चम्पावत
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श्यामलाताल की सुंदरता को देखकर यह अनुभव होता है कि प्राकृतिक स्थलों में शांति और हरितता का अद्वितीय अंबर है। श्यामलाताल, भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित, एक अद्वितीय और प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ तालाब है। यह ताल पर्वतीय इलाके कुमाऊँ जिले के सूखीढांग गाँव के क्षेत्र में स्थित है और इसकी विशेषता उसके शानदार वातावरण और वन्यजीव संरक्षण में है।
चम्पावत Champawat | |
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चम्पावत शहर | |
निर्देशांक: 29.33°N 80.10°E | |
ज़िला | चम्पावत ज़िला |
प्रान्त | उत्तराखण्ड |
देश | भारत |
ऊँचाई | 1615 मी (5,299 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 4,801 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी, कुमाऊँनी |
चम्पावत (Champawat) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चम्पावत ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।[1][2][3]
पहाड़ों और मैदानों के बीच से होकर बहती नदियाँ अद्भुत छटा बिखेरती हैं। चंपावत में पर्यटकों को वह सब कुछ मिलता है जो वह एक पर्वतीय स्थान से चाहते हैं। वन्यजीवों से लेकर हरे-भरे मैदानों तक और ट्रैकिंग की सुविधा, सभी कुछ यहाँ पर है। यह कस्बा समुद्र तल से १६१५ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। चम्पावत कई वर्षों तक कुमाऊँ के शासकों की राजधानी रहा है। चन्द शासकों के किले के अवशेष आज भी चम्पावत में देखे जा सकते हैं।
कुमाऊं के इतिहास में चम्पावत का विशिष्ट स्थान रहा है। गुरुपादुका नामक ग्रन्थ के अनुसार नागों की बहन चम्पावती ने चम्पावत के बालेश्वर मन्दिर के पास तपस्या की थी। उसकी स्मृति में चम्पावती का मन्दिर आज भी बालेश्वर मन्दिर समूह के अंदर स्थित है। वायु पुराण के अनुसार चम्पावती पुरी नागवंशीय नौ राजाओं की राजधानी थी। ७०० ई॰ में बद्रीनाथ की यात्रा पर आये झूसी के चन्द्रवंशी राजपूत सोमचन्द ने स्थानीय राजा ब्रह्मदेव की एकमात्र कन्या 'चम्पा' से विवाह कर इस स्थान को दहेज में प्राप्त किया। अपना राज्य स्थापित कर उन्होंने अपनी रानी के नाम पर ही चम्पावती नदी के तट पर चम्पावत नगर की स्थापना की, और उसके मध्य में 'राजबुंगा' नामक किला बनवाया।
राजा सोमचन्द के बाद उनके पुत्र आत्मचन्द, चन्द वंश के उत्तराधिकारी बने। पश्चात क्रमशः संसार चन्द, हमीर चन्द, वीणा चन्द आदि ने चम्पावत की राजगद्दी संभाली। सोलहवीं शताब्दी आते आते राजा भीष्म चन्द ने राजधानी राज्य के मध्य किसी केन्द्रीय स्थान पर ले जाने का निर्णय किया। भीष्म चन्द के बाद उनके पुत्र बालो कल्याण चन्द ने अपने पिता की इच्छानुसार सन् १५६३ में अपने राज्य का विस्तार करते हुये राजधानी अल्मोड़ा में स्थानान्तरित कर दी। चम्पावत में चन्द राजाओं का राज्यकाल ८६९ वर्षों तक रहा। चन्द काल के समय चम्पावत और कूर्मांचल (काली कुमाऊं) में लगभग दो-तीन सौ घर थे।
ब्रिटिश शासन काल में १८७२ में पौड़ी के साथ-साथ चम्पावत को तहसील का दर्जा दिया गया। तहसील बनने के बाद अंग्रेज अधिकारियों केे इस क्षेत्र में आशियाने बनने लगे। अल्मोड़ा जनपद की इस सीमान्त तहसील को १९७२ में पिथौरागढ़ जनपद में शामिल कर दिया गया। छोटी प्रशासनिक इकाइयों को विकास में सहायक मानने, तथा दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री, मायावती ने १५ सितम्बर १९९७ को चम्पावत को जनपद का दर्जा दे दिया। इस जनपद में पिथौरागढ़ जनपद की चम्पावत तहसील के अतिरिक्त उधमसिंहनगर जनपद की खटीमा तहसील के ३५ राजस्व ग्रामों को भी सम्मिलित किया गया था।
चम्पावत की भौगोलिक स्थिति 29.33°N 80.10°E.[4] पर है। इसकी औसत ऊंचाई है १,६१० मीटर (१,२८९ फीट).
