कॉरपोरेट कानून ("कंपनी" या "निगम" कानून) आधुनिक समय का सर्वाधिक प्रभावी प्रकार का व्यवसाय उपक्रम है। कॉरपोरेट कानून शेयरधारियों, निदेशकों, कर्मचारियों, ऋणदाताओं तथा अन्य हिस्साधारियों, जैसे उपभोक्ताओं, समुदायों तथा पर्यावरण फ़र्म के आंतरिक नियमों के तहत एक-दूसरे के बीच की अंतःक्रियाओं का अध्ययन होता है।

कॉरपोरेट कानून विस्तृत कंपनी कानून (या व्यवसाय संघों के कानून) का एक हिस्सा होता है। अन्य प्रकार के व्यवसाय संघों में साझेदारी (अधिकतर कानून फ़र्मों की तरह), या ट्र्स्ट (जैसे कोई पेंशन फ़ंड) अथवा गारंटी द्वारा सीमित कंपनियां (जैसे कुछ विश्वविद्यालयों या चैरिटी) शामिल हो सकती हैं। कॉरपोरेट कानून उस बड़े व्यावसाय के बारे में होता है, जिसका उसके सदस्यों या शेयरधारकों, जो अपने स्टॉकों को निदेशक मंडल के प्रदर्शन के आधार पर खरीदते या बेचते हैं, के प्रति सीमित उत्तरदायित्व या असीमित उत्तरदायित्व वाला पृथक वैध व्यक्तित्व होता है। यह ऐसे फ़र्मों के साथ व्यापार करता है, जो किसी संप्रभु राज्य अथवा उनके उपराष्ट्रीय प्रांतों के कंपनी कानूनों के तहत निगमित अथवा पंजीकृत हों. आधुनिक निगम (कॉरपोरेशन) को परिभाषित करने वाली चार विशिष्टताएं हैं:[1]

  • निगम का पृथक वैध व्यक्तित्व (अभियोग चलाने तथा अपने नाम पर अभियोजित किए जाने का अधिकार, अर्थात् कानून द्वारा कंपनी को एक मनुष्य के रूप में देखा जाना).
  • शेयरधारकों का सीमित उत्तरदायित्व (ताकि यदि कंपनी दिवालिया हो जाए तो वे उन्हीं धन के देनदार होंगे जो उन्होंने शेयर के बदलें में प्राप्त किए हों.)
  • हस्तांतरणीय शेयर (प्रायः किसी सूचीबद्ध एक्सचैज़ के साथ, जैसे लंडन स्टॉक एक्सचैंज़, न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचैंज़ या पैरिस का यूरोनेक्स्ट)
  • प्रदत्त प्रबंधन, अन्य शब्दों में कहें तो कंपनी का नियंत्रण निदेशक मंडल (बोर्ड ऑफ़ डाइरेक्टर्स) के हाथ में रहता है।

अधिकतर विकसित देशों में, अंग्रेजी भाषी देशों को छोड़ कर, कंपनी की रणनीतियों के "सहनिर्धारण" हेतु मंडल (बोर्ड) की नियुक्ति शेयरधारकों तथा कर्मचारियों दोनों द्वारा प्रतिनिधियों के रूप में की जाती है। कॉरपोरेट कानून को प्रायः कॉरपोरेट शासन (जो निगम के भीतर विभिन्न शक्ति संबंधों से जुड़ा होता है) तथा कॉरपोरेट वित्त (जो पूंजी के उपयोग से जुड़ा होता है) में विभाजित किया जाता है।

परिप्रेक्ष्य में कॉरपोरेट लॉ

परिभाषा

“कॉरपोरेशन” शब्द प्रायः सार्वजनिक स्वामित्व वाली बड़ी कंपनियों का पर्याय है। अमेरिका में कोई कंपनी एक पृथक वैध संस्था हो सकती है या नहीं भी हो सकती, तथा प्रायः इसके लिए वहां पर्याय के रूप में “फ़र्म” या “बिज़नेस” का प्रयोग किया जाता है। किसी निगम (कॉरपोरेशन) को सटीक रूप से एक कंपनी कहा जा सकता है; हालांकि किसी ऐसी कंपनी का निगम कहलाया जाना अनिवार्य नहीं होना चाहिए जिसके गुण अलग हों. ब्लैक के कानून शब्दकोश के अनुसार, अमेरिका में एक कंपनी का अर्थ होता है “एक निगम- या अल्प सामान्य रूप से- एक संगठन, साझेदारी या संघ- जो औद्योगिक उपक्रम संचालित करते हों.”[2]

निर्माताजनों के प्रति इसकी कानूनी स्वतंत्रता निगम को परिभाषित करने वाली विशेषता है। यदि कोई निगम असफल होता है, तो इसके शेयरधारक अपने धन खो देंगे और कर्मचारी अपने रोजगार खो बैठेंगे, यद्यपि इसके कामगार, उच्च कार्यकारियों की तुलना में अनुपातहीन रूप से प्रभावित होते है। यद्यपि शेयरधारकों का कंपनी के एक हिस्से पर स्वामित्व होता है, पर वे निगम के ऋणदाताओं की देनदारी वाले उधारों के प्रति जिम्मेदार नहीं होते. इस नियम को सीमित उत्तरदायित्व कहा जाता है, तथा इसलिए कहा जाता है कि निगम के अंत में “लिमिटेड (Ltd)” (या कुछ पर्याय जैसे “इंक” तथा “plc”) जोड़ा जाता है। ब्रिटिश न्यायाधीश, वाल्टन जे के शब्दों में एक कंपनी...

"...केवल एक मनगढ़ंत विधिशास्त्रीय कल्पना है, जिसमें चोट पहुंचाने के लिए कोई शरीर नहीं होता तथा निंदा करने के लिए कोई आत्मा नहीं होती."[3]

पर इसके बावजूद कानून द्वारा निगमों को लोगों की तरह ही अधिकारप्राप्त तथा उत्तरदायित्वों वाला माना जाता है। निगम वास्तविक व्यक्तियों तथा राज्य के विरुद्ध मानवाधिकार लागू कर सकता है,[4] और वे मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए उत्तरदायी भी हो सकते हैं।[5] जिस तरह उनका “जन्म” सदस्यों द्वारा निगम का प्रमाणपत्र प्राप्त करने से होता है, दिवालिया होने पर धन खोने से वे “मृत” भी हो सकते हैं। निगम को आपराधिक उल्लंघनों जैसे धोखाधड़ी तथा नरहत्या के लिए अभियोजित भी किया जा सकता है।[6]

