आयुर्विज्ञान
मानव शरीर के अध्ययन व उसकी व्याधियों के निदान का विज्ञान / From Wikipedia, the free encyclopedia
आयुर्विज्ञान, (संस्कृत- आयुः+विज्ञान से, अंग्रेजी- Medicine) मरीज (रोगी) की देखभाल, निदान संचालन, प्राग्ज्ञान, रोगों से उनका बचाव (निरोधन व रोकथाम), उपचार, उनके रोग तथा अभिघात (ज़ख्म) का उपशमन एवं उनकी स्वास्थ्य की वृद्धि करने का विज्ञान तथा कला (कार्यान्वन, अभ्यास या उद्यम) है।[1][2] यह वह विज्ञान व कला है जिसका संबंध मानव शरीर को नीरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका शमन करने तथा आयु (निरोगी जीवन) बढ़ाने से है। आयुर्विज्ञान, बीमारीयों की रोकथाम और उपचार द्वारा स्वास्थ्य को बनाए रखने तथा बहाल करने के लिए विकसित विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्यसेवा अभ्यासों को शामिल करती है। समकालीन आयुर्विज्ञान, जैवचिकित्सा विज्ञान , जैवचिकित्सा अनुसंधान, आनुवंशिकी, चिकित्सा प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग, चोट और बीमारी का निदान , उपचार और रोकथाम करने के लिए करती हैं, आम तौर से औषधियों या शल्यक्रिया के माध्यम से परन्तु मनोचिकित्सा, बाहरी स्प्लिन्ट्स (कुशा) और ट्रैक्शन (कर्षण) , चिकित्सा उपकरणों , बायोलॉजिक्स (जीवोत्पाद) और आयनकारी विकिरण जैसे कई विविध उपचारों के माध्यम से भी।[3]
आयुर्विज्ञान का अभ्यास प्रागैतिहासिक काल से किया जाता रहा है, और इस समय के अधिकांश समय में यह एक कला (रचनात्मकता और कौशल का क्षेत्र) थी, जो अक्सर स्थानीय संस्कृति की धार्मिक और दार्शनिक मान्यताओं से जुड़ा होता था। उदाहरण के लिए, एक रोगहारी ओझा, जड़ी-बूटियों का प्रयोग करकेे उपचार के लिए प्रार्थना करेगा, या एक प्राचीन दार्शनिक और चिकित्सक, देहद्रव के सिद्धांतों के अनुसार रक्तपात का प्रयोग करेगा । हाल की शताब्दियों में, आधुनिक विज्ञान के आगमन के बाद से , अधिकांश आयुर्विज्ञान, कला और विज्ञान (दोनों) का एक संयोजन बन गई है (आधारिक और अनुप्रयुक्त दोनों) उदाहरण के लिए, जबकि टांके के लिए सिलाई तकनीक अभ्यास के माध्यम से सीखी गई एक कला है, सिलाई किए जाने वाले ऊतकों में कोशिका और आणविक स्तर पर क्या होता है इसका ज्ञान विज्ञान के माध्यम से उत्पन्न होता है।
आयुर्विज्ञान के पूर्ववैज्ञानिक रूप, जिसे अब पारंपरिक चिकित्सा या लोक चिकित्सा के रूप में जाना जाता है, वैज्ञानिक चिकित्सा के अभाव में आमतौर पर उपयोग किया जाता है, और इस प्रकार इसे वैकल्पिक चिकित्सा कहा जाता है । सुरक्षा और प्रभावकारिता की चिंताओं के साथ वैज्ञानिक चिकित्सा के बाहर वैकल्पिक उपचारों को नीमहकीमी कहा जाता है । प्राचीन सभ्यताएं मनुष्य ने होने वाले रोगों के निदान की कोशिश करती रहे हैं। इससे कई चिकित्सा (आयुर्विज्ञान) पद्धतियाँ विकसित हुई। इसी प्रकार भारत में भी आयुर्विज्ञान पर विकास हुआ जिसमें आयुर्वेद और सिद्ध चिकित्सा प्रणाली प्रमुख हैं, हालांकी जिनका वर्तमान उपयोग वैकल्पिक चिकित्सा के अंतर्गत आता है।