जड़ी-बूटी

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जड़ी-बूटी

जड़ी-बूटी या पाकौषधीयोद्भिज्ज (पाक-औषधीय-उद्भिज्ज) या भेषजोद्भिज्ज (भेषज-उद्भिज्ज) ऐसी वनस्पतियों को कहते हैं जो स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के लिए उपयोगी हों या सुगन्ध आदि प्रदान करती हों। जड़ी-बूटी का विशेष महत्व उनके औषधीय गुण के कारण है। इसका प्रयोग औषधीय रूप में वर्षों से किया जाता रहा है। [1] परन्तु वर्तमान में इस परम्परा में थोड़ा बदलाव आया है। विकास के नाम पर इस परम्परा को प्रभावित करने की भरपूर चेष्टा की गई है। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता जैसे ग्रंथों में जड़ी-बूटियों के बारे में विस्तृत रूप से बताया गया है। जड़ी-बूटी भारत की परम्परागत चिकित्सा पद्धति रही है। [2]

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उद्यान में विभिन्न प्रकार की दिखाई दे रही जड़ी-बूटियाँ का चित्र

कुछ प्रमुख भारतीय जड़ी-बूटियाँ

  • हरीतकी :- आयुर्वेद विशेषज्ञ बताते हैं कि हरीतकी (हर्रे) कई सारी बीमारियों से बचाव और उपचार में काम आता है। इसमें मुख्य रूप से पाचन में सुधार, वेट लॉस, एंटी एजिंग, कब्ज से राहत, डायबिटीज कंट्रोल, ट्यूबरक्लोसिस में फायदेमंद जैसे लाभ शामिल है। इसके अलावा क्रोनिक कफ, एनल फिशर, बवासीर जैसी लगभग सैकड़ों बीमारियों में इसका सेवन फायदेमंद होता है। हरीतकी चूर्ण का सेवन गर्म पानी, शहद या छांछ के साथ मिलाकर किया जाता है।
  • आंवला:- आंवला एक खट्टा फल है जिसका इस्तेमाल आयुर्वेद में कई बीमारी के उपचार और बचाव के लिए किया जाता है। आंवला को मुख्य रूप से बालों और त्वचा से जुड़ी समस्याओं में इस्तेमाल के लिए जाता है। इसके अलावा इसका सेवन मुंह के अल्सर, कब्ज, मोटापा, डायबिटीज, हार्ट डिजीज जैसी कई बीमारियों में फायदेमंद होता है। इसका सेवन चूर्ण या जूस के रूप में कर सकते हैं।
  • अश्वगंधा :- अश्वगंधा को 'आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का राजा' माना जाता है। आयुर्वेद के आचार्य अश्वगंधा को लगभग 3,000 से अधिक वर्षों से कई तरह के शरीरिक और मानसिक बीमारियों के उपचार के लिए इस्तेमाल करते आ रहें हैं।अश्वगंधा यह मूल संस्कृत शब्द है अश्व का अर्थ होता है घोड़ा इस पौधे की जो कच्ची झड़े होते हैं इसमें घोड़े के पेशाब के समान गंध होती है इसी कारण इस पौधे का नाम "अश्वगंधा" रखा गया होगा इसकी सूखी जड़ों में यह गंध बहुत कम हो जाती है अश्वगंधा खाने से कमजोर आदमी भी घोड़े जैसी ताकत वाला बन जाता है अश्वगंधा के बारे में संस्कृत में अनेकों श्लोकों में इसकी सराहना की गई है देश के अलग-अलग क्षेत्रों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है इसका अंग्रेजी नाम विंटर चेरी है और वैज्ञानिक नाम "Withania somnifera" है
  • तुलसी:- तुलसी का एक पौधा है। जिसे धार्मिक मान्यताओं के वजह से लंब समय से पूजा किया जाता रहा है। वहीं, आयुर्वेद में तुलसी के पौधे को कई तरह की बीमारियों से बचाव और उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी की पत्तियां शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करती है। इसके अलावा तुलसी सर्दी-जुकाम, साइनोसाइटिस, राइनाइटिस, स्किन डिजीज, डिप्रेशन, किडनी स्टोन और लंग्स कैंसर से बचाव में फायदेमंद होता है।