इतिहास

एडवर्ड मैथ्यू वार्ड, टेट गैलेरी द्वारा साऊथ सी बबल का हौगरथियन छवि

यद्यपि कंपनियों के कुछ रूपों को प्राचीन रोम तथा प्राचीन यूनान में मौजूद माना जाता है, पर आधुनिक कंपनी का निकटवर्ती मान्य पूर्वज दूसरी सहस्राब्दि के बाद ही उत्पन्न हुआ। प्रथम मान्य व्यावसायिक संघ मध्यकाल की श्रेणियों के थे, श्रेणी सदस्य श्रेणी के नियमों के पालन के लिए सहमत होते थे, पर सामान्य लाभ वाले उपक्रमों में भाग नहीं लेते थे। संयुक्त व्यावसायिक उपक्रम के प्रारंभिक रूप दरअसल लेक्स मर्कैटोरिया (lex mercatoria) के तहत साझेदारी थे।

पर अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य के विस्तार के साथ यूरोप (प्रमुख रूप से इंगलैंड तथा हॉलैंड) में व्यापारिक उपक्रमों के लिए शाही (रॉयल) अधिकारपत्र की मंजूरी बढ़ती गई। शाही अधिकारपत्र प्रायः व्यापारिक कंपनियों (प्रायः एकाधिकारी के कुछ रूप समेत) को विशेष अधिकार प्रदान करते थे। मूलतः इन संस्थाओं के व्यापारी स्टॉक का व्यापार अपनी जिम्मेदारी पर करते थे, पर बाद में सद्स्य संयुक्त खाते का संचालन करने लगे और नए संयुक्त स्टॉक कंपनी का उदय हुआ।[7]

आरंभिक कंपनियां शुद्ध रूप से आर्थिक उपक्रम हुआ करती थीं; पर बाद में यह अनुभव किया जाने लगा कि संयुक्त स्टॉक रखने का प्रमुख लाभ यह था कि किसी व्यक्ति के ऋण के एवज में कंपनी के स्टॉक को नहीं जब्त किया जा सकता.[8] यूरोप में कंपनी कानून का विकास 17वीं शताब्दी में दो कुख्यात “बुलबुलों” (इंगलैंड में साउथ सी बबल तथा हॉलैंड में ट्युलिप बल्ब बबल) से बाधित हुआ, जिससे कंपनियों का विकास दो प्रमुख न्यायाधिकार क्षेत्र में हुआ, जो एक शताब्दी तक लोकप्रिय रहा।

पर कंपनियां लगभग अनिवार्य रूप से वाणिज्य के अग्र-स्थान पर लौट आईं, यद्यपि इंगलैंड में ‘बबल ऐक्ट-1720’ को धोखा देने के लिए निवेशक अनिगमित संघों के स्टॉक व्यापार (ट्रेडिंग) की ओर लौट आए थे और यह 1825 तक खारिज होने तक रहा। हालांकि, शाही अथिकारपत्र को प्राप्त करने की बोझिल प्रक्रिया मांग के अनुरूप रहने में अपर्याप्त थी। इंग्लैंड में निष्क्रिय कंपनियों के अधिकारपत्रों के व्यवसाय में एक उत्साहपूर्ण व्यापार हुआ। हालांकि कानून के बीच प्रीवैरिकेशन का अर्थ था कि इंग्लैंड में ‘ज्वाइंट स्टॉक कंपनीज़ ऐक्ट- 184' (Joint Stock Companies Act 1844) के बाद ही आधुनिक कंपनियों का पहला समतुल्य, पंजीकरण द्वारा निर्मित हुआ। जल्द ही लिमिटेड लायबिलिटी ऐक्ट 1855 आया, जिसने कंपनी के दिवालिया होने पर उसके सभी शेयरधारकों का उत्तरदायी केवल उनके द्वारा निवेशित पूंजी के प्रति सीमित किया। आधुनिक कंपनी कानून का उदय तब हुआ जब ‘बोर्ड ऑफ़ ट्रेड’ के तात्कालीन उपाध्यक्ष श्री रॉबर्ट लॉ के प्रयास से दोनों कानूनों को ‘ज्वाइंट स्टॉक कंपनीज़ ऐक्ट 1856’ के अंतर्गत लाया गया। जल्द ही कानून ने रेलवे के विकास का मार्ग प्रशस्त किया और तब से निर्मित कंपनियों की संख्या बढ़ने लगी। उन्नीसवी शताब्दी के उत्तरार्ध में मंदी का दौर उत्पन्न हुई और ठीक जैसे कंपनी की संख्या में वृद्धि हुई थी, उसी प्रकार कई कमज़ोर होकर दिवालिया होने लगी। अधिक प्रबल शैक्षिक, कानूनी तथा न्यायिक विचार इस धारणा का विरोधी था कि व्यवसाय के असफल होने पर व्यावसायी उसके प्रति अपनी जिम्मेदारियों से बचकर निकल सकते हैं। कंपनी के इतिहास की आख़िरी प्रगति थी ‘सैलोमन वर्सेस सैलोमन एंड कंपनी '(Salomon v. Salomon & Co) के मामले में ‘हाउस ऑफ़ लॉर्ड’ का निर्णय, जहां ‘हाउस ऑफ़ लॉर्ड’ ने कंपनी की पृथक वैध व्यक्तित्व तथा यह कंपनी के उत्तरदायित्वों का उसके स्वामियों से अलग होने की पुष्टि की थी।

दिसम्बर 2006 के आलेख में, ‘द इकोनोमिस्ट ’ ने संयुक्त स्टॉक कंपनी के विकास को प्रमुख कारण के रूप में चिह्नित किया जिसकी बदौलत पुनर्जागरण के बाद के काल में पश्चिमी वाणिज्य अपने प्रतिद्वंदियों से आगे जा पहुंचा था।[9] निश्चित रूप से आरंभिक औद्योगीकरण को भी कम कर नहीं आंकना चाहिए। [तथ्य वांछित]

