कॉन्ड्रीइक्थीज़
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उपास्थिल मत्स्य हनुमुखी मछलियों की वह श्रेणी होती है जिनके भीतरी ढाँचे अस्थियों की बजाय उपास्थि के बने होते हैं। ये धारारेखीय शरीर के समुद्री शिकारी प्राणी हैं तथा इनका अन्तःकंकाल उपास्थिल है। मुख अधर पर स्थित होता है। पृष्ठरज्जु चिरस्थायी होती है। क्लोम छिद्र विभिन्न होते है तथा प्रच्छद से ढके नहीं होते। त्वचा दृढ़ एवं सुक्ष्म पट्टाभ शल्कयुक्त होती है। दाँत पट्टाभ शल्क के रूप में रूपान्तरित और पीछे की ओर मुड़े होते हैं। इनके हनु बहुत शक्तिशाली होते हैं। वायुकोष की अनुपस्थिति के कारण से डूबने से बचने के लिए लगातार तैरते रहते हैं। हृदय दो प्रकोष्ठ वाला होता है, जिसमें एक आलिन्द तथा एक निलय होता है। इनमें से कुछ में वैद्युतिक अंग होते हैं (वैद्युतिक ईल) तथा कुछ में विष दंश होते हैं। ये सब असमतापी जीव हैं, अर्थात् इनमें शरीर का ताप नियन्त्रित करने की क्षमता नहीं होती है। नर तथा मादा भिन्न होते हैं। नर में श्रोणि पक्ष में आलिंगक पाए जाते हैं। निषेचन आन्तरिक होता है तथा अधिकांश जरायुज होते हैं। उदाहरण- श्वानमत्स्य, विशाल श्वेत हांगर। [1]