  • एलोवेरा:- एलोवेरा को आयुर्वेद की भाषा में घृतकुमारी कहा जाता है। यह त्वचा और बालों को सेहतमंद रखने के अलावा लीवर से जुड़ी समस्याओं में भी फायदेमंद होता है। इसके साथ ही एलोवेरा का सेवन मुंह से दुर्गंध, गालब्लेडर स्टोन, कब्ज, हाई ब्लड शुगर जैसी कई तरह की बीमारियों में लाभकारी साबित हो सकता है।
  • अदरक:- आयुर्वेद विशेषज्ञ बताते हैं कि छोटे से अदरक के टुकड़े को भोजन से पहले नमक के साथ खाने से पाचन संबंधी समस्याएं जैसे कब्ज, गैस, एसिडिटी नहीं होता है। इसके अलावा बवासीर, फिशर, वेट लॉस, ऑस्टियोआर्थराइटिस, डायबिटीज, पीरियड्स क्रैंप, हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी बिमारियों में अदरक का सेवन कारगर साबित होता है। अदरक के फायदे :- पाचन विकार के लिए सांस विकार के लिए स्त्री रोग के लिए वेदना शामक ।
  • सहजन:- सहजन एक पेड़ है जिसके हर एक भाग में औषधीय गुण मौजूद है। आयुर्वेद में सहजन को लगभग 300 बीमारियों के उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
  • दालचीनी:- दालचीनी स्वाद में तीखी-मीठी होती है। यह ऊष्ण, दीपन, पाचक, मुत्रल, कफनाशक, स्तंभक गुणधर्मों वाली जड़ी-बूटी है। यह मन की बेचैनी कम करती है, यकृत के कार्य में सुधार लाती है और स्मरण शक्ति बढ़ाती है। दालचीनी के लाभ :-पाचन विकार के लिएजुकाम के लियेस्त्रीरोग के लिएखाने का स्वाद बढ़ाने के लिए ।
  • करी पत्ता:- कढ़ी पत्ता सुगंधित और बहुमुखी छोटे पत्ते होते हैं जो कि एक साधारण से व्यंजन जैसे उपमा या पोहे को भी अत्यंत स्वादिष्ट बना सकते हैं। कढ़ी पत्ते अपने विशिष्ट स्वाद और रूप से भोजन में विशेष प्रभाव डालते हैं और भारतीय भोजन का एक प्रमुख हिस्सा हैं। करी पत्तों का उपयोग चटनी और चूर्ण बनाने में भी किया जाता है जिन्हें हम चावल, डोसा और इडली इत्यादि के साथ प्रयोग करते हैं। करी पत्ता के लाभ पाचन विकार के लिए स्वस्थ बालों के लिए कोलेस्ट्राल नियंत्रण करने के लिए ।
  • इमली :- इमली भूरे रंग की नाज़ुक फली के अंदर जो मांसल खट्टा फल होता है उसमें टारटारिक एसिड और पेक्टिन समाविष्ट है। आमतौर पर महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में क्षेत्रीय व्यंजनों में एक स्वादिष्ट मसाले के रूप में इमली का प्रयोग किया जाता है। खास तौर पर रसम, सांभर, वता कुज़ंबू , पुलियोगरे इत्यादि बनाते वक्त इमली इस्तेमाल होती है और कोई भी भारतीय चाट इमली की चटनी के बिना अधूरी ही है। यहां तक कि इमली के फूलों को भी स्वादिष्ट पकवान बनाने के उपयोग में लिया जाता है। इमली के फायदे :- पाचन विकार स्कर्वी सामान्य सर्दी को दूर करने के लिए पेचिश जलने पर ।
  • धनिया:- बारिक छोटे टुकड़ों में कटे हुए धनिया के पत्तों को आपके गरम सूप के कटोरे या अपनी पसंदीदा पावभाजी के ऊपर छिड़कने से बहुत लुभावनी महक आती है और इसमें बहुत अधिक पोषक तत्त्व भी होते हैं। इसके पत्ते, उपजी, बीज और जड़ें, प्रत्येक एक अलग स्वाद प्रदान करते हैं। धनिया के फायदे मुँहासे और काले मस्से सिरदर्द अतिसार और एलर्जी मुंह से दुर्गंध और अल्सर ।
  • लहसुन:- लहसुन प्याज की जाति की वनस्पति है। इस वनस्पति में एक तीव्र गंध होती है जिसके कारण इसे एक औषधि का दर्जा दिया गया है। दुनियाभर में लहसुन का उपयोग मसाले, चटनी, सॉस, अचार तथा दवाओं के तौर पर किया जाता है। लहसुन के फायदे सांस के विकार, दमा पाचन विकार उच्च रक्त चाप हृदय रोग कैंसर त्वचा विकार ।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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