कॉर्पोरेट व्यक्तित्व

निगमों की एक प्रमुख कानूनी विशेषता है उनका पृथक वैध व्यक्तित्व का होना, जिसे “पर्सनहुड” या “कृत्रिम व्यक्ति” होना भी कहते हैं। हालांकि अंग्रेजी कानून के तहत पृथक वैध व्यक्तित्व की पुष्टि वर्ष 1895 में ‘हाउस ऑफ़ लॉर्ड’ में सैलोमन वर्सेस सैलोमन एंड कंपनी का मामला आने तक नहीं की गई थी।[10] विशेषकर छोटे पारिवारिक कंपनियों के अर्थ में पृथक वैध व्यक्तित्व के प्रायः अलक्षित परिणाम होते हैं। बी वी. बी [1978] फम 181 के मामले में यह निर्णय दिया गया कि किसी पत्नी का उसके पति के विरुद्ध प्राप्त खोज़ निर्देश (डिस्कवरी ऑर्डर) पति की कंपनी के ख़िलाफ़ प्रभावी नहीं था, क्योंकि आदेश में इसके नाम का उल्लेख नहीं किया गया था और कंपनी उससे पृथक तथा अलग थी।[11] वहीं मकौरा बनाम नॉदर्न अश्योरेंस कंपनी लिमिटेड[12] के मामले में एक बीमा कंपनी के तहत दावा असफल हो गया था, जहां बीमाकृत व्यक्ति ने अपने नाम से पूरी तरह से अपनी स्वामित्व वाली कंपनी को लकड़ी हस्तांतरित किया था तथा कालांतर में यह आग में जल कर नष्ट हो गई; चूंकि संपत्ति अब कंपनी की थी न कि उस व्यक्ति की, इसलिए उसे अब इसकी “बीमा की रुचि” ("insurable interest") नहीं रही और उसका दावा असफल हो गया।

हालांकि पृथक वैध व्यक्तित्व कॉरपोरेट समूहों को कर नियोजन के अर्थ में लोचशील बनाता है, साथ ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों को विदेशों में चल रहे उनके संचालनों के उत्तरदायित्व के प्रबंधन हेतु सक्षम बनाता है। उदाहरण के लिए एडम्स बनाम केप इंडसट्रीज़ पीएलसी[13] मामले में यह निर्णय दिया गया कि एक अमेरिकी अनुषंगी कंपनी के हाथों ऐस्बेस्टस विषाक्तता के शिकार व्यक्ति अंग्रेजी मातृ कंपनी को क्षति पहुंचाने के लिए उसपर मुकदमा नहीं दायर कर सकते. कुछ निश्चित विशिष्ट परिस्थितियां होती हैं, जहां अदालत सामान्यतः मामले को प्रत्यक्ष रूप से देखने के लिए "कॉरपोरेट आड़ को भेदने" के लिए तैयार होती है तथा कंपनी के पीछे के व्यक्तियों पर सीधे रूप से उत्तरदायित्व थोपती है। इसके सर्वाधिक सामान्य उल्लेखित उदाहरण हैं: सबसे अधिक उद्धृत उदाहरण हैं:

  • जहां कंपनी महज़ एक मुखौटा है
  • जहां कंपनी प्रभावी तौर से इसके सदस्यों या नियंत्रकों की महज़ एक एजेंट होती है
  • जहां कंपनी के किसी प्रतिनिधि ने किसी वक्तव्य या कार्यवाही के लिए कुछ व्यक्तिगत उत्तरदायित्व लिया हो[14]
  • जहां कंपनी जालसाजी या अन्य आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो
  • जहां अनुबंध या किसी कानून की स्वाभाविक व्याख्या कॉरपोरेट समूह के लिए एक संदर्भ के रूप में हो न कि किसी विशेष कंपनी के लिए
  • जहां कानून द्वारा अनुमति प्राप्त हो (उदाहरण के लिए जहां कोई कंपनी पर्यावरण सुरक्षा कानूनों का उल्लंघन करती है, कई न्यायाधिकार शेयरधारक हेतु उत्तरदायित्व प्रदान करते हैं)
  • कई न्यायाधिकारों में, जहां कोई कंपनी अपरिहार्य दिवालियापन में भी व्यापार (ट्रेड) करना जाती रखती है, वहां निदेशकों को ट्रेडिंग हानियों के व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होने के लिए बाध्य किया जा सकता है।

क्षमता तथा शक्तियां

कंपनियां चूंकि ऐतिहासिक रूप से कानून के संचालन द्वारा निर्मित कृत्रिम व्यक्ति हैं, कानून सुझाव देता है कि कंपनी क्या कर सकती है अथवा क्या नहीं। प्रायः यह एक व्यावसायिक उद्देश्य था और जिसे कंपनी के उद्देश्य के रूप में माना गया और उद्देश्यों के दायरे को कंपनियों की क्षमता के रूप में देखा जाता है। यदि कोई गतिविधि कंपनी की क्षमता के बाहर हो तो उसे अधिकारातीत (अल्ट्रा वायर्स) तथा रिक्त माना गया।

विशिष्टता के अर्थ में, कंपनी के घटकों को विभिन्न कॉरपोरेट शक्तियों के साथ अभिव्यक्त किया गया। यदि उद्देश्य ऐसी चीज़ें थी जिसे कंपनी करने में सक्षम थी, तब शक्ति का अर्थ वह था जिसके द्वारा वह उन्हें संपन्न कर सकता था। प्रायः शक्तियों की अभिव्यक्ति पूंजी उगाही के तरीके तक ही सीमित थी, यद्यपि आरंभिक समय से ही उद्देश्य तथा शक्तियों के बीच के अंतर ने वकीलों को परेशान किया है।[15] अधिकतर न्यायाधिकारों ने स्थिति को अब कानून द्वारा सुधार लिया है तथा कंपनियों के पास सामान्यतः वे सभी चीज़ें करने की क्षमता है, जो एक स्वाभाविक मनुष्य कर सकता है तथा उनमें इसे किसी भी तरीके से करने की शक्तियां हैं, जिसमें कोई स्वाभाविक मनुष्य इसे कर सकता है।

हालांकि, कॉरपोरेट क्षमता तथा शक्तियों के संदर्भों को कानूनी इतिहास के कूड़ेदान में नहीं डाला गया। तब भी कई न्यायाधिकारों में निदेशक अपने शेयरधारकों के प्रति जिम्मेदार हो सकता है, यदि वे इसके उद्देश्यों के बाहर कंपनी के व्यवसायों में कंपनी को शामिल कर दे, यद्यपि कंपनी तथा तीसरे पक्ष के बीच लेन-देन अभी भी वैध हो। और कई न्यायाधिकार अभी भी “कॉरपोरेट लाभ” की कमी के एवज में लेन-देन को चुनौती देने की अनुमति देते हैं, जहां संबंद्ध लेन-देन में कंपनी के अथवा इसके शेयरधारकों के व्यावसायिक लाभ हेतु कोई संभावना न हो।

