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प्रत्येक वर्ष के दौरान केवल दो सत्र ऐसे होते हैं जब ग्रहण हो सकते हैं । इन सत्रों में से प्रत्येक ग्रहण ऋतु है। प्रत्येक ग्रहण ऋतु लगभग 35 दिनों तक रहती है और लगभग छह महीने बाद ही फिर से आती है। इस प्रकार हर साल दो पूर्ण ग्रहण ऋतुएँ होती हैं। ग्रहण ऋतु का कारण चन्द्रमा की कक्षा का तल पृथ्वी की कक्षा के ताल से अलग होना है[1]। प्रत्येक ग्रहण ऋतु में या तो दो या तीन ग्रहण होते हैं। ग्रहण ऋतु के दौरान, सूर्य किसी एक चन्द्रपात के निकट होता है जिससे अगले 35 दिनों में सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी लगभग एक सीध में आ सकें और ग्रहण संभव हो पाए। ग्रहण ऋतु के अतिरिक्त चन्द्रमा की कक्षा और सूर्यपथ (क्रांतिवृत्त) में काफी अंतर होता है और ग्रहण की सम्भावना नहीं होती।
ग्रहण युग (6585.3 दिन) में 38 ग्रहण ऋतुएँ होती हैं।
यदि चन्द्रमा की कक्षा का तल भी पृथ्वी की कक्षा के तल पर ही होता तब हर चंद्रमास में दो ग्रहण होते , हर अमावस्या को सूर्य ग्रहण और हर पूर्णिमा को चन्द्रग्रहण। सभी सूर्य ग्रहण भी एक जैसे ही होते और सभी चंद्र ग्रहण भी एक जैसे ही होते। लेकिन चन्द्रमा और पृथ्वी की कक्षाएँ एक तल में नहीं हैं , तो ग्रहण उन्ही बिन्दुओ पर सम्भव जहाँ पर पृथ्वी और चन्द्रमा की कक्षाएँ एक दुसरे को काटती हैं। इन बिंदुओं को चन्द्रपात कहते हैं। ग्रहण होने के लिए चन्द्रपातों का पृथ्वी और सूर्य को मिलाने वाली रेखा पर के निकट आवश्यक है और ऐसा वर्ष में केवल दो हो बार हो पाता है जब सूर्य चन्द्रपातों के आसपास हो । ग्रहण ऋतु ही ऐसा समय होता है जब सूर्य (पृथ्वी के देखने पर ) किसी एक चन्द्रपात के इतना निकट होता है कि ग्रहण हो सके। ग्रहण ऋतु के दौरान, जब भी पूर्णिमा होगी, चंद्र ग्रहण होगा और जब भी अमावस्या होगी तो सूर्य ग्रहण होगा। यदि सूर्य एक चन्द्रपात के काफी करीब है, तो पूर्ण ग्रहण होगा। प्रत्येक ग्रहण ऋतु 31 से 37 दिनों तक चलती है, और ग्रहण ऋतुएँ लगभग हर 6 महीने में दोहराई जाती हैं। प्रत्येक ग्रहण ऋतु में कम से कम दो ग्रहण होते हैं (एक सूर्य ग्रहण और एक चंद्र ग्रहण , किसी भी क्रम में), और अधिकतम तीन ग्रहण होते हैं । ऐसा इसलिए है क्योंकि पूर्णिमा और अमावस्या के बीच लगभग 15 दिन (एक पखवाड़ा ) है । यदि ग्रहण ऋतु की शुरुआत में ही कोई ग्रहण होता है, तो दो और ग्रहणों के लिए पर्याप्त समय (30 दिन) होता है।
दूसरे शब्दों में, चूँकि ग्रहण ऋतु (औसतन 34 दिन लम्बी ) चंद्रमास से अधिक लम्बी होती है , ग्रहण ऋतु में कम से दो या तीन अमावस्या और पूर्णिमा आएँगी। ग्रहण ऋतु छह महीने कुछ ही कम समय में बार बार आती रहती है (क्रमशः हर 173.31 दिन में ) , ये सूर्य को क्रांतिवृत्त पर एक चन्द्रपात से दूसरे चन्द्रपात तक जाने में लगा समय है । यदि किसी ग्रहण ऋतु का अंतिम ग्रहण कैलेंडर वर्ष की शुरुआत में होता है, तो उस वर्ष में कुल सात ग्रहण होना भी संभव है क्योंकि कैलेंडर वर्ष के अंत तक दो पूर्ण ग्रहण ऋतुओं के लिए समय शेष है, और प्रत्येक ग्रहण ऋतु तीन ग्रहण भी हो सकते है । [2] [3] [4]
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