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महान रामानन्दी संत विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
कृष्णदास पयहारी रामानन्दी संप्रदाय के प्रमुख आचार्य और कवि थे। इनका समय सोलहवीं शती ई. कहा जाता है। ये ब्राह्मण थे और जयपुर के निकट 'गलता' नामक स्थान पर रहते थे और केवल दूध पीते थे और इसी कारण इनका नाम पयहारी अर्थात पय (दूध)+ आहारी पड़ा। ये आमेर के राजा पृथ्वीराज के दीक्षागुरू थे। कहा जाता है कि इन्होंने कापालिक संप्रदाय के गुरु चतुरनाथ को शास्त्रार्थ में पराजित किया था इससे इन्हें महंत का पद प्राप्त हुआ था। ये संस्कृत भाषा के पंडित थे और ब्रजभाषा के कवि थे। ब्रह्मगीता, प्रेमसत्वनिरूप इनके मुख्य ग्रंथ हैं। इनके ब्रजभाषा के अनेक पद प्राप्त होते हैं।[1] [2][3][4]
कृष्णदास पयहारी | |
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भाषा | ब्रजभाषा |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
कहते हैं एक समय पयहारी कृष्णदास की गुफा के सामने बाघ आया तो आपने उसको अतिथि जान, नेवता देकर आतिथ्यधर्म-प्रतिपालनपूर्वक अपना पल (मांस) काटकर दिया। इस प्रकार के प्रसिद्ध यश को आप जग में प्राप्त हुए।
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