कृत्रिम व्यक्ति के रूप में, कंपनियां केवल मानव एजेंटों के जरिए ही काम कर सकती हैं। कंपनी के प्रबंधन तथा व्यवसाय को संभालने वाला मुख्य एजेंट निदेशक मंडल होता है, पर कई न्यायाधिकार क्षेत्रों में अन्य अधिकारियों को भी नियुक्त किया जा सकता है। निदेशक मंडल का चयन सामान्यतः सदस्यों द्वारा तथा अन्य अधिकारियों की नियुक्ति मंडल द्वारा की जाती है। ये एजेंट कंपनी की ओर से तीसरे पक्षों के साथ अनुबंध तैयार करते हैं।

यद्यपि एक सही उद्देश्य हेतु, शक्ति के संचालन के लिए कंपनी के एजेंट कंपनी के प्रति (और अप्रत्यक्ष रूप से शेयरधारकों के प्रति) कर्तव्य निभाते हैं, सामान्य रूप से कहें यदि यह ऐसा स्पष्ट करे कि अधिकारी सही तरह से काम नहीं कर रहे थे तो तीसरे पक्षों के अधिकारों का हनन न हो। तीसरे पक्ष कंपनी द्वारा रखे उसकी ओर से कार्य करने वाले एजेंटों के प्राधिकार पर भरोसा रखेंगे. सामान्य कानून वाले मामले सामान्य नियम का एक मार्ग ‘रॉयल ब्रिटिश बैंक बनाम टर्कैंड ' तक पहुंचता है, जहां सामान्य कानून में यह स्थापित किया गया कि तीसरे पक्ष यह मानने के लिए अधिकृत थे कि कंपनी का आंतरिक प्रबंधन सही प्रकार से संचालित किया जा रहा था और अधिकतर देशों में अब उस नियम को कूटीकृत (कोडिफाइ) कर लिया गया है।

उसी के अनुरूप सामान्यतः कंपनी सभी कार्यों तथा अपने अधिकारियों तथा एजेंटों के भूलों के लिए उत्तरदायी होगी. इसमें लगभग सभी क्षतियां शामिल होंगी, पर कंपनियों द्वारा किए अपराधों से जुड़ा कानून जटिल होता है तथा अलग-अलग देशों में यह उल्लेखनीय रूप से भिन्न-भिन्न होता है।

कॉरपोरेट प्रशासन

कॉरपोरेट प्रशासन प्रमुख रूप से निदेशक मंडल तथा उन्हें चुनने वालों (“आम बैठक” में भाग लेने वाले शेयरधारक तथा कर्मचारी) के बीच की शक्ति संबंधों का अध्ययन है। यह अन्य हिस्सेदारों, जैसे ऋणदाताओं, उपभोक्ताओं, पर्यावरण तथा समग्र रूप से समुदाय से भी जुड़ा होता है। कंपनी के आंतरिक रूप में अलग-अलग देशों के बीच का मुख्य अंतर है दो श्रेणी तथा एक श्रेणी मंडल का होना. युनाइटेड किंगडम, अमेरिका तथा कॉमनवेल्थ के अधिकतर देशों में एकल एकीकृत निदेशक मंडल होता है। जर्मनी में, कंपनियों में दो श्रेणियां होती हैं, ताकि शेयरधारक (तथा कर्मचारी) एक “पर्यवेक्षी मंडल” का चयन कर सके और तब निगरानी मंडल “प्रबंधन मंडल” को चुन सके। फ्रांस तथा नई यूरोपीय कंपनियों (Societas Europea) में दो श्रेणियों के प्रयोग की धारणा है।

हाल के साहित्य, विशेषकर अमेरिका के साहित्य ने कॉरपोरेट प्रशासन की चर्चा प्रबंधन विज्ञान के रूप में करनी शुरु की है। शेयरधारकों या अन्य हिस्सेदारों के लिए प्रभावशाली "कॉरपोरेट लोकतंत्र" की प्राप्ति पर आधारित युद्ध पश्चात के तर्कों के दौरान कई विद्वानों ने कानून की चर्चा प्रधान-एजेंट की समस्याओं के संदर्भ में करनी शुरु कर दी। इस धारणा के आधार पर कॉरपोरेट कानून का मूल मुद्दा है कि जब कोई "प्रधान" पक्ष अपनी संपत्तियों (प्रायः शेयरधारकों की पूंजी, पर कर्मचारियों का श्रम भी) को किसी "एजेंट" (अर्थात, कंपनी का निदेशक) के नियंत्रण में सौंपता है तब एक संभावना रहती है कि प्रमुख की इच्छाओं को पूरा करने की बजाए एजेंट अपने हित में कार्य करेगा और ‘अवसरवादी’ हो जाएगा. इस अवसरवादिता के जोखिम को कम करने के लिए “एजेंसी मूल्य” कॉरपोरेट कानून का केंद्रीय माना जाता है।

कॉर्पोरेट संविधान

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7 नवम्बर 1623 से 2,400 फ्लोरिंस की राशि के लिए डच ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जारी बांड

निगमों के नियम दो स्रोतों से उत्पन्न होते हैं। ये देश के कानून (अमेरिका में प्रायः डेलैवेयर जेनरल कॉरपोरेश लॉ(डीजीसीएल)); यूके में कंपनी ऐक्ट 2006 (सी 2006); जर्मनी में 'एकटिनगेसेट्ज़' (एकेटीजी)(AktG) तथा 'गेसेट्ज़ बेट्रेफेंड डाई गेसेल्सशैफटेन मिट बेशरैंकटर हाफटंग (GmbH-Gesetz, GmbHG)' हैं। कानून यह तय करता है कि कौन-से नियम अनिवार्य हैं तथा किस नियम का उससे अवमूल्यन किया जा सकता है। अवमूल्यन नहीं किए जा सकने वाले महत्वपूर्ण नियमों के उदाहरणों में प्रायः निदेशक मंडलों को नौकरी से बरखास्त करना, कंपनी के प्रति निदेशकों के कर्तव्य, या दिवालियापन के कगार पर पहुंचने पर कंपनी को भंग करना आदि शामिल शामिल होते हैं। ऐसे नियमों जिन्हें कंपनी के सदस्यों को बदलने तथा चयन करने की अनुमति हो, में शामिल हो सकते हैं, आम बैठक की प्रक्रियाओं में किस विधियों का पालन किया जाए, लाभांशों का भुगतान कब किया जाए, संविधान को कितने सदस्य (कानून में तय न्यूनतम संख्या के बाहर) मिलकर बनाएंगे. प्रायः कानून आदर्श धाराओं को तय करेगा, यदि यह किसी विशेष प्रक्रिया पर मूक रहेगा तो उसे निगम का संविधान अपनाएगा.

