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काबुल नदी (पश्तो: کابل سیند, काबुल सीन्द; फ़ारसी: دریای کابل, दरिया-ए-काबुल; अंग्रेज़ी: Kabul River) एक ७०० किमी लम्बी नदी है जो अफ़ग़ानिस्तान में हिन्दु कुश पर्वतों की संगलाख़ शृंखला से शुरू होकर पाकिस्तान के अटक शहर के पास सिन्धु नदी में विलय हो जाती है। काबुल नदी पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान की मुख्य नदी है और इसका जलसम्भर हेलमंद नदी के जलसम्भर क्षेत्र से उनई दर्रे द्वारा विभाजित है। यह अफ़ग़ानिस्तान की काबुल, चहारबाग़ और जलालाबाद शहरों से गुज़रकर तोरख़म से २५ किमी उत्तर में सरहद पार कर के पाकिस्तान में दाख़िल हो जाती है। अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल और उसके इर्द-गिर्द के काबुल प्रान्त का नाम इसी नदी पर पड़ा है।[1]
काबुल नदी की कई उपनदियाँ हैं जिनमें लोगर नदी, पंजशीर नदी, कुनर नदी, आलींगार नदी, बाड़ा नदी और स्वात नदी शामिल हैं। साल के अधिकतर भाग में काबुल नदी में प्रवाह बहुत कम होता है लेकिन गर्मियों में हिन्दु-कुश की पिघलती बर्फ़ से यह भर जाती है। कुनर नदी इसकी सब से बड़ी उपनदी है और यह पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा सूबे के चित्राल ज़िले में स्थित चियांतर हिमानी (ग्लेशियर) में शुरू होती है और फिर दक्षिण की तरफ़ बहकर अफ़ग़ानिस्तान में चली जाती है जहाँ यह नूरिस्तान से आने वाली बाश्गल नदी से मिलती है। जलालाबाद में कुनर नदी का काबुल नदी से संगम होता है। हालांकि कुनर का पानी काबुल नदी से अधिक होता है फिर भी यहाँ से आगे इस मिली-जुली नदी को काबुल नदी ही कहा जाता है क्योंकि 'काबुल' नाम की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राजनैतिक अहमियत ज़्यादा है।[2][3]
काबुल नदी पर कई बाँध बने हुए हैं। काबुल प्रान्त में नग़लू बाँध, नंगरहार प्रान्त में दरुन्ता बाँध और काबुल शहर से पूर्व में स्थित सरोबी बाँध इनमें शामिल हैं। पाकिस्तान में पेशावरसे २० किमी पश्चिमोत्तर में स्थित वरसक बाँध भी इसपर बना एक मुख्य बाँध है।
इतिहास में काबुल नदी का कई जगह ज़िक्र मिलता है।
संस्कृत और प्राचीन अवस्ताई भाषा में इस नदी को 'कुभा' बुलाया जाता था जो आगे चलकर 'काबुल' में परिवर्तित हो गया। इस 'कुभा' शब्द का स्रोत सही मालूम नहीं है लेकिन १९वीं सदी के ब्रिटिश इतिहासकार अलेकज़ैन्डर कनिन्घम (Alexander Cunningham) के अनुसार यह स्किथी भाषा के 'कु' शब्द से आया है, जिसका मतलब 'पानी' था। इस विषय में कहा गया है कि -
“ | कुभा आधुनिक काबुल नदी थी जो अटक से ज़रा उत्तर में सिन्धु में विलय होती है और उस से पहले प्रांग में अपनी स्वात (सुवस्तु) और गौरी उपनदियों से जल लेती है।[4] | ” |
“ | ऋग्वेद के पुराने हिस्सों में भारतीय लोग भारत की पश्चिमोत्तरी सरहद पर बसे हुए मिलते हैं, यानि पंजाब क्षेत्र में और पंजाब से भी आगे कुभा नदी की सीमा पर काबुल में। इन लोगों का इस स्थान से पूर्व की तरफ़ सरस्वती नदी से पार और हिंदुस्तान में गंगा नदी तक फैलना चरण-चरण पर वेदों की बाद की लिखाईयों में देखा जा सकता है।[5] | ” |
प्राचीन यूनानी इतिहासकार आरियान (Arrian) ने अपने 'सिकंदर महान का अभियान और ईरान पर क़ब्ज़े का इतिहास' नामक इतिहास-ग्रन्थ में काबुल नदी को 'कोफ़ेन' (Cophen) का नाम दिया था।[6] इसके आधार पर अन्य यूरोपीय लेखकों ने इस नदी को 'कोफ़ेस' (Cophes) नाम से भी बुलाना शुरू कर दिया था।
अरब लेखक अल बेरुनी ने काबुल नदी को 'ग़ोरवन्द की नदी' बुलाया था।[1]
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