कौसानी
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कौसानी (Kausani) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर ज़िले की गरुड़ तहसील में स्थित एक गाँव है।[1][2]
कौसानी Kausani | |
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ऊपर से नीचे; बायें से दायें : कौसानी में सूर्यास्त, त्रिशूल एवं पंचाचूली चोटियों का दृश्य, अल्मोड़ा-कर्णप्रयाग सड़क, चाय बागान एवं अनासक्ति आश्रम | |
निर्देशांक: 29.844°N 79.603°E | |
देश | भारत |
राज्य | उत्तराखण्ड |
ज़िला | बागेश्वर ज़िला |
तहसील | गरुड़ |
क्षेत्रफल | |
• कुल | 5.2 किमी2 (2.0 वर्गमील) |
ऊँचाई | 1890 मी (6,200 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 2,408 |
भाषा | |
• प्रचलित | हिन्दी, कुमाऊँनी |
समय मण्डल | भामस (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 263639 |
दूरभाष कोड | 05962 |
वाहन पंजीकरण | UK-02 |
पर्वतीय पर्यटक स्थल कौसानी उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जिले से 53 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यह बागेश्वर जिला में आता है। हिमालय की खूबसूरती के दर्शन कराता कौसानी पिंगनाथ चोटी पर बसा है। यहां से बर्फ से ढ़के नंदा देवी पर्वत की चोटी का नजारा बडा भव्य दिखाई देता हैं। कोसी और गोमती नदियों के बीच बसा कौसानी भारत का स्विट्जरलैंड कहलाता है। यहां के खूबसूरत प्राकृतिक नजारे, खेल और धार्मिक स्थल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
यहाँ से बर्फ से ढ़के नंदा देवी पर्वत की चोटी का नजारा बडा भव्य दिखाई देता हैं।
इसे गांधी आश्रम भी कहा जाता है। इस आश्रम का निर्माण महात्मा गांधी को श्रद्धांजली देने के उद्देश्य से किया गया था। कौसानी की सुंदरता और शांति ने गांधी जी को बहुत प्रभावित किया था। यहीं पर उन्होंने अनासक्ति योग नामक लेख लिखा था। इस आश्रम में एक अध्ययन कक्ष और पुस्तकालय, प्रार्थना कक्ष (यहां गांधी जी के जीवन से संबंधित चित्र लगे हैं) और किताबों की एक छोटी दुकान है। यहां रहने वालों को यहां होने वाली प्रार्थना सभाओं में भाग लेना होता है। यह पर्यटक लॉज नहीं है। इस आश्रम से बर्फ से ढके हिमालय को देखा जा सकता है। यहां से चौखंबा, नीलकंठ, नंदा घुंटी, त्रिशूल, नंदा देवी, नंदा खाट, नंदा कोट और पंचचुली शिखर दिखाई देते हैं। प्रार्थना का समय: सुबह 5 बजे और शाम 6 बजे (गर्मियों में शाम 7 बजे)
यह आश्रम सरला आश्रम के नाम से भी प्रसिद्ध है। सरलाबेन ने 1948 में इस आश्रम की स्थापना की थी। सरलाबेन का असली नाम कैथरीन हिलमेन था और बाद में वे गांधी जी की अनुयायी बन गई थी। यहां करीब 70 अनाथ और गरीब लड़कियां रहती है और पढ़ती हैं। ये लड़कियां पढ़ने के साथ-साथ सब्जी उगाना, जानवर पालना, खाना बनाना और अन्य काम भी सीखती हैं। यहां एक वर्कशॉप है जहां ये लड़कियां स्वेटर, दस्ताने, बैग और छोटी चटाइयां आदि बनाती हैं।[3]
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म कौसानी में हुआ था। बस स्टैंड से थोड़ी दूरी पर उन्हीं को समर्पित पंत संग्रहालय स्थित है। जिस घर में उन्होंने अपना बचपन गुजारा था, उसी घर को संग्रहालय में बदल दिया गया है। यहां उनके दैनिक जीवन से संबंधित वस्तुएं, कविताओं का संग्रह, पत्र, पुरस्कार आदि को रखा गया है। समय: सुबह 10.30 बजे से शाम 4.30 तक, सोमवार को बंद