अमेरिका तथा कुछ अन्य सामान्य नियम वाले देशों ने कॉरपोरेट संविधान को दो पृथक दस्तावेज़ (यूके ने वर्ष 2006 में इससे छुटकारा पा लिया) में विभाजित किया है। संघ का ज्ञापन (मेमोरैंडम ऑफ असोसिएशन) या ‘आर्टिकल्स ऑफ़ इन्कॉर्पोरेशन’ प्राथमिक दस्तावेज़ होता है और यह प्रायः बाहरी दुनिया के साथ कंपनी की गतिविधियों का नियमन करता है यह कंपनी द्वारा पालन किए जाने वाले उद्देश्य (अर्थात “यह कंपनी ऑटोमोबाइल का निर्माण करती है”) को बताता है तथा कंपनी की अधिकृत शेयर पूंजी का उल्लेख करता है। ‘आर्टिकल्स ऑफ़ असोसिएशन’ (या उप-नियम) द्वितीय दस्तावेज़ होता है और सामान्यतः कंपनी के आंतरिक मामलों तथा प्रबंधन का नियमन करता है, जैसे मंडल (बोर्ड) की बैठक की प्रक्रिया, लाभांश का निपटारा इत्यादि. अनियमितता की स्थिति में ज्ञापन-पत्र प्रभावी रहता है[16] तथा अमेरिका में केवल ज्ञापन-पत्र ही सार्वजनिक किया जाता है। नागरिक संहिता न्यायाधिकार में कंपनी का संविधान सामान्यतः एक एकल दस्तावेज़ में केंद्रित हो जाता है, जिसे प्रायः अधिकार-पत्र (चार्टर) कहते हैं

कंपनी के सदस्यों का अतिरिक्त व्यवस्था के साथ कॉरपोरेट संविधान का पूरक होना काफ़ी आम है, जैसे शेयरधारकों का समझौता-पत्र (शेयरहोल्डर्स एग्रीमेंट), जहां वे एक ख़ास तरीके से अपने सदस्यता अधिकार को लागू करने के लिए सहमत होते हैं। संकल्पना के रूप में शेयरधारकों का समझौता-पत्र कॉरपोरेट संविधान की तरह ही कई समान कार्य संपन्न करता है पर क्योंकि यह एक अनुबंध होता है, इसलिए यह सामान्यतः तब तक कंपनी के नए सदस्य को नहीं जोड़ेगा जब तक कि वे इसके लिए किसी रूप में सहमत न हो जाएं.[17] शेयरधारकों के समझौता-पत्र का एक लाभ यह है कि वे प्रायः गोपनीय होते हैं, क्योंकि अधिकतर न्यायाधिकार क्षेत्रों को शेयरधारकों के समझौता-पत्र को सार्वजनिक रूप से दायर करने की ज़रूरत नहीं पड़ती. कॉरपोरेट संविधान के परिपूरन की एक अन्य सामान्य विधि है वोटिंग ट्र्स्ट (voting trusts), हालांकि ये अमेरिका तथा कुछ अपतट न्यायाधिकार-क्षेत्र के बाहर अपेक्षाकृत असामान्य है। कुछ न्यायाधिकार क्षेत्र कंपनी की मुहर को "संविधान" (शब्द के ढीले अर्थ में) का पक्ष मानते हैं पर अधिकतर देशों में मुहर की आवश्यकता कानून द्वारा निरस्त कर दी गई है।

शक्ति संतुलन

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मॉडर्न कॉरपोरेशन और प्राइवेट प्रॉपर्टी में एडॉल्फ बर्ल ने कहा कि कम्पनियों पर स्वामित्व रखने वले निवेशकों से कम्पनियों के नियंत्रण का पृथक्करण अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है और धन के अनुचित वितरण का कारण बना है।

कॉरपोरेट प्रशासन के सबसे महत्वपूर्ण कानून वे हैं जिनका संबंध निदेशक मंडल के सदस्यों एवं कंपनी के सदस्यों के मध्य शक्ति संतुलन से है। निवेशकों के निवेश को सफल बनाने हेतु बोर्ड को कंपनी के संचालन के लिए प्राधिकार सौंपे जाते हैं। कुछ विशेष निर्णय लेने का अधिकार शेयरधारकों के लिए सुरक्षित होता है जहां उनके हित मौलिक रूप से प्रभावित हो सकते हैं। निदेशकों को कार्यमुक्त करने एवं उन्हें स्थानापन्न करने हेतु आवश्यक रूप से कानून बने होते हैं। इसके लिए, इस मुद्दे पर मतदान हेतु बैठक बुलानी पड़ती है। संविधान में संशोधन कितनी सरलता से और किनके द्वारा किया जा सकता है, यह तथ्य आवश्यक रूप से शक्ति संबंधों को प्रभावित करता है।

कंपनी कानून का यह सिद्धांत है कि कंपनी के निदेशकों को प्रबन्धन का अधिकार होता है। यह डीजीसीएल (DGCL) के अधिनियम में बताया गया है जहां §141(a)[18] के अनुसार,

(a) इस अध्याय के तहत संगठित प्रत्येक निगम के व्यवसाय एवं कार्यकलाप एक निदेशक मंडल के निर्देशों के तहत प्रबन्धित होंगे या यदि इस अध्याय में अथवा इसके निगमीकरण प्रमाणपत्र में कुछ दिया गया हो तो वह अपवादस्वरूप होगा.

जर्मनी में, §76 एकेटीजी (AktG) भी प्रबन्धन मंडल के बारे में यही कहता है, जबकि §111 एकेटीजी (AktG) के अंतर्गत पर्यवेक्षण मंडल की भूमिका को निगरानी करने वाली (उबेरवाचेन) (überwachen) बताया गया है। युनाइटेड किंगडम में प्रबन्धन का अधिकार कानून के अंतर्गत नहीं दिया गया है बल्कि यह मॉडल आर्टिकल्स के आर्टिकल-2 में पाया जाता है। इसका अर्थ हुआ कि यह एक डिफॉल्ट कानून है जिसे कंपनियां सदस्यों के लिए अधिकार सुरक्षित कर (s.20 सीए (CA) 2006) से अपना सकती हैं, यद्यपि कम्पनियों द्वारा ऐसा विरले ही किया जाता है। यूके का कानून शेयर धारकों के अधिकार एवं कर्तव्य को खासतौर से बड़ी गैर-नगदी परिसंपत्ति के लेन-देनों की स्वीकृति हेतु सुरक्षित रखता है (s.190 सीए (CA) 2006), जिसका अर्थ ऐसी गैर-नगदी परिसंपत्ति से है जो कंपनी के मूल्य के 10% से अधिक हो अथवा कम से कम £5,000 और अधिकतम £100,000 हो। [19] ऐसे ही कानून, हालांकि काफी कम कठोर, §271 DGCL में एवं तथाकथित होल्ज़मुलर-डोकट्रिन (Holzmüller-Doktrin) के तहत जर्मनी के कानून में भी दिए गए हैं।[20]

