेता बनीं। जयललिता ने चौथी बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी जब अन्नाद्रमुक ने 2011 के विधानसभा चुनाव में भारी जीत हासिल की और सत्ता में वापसी की। उन्होंने श्रीरंगम में जीत हासिल की। उनकी सरकार ने अपने व्यापक सामाजिक-कल्याण एजेंडे के लिए ध्यान आकर्षित किया, जिसमें कई सब्सिडी वाले "अम्मा" -ब्रांडेड सामान जैसे (अम्मा कैंटीन, अम्मा बोतलबंद पानी, अम्मा नमक, अम्मा मेडिकल शॉप, अम्मा सीमेंट और अम्मा बेबी केयर किट) शामिल थे। उनके कार्यकाल में तीन साल, उन्हें आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी ठहराया गया था, जिससे उन्हें पद धारण करने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
27 सितंबर 2014 को, जयललिता को बेंगलुरु की विशेष अदालत ने चार साल जेल की सजा सुनाई और ₹100 करोड़ (2020 में ₹136 करोड़ या 18 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर) का जुर्माना लगाया।11 मई 2015 को, कर्नाटक उच्च न्यायालय की एक विशेष पीठ ने अपील पर उसकी सजा को रद्द कर दिया। उस अदालत ने उन्हें और उनके कथित सहयोगियों-शशिकला, उनकी भतीजी इलावरसी, उनके भतीजे और जयललिता के अस्वीकृत दत्तक पुत्र सुधाकरन को बरी कर दिया। बरी होने से उन्हें एक बार फिर से पद संभालने की अनुमति मिली और 23 मई 2015 को, जयललिता ने पांचवीं बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप मे शपथ ली। 2016 के विधानसभा चुनाव में, वह एमजीआर के बाद तमिलनाडु की पहली मुख्यमंत्री बनीं। 1984 में सत्ता में वापस मतदान करने के लिए। उस सितंबर में, वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गई और 75 दिनों के अस्पताल में भर्ती होने के बाद, 5 दिसंबर 2016 को कार्डियक अरेस्ट के कारण उसकी मृत्यु हो गई। [30] वे अपनी राजनीति के शरुआती दोरो में थोड़े विवादों में रही, लेकिन फीर उन्होंने अपने चाहको का बड़ा समुदाय बना लिया।
ब्राह्मण विरोध के रूप में उपजी एआईएडीएमके का नेतृत्व ब्राह्मण नेता जयललिता द्वारा किया गया और सर्वमान्य नेता के रूप में लोग स्वयं आदर में जयललिता को अम्मा कह कर पुकारते थे।[31]
साल | विधानसभा क्षेत्र | परिणाम | वोट प्रतिशत | विपक्षी प्रत्याशी | विपक्षी पार्टी | विपक्ष वोट प्रतिशत |
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1989 | बोधींन्यअक्नूर | जीत | 54.51 | मुथुमनोकरन | डीएमके | 27.27[32] |
1991 | बर्गुर | जीत | 69.3 | टी० राजेंदर | टीएमके | 29.34[33] |
1991 | कंगयम | जीत | 63.4 | एन० एस० राजकुमार मन्द्रादियर | डीएमके | 32.85[34] |
1996 | बर्गुर | हार | 43.54 | इ० जी० सुगावनम | डीएमके | 50.71[33] |
2002 | अंडीपट्टी | जीत | 58.22 | वैगई सेकर | डीएमके | 27.64[35] |
2006 | अंडीपट्टी | जीत | 55.04 | सीमान | डीएमके | 36.29[36] |
2011 | श्रीरंगम | जीत | 58.99 | एन० आनंद | डीएमके | 35.55[37][38] |
2015 | आर० के० नगर | जीत | 88.43 | सी महेंद्रन | सीपीआई | 5.35[39] |
2016 | आर० के० नगर | जीत | 55.87 | शिमला मुथुचोड़न | डीएमके | 33.14[40][41] |
जयललिता को पहली बार मद्रास विश्वविद्यालय से 1991 में डॉक्टरेट की मानद उपाधि मिली और उसके बाद उन्हें कई बार मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया जा चुका है।[42][43][44] वर्ष 1997 में उनके जीवन पर बनी एक तमिल फिल्म 'इरूवर' आई थी जिसमें जयललिता की भूमिका ऐश्वर्या राय ने निभाई थी।[7]
5 दिसम्बर 2016 को चेन्नई अपोलो अस्पताल ने प्रेस नोट जारी कर बताया कि रात 11:30 बजे (आईएसटी) उनका निधन हो गया। जयललिता 22 सितंबर से अपोलो अस्पताल में भर्ती थीं, उन्हें दिल का दौरा पड़ने के बाद आईसीयू में भर्ती कराया गया था।[45] द्रविड़ आंदोलन जो हिंदू धर्म के किसी परंपरा और रस्म में यक़ीन नहीं रखता उससे जुड़े होने के कारण इन्हें दफनाया गया। द्रविड़ पार्टी की नींव ब्राह्मणवाद के विरोध के लिए पड़ी थी। सामान्य हिंदू परंपरा के ख़ि़लाफ़ द्रविड़ मूवमेंट से जुड़े नेता अपने नाम के साथ जातिसूचक उपाधि का भी इस्तेमाल नहीं करते। फिर भी जयललिताजी के जीवनी और आस्था को देखते हुए एक ब्राह्मण पंडीत ने अंतीम विधि करके दफन किया। इनके राजनीतिक गुरु एमजीआर को भी उनकी मौत के बाद दफ़नाया गया था। उनकी क़ब्र के पास ही द्रविड़ आंदोलन के बड़े नेता और डीएमके के संस्थापक अन्नादुरै की भी क़ब्र है, दफ़नाये जाने की वजह को राजनीतिक भी बताया गया। जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके उनकी राजनीतिक विरासत को सहेजना चाहती है, जिस तरह से एमजीआर की है। कथित तौर पर यह भी कहा गया कि इस मामले में जो रस्म अपनाई गई है वो श्री वैष्णव परंपरा से ताल्लुक़ रखती है।[46]
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