बढि़या किस्म की गिरियाज उत्तरांचल चाय 208 हेक्टेयर में फैले चाय बागानों में उगाई जाती है। ये चाय बागान कौसानी के पास ही स्थित हैं। यहां बागानों में घूमकर और चाय फैक्टरी में जाकर चाय उत्पादन के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यहां आने वाले पर्यटक यहां से चाय खरीदना नहीं भूलते। यहां की चाय का जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कोरिया और अमेरिका में निर्यात किया जाता है।
ज्यादातर लोग यात्रा के दौरान खरीदारी करना पसंद करते हैं और कौसानी में खरीदारी की अत्यधिक अनुशंसा की जाती है। कौसानी हाथ से बुने हुए ऊनी शॉल, स्वेटर, दस्ताने, टोपियों के लिए लोकप्रिय है जिन्हें आप खरीद सकते हैं। साथ ही कुछ पारंपरिक व्यंजन भी आज़मा सकते हैं।
स्टारगेट वेधशाला एक निजी वेधशाला है जो कौसानी मुख्य बाजार से पैदल दूरी पर स्थित है। यह उन लोगों के लिए एक आदर्श स्थान है जिन्हें ब्रह्मांड को जानने में गहरी रुचि है। यहां आप चंद्रमा, ग्रहों, आकाशगंगाओं आदि का पता लगा सकते हैं। यह एस्ट्रोफोटोग्राफी और तारों के निशानों को कैद करने के लिए भी एक बेहतरीन जगह है।
तेहलीहाट (21 किमी) तेहलीहाट का कोट ब्रह्मरी मंदिर देवी दुर्गा के भ्रमर अवतार को समर्पित है जो उन्होंने अरुण नामक दैत्य के वध के लिए लिया था। पर्वत पर विराजमान देवी का मुख्ा उत्तर की ओर है। अगस्त में यहां मेला लगता है। तीन दिनों तक चलने वाले इस मेले में भक्तों की भारी भीड़ होती है।
(42 किमी) बागेश्वर गोमती और सरयु नदी के संगम पर स्थित है। इस मंदिर का परिसर आकर्षण का मुख्य केंद्र है। इसका निर्माण 1602 में लक्ष्मी चंद ने कराया था। मंदिर में स्थापित मूर्तियां 7वीं शताब्दी से लेकर 16वीं शताब्दी के मध्य की हैं। जनवरी में मकर संक्रांति के आस पास लगने वाले उत्तरायणी मेले में बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं। बागेश्वर से कुछ ही दूरी पर नीलेश्वर और भीलेश्वर की पहाडि़यों पर चंडिका मंदिर और शिव मंदिर भी हैं।
यहां आने वाले पर्यटक चाय फैक्टरी के बाहर बने आनंद एंड संस स्टोर से उत्तरांचल चाय ले जाना नहीं भूलते। इसके अलावा यहां का अचार, औषधियां, चोलाई, लाल चावल, शर्बत, जैम और शहद भी मशहूर है। यदि आप कुंमाउनी खाने का स्वाद अपने साथ ले जाना चाहते है तो मुख्य चौराहे के पास बनी दुकानों से मडुए का आटा और गौहत की दाल अपने साथ ले जा सकते हैं। कौसानी वुलन हाउस में हाथ से बनी गर्म टोपियां और कमीजें मिल जाएंगी। जबकि अनासक्ति आश्रम के पास बने कुमाऊं शॉल एंपोरियम में हाथ से बने खूबसूरत शॉल मिलते हैं।
निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर विमानक्षेत्र है।
नजदीकी रेल जंक्शन काठगोदाम है। जहां से बस या टैक्सी द्वारा कौसानी पहुंचा जा सकता है।
दिल्ली के आईएसबीटी आनन्द विहार बस अड्डे से कौसानी के लिए नियमित रूप से बसें चलती हैं। प्रदेश के अन्य जिले से भी बस द्वारा कौसानी जाया जा सकता है। दिल्ली से रूट: राष्ट्रीय राजमार्ग 24 से हापुड़, गजरौली और मुरादाबाद होते हुए रामनगर, राष्ट्रीय राजमार्ग ८७ से रुद्रपुर, हल्द्वानी, काठगोदाम, रानीबाग, भोवाली, खैना्र और सुआलबारी होते हुए अल्मोड़ा, राज्य राजमार्ग से अल्मोड़ा और सोमेश्वर होते हुए कसानी।