संभवतः निदेशकों द्वारा सदस्यों के हित में दी जाने वाली अनिवार्य मौलिक गारंटी यह है कि उन्हें, अर्थात् निदेशकों को, आसानी से हटाया जा सकता है। ग्रेट डिप्रेशन (विकराल मंदी) की दौर में, हार्वर्ड के दो विद्वानों एडोल्फ बर्ल (और गार्डिनर मीन्स ने द मॉडर्न कॉरपोरेशन एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी की रचना कर अमेरिकी कानूनों पर हमला बोला जो निदेशकों को जबावदेह बनाने में असफल थे और साथ ही इस पुस्तक के द्वारा उन्होंने आर्थिक संकट का संबंध निदेशकों की बढ़ती शक्ति एवं स्वायत्तता के साथ जोड़ा. यूके में, s.168 CA 2006 के तहत सदस्यों द्वारा सामान्य बहुमत से निदेशकों को हटाने का अधिकार सुनिश्चित किया गया है[21] इसके अलावा, मॉडल आर्टिकल्स का आर्टिकल-20 के अनुसार निदेशक मंडल के एक तिहाई सदस्यों को प्रतिवर्ष पुनर्मतदान हेतु प्रस्तुत होना पड़ता है (इस तरह उनका एक कार्यकाल अधिकतम तीन वर्षों का होता है). शेयरधारकों की संख्या के 10% द्वारा किसी भी समय बैठक बुलाने की मांग की जा सकती है और यदि पिछली बैठक को एक साल बीत गया हो तो 5% शेयरधारक भी ऐसी मांग कर सकते हैं (s.303 CA 2006). जर्मनी में, जहां कर्मचारियों की भागीदारी के कारण बोर्ड को अधिक स्थाई बनाए जाने की आवश्यकता महसूस की गई है, §84(3) AktG यह व्यवस्था देता है कि प्रबन्धन मंडल के निदेशकों को किसी महत्वपूर्ण कारणवश (ईन विचटाइगर ग्रंड (ein wichtiger Grund)) केवल पर्यवेक्षक मंडल द्वारा ही हटाया जा सकता है, यद्यपि इसमें शेयरधारकों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया जाना भी शामिल है। यदि 75% शेयरधारकों द्वारा निदेशकों के खिलाफ मत न दिया जाए तो उनका कार्यकाल पांच वर्षों का होता है। §122 AktG के अनुसार 10% शेयरधारक बैठक बुलाने की मांग कर सकते हैं। अमेरिका में, डेलावेयर द्वारा निदेशकों को भरपूर स्वायत्तता दी जाती है। §141(k) DGCL के अनुसार, यदि मंडल ‘वर्गीकृत’ न हो तो बिना किसी कारण के निदेशकों को हटाया जा सकता है जिसका अर्थ यह है कि साल दर साल निदेशकों की पुनर्नियुक्ति होती रहती है। यदि मंडल वर्गीकृत हो तो निदेशकों को तब तक नहीं हटाया जा सकता है जब तक कि बड़े पैमाने पर कोई अनियमितता न हो। आगे §216 डीजीसीएल (DGCL) में शेयरधारकों के नजरिये से निदेशकों की स्वायत्तता को देखा गया है जो बहुल मतदान (plurality voting) की अनुमति देता है और §211(d) यह कहता है कि शेयरधारकों के बैठकें केवल तभी बुलाई जा सकती है जब संविधान इसकी इजाजत दे। [22] समस्या यह है कि अमेरिका में कंपनी को निगमीकृत करने का निर्णय सामान्यत: निदेशक लेते हैं और §242(b)(1) डीजीसीएल (DGCL) कहता है कि किसी भी संविधान संशोधन के लिए निदेशकों द्वारा प्रस्ताव दिया जाना चाहिए। इसके विपरीत जर्मनी (§179 AktG) तथा यूके (s.21 सीए (CA) 2006[23]) में 75% शेयरधारकों द्वारा संविधान में किसी भी समय संशोधन किया जा सकता है।

निदेशक के कर्तव्य

अधिकतर न्यायाधिकारों में, निदेशकों के ये कर्तव्य हैं कि वे शेयरधारकों का भरोसा प्राप्त करें, कंपनी एवं उसके सभी सदस्यों के हितों की सुरक्षा की परवाह करें और स्वयं को इस हेतु दक्ष बनाएं.

निदेशक की दक्षता एवं कर्तव्य प्राय: ये हैं कि उनके द्वारा कंपनी के व्यवसाय के बारे में पर्याप्त जानकारी और समझ प्राप्त की जाए ताकि वे अपनी भूमिका अच्छी तरह निभा सकें.

निदेशकों से यह प्रबल अपेक्षा की जाती है कि वे केवल उचित उद्देश्य हेतु ही केवल अपनी शक्तियों का प्रयोग करेंगे। उदाहरण के लिए यदि निदेशक द्वारा पूंजी एकत्र करने की बजाए अधिग्रहण की संभावना से बचने के लिए नए शेयर जारी किए जाएं तो यह एक अनुपयुक्त उद्देश्य होगा। [24]

निदेशकों का कर्तव्य है कि वे दक्ष हों, उन्हें कंपनी के हितों की परवाह हो और वे परिश्रमी हों. यह अधिकार कंपनी को अपने निदेशक से क्षतिपूर्ति पाने का हकदार बनाता है यदि यह साबित हो जाए कि निदेशक में पर्याप्त दक्षता अथवा परवाह नहीं होने के कारण कंपनी को नुकसान हुआ है।

निदेशकों का कर्तव्य यह भी है कि कंपनी के सर्वोत्तम हित में कार्य करने के लिए वे अपने हितों अथवा कर्तव्यों का टकराव न करें। यह नियम इतनी कड़ाई से लागू होता है कि यदि हितों अथवा कर्तव्यों का टकराव पूर्णत: अनुमानिक हो तब भी निदेशकों को इससे प्राप्त व्यक्तिगत लाभ वापस करने हेतु बाध्य किया जा सकता है। अबेरदीन री वर्सेस बलैकी (Aberdeen Ry v. Blaikie)(1854) 1 Macq एचएल (HL) 461 में लॉर्ड क्रैनवर्थ (Lord Cranworth) ने अपने फैसले में कहा कि

