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खनन
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पृथ्वी के गर्भ से धातुओं, अयस्कों, औद्योगिक तथा अन्य उपयोगी खनिजों को बाहर निकालना खनिकर्म या खनन (mining) हैं। आधुनिक युग में खनिजों तथा धातुओं की खपत इतनी अधिक हो गई है कि प्रति वर्ष उनकी आवश्यकता करोड़ों टन की होती है। इस खपत की पूर्ति के लिए बड़ी-बड़ी खानों की आवश्यकता का उत्तरोत्तर अनुभव हुआ। फलस्वरूप खनिकर्म ने विस्तृत इंजीनियरों का रूप धारण कर लिया है। इसको खनन इंजीनियरी कहते हैं।
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खनन पृथ्वी की सतह के नीचे से खनिजों, धातुओं, और अन्य उपयोगी पदार्थों को निकालने की प्रक्रिया है। यह एक प्राचीन गतिविधि है जो मानव सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है। खनन से प्राप्त सामग्री का उपयोग विभिन्न प्रकार के उत्पादों और बुनियादी ढांचे के निर्माण में किया जाता है।[1]
संसार के अनेक देशों में, जिनमें भारत भी एक है, खनिकर्म बहुत प्राचीन समय से ही प्रचलित है। वास्तव में प्राचीन युग में धातुओं तथा अन्य खनिजों की खपत बहुत कम थी, इसलिए छोटी-छोटी खान ही पर्याप्त थी। उस समय ये खानें 100 फुट की गहराई से अधिक नहीं जाती थीं। जहाँ पानी निकल आया करता था वहाँ नीचे खनन करना असंभव हो जाता था; उस समय आधुनिक ढंग के पंप आदि यंत्र नहीं थे। खनिजो से जुडे संदर्ब(references)-जिन कच्ची धातुओ मे खनिज मिलते है उन्हे अयस्क कहा जाता है। खुदाई करके अयस्क निकलने वाले स्थान को खादान या खान(mine) कहा जाता है।यदि धरातल पर ऊपर-ऊपर से खुदाई की जाए तो उसे उत्खनन (quarrying) कहते है और यदि भू-गर्भ से खनिज प्राप्त किए जाएं तो उस कार्य को खनन (mining )कहते है।