चम्पावत में आवागमन का प्रमुख साधन बसें ही हैं। उत्तराखण्ड परिवहन निगम तथा केमू की बसें चम्पावत को उत्तराखण्ड के विभिन्न नगरों से जोड़ती हैं।
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण चन्द शासन काल में करवाया गया था। इस मंदिर की वास्तुकला बहुत सुन्दर है। ऐसा माना जाता है कि बालेश्वर मंदिर का निर्माण १०-१२ ईसवीं शताब्दी में हुआ था।
इस मंदिर में की गई वास्तुकला बहुत सुन्दर है। यह कुमाऊँ के पुराने मंदिरों में से एक है।
यह सिक्खों के प्रमुख धार्मिक स्थानों में से एक है। यह स्थान चम्पावत से ७२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि सिक्खों के प्रथम गुरू, गुरू नानक जी यहां पर आए थे। यह गुरूद्वारा जहां पर स्थित है वहां लोदिया और रतिया नदियों का संगम होता है। गुरूद्वार परिसर पर रीठे के कई वृक्ष लगे हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि गुरू के स्पर्श से रीठा मीठा हो जाता है। गुरूद्वारा के साथ में ही धीरनाथ मंदिर भी है। बैसाख पूर्णिमा के अवसर पर यहां मेले का आयोजन किया जाता है।
यह पवित्र मंदिर पूर्णागिरी पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर टनकपुर से २० किलोमीटर तथा चम्पावत से ९२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पूरे देश से काफी संख्या में भक्तगण इस मंदिर में आते हैं। इस मंदिर में सबसे अधिक भीड़ चैत्र नवरात्रों (मार्च-अप्रैल) में होती है। यहां से काली नदी भी प्रवाहित होती है जिसे शारदा के नाम से जाना जाता है। यह भारत के 108 शक्तिपीठों में से एक है।
यह जगह चम्पावत से ५६ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके साथ ही यह स्थान स्वामी विवेकानन्द आश्रम के लिए भी प्रसिद्ध है जो कि खूबसूरत श्यामातल झील के तट पर स्थित है। इस झील का पानी नीले रंग का है। यह झील १.५ वर्ग किलोमीटर तक फैली हुई है। इसके अलावा यहां लगने वाला झूला मेला भी काफी प्रसिद्ध है।
यह स्थान नेपाल सीमा पर स्थित है। इस जगह पर काली और सरयू नदियां आपस में मिलती है। पंचेश्वर भगवान शिव के मंदिर के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। काफी संख्या में भक्तगण यहां लगने वाले मेलों के दौरान आते हैं, और इन नदियों में डुबकी लगाते हैं।
यह जगह चम्पावत से ४५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह खूबसूरत जगह वराही मंदिर के नाम से जानी जाती है। यहां बगवाल के अवसर पर दो समूह आपस में एक दूसरे पर पत्थर फेकते हैं। यह अनोखी परम्परा रक्षा बन्धन के अवसर की जाती है।
यह ऐतिहासिक शहर चम्पावत से १४ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान लोहावती नदी के तट पर स्थित है। यह जगह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इसके अलावा यह स्थान गर्मियों के दौरान यहां लगने वाले बुरास के फूलों के लिए भी प्रसिद्ध है, प्रसिद्द मायावती आश्रम (स्वामी विवेकानंद को यहीं आध्यात्मिक शांति की प्राप्ति हुई।) यही पर है।
एबट माउंट बहुत ही खूबसूरत जगह है। इस स्थान पर ब्रिटिश काल के कई बंगले मौजूद है। यह खूबसूरत जगह लोहाघाट से ११ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा यह जगह २००१ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
यह नेपाल बोर्डर {महेंद्र नगर} पर स्थित है, एन.एच.पी.सी का जलविद्युत पावर स्टेशन यहाँ पर है, यहाँ पर सेना की छावनी भी है। यहाँ पर एक फार्म हॉउस है जिसका नाम स्ट्रोंग फार्म हॉउस है । जिसके की मालिक एक ब्रिटिश नागरिक हैं । यहाँ पर स्कूल एवं अनाथालय चलाते हे।
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