“कोई भी कॉरपोरेट निकाय केवल एजेंटों के जरिए चल सकता है और बेशक, यह उन एजेंटों का कर्तव्य है कि यह उन निगमों के हितों को बढ़ावा दें जिनके लिए वे काम कर रहे हों. ऐसे एजेंटों का कर्तव्य अपने स्वामी के प्रति न्यासीय प्रकृति का होता है। और यह सार्वभौमिक रूप से अनुप्रयुक्त होने वाला नियम है कि ऐसे कर्तव्य निभाने वाले व्यक्ति को इस प्रकार के समझौतों में शामिल होने की सहमति नहीं होगी जिसमें उसके किसी निजी हित का टकराव है अथवा होने की संभावना है अथवा उसके हित ऐसे लोगों के हितों से टकरा सकते हैं जिनको उसे सुरक्षा देना है।.. इस सिद्धांत का इतनी कड़ाई से पालन किया जाता है कि संबंधित अनुबंध में सत्यता अथवा असत्यता पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता है।..”

हालांकि बहुत से न्यायाधिकारों के अंतर्गत कंपनी के सदस्यों को ऐसे लेन-देनों की पुष्टि करने की अनुमति होती है जो अन्यथा इस सिद्धांत पर खड़े नहीं उतरते. यह भी बहुत से न्यायाधिकारों में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि इस सिद्धांत को कंपनी के संविधान से हटा दिया जाना चाहिए।

  • स्मिथ वी. वान गोर्कोम (Smith v. Van Gorkom)

कॉरपोरेट वाद

किसी कंपनी के सदस्यों को आमतौर पर एक दूसरे के विरुद्ध एवं कंपनी के विरुद्ध वैसे अधिकार प्राप्त होते हैं जैसे कि कंपनी के संविधान में उल्लेखित होते हैं। जहां तक उनके अधिकारों के प्रयोग का सवाल है, अल्पमत वाले शेयरधारकों को आमतौर पर अपने मतदान अधिकारों के सीमित होने के कारण यह स्वीकार करना पड़ता है कि वे कंपनी के समग्र नियंत्रण में हस्तक्षेप नहीं कर सकते और उन्हें बहुमत के निर्णय (मेजॉरिटी रुल) को मानना पड़ेगा. हालांकि बहुमत का निर्णय अन्यायपूर्ण हो सकता है खासतौर पर जब एक शेयरधारक निर्णायक हो।

इस कारण, बहुमत के निर्णय के सामान्य सिद्धांत के संदर्भ में कई अपवाद विकसित हुए.

  • यदि बहुसंख्यक शेयरधारी अल्पसंख्यक शेयरधारियों के विरुद्ध कोई जालसाजी कर रहे हों तो अदालत द्वारा अल्पसंख्यक शेयरधारियों को वाद दायर करने की अनुमति दी जा सकती है।[25]
  • यदि बहुसंख्यकों द्वारा सदस्यों के व्यक्तिगत अधिकारों का हनन किया जाता है, जैसे यदि कंपनी का कामकाज कंपनी के संविधान के अनुरूप नहीं चलाया जाता है, तो सदस्यों को वाद दायर करने का अधिकार होता है। मैक डोगल बनाम गार्डीनर और पेनडेर बनाम लुशिंगटन इस क्षेत्र में अशाम्य भिन्नताएं प्रस्तुत करते हैं।
  • अनेक न्यायाधिकारों में अल्पसंख्यक शेयरधारकों द्वारा कंपनी के नाम से प्रतिनिधिक अथवा व्युत्पादित कदम उठाना संभव होता है यदि कंपनी आरोपित दोषियों द्वारा नियंत्रित हो।

कॉरपोरेट वित्त

शेयर एवं शेयर पूंजी

कंपनियां आमतौर पर अपने व्यवसाय के लिए ऋण अथवा इक्विटी द्वारा पूंजी एकत्रित करती हैं। इक्विटी के जरिए एकत्र पूंजी आमतौर पर शेयर जारी कर प्राप्त की जाती है (कभी-कभी इसे “स्टॉक” कहते हैं, (यह व्यापार वाला स्टॉक नहीं है)) अथवा इसकी वारंट द्वारा उगाही की जाती है।

शेयर एक प्रकार की परिसंपत्ति है और इसे बेचा या हस्तांतरित किया जा सकता है। शेयर धारण करने से व्यक्ति संबंधित कंपनी का सदस्य बन जाता है और उसे कंपनी के संविधान के अनुसार कंपनी एवं उसके अन्य सदस्यों के संदर्भ में अधिकार प्राप्त होता है। शेयर का एक अंकित मूल्य होता है जो कंपनी के दिवलिया होने की स्थिति में कंपनी के ऋणों की अदायगी में शेयरधारक की देयता की सीमा दर्शाता है।

शेयर आमतौर पर अपने धारक को कुछ अधिकार प्रदान करता है। इन अधिकारों में प्राय: निम्नलिखित शामिल हैं:

  • मतदान अधिकार
  • कंपनी द्वारा घोषित लाभांश में हिस्सा पाने का अधिकार
  • शेयर के विमोचन अथवा कंपनी के तरलीकरण के फलस्वरूप एकत्र पूंजी में से हिस्सा पाने का अधिकार
  • कुछ देशों में शेयरधारकों के पास पूर्वक्रय अधिकार होता है जिसके द्वारा उन्हें भविष्य में कंपनी द्वारा जारी किए जाने वाले शेयरों में भागीदारी करने का अधिकार मिलता है।

बहुत सी कम्पनियों में विभिन्न वर्ग के शेयर होते हैं जो शेयरधारकों को अलग-अलग प्रकार के अधिकार प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए कोई कंपनी साधारण एवं अधिमान शेयर जारी कर सकती है जिनपर मत देने का अधिकार और/अथवा आर्थिक अधिकार अलग-अलग हो सकते हैं। उदाहरण के लिए कंपनी ऐसा प्रावधान कर सकती है कि अधिमान शेयरों के धारक को प्रतिवर्ष एक निश्चित राशि का संचयित अधिमत लाभांश प्राप्त होगा, जबकि साधारण शेयरधारकों के लिए ऐसा नहीं होगा।

कंपनी द्वारा जारी किए गए शेयरों की कुल संख्या उसकी पूंजी को दर्शाती है। अनेक न्यायाधिकारों द्वारा कंपनी के स्वामित्व में रह सकने वाली पूंजी की न्यूनतम राशि को विनियमित करती है यद्यपि कुछ देशों में केवल कुछ खास प्रकार के व्यवसायों में शामिल कम्पनियों की न्यूनतम पूंजी की राशि को ही तय किया जाता है (उदाहरण के लिए बैंकिंग, बीमा इत्यादि).

इसी प्रकार अधिकतर न्यायाधिकार पूंजी के रख-रखाव का विनियमन करते हैं और कम्पनियों द्वारा शेयरधारकों को उस स्थिति में वितरण के द्वारा धन वापस करने पर रोक लगाता है जब इस कारण कंपनी के वित्तीय रूप से खस्ताहाल होने की संभावना होती है। कुछ न्यायाधिकारों में शेयरधारक को यह अधिकार होता है कि वह निराश छोटे शेयरधारकों के शेयर को अच्छी कीमत पर खरीदे.

तरलीकरण

तरलीकरण ऐसी सामान्य विधि है जिसके द्वारा कंपनी के अस्तित्व को समाप्त किया जाता है। कुछ न्यायाधिकार क्षेत्र में इसे (वैकल्पिक रूप से अथवा साथ-साथ) ठप्प होने (वाइन्डिंग अप) तथा/या भंग करने (डिजॉल्यूशन) के नाम से भी जाना जाता है।

तरलीकरण सामान्यतः दो प्रकार के होते हैं, अनिवार्य तरलीकरण (कभी-कभी इसे ऋणदाता का तरलीकरण कहा जाता है तथा स्वैच्छिक तरलीकरण (कभी-कभी इसे सदस्यों का तरलीकरण कहा जाता है, यद्यपि दिवालिया हो जाने पर एक स्वैच्छिक तरलीकरण का नियंत्रण ऋणदाता द्वारा भी किया जाएगा तथा इसे सही रूप में ऋणदाता का स्वैच्छिक तरलीकरण कहते हैं।)

जैसा कि नाम से निर्दिष्ट होता है, अनिवार्य तरलीकरण के लिए आवेदन सामान्यतः कंपनी के ऋणदाताओं द्वारा कंपनी के निजी उधारों को चुकाने में अक्षम होने पर किया जाता है। हालांकि, कुछ न्यायाधिकार क्षेत्रों में नियामकों के पास लोक हित के आधार पर कंपनी के तरलीकरण हेतु आवेदन की शक्ति होती है अर्थात जहां कंपनी को अवैध आचार या ऐसे आचार में लिप्त माना जाता है जो कुल मिलाकर लोगों के लिए हानिकारक हो।

स्वैच्छिक तरलीकरण तब होता है जब कंपनी के सदस्य स्वैच्छिक रूप से कंपनी के काम-काज को बंद करना चाहते हैं। ऐसा होने का कारण यह हो सकता है कि उन्हें यह भरोसा हो गया हो कि कंपनी जल्द ही दिवालिया होने वाली है अथवा इसका कोई आर्थिक आधार भी हो सकता है, यदि उन्हें यह लगे कि जिस उद्देश्य से कंपनी का निर्माण हुआ था वह पूरा हो गया है अथवा यह कि कंपनी द्वारा परिसंपत्तियों पर पर्याप्त लाभ की प्राप्ति नहीं हो रही है और इसलिए इसे भंग कर बेच दिया जाना चाहिए।

कुछ न्यायाधिकारों में इस बात की भी अनुमति होती है कि सही और उचित आधारों पर कंपनियों को भंग किया जा सकता है।[26] आमतौर पर कंपनियों के सही और उचित आधार पर भंग करने के लिए आवेदन कंपनी के किसी ऐसे सदस्य द्वारा दिया जाना चाहिए जो यह आरोप लगाए कि कंपनी का काम-काज पूर्वाग्रहपूर्ण तरीके से चलाया जा रहा है और वह अदालत से कंपनी के अस्तित्व को खत्म करने का अनुरोध करे. स्पष्ट कारणों से, अनेक देशों में अदालत केवल एक सदस्य की निराशा के आधार पर कंपनियों को भंग करने में अनिच्छुक रही हैं, चाहे सदस्य की शिकायत के कितने ही अच्छे आधार क्यों न हों. इसी प्रकार, सही एवं उचित आधार पर कंपनी को भंग करने की अनुमति देने वाले अनेक न्यायाधिकार अदालत को अन्य उपाय लागू करने की भी अनुमति देते हैं, जैसे कि निराश अल्पसंख्यक शेयरधारियों के शेयर का उचित मूल्य पर बहुसंख्यक शेयरधारक/शेयरधारकों द्वारा क्रय किया जाना.

जब कोई कंपनी तरलीकरण की स्थिति में चली जाती है तब आमतौर पर एक परिसमापक की नियुक्ति कंपनी के संपूर्ण परिसंपत्ति को एकत्र करने एवं कंपनी के विरुद्ध सभी दावों के निपटारे के लिए की जाती है। कंपनी के सारे ऋण चुकता हो जाने के बाद यदि कोई अतिरेक राशि बचती है तो इसे सदस्यों में वितरित कर दिया जाता है।

अंदरूनी व्यापार

निगम जीवन और मृत्यु

कॉर्पोरेट अपराध

  • कॉर्पोरेट मानवहत्या और कॉर्पोरेट होमिसाईड अधिनियम 2007

विलय और अभिग्रहण

  • पुनर्निर्माण (कानून)

कॉर्पोरेट दिवालियापन

  • कॉर्पोरेट बचाव और कॉर्पोरेट दिवालियापन जर्नल

इन्हें भी देखें

निगम कानून
  • यूनाइटेड किंगडम कंपनी कानून और कंपनीज एक्ट 2006
  • संयुक्त राज्य अमेरिका कंपनी कानून, डेलावेयर जनरल निगम कानून और मॉडल व्यापार निगम एक्ट
  • जर्मन कंपनी कानून, Aktiengesetz (AktG) and the Gesetz betreffend die Gesellschaften mit beschränkter Haftung (GmbH-Gesetz, GmbHG)
  • यूरोपीय कंपनी के संविधि और सोसाइटस यूरोपा (Societas Europa)
  • संवैधानिक अर्थशास्त्र
सामान्य पृष्ठ
  • एटिमोलॉजीज़ नामक कंपनी की सूची
  • लोगों के नाम पर नामित कंपनियों की सूची
  • कंपनियों के प्रकार
  • अर्ध निगम
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रतिभूति विनियमन
  • रेस टू द बॉटम
  • कॉर्पोरेट कानून की डेलावेयर जर्नल

नोट्स

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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